दोस्तो आज की इस पोस्ट मे हम महावीर प्रसाद द्विवेदी (Mahavir Prasad Dwivedi)जी के बारे मे विस्तार से जानेंगे ,इसलिए आप इस पोस्ट को अच्छे से पढ़िएगा।
महावीर प्रसाद द्विवेदी – Mahavir Prasad Dwivedi
Table of Contents
- जन्म – 1864 ई.
- जन्मस्थान – ग्राम – दौलतपुर, जिला – रायबरेली (उ.प्र.)
- मृत्यु – 21 दिसम्बर, 1938 ई. (रायबरेली में)
- प्रमुख रचनाएँ – इनके द्वारा रचित मौलिक और अनूदित गद्य-पद्य रचनाओं की संख्या लगभग 80 मानी जाती है।
(क) मौलिक रचनाएँ –
- काव्य-मंजूषा
- सुमन (1923 ई.)
- कान्य-कुब्ज
- अबला विलाप
- संपत्ति शास्त्र
- महिला मोद
- कविता कलाप
- नागरी तेरी यह दशा
(ख) अनूदित रचनाएँ –
- कुमारसंभव सार (संस्कृत के कालिदास द्वारा विरचित ’कुमारसंभव’ महाकाव्य का हिंदी अनुवाद 1902 ई. में किया।)
- ऋतु-तरंगिणी
- गंगा – लहरी
(ग) प्रसिद्ध लेख
क्या हिंदी नाम की कोई भाषा ही नहीं (सरस्वती, 1913 ई.)
आर्य समाज का कोप (सरस्वती, 1914 ई.)
’भुजंगभूषण भट्टाचार्य’ नाम से प्रकाशित लेख – ’कवियों की उर्मिला विषयक उदासीनता’ (1908 ई. की सरस्वती में )
निबन्ध –
1. कवि और कविता |
2. कवि प्रतिभा |
3. कवि कर्तव्य |
4. साहित्य की महत्ता |
5. लोभ |
6. मेघदूत |
7. क्या हिन्दी नाम की कोई भाषा नहीं – (सरस्वती-1913 ई.) |
8. आर्य समाज का कोप – (सरस्वती 1914 ई.) |
अनूदित गद्य साहित्य(Mahavir Prasad Dwivedi)
1. 1891 ई. भामिनी विलास – प. जगन्नाथ के ’भामिनी विलास’ का अनुवाद। |
2. 1896 ई. अमृत लहरी – प. जगन्नाथ के ’यमुना-स्त्रोत’ का भावानुवाद। |
3. 1901 ई. बेकन विचार रत्नावली – बेकन के निबंधो का अनुवाद। |
4. 1906 ई. शिक्षा – हरबर्ट स्पेसर के ’एज्यूकेशन’ का अनुवाद। |
5. 1907 ई. स्वाधीनता – जाॅन स्टुबर्टनील के ’ऑन -लिबर्टी’ का अनुवाद। |
6. 1907 ई. जल चिकित्सा – जर्मन लेखक लुई कोने की जर्मन पुस्तक के अंगे्रजी अनुवाद का अनुवाद। |
7. 1908 ई. महाभारत – महाभारत की कथा का हिन्दी रूपान्तरण। |
8. 1912 ई. रघुवंश – ’रघुवंश’ महाकाव्य का भाषानुवाद। |
9. 1913 ई. वेणी संहार – संस्कृत कवि भट्ट नारायण के नाटक ’वेणी संहार’ का अनुवाद। |
10. 1915 ई. कुमार सम्भव – कालिदास कृत ’कुमार-संभव’ का अनुवाद। |
11. 1917 ई. मेघदूत – ’मेघदूत’ का अनुवाद। |
12. 1917 ई. किरातार्जुनीयम – भारवी कृत ’किरातार्जुनीयम’ का अनुवाद। |
13. 1908 ई. प्राचीन पण्डित और कवि -अन्य भाषाओं के लेखो के आधार प्राचीन कवियों और पण्डितों का परिचय। |
14. 1927 ई. आध्यायिका सप्तक – अन्य भाषाओं की चुनी हुई सात आख्यायिकों का अनुवाद। |
अनूदित पद्य –
