आज के आर्टिकल में हम सूफी काव्य के अंतर्गत मलिक मुहम्मद जायसी(Malik Muhammad Jayasi) के बारे में विस्तार से पढेंगे, इनसे जुड़ें महत्त्वपूर्ण तथ्य जानेंगे।
मलिक मुहम्मद जायसी – Malik Muhammad Jayasi
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जीवनकाल – 1492-1542 ई.
जन्म स्थल – जायस (अमेठी, उत्तरप्रदेश)
गुरु – शेख मोहिदी, शेखबुरहान, सैय्यद अहमद
सूफी संप्रदाय – मेहदवी संप्रदाय – रामपूजन तिवारी एवं रामखेलावन पाण्डेय के अनुसार
चिश्तिया संप्रदाय – रामचंद्र शुक्ल एवं परशुराम चतुर्वेदी के अनुसार
पद्मावत
🔸 इस महाकाव्य में चित्तौङ के राजा रतनसेन एवं सिंहलद्वीप की राजकुमारी पद्मावती के प्रेम विवाह एवं विवाहोत्तर जीवन की मार्मिकता से वर्णन। इतिहासकारों ने पूर्वार्द्ध भाग के कल्पना प्रसूत एवं उत्तरार्द्ध भाग को ऐतिहासिक माना।
🔹 आचार्य हरदेव बाहरी ने ’पद्मावत’ का मूल कथा स्रोत प्राकृत रचना ’रत्नशेखर कथा’ को बताया।
🔸 पद्मावत को आचार्य शुक्ल ने ’हिन्दी साहित्य का प्रथम बङा महाकाव्य’, ’समासोक्ति’ एवं ’भक्तिकाल का वेदवाक्य’ कहा तो नगेन्द्र ने ’रोमांचक शैली का कथा काव्य’ कहा।
🔹 पद्मावत ’रुपक काव्य’ (Alleyory) भी है, इसके विभिन्न पात्रों के दार्शनिक प्रतीक भी प्राप्त होते है। यथा-
- तन चितउर मन राजा कीन्हा’ हिय सिंघल बुद्धि पद्मिनी चीन्हा’’
गुरु सुआ जेइ पंथ दिखावा’ बिनु गुरु जगत को निरगुण पावा’’
नागमती यह दुनिया धंधा। बाँचा सोइ न एहिचित बंधा’’
राघव दूत सोई सैतानू’ माया अलाउद्दी सुलतानू’’
🔸 शुक्ल जी ने इसमें फेर बदल कर रत्नसेन को आत्मा एवं पद्मावती को परमात्मा बताया।
🔹 पद्मावत का बांग्ला भाषा में अनुवाद 1650 ई. में अराकान के वजीर मगन ठाकुर ने ’आलोउजाला’ से करवाया।
आलोचना ग्रंथ –
- जायसी ग्रन्थावली (1924) – रामचंद्र शुक्ल
- जायसी (1983) – विजयदेव नारायण साही
- जायसी – एक नई दृष्टि – डाॅ. रघुवंश
मलिक मुहम्मद जायसी की महत्त्वपूर्ण पंक्तियाँ –
- तीन लौक चौदह खण्ड, सबै परि मोहि सूझि।
- मुहम्मद वाजी प्रेम की, ज्यौं भावैं त्यौं खेल।
- मानुष प्रेम भयहुँ बैकुण्ठी, नाहिं ते काह छार भरी मुट्ठी।
- पद्मावत चाहत ऋतु पाई। गगन सोहावत भूमि सोहाई।
- चढ़ा आसाढ़ गगन घन गाजा’ साजा विरह दुंद दल बाजा।
- मन सरोदक बरनौ काहा’ भरा समुद्र अस अति अवगाही।
- रवि ससि नखत दिपति ओहि जोती।
- नौ पौरी तेहि गढ़ मझियारा। ओ तहँ फिराहें पाँच कोटवारा।
- भँवर केस वह मालती रानी। विसहर तुरहिं लेहिं अरबानी।
- नयन जो देखा कंवलभा। निरमल नीर सरीर।
- नवद पौरी पर दसम दुआरा। तेहि पर बाज राज घटियारा।
- पिउ सो कहेउ संदेसङा हे भौरा, हे काग।
मलिक मुहम्मद जायसी के बारे में प्रमुख कथन –
रामचंद्र शुक्ल – एक ही गुप्त तार मनुष्य मात्र के हृदयों से होता हुआ गया है जिसे छूते ही मनुष्य सारे बाहरी रूप रंग के भेदों की ओर से ध्यान हटा एकत्व का अनुभव करने लगता है।
रामचंद्र शुक्ल – नागमती का विरह वर्णन हिन्दी साहित्य में अद्वितीय वस्तु है।
रामचंद्र शुक्ल – अपनी भावुकता का बङा भारी परिचय जायसी ने इस बात में दिया है कि रानी नागमती विरह दशा में अपना रानीपन बिल्कुल भूल जाती है और अपने को केवल साधारण नारी के रुप में देखती है। इसी सामान्य स्वाभाविक वृत्ति के बल पर उसके विरह वाक्य छोटे-बङे सबके हृदय को समान रुप में स्पर्श करते है।
