दोस्तो आज हम हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक डॉ. नगेन्द्र जी(Dr. Nagendra) के बारे में विस्तार से पढेंगे और इनसे जुड़ें महत्त्वपूर्ण तथ्य पढेंगे।
डॉ. नगेन्द्र सम्पूर्ण लेखक परिचय
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इनका जन्म-9 मार्च, 1915 को अलीगढ़ , उत्तर प्रदेश में हुआ था इनका निधन 27 अक्टूबर, 1999
को हुआ
पुरस्कार –साहित्य अकादमी पुरस्कार (‘रस-सिद्धांत’ के लिए 1965 में)
– इन्होंने 1948 ईस्वी में रीतिकाव्य की भूमिका और महाकवि देव विषय पर शोध उपाधि प्राप्त की थी|
प्रमुख रचनाएं :-
निबंध /आलोचना:-
- 1938 सुमित्रानंदन पंत (पहली आलोचनात्मक पुस्तक)
- 1939 साकेत: एक अध्ययन
- 1944 विचार और विवेचन(निबंध)
- 1949 आधुनिक हिंदी नाटक
- ⋅1949 विचार और अनुभूति(निबंध)
- 1949 रीति काव्य की भूमिका हिंदी साहित्य का इतिहास
- 1951 आधुनिक हिन्दी कविता की मुख्य प्रवृत्तियाँ
- 1955 विचार और विश्लेषण (निबंध)
- 1957 अरस्तू का काव्यशास्त्र
- 1961 अनुसंधान और आलोचना
- 1962 कामायनी के अध्ययन की समस्याएं
- 1964 रस-सिद्धांत (महत्त्वपूर्ण )
- 1966 आलोचक की आस्था (निबंध)
- 1969 आस्था के चरण (निबंध संग्रह)
- 1970 नयी समीक्षाः नये संदर्भ
- 1971 समस्या और समाधान
- 1973 हिन्दी साहित्य का बृहत इतिहास (दस भाग)
- 1979 मिथक और साहित्य
- 1982 साहित्य का समाज शास्त्र
- 1985 भारतीय समीक्षा और आचार्य शुक्ल की काव्य दृष्टि
- 1987 मैथलीशरण गुप्त : पुनर्मूल्यांकन
- 1990 प्रसाद और कामायिनी
- 1993 राम की शक्तिपूजा
- अभिनव भारती
- नाट्य दर्पण
- काव्य में उदात्त तत्व
- काव्य कला
- भारतीय काव्यशास्त्र की परंपरा
- पाश्चात्य काव्यशास्त्र की परंपरा चेतना के बिंब (निबंध)
- वीणापाणि के कम्पाउण्ड में (निबंध)
- हिंदी उपन्यास (निबंध)
- अर्द्धकथा-1988 (आत्मकथा)
डॉ. नगेन्द्र ने सम्पूर्ण हिंदी साहित्योतिहास को चार प्रधान कालखंडों में बांटा है, आधुनिक काल को भी चार उप भागों में बांटा है:-
- आदिकाल- सातवीं शताब्दी के मध्य से 14वीं शताब्दी के मध्य तक
- भक्तिकाल- 14 वी शताब्दी के मध्य से 17वीं शताब्दी के मध्य तक
- रीतिकाल- 17वीं शताब्दी के मध्य से 19वीं शताब्दी के मध्य तक
- आधुनिक काल- 19 वीं शताब्दी के मध्य से अब तक
(1)पुनर्जागरण काल (भारतेंदु काल) -1857 ई. से 1900 ई. तक
(2) जागरणसुधारकाल (द्विवेदी काल)- 1900-1918 ई. तक
(3) छायावादकाल-1918-1938 ई. तक
(4) छायावादोत्तर काल:
(क) प्रगति-प्रयोग काल- 1938-1953 ई. तक
(ख) नवलेखनकाल- 1953 ई. से अब तक
विशेष
⇒ ये रसवादी आलोचक माने जाते हैं|
⇒इनका साहित्यिक जीवन कवि के रूप में आरंभ होता है। सन 1937 ई. में उनका पहला काव्य संग्रह ‘वनबाला’ प्रकाशित हुआ
⇒इन्होंने फ्रायड के मनोविश्लेषण शास्त्र के आधार पर नाटक और नाटककारों की आलोचनाएँ लिखीं।
⇒डॉ. नगेन्द्र के निबन्धों की भाषा शुद्ध, परिष्कृत, परिमार्जित, व्याकरण सम्मत तथा साहित्यिक खड़ी बोली है।
⇒नगेन्द्र जी ‘दिल्ली विश्वविद्यालय’ से प्रोफ़ेसर तथा हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद पर से सेवानिवृत्त होने के उपरान्त स्वतन्त्र रूप से साहित्य की साधना में संलग्न हो गये थे। -ये ‘आगरा विश्वविद्यालय’, आगरा से “रीतिकाल के संदर्भ में देव का अध्ययन” शीर्षक शोध प्रबन्ध पर शोध उपाधि से अलंकृत हुए थे।