आज के आर्टिकल में हम नाटक क्या है विषय पर विस्तार से बात करेंगे ,इसकी भूमिका को समझेंगे ।
नाटक क्या है (Natak kya hai)
नाटक का उद्भव
- ⋅’नाटक’ शब्द संस्कृत की ’नट्’ धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है – ’अभिनव करना।’
- दशरूपककार आचार्य धनंजय ने नाटक की परिभाषा इस प्रकार दी है – ’’अवस्थानुकृतिनाट्यम’’ अर्थात् किसी अवस्था के अनुकरण को ही नाटक कहते हैं।
- नाटक की उत्पत्ति के संबंध में विविध मत –
नाटक की उत्पत्ति के संबंध में भारतीय एवं पाश्चात्य विचारकों के अलग-अलग दृष्टिकोण माने जाते हैं। यथा –
1. भारतीय विद्वान ’नाट्यशास्त्र’ के प्रणेता आचार्य भरतमुनि के अनुसार – ’’देवताओं के द्वारा प्रार्थना करने पर ब्रह्माजी ने ऋग्वेद से ’पाठ’,सामवेद से ’गान’, यजुर्वेद से ’अभिनय’ और अर्थर्ववेद से ’रस’ लेकर ’नाटक’ नामक पंचम वेद की रचना की।’’ यथा –
’’जग्राह पाठ्यम् ऋग्वेदात् सामभ्यो गीतमेव च।
यजुर्वेदादनियं, रसानाथर्वणादपि ।।’’
इस नाटक नामक पंचम वेद के लिए ’आचार्य विश्वकर्मा’ ने ’रंगमंच’ का निर्माण किया, भगवान शिव ने ’ताण्डव नृत्य, दिया तथा माता पार्वती ने ’लास्य नृत्य’ दिया। भरतमुनि की देख रेख में सर्वप्रथम ’अमृत-मंथन’ नाटक का अभिनय किया गया ।
2. पाश्चात्य विद्वान पिशेल (Pischel) के अनुसार- ’’कठपुतलियों के खेल व नाच से नाट्य साहित्य की उत्पत्ति हुई है।’’
3. डाॅ. रिजवे (Ridgeway) के अनुसार- ’’नाटक का उदय मृत वीरों की पूजा से हुआ है। प्रारम्भिक काल में मृत आत्माओं की प्रसन्नता के लिए गीत, नाटक आदि का आयोजन हुआ था।’’
4. प्रो. हिलेब्रा (Hillebrandt) एवं प्रो. कोने (konow) के अनुसार- ’’ भारतीय नाटकों का उदय लोकप्रिय स्वांगों से हुआ है।’’
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