आज के आर्टिकल में हम हिंदी व्याकरण में हिंदी संधि (Sandhi in hindi) को पढेंगे। इसमें हम संधि किसे कहते है (Sandhi kise kahate hain), संधि का अर्थ (Sandhi ka arth), संधि की परिभाषा (Sandhi ki paribhasha), संधि के प्रकार(Sandhi ke prakar), संधि के उदाहरण(Sandhi ke udaharan), संधि के प्रश्न(Sandhi ke prashn), स्वर संधि(Swar sandhi), व्यंजन संधि(Vyanjan sandhi), विसर्ग संधि(Visarg sandhi), को विस्तार से समझेंगे।
संधि – Sandhi
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हिंदी में संधि का शाब्दिक अर्थ है – योग अथवा मेल।
संधि किसे कहते है – Sandhi Kise Kahate Hain
दो ध्वनियों या दो वर्णों के मेल से होने वाले विकार/ परिवर्तन को ही संधि(Sandhi) कहते हैं।
संधि की परिभाषा – Sandhi ki Paribhasha
जब दो वर्ण पास-पास आते हैं या मिलते हैं तो उनमें विकार उत्पन्न होता है अर्थात् वर्ण में परिवर्तन हो जाता है। यह विकार युक्त मेल ही संधि(SANDHI) कहलाता है।
कामताप्रसाद गुरु के अनुसार, ’’दो निर्दिष्ट अक्षरों के आस-पास आने के कारण उनके मेल से जो विकार होता है, उसे संधि कहते हैं।’
श्री किशोरीदास वाजपेयी के अनुसार, ’’जब दो या अधिक वर्ण पास-पास आते हैं तो कभी-कभी उनमें रूपान्तर होता है। इसी रूपान्तर को संधि कहते हैं।’
संधि -विच्छेद क्या होता है ?
संधि -विच्छेद – शब्दों के मेल से उत्पन्न ध्वनि परिवर्तन को ही संधि कहते हैं। परिणाम स्वरूप उच्चारण एवं लेखन दोनों ही स्तरों पर अपने मूल रूप से भिन्नता आ जाती है। अतः उन शब्दों को पुनः मूल रूप में लाना ही संधि विच्छेद कहलाता है।
जैसे –
दो शब्द वर्ण का मेल = संधि युक्त शब्द
महा + ईश आ + ई = महेश
यहाँ (आ + ई) दो वर्णों के मेल से विकार स्वरूप ’ए’ ध्वनि उत्पन्न हुई ।
संधि विच्छेद के लिए पुनः मूल रूप में लिखना होगा।
संधि युक्त शब्द – संधि विच्छेद
जैसे –
महेश | महा + ईश |
मनोबल | मनः + बल |
गणेश | गण + ईश |
संधि के कितने भेद होते है – Sandhi ke kitne bhed hote hain
संधि के तीन भेद हैं –
संधि के भेद – Sandhi ke bhed
- स्वर संधि
- व्यंजन संधि
- विसर्ग संधि
स्वर संधि किसे कहते हैं – Swar sandhi kise kahate hain
स्वर संधि की परिभाषा – Swar Sandhi ki Paribhasha
स्वर संधि के कितने भेद होते है – Swar sandhi ke kitne bhed hote hain
स्वर संधि के पाँच भेद हैं –
स्वर संधि के भेद – Swar Sandhi ke bhed
- दीर्घ संधि
- गुण संधि
- वृद्धि संधि
- यण् संधि
- अयादि संधि
दीर्घ संधि किसे कहतें है – Dirgha sandhi kise kahate hain
दीर्घ संधि की परिभाषा – Dirgh Sandhi ki Paribhasha
दो समान स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते हैं। यदि ‘अ’ ‘आ’, ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’ के बाद सजातीय लघु या दीर्घ स्वर आएँ तो दोनों मिलकर क्रमशः ‘आ’ ‘ई’ ‘ऊ’ हो जाते हैं ।
- अ + अ = आ
- अ + आ = आ
- आ + अ = आ
- आ + आ = आ
- इ + इ = ई
- ई + इ = ई
- इ + ई = ई
- ई + ई = ई
- उ + उ = ऊ
- उ + ऊ = ऊ
- ऊ + उ = ऊ
