आज के आर्टिकल में हम हिंदी व्याकरण के अंतर्गत बहुव्रीहि समास (Bahuvrihi Samas), बहुव्रीहि समास की परिभाषा(Bahuvrihi Samas ki Pribhasha), बहुव्रीहि समास के भेद(Bahuvrihi Samas ke bhed), बहुव्रीहि समास के उदाहरण(Bahuvrihi Samas ke Udaharan) को विस्तार से समझेंगे।
बहुव्रीहि समास – Bahuvrihi Samas
Table of Contents
आज के आर्टिकल में हम निम्न बिन्दुओं का पढेंगे –
- बहुव्रीहि समास किसे कहते है?
- बहुव्रीहि समास की विशेषताएँ
- बहुव्रीहि समास की पहचान
- बहुव्रीहि समास के भेद
- बहुव्रीहि समास उदाहरण
- बहुव्रीहि समास के महत्त्वपूर्ण प्रश्न
बहुव्रीहि समास की परिभाषा – Bahuvrihi Samas ki Paribhasha
- वह समास जिसके समस्तपदों में से से कोई भी पद प्रधान नहीं होता एवं दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं, वह बहुव्रीहि समास कहलाता है।
- बहुव्रीहि समास में बहु का अर्थ है – ’बहुत’ एवं ब्रीहि का अर्थ है – ’’सम्पन्न व्यक्ति’’ अर्थात् बहुत सम्पन्न व्यक्ति ही बहुव्रीहि समास कहलाता है।
बहुव्रीहि समास किसे कहते हैं?
बहुव्रीहि समास की विशेषताएँ
- कोई भी पद प्रधान नहीं होता है।
- इसमें प्रयुक्त सामान्य पदों की अपेक्षा किसी अन्य अर्थ की प्रधानता रहती है।
- किसी रूढ़िवादी परम्परा के कारण अथवा किसी विशिष्ट अर्थ के कारण जब कोई शब्द किसी एक ही अर्थ में रूढ़ हो जाता है, वहाँ बहुव्रीहि समास माना जाता है।
- विग्रह करने पर ’वाला’, ’जो’, जिसका, जिसकी, जिसके आदि का प्रयोग किया जाता है।
बहुव्रीहि समास की पहचान – Bahuvrihi Samas ki Pahchan
बहुव्रीहि समास के उदाहरण – Bahuvrihi Samas ke Udaharan
बहुव्रीहि समास के उदाहरण | |
गजानन | गज से आनन वाला (गणेश) |
चतुर्भुज | चार हैं भुजाएँ जिसकी (विष्णु) |
त्रिलोचन | तीन आँखों वाला (शिव) |
चतुरानन | वह जिसके चतुर (चार) आनन हैं (ब्रह्मा) |
पंचानन | वह जिसके पाँच आनन हैं (शिव) |
षडानन | वह जिसके षट् आनन हैं (कार्तिकेय) |
सुग्रीव | वह जिसकी ग्रीवा सुन्दर है (वानरराज) |
चक्षुश्रवा | वह जो चक्षु से श्रवण करता है (साँप) |
दशानन | दस है आनन जिसके (रावण) |
षण्मुख | वह जिसके षट् मुख हैं (कार्तिकेय) |
मुरलीधर | मुरली धारण करने वाला (कृष्ण) |
दशमुख | वह जिसके दस मुख हैं (रावण) |
चतुर्मुख | चार हैं मुख जिसके (ब्रह्मा) |
पीताम्बर | वह जिसके पीत अम्बर (वस्त्र) हैं (कृष्ण/विष्णु) |
लम्बोदर | लंबा है उदर जिसका (गणेश) |
मनोज | वह जो मन से जन्म लेता है (कामदेव) |
एकदंत | एक दंत वाले (श्री गणेश) |
वीणापाणि | वह जिसके पाणि (हाथ) में वीणा है (सरस्वती) |
वक्रतुण्ड | वक्र है तुण्ड जिनके (श्री गणेश) |
वज्रपाणि | वह जिसके पाणि में शूल है (शिव) |
निशाचर | निशा अर्थात रात में विचरण करने वाला (राक्षस) |
शूलपाणि | वह जिसके पाणि में शूल है (शिव) |
गौरीपुत्र | गौरी पुत्र है जो (श्री गणेश) |
आशुतोष | वह जो आशु (शीघ्र) तुष्ट हो जाते हैं (शिव) |
शैलजा/शैलतनाया गिरिजा | शेल से जननी है जो (माँ पार्वती) |
त्रिनेत्र | वह जिसके तीन नेत्र हैं (शिव) |
जनकतनया | जनक की पुत्री है जो (माँ सीता) |
चन्द्रचूङ | वह जिसके चूङ (सिर) पर चन्द्र है (शिव) |
वृषभानुजा | वृषभानु कि पुत्री है जो माँ राधा |
लम्बोदर | वह जिसका उदर लम्बा है (गणेश) |
हृषीकेश | वह जो हृषीक (इन्द्रियों) के ईश हैं (विष्णु/कृष्ण) |
