आज के आर्टिकल में हम हिंदी सतसई परम्परा के बारे में जानकारी देंगे, और सतसई परम्परा के प्रमुख सतसई ग्रंथों के बारे में भी बताएँगे।
हिंदी सतसई परंपरा क्या है
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मुक्तक काव्य की एक विशिष्ट विधा है। इसके अंतर्गत कविगण सात सौ या सात सौ से अधिक दोहे लिखकर एक ग्रंथ के रूप में संकलित करते हैं। “सतसई” शब्द “सत” और “सई” से बना है, “सत” का अर्थ सात और सई का अर्थ “सौ” है। इस प्रकार सतसई काव्य वह काव्य है जिसमें सात सौ छंद होते हैं
विशेषताएँ
(1) सतसइयों में सात सौ या सात सौ से कुछ अधिक छंद होते हैं।
(2) सतसइयों में प्रमुख रूप से “दोहा” छंद का प्रयोग होता है; “दोहा” के साथ “सोरठा” और “बरवै” छंद का प्रयोग भी सतसईकार बीच बीच में कर देते हैं।
(3) सतसइयों, में प्रमुख रूप से शृंगार रस की प्रधानता है। शृंगार के अतिरिक्त नीति तथा भक्ति, वैराग्य को भी सतसईकारों ने लिया है। बिहारी सतसई शृंगार प्रधान रचना है, वृंद सतसई नीतिपरक काव्य है तथा तुलसी सतसई में भक्ति, ज्ञान, कर्म और वैराग्य के दोहे हैं। सतसईकारों ने अपनी सतसईयों में प्राय: इन सभी विषयों के दोहे कहे हैं। शृंगार प्रधान सतसईयों में शृंगार के साथ नीति तथा भक्ति और वैराग्य के दोहे भी मिलते हैं, जैसे बिहारी सतसई और मतिराम सतसई में। बृंद सतसई पूर्णत: नीति सतसई है तथा तुलसी सतसई में भक्ति तया वैराग्य के दोहों के साथ नीति के दोहों की भी प्रधानता है। मुख्य रूप से शृंगार और नीति इन दोनों की प्रधानता सतसइयों में देखने को मिलती है।
(4) शृंगार में भी आधुनिक सतसइयाँ लिखी गई जिनमें यदि एक ओर शृंगार और नीति की प्रधानता है तो दूसरी ओर “वीररस तथा करुणरस के नए विषयों को भी सतसईकारों ने लिखा है। सूर्यमल्ल मिश्रण की “वीर सतसई” तथा वियोगी हरि की वीर सतसई में राष्ट्रीयता को जगाने के लिए वीरोचित उक्तियाँ कही गई हैं और देश की दुर्दशा पर उन्होंने करुणा से युक्त दोहे कहे हैं। सतसई वस्तुत: मुक्तक काव्य की एक विशिष्ट परंपरा है।
प्रमुख सतसई ग्रन्थ
- गाथा सप्तशती (हाल, प्राकृत भाषा में रचित, शृंगार -चित्रण, नायिका के अंग-प्रत्यंगों का सूक्ष्मातिक्ष्म वर्णन, आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी गाथासप्तशती को इस परम्परा का सबसे प्राचीन ग्रंथ मानते हैं।)
- आर्या सप्तशती (गोवर्धनाचार्य, संस्कृत में रचित, हाल की गाथासप्तशती के आधार पर, 12वीं शती में रचित, संयोग और वियोग पक्ष का सुन्दर चित्रण)
- अमरूक शतक (राजा अमरूक, संस्कृत में रचित शृंगार रस के मनोहारी श्लोक, संयोग और वियोग पक्ष का चित्रण)
- हिततरंगिणी (1541 ई., कृपाराम, हिंदी सतसई परम्परा की प्रथम कृति)
- तुलसी सतसई (1585 ई., तुलसीदास, 747 दोहे)
- रहीम सतसई अथवी दोहावली (रहीम, नीति और भक्तिपरक दोहे)
- दुर्गा सप्तशती का हिंदी अनुवाद (अक्षर अनन्य)
- अमीर सतसई (1832 ई., अमीरदास, 701 शृंगार परक दोहे, शृंगार रस के आलम्बन श्रीकृष्ण और राधा)
- दुर्गा भक्तिचंद्रिका (कुलपति मिश्र)
- बिहारी सतसई (1662 ई., बिहारीलाल, 713 दोहे)
- मतिराम सतसई (1681 ई., मतिराम, 703 दोहे, 626 दोहे शृंगार परक, 22 भक्तिपरक, 15 नीतिपरक, 40 अन्य)
प्रमुख सतसई ग्रन्थ
- वृंद सतसई (वृंद, 1704 ई., नीति सतसई, मुख्य रूप से नीति और सदाचार के दोहे)
- यमक सतसई (1706 ई., वृंद)
- भूपति सतसई (1734 ई., भूपति, शृंगारिक दोहे)
- चंदन सतसई (चंदन)
- राम सतसई अथवा शृंगार सतसई (रामसहाय दास, 724 शृंगारपरक दोहे, संयोग और वियोग पक्ष का वर्णन)
- विक्रम सतसई (विक्रमादित्य, 742 दोहे जिनमें 573 शृंगारिक दोहे)
- रसनिधि सतसई (रसनिधि)
- वीर सतसई (सूर्यमल मिश्रण, वीर रस के कवि सूर्यमल्ल मिश्रण के दोहा-संग्रह में 1857 की क्रांति से सम्बंधित दोहे हैं, जिसमें राजस्थान की वीरांगना क्षत्राणी, योद्धाओं की मनोदशा का वर्णन है।)
- वीर सप्तशती (सूर्यमल्ल मिश्रण)
- ब्रजविलास सतसई (1832 ई., अमीरदास)
- आनंद प्रकाश सतसई (दलसिंह)
- सतसैया रामायण (कीरत सिंह)
- बसंत सतसई (बसंत सिंह ‘ऋतुराज’)
- वीर सतसई (1927 ई., वियोगी हरि, ब्रज भाषा में)
- स्वदेश सतसई (1930 ई., ब्रजभाषा में, महेशचंद्र प्रसाद)
- करुण सतसई (1930 ई., रामेश्वर करुण )
- हरिऔध सतसई (1940 ई., अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध)
- ज्ञान सतसई (राजेंद्र शर्मा)
- ब्रज सतसई (1937 ई.,रामचरित उपाध्याय)
- अमृत सतसई (अमृतलाल चतुर्वेदी)
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