हिंदी साहित्य की प्रमुख पंक्तियाँ(hindi sahitya kee pramukh panktiyaan)
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हिंदी मित्रो आज की पोस्ट में हिंदी साहित्य(hindi sahitya) की महत्वपूर्ण पंक्तियाँ शामिल की गयी है इसमें से हर परीक्षा में एक दो पंक्तियाँ आपको जरूर मिलेगी।
hindi sahitya || हिंदी साहित्य की प्रमुख पंक्तियाँ|| hindi literature
1. मो सम कौन कुटिल खलकामी | सूरदास |
2. यह प्रेम को पंथ कराल महा तरवारि की धार पर धावनो है | बोधा |
3. माधव हम परिनाम निरासा | विद्यापति |
4. हरि हू राजनीति पढ़ि आए | सूरदास |
5. भरोसो दृढ़ इन चरनन केरो | सूरदास |
6. इन मुसलमान जनन पर कोटिन हिंदू बारिह | भारतेंदु |
7. खुल गए छंद के बंध | पंत |
8. तुलसी का सारा काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है | हजारीप्रसाद द्विवेदी |
9. धुनि ग्रमे उत्पन्नों, दादू योगेंद्रा महामुनि | रज्जब |
10. काव्य आत्मा की संल्पनात्मक अनुभूति है | जयशंकर प्रसाद |
11. प्रभु जी तुम चंदन हम पानी | रैदास |
12. सखा श्रीकृष्ण के गुलाम राधा रानी के | भारतेंदु |
13. देखे मुख भावै अनदेखे कमल चंद ताते मुख मुरझे कमला न चंद | केशवदास |
14. एक नार नक अचरज किया साँप मार पिंजरे में दिया | खुसरो |
15. केशव कहि न जादु का कहिए | तुलसीदास |
16. देसिल बअना सब इन मिट्ठा तै तैसन जपऔ अवहठ्ठा | विद्यापति |
17. पुष्टिमार्ग का जहाज जात है सो जाको कछु लेना हो सो लेउ | विट्ठलनाथ |
18. जाहि मन पवन न संचरई रवि ससि नहिं पवेस | सरहपा |
19. यदि प्रबंध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है तो मुक्तक चुना हुआ गुलदस्ता | आचार्य शुक्ल |
20. अवधू रहिया हाटे वाटे रूप बिरष की छाया तजिबा काम क्रोध लोभ मोह संसार की माया | गोरखनाथ |
21. राजनीति का प्रश्न नहीं रे आज जगत के सम्मुख एक वृहत सांस्कृतिक समस्या जग के निकट उपस्थित | पंत |
22. भल्ला हुआ जु मारिया बहिणि म्हारा कंतु लज्जेयं तु वयंसिअहू जइ मग्गा घरु संतु | हेमचंद्र |
23. निराला से बढ़कर स्वच्छंदतावादी कवि हिंदी में कोई नहीं है | हजारीप्रसाद द्विवेदी |
24. पुस्तक जल्हण हाथ दै चलि गज्जन नृप काज | चंदबरदाई |
25. छोङो मत यह सुख का कण है | जयशंकर प्रसाद |
26. मनहु कला ससभान कला सोलह सो बन्निय | चंदबरदाई |
27. प्रयोगवाद बैठे-ठाले का धंधा है | नंददुलारे वाजपेयी |
28. बारह बरस लौं कूकर जिए, अरू तेरह लै जिए सियार बरिस अठारह छत्री जिए, आगे जीवन को धिक्कार | जगनिक |
29. यदि इस्लाम न भी आया होता तो भी भक्ति साहित्य का बारह आना वैसा ही होता जैसा आज | हजारीप्रसाद द्विवेदी |
30. गोरख जगायो जोग भगति भगायो लोग | तुलसीदास (कवितावली से) |
31. साहित्य जनसमूह के हृदय का विकास है | बालकृष्ण भट्ट |
32. झिलमिल झगरा झूलते बाकी रही न काहु गोरख अटके कालपुर कौन कहावै साहु | कबीर |
33. भारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय करने का अपार धैर्य लेकर आया हो | हजारीप्रसाद द्विवेदी |
34. दशरथ सुत तिहुँ लोक बखाना राम नाम का मरम है आना | कबीर |
35. मैं मजदूर हूँ, मजदूरी किए बिना मुझे भोजन करने का अधिकार नहीं | प्रेमचंद |
36. अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम | मलूकदास |
37. सूर अपनी आँखों से वात्सल्य का कोना-कोना झाँक आए है | रामचंद्र शुक्ल |
38. विक्रम धँसा प्रेम का बारा सपनावती कहँ गयऊ पतारा | मंझन (मधुमालती से) |
39. उत्तर अपभ्रंश ही पुरानी हिंदी है | चंद्रधर शर्मा गुलेरी |
40. कब घर में बैठे रहैं, नाहिंन हाट बाजार मधुमालती, मृगावती पोथी दोउ उचार | बनारसीदास जैन |