रामचंद्र शुक्ल – जायसी का विरह वर्णन कहीं-कहीं अत्युक्तिपूर्ण होने पर भी मजाक की हद तक नहीं पहुँचने पाया है, उसमें गांभीर्य बना हुआ है।
रामचंद्र शुक्ल – हिन्दी के कवियों में यदि कहीं रमणीय, सुन्दर अद्वैती रहस्यवाद है तो वह जायसी का है जिनकी भावुकता बहुत ही उच्च कोटि की है।
रामचंद्र शुक्ल – जायसी की भाषा बहुत ही मधुर है, पर उसका माधुर्य निराला है’ वह माधुर्य ’भाषा’ का माधुर्य है, संस्कृत का माधुर्य नहीं।
विजयदेवनारायण साही – जायसी में अपने स्वाधीन चिंतन और प्रखर बौद्धिक चेतना के लक्षण मिलते हैं जो गद्दियों और सिलसिलों की मठी या सरकारी नीतियों से अलग हैं। इस अर्थ में जायसी यदि सूफी हैं तो कुजात सूफी है।
विजयदेवनारायण साही – जायसी के पद्मावत में न सिर्फ एक विशेष जीवन दृष्टि हैं, बल्कि एक स्पष्ट सामाजिक सांस्कृतिक समन्वय भी है।
विजयदेवनारायण साही – जायसी का प्रस्थान बिन्दु न ईश्वर है न कोई नया अध्यात्म। उनकी चिन्ता का मुख्य ध्येय मनुष्य है।
विजयदेवनारायण साही – पद्मावत जिन्दगी का दर्शन नहीं, जिन्दगी है। वह जायसी का तसव्वुफ नहीं, जायसी की कविता है।
विजयदेवनारायण साही – पद्मावत का पूर्वार्द्ध भाग ’यूटोपिया’ है।
रामचंद्र शुक्ल – जायसी की भाषा देशी साँचे में ढली हुई, हिन्दुओं के घरेलू भाव से भरी हुई बहुत ही मधुर और हृदय ग्राही है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने जायसी के द्वारा रचित तीन ग्रंथों – 1 पद्मावत, 2 अखरावट तथा 3 आखिरी कलाम का ही उल्लेख किया है।
आचार्य शुक्ल के अनुसार ’पद्मावत’ की कथा का पूर्वार्द्ध ’कल्पित’ और उत्तरार्द्ध का ’ऐतिहासिक’ है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है, ’’कबीर ने केवल भिन्न प्रतीत होती हुई परोक्ष सत्ता की एकता का आभास दिया था। प्रत्यक्ष जीवन की एकता का । प्रत्यक्ष जीवन की एकता का द्र्श्य सामने रखने की आवश्यकता बनी थी। यह जायसी द्वारा पूरी हुई।’’
जायसी कृत ’पद्मावत’ में कुल 57 खण्ड है और इनका प्रिय अलंकार ’उत्प्रेक्षा ’ है।
⇒ मलिक मुहम्मद जायसी ने अपने पूर्व लिखे गये चार प्रेमाख्यानकों का उल्लेख किया है –
- मधुमालती
- मृगावती
- मुग्धावती
- प्रेमावती
जायसी द्वारा रचित महत्वपूर्ण ग्रंथ
रचना | विषय |
पद्मावत | नागमती, पद्मावती और रत्नसेन की प्रेम कहानी है। |
अखरावट | वर्णमाला के एक-एक अक्षर को लेकर सिद्धान्त सम्बन्धी तत्वों से भरी चोपाई है। |
आखिरी कलाम | कयामत का वर्णन तथा मुगल बादशाह बाबर की प्रशंसा है |
चित्ररेखा | लघु प्रेमाख्यानक |
कहरानामा | आध्यात्मिक विवाह का वर्णन है। यह कहरवा शैली में लिखी है। |
मसलानामा | ईश्वर भक्ति के प्रति प्रेम निवेदन है। |
कन्हावत |
पद्मावत में प्रयुक्त प्रतीकार्थ
पद्मावत प्रतीकार्थ
रत्नसेन मन (आत्मा)
सिंहल हृदय
पद्मावती श्रद्धा या सात्विक बुद्धि (परमात्मा)
हीरामन तोता गुरु
नागमती दुनिया धंधा या सांसारिक बुद्धि
राघव चेतन शैतान
अलाउद्दीन माया
⇒ ‘पद्मावत’ को प्रतीकात्मक महाकाव्य कहा जाता है।
⇒ जायसी कृत ‘पदमावत’ की भाषा ठेठ अवधी है।
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Sir आप अभी किस पॉस्ट पर है और आपकी कॉचिंग कहाँ चलती है कृपया बताये हमे हिंदी व्याख्याता बनना है