1889 ई. विनय विनोद – भर्तृहरि के ’वैराग्य शतक’ का दोहो में अनुवाद। |
1890 ई. स्नेह माला – भर्तृहरि के ’शृंगार शतक’ का दोेहो में अनुवाद। |
1890 ई. विहार वाटिका – गीत गोविंद का भावानुवाद। |
1891 ई. श्री महिमन स्रोत – संस्कृत के ’महिमन-स्रोत’ का अनुवाद। |
गंगालहरी – पं. जगन्नाथ की ’गंगा-लहरी’ का सवैयों में अनुवाद(1891 ई.) |
1891 ई. ऋतुतरंगिणी – कालिदास के ’ऋतुसंहार’ का छायानुवाद। |
1902 ई. कुमारसम्भवसार – कालिदास कृत ’कुमारसम्भव सार’ के प्रथम 5 सर्गों का सारांश। |
सुहागरात – बाइरन के ’ब्राइडल-नाइट’ का छायानुवाद। |
महावीर प्रसाद द्विवेदी के प्रमुख कथन –
🔹 महावीर प्रसाद द्विवेदी – कविता का विषय मनोरंजक एवं उपदेशपरक होना चाहिए। यमुना के किनारे केलि-कौतूहल का अद्भुत वर्णन बहुत हो चुका…….चींटी से लेकर हाथी पर्यंत पशु, भिक्षुक से लेकर राजा पर्यंत मनुष्य, बिंदु से लेकर समुद्र पर्यंत जल, अनंत आकाश, अनंत पृथ्वी, अनंत पृथ्वी सभी पर कविता हो सकती है। (कवि-कत्र्तव्य निबंध)
🔸 महावीर प्रसाद द्विवेदी – किसी पुस्तक या प्रबंध में क्या लिखा गया है, किस ढंग से लिखा गया है, वह विषय उपयोगी है या नहीं, उससे किसी का मनोरंजन हो सकता है या नहीं, उससे किसी को भी लाभ पहुँच सकता है या नहीं, लेखक ने कोई नयी बात लिखी है या नहीं, यहीं विचारणीय विषय हैं। समालोचक को प्रधानतः इन्हीं बातों पर विचार करना चाहिए।
🔹 रामचंद्र शुक्ल – यदि द्विवेदी जी न उठ खङे होते तो जैसी अव्यवस्थित, व्याकरण विरुद्ध, और ऊटपटांग भाषा चारों ओर दिखायी पङी थी, उसकी परंपरा जल्दी न सकती।
🔸 रामचंद्र शुक्ल – गद्य की भाषा पर द्विवेदी जी के इस शुभ प्रभाव का स्मरण जब तक भाषा के लिए शुद्धता आवश्यक समझी जाएगी, तब तक बना रहेगा।
🔹 नंददुलारे वाजपेयी – साहित्य के क्षेत्र में एक व्यक्ति पर इतना बङा उत्तरदायित्व इतिहास की शक्तियों ने कदाचित पहली बार रखा था और पहली ही बार द्विवेदी जी ने इस उत्तरदायित्व को सफल निर्वाह का अनुपम निदर्शन प्रस्तुत किया।
🔸 रामविलास शर्मा – द्विवेदी जी प्रेमचंद की तरह कथा लेखक नहीं थे और मैथिलीशरण गुप्त की तुलना में कवि भी साधारण थे, किंतु वैचारिक स्तर पर वह इन दोनों से आगे है। इन दोनों के काव्य संसार और कथा संसार की रुपरेखाएँ उनके गद्य में स्पष्ट दिखाई देती हैं। इस दृष्टि से उन्हें युग निर्माता कहना पूर्णतः संगत है।
🔹 महावीर प्रसाद द्विवेदी – अंतःकरण की वृत्तियों के चित्रण का नाम कविता है। नाना प्रकार के योग से उत्पन्न हुए मनोभाव जब मन में नहीं समाते तब वे आप ही आप मुख मार्ग से बाहर निकलने लगते हैं, वही कविता है।