- ऊ + ऊ = ऊ
दीर्घ संधि के उदाहरण – Dirgh Sandhi ke Udaharan
अ + अ = आ | अन्न + अभाव = अन्नाभाव |
अ + आ = आ | भोजन + आलय = भोजनालय |
आ + अ = आ | विद्या + अर्थी = विद्यार्थी |
आ + आ = आ | महा + आत्मा = महात्मा |
इ + इ = ई | गिरि + इंद्र = गिरींद्र |
ई + इ = ई | मही + इंद्र = महींद्र |
इ + ई = ई | गिरि + ईश = गिरीश |
ई + ई = ई | रजनी + ईश = रजनीश |
उ + उ = ऊ | भानु + उदय = भानूदय |
उ + ऊ = ऊ | अंबु + ऊर्मि = अंबूर्मि |
ऊ + उ = ऊ | वधू + उत्सव = वधूत्सव |
ऊ + ऊ = ऊ | भू + ऊर्जा = भूर्जा |
गुण संधि किसे कहतें है – Gun Sandhi kise kahate hain
गुण संधि की परिभाषा – Gun Sandhi ki Paribhasha
यदि ’अ’ या ’आ’ के बाद ’इ’ या ’ई’ ’उ’ या ’ऊ’, ’ऋ’ आए तो दोनों मिलकर क्रमशः ’ए’,’ओ’ और ‘अर्’ हो जाते हैं ।
गुण संधि के उदाहरण – Dirgh Sandhi ke Udaharan
अ + इ = ए | देव + इंद्र = देवेंद्र |
अ + ई = ए | गण + ईश = गणेश |
आ + इ = ए | यथा + इष्ट = यथेष्ट |
आ + ई = ए | रमा + ईश = रमेश |
अ + उ = ओ | वीर + उचित = वीरोचित |
अ + ऊ – ओ | जल + ऊर्मि = जलोर्मि |
आ + उ = ओ | महा + उत्सव = महोत्सव |
आ + ऊ = ओ | गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि |
अ + ऋ = अर् | कण्व + ऋषि = कण्वर्षि |
आ + ऋ = अर् | महा + ऋषि = महर्षि |
वृद्धि संधि किसे कहतें है – Vridhi sandhi kise kahate hain
वृद्धि संधि की परिभाषा – Vriddhi Sandhi ki Paribhasha
जब अ या आ के बाद ए , ऐ या ओ,औ हो तो ए , ऐ के मेल से ’ऐ’ तथा यदि ’ओ’ या ’औ’ के मेल से दोनों के स्थान पर ’औ’ हो जाता है |
वृद्धि संधि के उदाहरण – Vriddhi Sandhi ke Udaharan
अ + ए = ऐ | एक + एक = एकैक |
अ + ऐ = ऐ | परम + ऐश्वर्य = परमैश्वर्य |
आ + ए = ऐ | सदा + एव = सदैव |
आ + ऐ = ऐ | महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य |
अ + ओ = औ | परम + ओज = परमौज |
आ + ओ = औ | महा + ओजस्वी = महौजस्वी |
अ + ओ = औ | वन + औषध = वनौषध |
आ + औ = औ | महा + औषध = महौषध |
यण संधि किसे कहतें है – Yan sandhi kise kahate hain
यण संधि की परिभाषा – Yan Sandhi ki Paribhasha
यदि इ, ई, उ,ऊ तथा ऋ के बाद कोई भिन्न स्वर आये, तो ’इ-ई’ का ’य्’ ’उ’ ’ऊ’ का ’व्’ और ’ऋ’ का ’र्’ हो जाता है, साथ ही बाद वाले शब्द के पहले स्वर की मात्रा य्, व्, र् में लग जाती है।
इ, ई + भिन्न स्वर | य /या |
उ,ऊ+ भिन्न स्वर | व/वा |
यण संधि के उदाहरण – Yan Sandhi ke Udaharan
इ + अ = य | अति + अधिक = अत्यधिक |
इ + आ = या | इति + आदि = इत्यादि |
ई + आ = या | नदी + आगम = नद्यागम |
इ + उ = यु | अति + उत्तम = अत्युत्तम |
इ + ऊ = यू | अति + ऊष्म = अल्यूष्म |
इ + ए = ये | प्रति + एक = प्रत्येक |
उ + अ = व | सु + अच्छ = स्वच्छ |
उ + आ = वा | सु + आगत = स्वागत |
उ + ए = वे | अनु + एषण = अन्वेषण |
उ + इ = वि | अनु + इति = अन्विति |
ऋ + आ = रा | पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा |
अयादि संधि किसे कहतें है – Ayadi Sandhi kise kahate hain
