Ramchandra shukl – रामचन्द्र शुक्ल के महत्वपूर्ण कथन

आज के आर्टिकल में हम परीक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण रामचन्द्र शुक्ल के महत्वपूर्ण कथन(Ramchandra shukl) पढेंगे ,जो हमारे लिए जानना आवश्यक है

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के महत्वपूर्ण कथन

Table of Contents

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के रीतिकालीन कवियों के लिए कुछ महत्वपूर्ण कथन-

“इनकी भाषा ललित और सानुप्रास होती थी”- चिंतामणि त्रिपाठी के लिए

“भाषा चलती होने पर भी अनुप्रासयुक्त होती थी”- बेनी प्रवीन के लिए

“इस ग्रंथ को इन्होंने वास्तव में आचार्य के रूप में लिखा है, कवि के रुप में नहीं” – भाषा भूषण ग्रंथ (महाराजा जसवंत सिंह) के लिए

“इसका एक-एक दोहा हिंदी साहित्य में एक-एक रत्न माना जाता है”-बिहारी सतसई के लिए

“इसमें तो रस के ऐसे छींटे पडते हैं जिनसे हृदयकलिका थोड़ी देर के लिए खिल उठती है”-बिहारी सतसई के लिए

“यदि प्रबंध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है तो मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता है”-बिहारी सतसई के लिए

“जिस कवि में कल्पना की समाहार शक्ति के साथ भाषा की समाहार शक्ति जितनी अधिक होगी उतनी ही

वह मुक्तक की रचना में सफल होगा”– बिहारी के लिए

“बिहारी की भाषा चलती होने पर भी साहित्यिक है।” “कविता उनकी श्रृँगारी है, पर प्रेम की उच्च भूमि पर नहीं पहुंचती,

नीचे ही रह जाती है”– बिहारी के लिए

“भाषा इनकी बड़ी स्वाभाविक, चलती और व्यंजना पूर्ण होती थी”- मंडन के लिए

“इनका सच्चा कवि हृदय था”- मतिराम के लिए

“रीतिकाल के प्रतिनिधि कवियों में पद्माकर को छोड़ और किसी कवि में मतिराम की सी चलती भाषा

और सरल व्यंजना नहीं मिलती”- मतिराम के लिए

“उनके प्रति भक्ति और सम्मान की प्रतिष्ठा हिंदू जनता के हृदय में उस समय भी थी और आगे भी बराबर बनी रही या बढ़ती गई”- भूषण के लिए

“भूषण के वीर रस के उद्गार सारी जनता के हृदय की संपत्ति हुए”– भूषण के लिए

“जिसकी रचना को जनता का हृदय स्वीकार करेगा उस कवि की कीर्ति तब तक बराबर बनी रहेगी, जब तक स्वीकृति बनी राहेगी” – भूषण के लिए

“शिवाजी और छत्रसाल की वीरता का वर्णनों को कोई कवियों की झूठी खुशामद नहीं कह सकता”– भूषण के लिए

“वे हिंदू जाति के प्रतिनिधि कवि हैं।”– भूषण के लिए

“छंदशास्त्र पर इनका-सा विशद निरूपण और किसी कवि ने नहीं किया है”- सुखदेव मिश्र के लिए

” ये आचार्य और कवि दोनों रूपों में हमारे सामने आते हैं”– देव के लिए

“कवित्वशक्ति और मौलिकता देव में खूब थी पर उनके सम्यक स्फूर्ण में उनकी रुचि विशेष प्रायः बाधक हुई है”– देव के लिए

“रीतिकाल के कवियों में ये बड़े ही प्रगल्भ और प्रतिभासंपन्न कवि थे, इसमें संदेह नहीं”– देव के लिए

श्रीपति ने काव्य के सब अंगों का निरूपण विशद रीति से किया है।”

“इनकी रचना कलापक्ष में संयत और भावपक्ष में रंजनकारिणी है”- भिखारी दास के लिए

“ऐसा सर्वप्रिय कवि इस काल के भीतर बिहारी को छोड दूसरा नहीं हुआ है। इनकी रचना की रमणीयता ही इस सर्वप्रियता का एकमात्र कारण है”- पद्माकर के लिए

“रीतिकाल की सनक इन में इतनी अधिक थी कि इन्हें यमुना लहरी नामक देव स्तुति में भी नवरस और षट् ऋतु सुझाई पड़ी है” – ग्वाल कवि के लिए

“षट् ऋतुओं का वर्णन इन्होंने विस्तृत किया है पर वही श्रृंगारी उद्दीपन के ढंग का”- ग्वाल कवि के लिए

 ” ग्वाल कवि ने देशाटन अच्छा किया था और उन्हें भिन्न-भिन्न प्रांतों की बोलियों का अच्छा ज्ञान हो गया था।”

आचार्य शुक्ल के आदिकाल से सम्बन्धित कथन-

“प्रत्येक देश का साहित्य वहां की जनता की चित्तवृत्ती का संचित प्रतिबिंब होता है।”

“इन कालों की रचनाओं की विशेष प्रवृत्ति के अनुसार ही उनका नामकरण किया गया है।”

“हिंदी साहित्य का आदिकाल संवत् 1050 से लेकर संवत् 1375 तक अर्थात महाराज भोज के समय से लेकर हम्मीरदेव के समय के कुछ पीछे तक माना जा सकता है।”

“जब तक भाषा बोलचाल में थी तब तक वह भाषा या देशभाषा ही कहलाती रही, जब वह भी साहित्य की भाषा हो गई ,तब उसके लिए अपभ्रंश शब्द का व्यहार होने लगा।”

“नाथपंथ के जोगियों की भाषा सधुक्कड़ी भाषा थी।”

“सिद्धों की उद्धृत रचनाओं की भाषा देश भाषा मिश्रित अपभ्रंश या पुरानी हिंदी की काव्य भाषा है।”

“सिद्धो में सरहपाद सबसे पुराने अर्थात विक्रम संवत 690 के हैं।”

“कबीर आदि संतो को नाथपंथियों से जिस प्रकार साखी और बानी शब्द मिले उसी प्रकार साखी और बानी के लिए बहुत कुछ सामग्री और सधुक्कड़ी भाषा भी।”

“वीरगीत के रुप में हमें सबसे पुरानी पुस्तक बीसलदेवरासो मिलती है।”

“बीसलदेव रासो में काव्य के अर्थ में रसायण शब्द बार-बार आया है। अतः हमारी समझ में इसी रसायण शब्द से होते-होते रासो हो गया है।”

“बीसलदेव रासो में आए “बारह सै बहोत्तरा” का स्पष्ट अर्थ 1212 है।”

“यह घटनात्मक काव्य नहीं है, वर्णनात्मक है।”- बीसलदेव रासो के लिए

“भाषा की परीक्षा करके देखते हैं तो वह साहित्यिक नहीं है, राजस्थानी है।”- बीसलदेव रासो के लिए

“अपभ्रंश के योग से शुद्ध राजस्थानी भाषा का जो साहित्यिक रूप था वह डिंगल कहलाता था।”

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top