चिंतामणि त्रिपाठी – जीवन परिचय | रीतिबद्ध कवि | हिंदी साहित्य का इतिहास

आज के आर्टिकल में हम रीतिबद्ध कवि चिंतामणि त्रिपाठी के सम्पूर्ण जीवन परिचय(Chintamani ka Jiwan Parichay) के बारे में विस्तार से जानने वाले है।

चिंतामणि त्रिपाठी – Chintamani ka Jiwan Parichay

जन्म स्थानतिकवांपुर (कानपुर)
जन्म समय1600 ई.
उपनाममणिमाल
भाईभूषण, मतिराम और जटाशंकर
आश्रयशाह जी भोंसले, शाहजहाँ और दाराशिकोह

चिंतामणि की प्रमुख रचनाएँ –

 

कविकुलकल्पतरु (1650)

विशेष – सर्वांग निरूपक ग्रंथ (8 प्रकरण या अध्याय, 1133 पद्य), लक्षण दोहा-सोरठा छंद में तथा उदाहरण कवित्त-सवैया छंद में, काव्य लक्षण, काव्य गुण, काव्य स्वरूप, अलंकार, गुण-दोष आदि का विवेचन।

रसविलास

विशेष – भानुदत्त कृत ’रसमंजरी’ का अनुवाद

शृंगारमंजरी (1653 ई. के लगभग)

विशेष – नायक-नायिका भेद ग्रंथ, भानुदत्त की ’रसमंजरी’ पर आधारित संत अकबरशाह की

’शृंगारमंजरी’ के संस्कृत अनुवाद का ब्रजभाषा में अनुवाद।

छंद- विचार पिंगल

विशेष – ’प्राकृत पैंगलम्’ एवं ’वृत्तरत्नाकर’ के आधार पर छंदशास्त्र के नियमों का वर्णन तथा कृष्ण का चरित्र चित्रण।

अन्य रचनाएँ :

कृष्णचरित, काव्यविवेक, काव्यप्रकाश, कवित्त-विचार और रामायण।

नोट : रीतिकाल की रामभक्ति की तीसरी रचना इनकी कृति रामायण है (1. रामचंद्रिका 2. कवित- रत्नाकर 3. रामायण)

प्रसिद्ध पंक्तियाँ –

आँखिन मुँदिबे के मिस आनि, अचानक पीठि उरोज लगावै।

कैहूँ कहूँ मुसकाय चितै, अगराय अनुपम अंग दिखावै।।

नाह छुई छल सो छतियाँ, हँसि भौहं चढाय अनंद बढ़ावै।

जोवन के मद मदमत्ततिया, हित सों पति को नित चित चुरावै।।

  • इनकी भाषा विशुद्ध ब्रजभाषा थी।
  • आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने चिंतामणि को रीतिकाल का प्रवर्तक माना है।
  • ये रसवादी आचार्य थे।
  • ये संस्कृत के आचार्य मम्मट व आचार्य विश्वनाथ को अपना आदर्श मानते थे।

महत्त्वपूर्ण लिंक

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