युधिष्ठिर | वह जो युद्ध में स्थिर रहता है (धर्मराज) |
पंजाब | पाँच आबों (नदियों) का क्षेत्र (एक राज्य) |
पतझङ | पत्ते झङ जाते है जिस ऋतु में |
त्रिवेणी | वह स्थान जो तीन वेणियों (नदियों) का संगम स्थल है (प्रयाग) |
शाखामृग | शाखाओं पर दौङने वाला मृग (बन्दर) |
पंचवटी | पाँच वटवृक्षों के समूह वाला स्थान (मध्यप्रदेश का एक स्थान) |
नवरात्र | नव रात्रियों के चार माह (आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन) |
महावीर | महान् है जो वीर वह (हनुमान) |
त्रिशूल | तीन हैं शूल जिसमें वह (शिव का अस्त्र) |
चौमासा | वर्षा ऋतु के चार माह (आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन) |
अनुचर | अनु (पीछे) चर (चलने) वाला (सेवक) |
रत्नगर्भा | रत्न हैं गर्भ में जिसके वह (पृथ्वी) |
महाविद्यालय | महान है जो विद्यालय |
प्रधानमंत्री | प्रधान है जो मंत्री |
महाकाव्य | महान है जो काव्य |
कापुरूष | कायर है जो पुरूष |
महापुरूष | महान है जो पुरूष |
सज्जन | सत् है जो पुरूष |
सदाचार | सत् है जो आचार |
पद्मासन | पद्म पर आसित है जो (सरस्वती) |
सहस्राक्ष | सहस्त्र अक्ष (हाथ) है (इन्द्र) |
श्रीश | श्री (लक्ष्मी) के ईश (पति) है जो (विष्णु) |
रेवतीरमण | रेवती के साथ रमण करते है (बलराम) |
कुसुमसर | कुसुम के समान तीर है जिसके (कामदेव) |
पुष्पधन्वा | पुष्पों से निर्मित धनुष है जिसका वह (कामदेव) |
वज्रांग | वज्र के समान अंग हैं जिसके वह (बजरंग बली) |
वक्रतुण्ड | वक्र (टेढ़ा) है तुंड (मुख) जिसका वह (गणेश) |
सूतपुत्र | सूत (सारथि) का पुत्र है जो वह (कर्ण) |
त्र्यम्बक | त्रि (तीन) अम्बक (नेत्र) हैं जिसके वह (शिव) |
हलधर | वह जो हल को धारण करता है (बलराम) |
रघुनन्दन | रघु का नंदन है जो वह (विष्णु) |
पंचामृत | पाँच है अमृत जो वे (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) |
रमेश | रमा का ईश है जो वह (विष्णु) |
विश्वंभर | विश्व का भरण करता है जो वह (विष्णु) |
हरफनमौला | हर फन (कला) में है जो मौला (निपुण) |
त्रिदोष | तीन दोष हैं जो वे (वात्त, पित्त, कफ) |
षट्पद | छह हैं पैर जिसके वह (भ्रमर) |
तिरंगा | तीन है रंग जिसके वह (राष्ट्रीय ध्वज) |
माधव | मधु, राक्षस को मारने वाला (कृष्ण) |
गोपाल | गायों का पालन करने वाला है वह (कृष्ण) |
लोहागढ़ | लोहे के समान अजेय गढ़ है जो वह (भरतपुर का किला) |
राजपूत | राजा का है पूत जो (एक जाति विशेष) |
चौपाई | चार हैं पद जिसमें वह (एक छन्द विशेष) |
नकटा | नाक है कटी जिसकी वह (बेशर्म) |
विमल | मल से रहित है जो वह (स्वच्छ) |
षाण्मातुर | छह हैं माताएँ जिसकी वह |
दिनेश | दिन है ईश जो वह (सूर्य) |
उमेश | उमा है ईश जो वह (शिव जी) |
तिरंगा | तीन है रंग जिसमें वह (राष्ट्रध्वज) |
आशुतोष | आशु (शीघ्र) हो जाता है तोष |
बहुव्रीहि समास के भेद – Bahuvrihi Samas ke Bhed
⇒ बहुव्रीहि समास के पाँच भेद है –
- समानाधिकरण बहुव्रीहि समास
- व्याधिकरण बहुव्रीहि समास
- तुल्ययोग बहुव्रीहि समास
- व्यतिहार बहुव्रीहि समास
- प्रादी बहुव्रीहि समास
(1) समानाधिकरण बहुव्रीहि समास
जहाँ दोनों पदों का रूवरूप समान हों अर्थात् दोनों पदों की विभक्ति समान हो, उसे समानाधिकरण बहुव्रीहि समास कहते हैं।
समानाधिकरण बहुव्रीहि समास के उदाहरण | |
जितेंद्रियां | जीती गई इंद्रियां है जिसके द्वारा |
दत्तधन | दिया गया है धन जिसके लिए |