विशेष तथ्य (Special facts) –
- ये प्रारंभ में’भुजंगभूषण भट्टाचार्य’ के छद्म (गुप्त) नाम से ’सरस्वती’ पत्रिका में अपनी रचनाएँ छापते थे। इन्होंने साहित्य को ’ज्ञान की राशि का संचित कोश’ कहकर पुकारा है।
- हिन्दी समालोचना को स्थापित करने का श्रेय इन्हीं को दिया जाता है।
- अपनी आजीविका चलाने के लिए इन्होंने रेलवे की नौकरी की, किंतु उच्चाधिकारी से कुछ कहा- सुनी हो जाने के कारण इन्होंने नौकरी से त्यागपत्र देकर शेष जीवन हिन्दी भाषा और साहित्य को समर्पित कर दिया।
- ये 1903 ई. से लेकर 1920 ई. तक सरस्वती पत्रिका से सम्पादक रहे थे।
- ये कवि, आलोचक, निबंधकार, अनुवादक तथा संपादकाचार्य थे।
- आधुनिक काल में हिंदी गद्य एवं पद्य की भाषा के परिमार्जनकर्ता आचार्य द्विवेदीजी माने जाते हैं।
- ’संपत्तिशास्त्र’ इनकी अर्थशास्त्र संबंधी पुस्तक मानी जाती है।
- ’महावीर प्रसाद द्विवेदी रचनावली’ के पन्द्रह खण्डों में इनका सम्पूर्ण साहित्य समाहित है।
- डाॅ. नगेन्द्र के अनुसार इन्होंने काव्य की सामाजिक उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए साहित्य में ’सरलता, असलियत और जोश’ पर बल दिया।
- इनमें से ’असलीयत’ सबसे महत्त्वपूर्ण है।
- मैथिलीशरण गुप्त ने एक जगह श्लेष शैली में द्विवेदी जी की प्रशंसा निम्न शब्दों में की है – ’’करते तुलसीदास भी कैसे मानस नाद। महावीर का यदि उन्हें मिलता नहीं प्रसाद।।’’ अर्थात् जैसे (For example) तुलसीदासजी ने महावीर हनुमानजी की कृपा से ’रामचरितमानस’ की रचना की, वैसे ही गुप्त ने महावीर प्रसाद द्विवेदी की कृपा से ’साकेत’ की रचना की।
- इनके पिता ’रामसहाय द्विवेदी’ को महावीर का इष्ट था, इसी कारण (So) उन्होंने अपने पुत्र का नाम ’महावीर’ रखा था।
- इन्होंने हिन्दी भाषा को व्याकरण सम्मत रूप प्रदान किया।
प्रमुख शैलियाँ (Mahavir Prasad Dwivedi)
महावीर प्रसाद द्विवेदी की गद्य रचनाओं में मुख्यतः निम्न तीन शैलियाँ देखने को मिलती हैं –
(क) व्यंग्यात्मक शैली – इस शैली में लिखे निबंधों की भाषा व्यावहारिक है। इसमें हास्य का पुट भी है।
इन निबंधों की वाक्य रचना सरल है। इनके व्यंग्य उभरे हुए हैं।
(ख) आलोचनात्मक शैली – आलोचना के लिए सरल, संयत और गंभीर भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ग) गवेषणात्मक शैली – इस शैली में शुद्ध, संयत एवं संस्कृत शब्दों से अलंकृत भाषा का प्रयोग किया गया है।
हमे विश्वास है की आप हमारी पोस्ट को पढ़कर अपनी परीक्षा मे अच्छा परिणाम ( as a Result ) देंगे |
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बहुत ही सराहनीय प्रयास!!