दोस्तो आज की पोस्ट में आप हिंदी साहित्य में भक्तिकाल के अंतर्गत संतकाव्य धारा की विशेषताएँ(Sant kavya dhara ki Visheshta) पढेंगे ,जो आपके लिए जानना बेहद जरुरी है ।
संतकाव्य धारा की विशेषताएंTable of Contents |
- हिंदी सन्त काव्य का प्रारम्भ निर्गुण काव्य धारा से होता है ।
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने नामदेव और कबीर द्वारा प्रवर्तित भक्ति धारा को ‘निर्गुण ज्ञानाश्रयी धारा’ की संज्ञा प्रदान की है ।
- डा. रामकुमार वर्मा ने इसे ‘सन्त काव्य परम्परा’ जैसे विशेषण से अभिहित किया है ।
- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इसे ‘निर्गुण भक्ति साहित्य’ का नाम दिया है ।
- निर्गुण काव्य धारा मे सन्त काव्य का विशेष महत्व है । संत काव्य धारा को ज्ञानश्रयी शाखा भी कहा जाता है ।
- सदाचार के लक्षणों से युक्त व्यक्ति को सन्त कहा जाता है । इस प्रकार का व्यक्ति आत्मोन्नति एवं लोक मंगल मे लगा रहता है ।
- डा. पीताम्बर दत्त बडथ्वाल ने सन्त का सम्बंध शान्त से माना है और इसका अर्थ उन्होने किया है – निवृत्ति मार्गी या वैरागी ।
संतकाव्य धारा की विशेषताएँ
- संत काव्य भाव प्रधान है , कला प्रधान नहीं l
- अद्वैतवाद दर्शन , रहस्यवाद की प्रधानता l
- गुरु की महत्ता का प्रतिपादन तथा ज्ञान के महत्व का प्रतिपादन , आडम्बरों का विरोध , कुरीतियों का विरोध , सामाजिक कुरीतियों का कड़ा विरोध l
- नारी के प्रति असंतुलित एवं अतिवादी द्रष्टिकोण , नाथपंथी प्रभाव l
- भाषा अपरिष्कृत एवं बोलचाल की भाषा , शांत रस की प्रधानता , अनायास ही अलंकार प्रयोग , उलटवासियो का प्रयोग l
संतकाव्य धारा विशेषताएँ
- संत काव्य इस लोक की बात करते है और खंडन की प्रवृत्ति भी है जबकि सूफी पारलौकिक परम ब्रम्ह का मंडन करते है।
- संत ज्ञान से ईश्वर प्राप्ति की बात करते है जबकि सूफी प्रेम से ईस्वर प्राप्ति पर बल देते है।
- संतो ने उपदेशात्मक दोहों की रचना की जबकि सूफी साहित्य प्रबंध ओर मसनवी शैली में रचा गया l
- संतो का उद्देश्य समाज सुधार जबकि सूफी अपने दर्शन के प्रचार में साहित्य रचना करने वाले थे l
- संत समाज के शोषित तबके से संबंधित जबकि सूफी देश से बाहर से आये l
संतकाव्य धारा विशेषताएँ
- गुरू को महत्व
- सधुकड़ी भाषा का प्रयोग
- जातिवाद का विरोध
- निर्गुण ब्रम्हा मै विश्वास
- उलटबासी का प्रयोग
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