पीताम्बर | पीत है अम्बर जिसका |
दत्तचित | दे दिया है चित्त जिसने |
प्राप्तोदक | प्राप्त कर लिया है उदक (जल) जिसने |
कलहप्रिय | कलह है प्रिय जिसको |
चौलङी | चार हैं लङियाँ जिसमें |
गोपाल | गौ का पालन करता है जोे |
दिगम्बर | दिक (दिशाएँ) है अम्बर (वस्त्र) जिसका |
पंकज | पंक (कीचङ) में जन्म लेने वाला अर्थात् कमल |
चन्द्रभाल | चन्द्रमा है माथे पर जिसके अर्थात् शंकर |
मृत्युजंय | मृत्यु को जीतने वाला अर्थात् शंकर |
2. व्यधिकरण बहुव्रीहि समास
जिस समस्त पद में दोनों पदों का अधिकरण समान न हो अर्थात् दोनों पदों में अलग-अलग कारक चिह्नों का प्रयोग हो, उसे व्यधिकरण बहुव्रीहि समास कहते है।
व्यधिकरण बहुव्रीहि समास के उदाहरण | |
सूर्यपुत्र | वह जो सूर्य का पुत्र है (कर्ण) |
नकटा | कट गई है नाक जिसकी |
दीर्घबाहु | लम्बी है भुजाएँ जिसकी (विष्णु) |
मोदकप्रिय | लड्डू है प्रिय जिसको (गणेश) |
कामारि | कामदेव का है शत्रु जो (शिव) |
मकरध्वज | वह जिसके मकर का ध्वज है (कामदेव) |
ब्रजवल्लभ | वह जो ब्रज का वल्लभ है (कृष्ण) |
रावनारि | रावण का है शत्रु जो (राम) |
दीर्घबाहु | लम्बी है भुजाएं जिसकी (विष्णु) |
3. तुल्ययोग बहुव्रीहि समास
इसमें पहला पद ’सह’ होता है। इसमें ’सह’ (साथ) के द्वारा एक के साथ दूसरे का भी किसी क्रिया के साथ समान योग होता है। उसे तुल्ययोग बहुव्रीहि समास कहते है।
तुल्ययोग बहुव्रीहि समास के उदाहरण | |
सबल | जो बल के साथ है वह |
सपरिवार | जो परिवार के साथ हैै वह |
सदेह | देह के साथ है जो |
सचेत | चेतना के साथ है जो |
4. व्यतिहार बहुव्रीहि समास
जिससे घात-प्रतिघात सूचित होता है। उसे व्यतिहार बहुव्रीहि समास कहते है। इस समास में यह प्रतीत होता है कि इस चीज से और उस चीज से लङाई हुई है।
व्यतिहार बहुव्रीहि समास के उदाहरण | |
मुक्कामुक्की | मुक्के-मुक्के से जो लङाई हुई |
लाठालाठी | लाठी-लाठी से जो लङाई हुई |
गालागाली | गलियों से जो झगङा हुआ हो |
धक्काधुक्की | बात बात से जो झगङा हुआ हो |
5. प्रादी बहुव्रीहि समास
जिस बहुव्रीहि समास में पूर्व पद उपसर्ग हो वह प्रादी बहुव्रीहि समास कहलाता है।
प्रादी बहुव्रीहि समास के उदाहरण | |
बेरहम | नहीं है रहम जिसमें |
निर्जन | नहीं है जन जहां |
निष्कर्ष :
आज के आर्टिकल में हमनें हिंदी व्याकरण के अंतर्गत समास टॉपिक को आगे बढ़ाते हुए बहुव्रीहि समास (Bahuvrihi Samas) को विस्तार से पढ़ा। बहुव्रीहि समास की परिभाषा (Bahuvrihi Samas ki Paribhasha), बहुव्रीहि समास के उदाहरण (Bahuvrihi Samas ke Udaharan), बहुव्रीहि समास की पहचान, को बहुत ही अच्छे ढंग से समझा है। आपकी कोई भी प्रतिक्रिया हो तो नीचे की तरफ कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।
बहुव्रीहि समास के प्रश्न – Bahuvrihi Samas
1. बहुव्रीहि समास किसे कहते है ?
उत्तर – ऐसा समास जिसके दोनों पद गौण होते है तथा दोनों पदों के आपस में मिलने पर किसी अन्य पद की प्रधानता होती है। उसे बहुव्रीहि समास कहते है।
2. बहुव्रीहि समास का एक उदाहरण बताइये ?
उत्तर – चतुर्भज – चार हैं भुजाएँ जिसकी (विष्णु)
3. बहुव्रीहि समास के कितने भेद है ?
उत्तर – बहुव्रीहि समास के पाँच भेद होते हैं –
(1) समानाधिकरण बहुव्रीहि समास
(2) व्याधिकरण बहुव्रीहि समास
(3) तुल्ययोग बहुव्रीहि समास
(4) व्यतिहार बहुव्रीहि समास
(5) प्रादी बहुव्रीहि समास