आज के आर्टिकल में हम काव्यशास्त्र के अंतर्गत उल्लाला छंद (Ullala Chand) को विस्तार से पढेंगे ,इससे जुड़ें महत्त्वपूर्ण उदाहरणों को भी पढेंगे।
उल्लाला छंद – Ullala Chand
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उल्लाला छंद किसे कहते हैं
दोस्तो यह एक मात्रिक छंद होता हैं। इस छंद के प्रत्येक चरण में 15 व 13 के क्रम से 28 मात्रायें होती हैं। इसके अलावा पहले और तीसरे चरणों में 15-15 तथा दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्रायें होती हैं।
उल्लाला छंद के लक्षण
- यह अर्द्धसम मात्रिक छंद होता है।
- इसके विषम चरणों में 15-15 मात्रायें तथा सम चरणों में 13-13 के हिसाब से कुल 28 मात्रायें होती है।
- उल्लाला के दो भेद होते है। तथापि 13 मात्राओं वाले चरण में लघु-गुरु का कोई विशेष नियम नहीं है। लेकिन 11 वीं मात्रा लघु ही होती है। 15 मात्राओं वाले चरण में 13 वीं मात्रा लघु होती है।
- 13 मात्राओं वाला चरण बिल्कुल दोहे की तरह होता है, बस दूसरे चरण में केवल दो मात्रायें बढ़ जाती है। प्रथम चरण में लघु-दीर्घ से विशेष फर्क नहीं पङता।
- उल्लाला छन्द को चन्द्रमणि भी कहा जाता है।
- इसमें यति प्रत्येक चरण के अंत में होती है।
- इसमें तुक सदैव सम चरणों में मिलती है।
उल्लाला छंद के उदाहरण – Ullala Chand ke Udaharan
हे शरणदायिनी देवि! तू, करती सबका त्राण है।
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15 मात्राएँ 13 मात्राएँ
हे मातृभूमि संतान हम, तू जननी तू प्राण है।।
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15 मात्राएँ 13 मात्राएँ
करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेष की
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हे मातृभूमि तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की
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उसकी विचार धारा, धरा के धर्मों में है वही-
सब सार्वभौम सिद्धान्त, का आदि प्रवर्तक है वही
निर्मल अति मन में सदा, उठता यह उद्गार है
सुगति स्वर्ग-अपवर्ग का, गुरु प्रसाद ही द्वार है
सब भांति सुशासित हो जहाँ, समता के सुख कर नियम
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बस उसी स्वशासित देश में, जागे हे जग दीश हम।।
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भूखी आंतों के लिए, सेंसक्स बस बवाल है।
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तीसमार खा कह रहे, मार्केट में उछाल है।
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निर्मल मति मन में सदा,
उठता यह उद्धार है।
सुगति स्वर्ग अपवर्ग का,
गुरु-प्रसाद ही द्वार है।।
उल्लाला छंद के अन्य उदाहरण
गुरु किरपा से सब मिला, गुरु जीवन आधार हैं।
गुरु बिन ध्यान ना ज्ञान है, गुरु भव तारणहार है।
गुरु चरणों में है मिला, मुझको जीवन सार है।
गुरु आज्ञा जो मानता, उसका तो उद्धार है।।
प्रेम नेम हित चतुरई,
जे न बिचारत नेकु मन
सपनेहुँ न विलम्बियै,
छिन तिग हिग आनन्द घन।।
मुखिया अपने घर ग्राम के, होते लाखों लोग हैं।
पर बनते कुछ ही मुख्य हैं, हिय बसते संयोग हैं।।
जननी माता सबसे बङी, धरणी सा व्यवहार है।
दोनों माता को कर नमन, इनसे ही संसार है।।
भाषा उत्तम है मौन की, लाखों हल रखती सदा।
सम्भव हो तो सब बोलिये, ये सुर गूँजे सर्वदा।।
मधुबन की हरियाली महक, जो देती फल फूल है।
चलती है फिर आरी सदा, ये मानव की भूल है।।
प्रभु में आस्था घर नींव मित, गहरी रखिए सीख मन।
शिक्षा पोषणमय स्वच्छता, उत्तम जीवन लीख जन।।
सूरज सम मुखिया हो सदा, दल हो या सरकार घर।
जन मत को दे अवसर भले, पोषण हित आधार पर।।
निष्कर्ष :
आज के आर्टिकल में हमने काव्यशास्त्र के अंतर्गत उल्लाला छंद (Ullala Chand) को पढ़ा, हम आशा करतें है कि आपको यह छंद अच्छे से समझ में आ गया होगा …धन्यवाद
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