41. बालचंद बिज्जावइ भाषा, नहिंन दुहु नहिं लग्गई दुज्जन हासा | विद्यापति |
42. मुझको क्या तू ढूँढ़े बंदे मैं तो तेरे पास में | कबीर |
43. बलंदीप देखा अँगरेजा, तहाँ जाई जेही कठिन करेजा | उसमान (चित्रावली में) |
44. सूरतिय, नरतिय, नागतिय, सब चाहत अस होय गोद लिए हुलसी फिरैं तुलसी सो सुत होय | रहीम |
45. कहा करौ बैकुंठहिं जाय जहाँ नहिं नंद, जहाँ न जसोदा, नहिं जहँ गोपी, ग्वाल न गाय | परमानंद दास |
46. जाके प्रिय न राम वैदेही सो नर तजिए कोटि बैरी सम यद्यपि परम सनेही | तुलसीदास (विनयपत्रिका से) |
47. जदपि सुजाति सुलच्छनी सुबरन सरस सुवतृ भूषण बिनु न विराजई कविता बनिता मित्त | केशवदास |
48. आँखिन मूँदिबे के मिस आनि अचानक पीठि उरोज लगावै | मतिराम |
49. अभिधा उत्तम काव्य है मध्य लक्षणा तीन अधम व्यंजना रस विरस, उलटी कहत नवीन | देव |
50. भले बुरे सम, जौ लौं बोलत नाहिं जानि परत हैं काक पिक, ऋतु बसंत के माहिं | वृंद |
51. नेही महा ब्रजभाषा प्रवीन और संदरतानि के भेद को जानै | ब्रजनाथ |
52. एक सुभान कै आनन पै कुरबान जहाँ लगि रूप जहाँ को | बोधा |
53. आठ मास बीते जजमान अब तो करो दच्छिना दान | प्रतापनारायण मिश्र |
54. साखी सबदी दोहरा, कहि कहिनी उपखान भगति निरूपहिं निन्दहिं बेद पुरान | तुलसी |
55. निर्गुण ब्रह्म को कियो समाधु तब ही चले कबीरा साधु | दादू |
56. सब मम प्रिय सब मम उपजाये सबतैं अधिक मनुज मोहि भाये | तुलसी |
57. पढ़ि कमाय कीन्हों कहा हरे देश कलेश जैसे कन्ता घर रहे तैसे रहे विदेस | प्रतापनारायण मिश्र |
58. मैं हिंदुस्तान की तूती हूँ, अगर तुम वास्तव में मुझसे कुछ पूछना चाहते हो तो हिंदवी मेें पूछो | अमीर खुसरो |
59. मैं मरूँगा सुखी मैने जीवन की धज्जियाँ उङाई हैं | अज्ञेय |
60. यह सिर नवे न राम कू, नाहीं गिरियो टूट आन देव नहिं परसिये, यह तन जायो छूट | चरनदास |
61. रुकमिनि पुनि वैसहि मरि गई कुलवंती सत सो सति भई | कुतुबन |
62. जानत है वह सिरजनहारा, जो किछु है मन मरम हमारा। हिंदु मग पर पाँव न राखेऊ, का जो बहुतै हिंदी भाखेऊ | नूरमुहम्मद |
63. मो मन गिरिधर छवि पै अटक्यो ललित त्रिभंग चाल पै चाल कै, चिबुक चारु गङि ठटक्यो | कृष्णदास |
64. संतन को कहा सीकरी सों काम आवत जात पनहियाँ टूटी बिसरि गयो हरि नाम | कुंभनदास |
65. बसो मेरे नैनन में नंदलाल मोहनि मूरत, साँवरि सूरत, नैना बने रसाल | मीराबाई |
66. लोटा तुलसीदास को लाख टका को मोल | होलराय |
67. कुंदन को रंग फीकौ लगे | मतिराम |
68. अमिय, हलाहल, मदभरे, सेत, स्याम, रतनार जियत, मरत, झुकि-झुकि परत, जेहि चितवत एक बार | रसलीन |
69. कनक छुरी सी कामिनी काहे को कटि छीन | आलम |
70 अति सुधौ सनेह को मारग है जहँ नैकू सयानपन बाँक नहीं | घनानंद |
71. आलम नेवाज सिरताज पातसाहन के गाज ते दराज कौन नजर तिहारी है | चंद्रशेखर |
72. कलि कुटिल जीव निस्तार हित वाल्मीकि तुलसी भयो | नाभादास जी |
73. मात पिता जग जाइ तज्यो विधिहू न लिख्यो कछु भाल भलाई | तुलसी |
74. अपना मस्तक काटिकै बीर हुआ कबीर | दादू |
75. सो जागी जाके मन में मुद्रा रात-दिवस ना करई निद्रा | कबीर |
76. पराधीन सपनेहु सुख नाहीं | तुलसी |
77. काहे री नलिनी तू कम्हलानी तेरे ही नालि सरोवर पानी | कबीर |
78. काव्य की रीति सीखि सुकवीन सों देखी सुनि बहुलोक की बातें | भिखारीदास |
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परीक्षा में आने वाले ही शब्द युग्म ही पढ़ें
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hindi sahitya
बहुत अच्छा सर