अयादि संधि की परिभाषा – Ayadi Sandhi ki Paribhasha
यदि ’ए’ या ’ऐ’ ’ओ’ या ’औ’ के बाद कोई भिन्न स्वर आये तो ’ए’ का ’अय’, ऐ का ’आय’ हो जाता है तथा ’ओ’ का ’अव’ और ’औ’ हो जाता है |
अयादि संधि के उदाहरण – Ayadi Sandhi ke Udaharan
ए + अ = अय | ने + अन = नयन |
ऐ + अ = आय | नै + अक = नायक |
ओ + अ = अव | पो + अने = पवन |
औ + अ = आव | पौ + अक = पावक |
व्यंजन संधि किसे कहतें है – Vyanjan sandhi kise kahate hain
व्यंजन संधि की परिभाषा – Vyanjan Sandhi ki Paribhasha
जब पास आने वाले दो वर्णों में से पहला वर्ण व्यंजन हो और दूसरा स्वर अथवा व्यंजन कुछ भी हो तो उनमें होने वाली संधि को ’व्यंजन-संधि ’(Vyanjan Sandhi) कहते हैं। व्यंजन संधि संबंधी कुछ प्रमुख नियम यहाँ दिये गए हैं –
sandhi hindi grammar
1. यदि प्रत्येक वर्ग के पहले वर्ण अर्थात ’क्’, ’च’, ’ट्’, ’त्’, ’प्’ के बाद किसी वर्ग का तृतीय या चतुर्थ वर्ण आए या य, र, ल, व, या कोई स्वर आये तो ’क्’, ’च’, ’ट्’, ’त्’, ’प्’ के स्थान पर अपने ही वर्ग का तीसरा वर्ण अर्थात् ’ग्’, ’ज्’, ’ङ्’, ’द्’, ’ब्’, हो जाता है |
व्यंजन संधि के उदाहरण – Vyanjan Sandhi ke Udaharan
वाक्+ईश | वागीश |
दिक्+गज | दिग्गज |
वाक्+दान | वाग्दान |
सत्+वाणी | सद्वाणी |
अच्+अंत | अजंत |
अप्+इंधन | अबिंधन |
तत्+रूप | तद्रूप |
जगत्+आनंद | जगदानंद |
शप्+द | शब्द |
2. यदि प्रत्येक वर्ग के पहले वर्ण अर्थात् ’क्’, ’च्’, ’ट्’, ’त्’, ’प्’, के आद ’न’ या ’म’ आये तो ’क्’ ’च्’ ’ट्’ ’त्’ ’प्’ अपने वर्ग के पंचम वर्ण अर्थात ङ्, ञ्, ण, म् में बदल जाते हैं |
जैसे –
वाक्+मय | वाङ्मय |
षट्+मास | षण्मास |
जगत्+नाथ | जगन्नाथ |
अप्+मय | अम्मय |
3. यदि ’म्’ के बाद कोई स्पर्श व्यंजन तो ’म’ जुङने वाले वर्ण का पंचम वर्ण या अनुस्वार हो जाता है |
जैसे –
अहम्+कार | अहंकार |
किम्+चित् | किंचित् |
सम्+गम | संगम |
सम्+तोष | संतोष |
4. यदि म् के बाद य, र, ल, व, श, ष, स, ह में से किसी भी वर्ण का मेल हो तो ’म’ के स्थान पर अनुस्वार ही लगेगा |
जैसे –
सम्+योग | संयोग |
सम्+रचना | संरचना |
सम्+वाद | संवाद |
सम्+हार | संहार |
सम्+रक्षण | संरक्षण |
सम्+लग्न | संलग्न |
सम्+वत् | संवत् |
सम्+सार | संसार |
5. यदि त् या द् के बाद ’ल’ रहे तो ’त्’ या ’द्’ ल् में बदल जाता है |
जैसे –
उत्+लास | उल्लास |
उत्+लेख | उल्लेख |
6. यदि ’त्’ या ’द्’ के बाद ’ज’ या ’झ’ हो तो ’त्’ या ’द्’ ’ज्’ में बदल जाता है |
जैसे –
सत्+जन | सज्जन |
उत्+झटिका | उज्झटिका |
7. यदि ’त्’ या ’द्’ के बाद ’श’ हो तो ’त्’ या ’द्’ का ’च्’ और ’श्’ का ’छ्’ हो जाता है |
जैसे –
उत्+श्वास | उच्छ्वास |
उत्+शिष्ट | उच्छिष्ट |
सत्+शास्त्र | सच्छास्त्र |
8. यदि ’त्’ या ’द्’ के बाद ’च’ या ’छ’ हो तो ’त्’ या ’द्’ का ’च्’ हो जाता है |
sandhi hindi grammar
जैसे –
उत्+चारण | उच्चारण |
सत्+चरित्र | सच्चरित्र |
9. ’त्’ या ’द्’ के बाद यदि ’ह’ हो तो त्/द् के स्थान पर ’द्’ और ’ह’ के स्थान पर ’ध’ हो जाता है|
जैसे –
तत्+हित | तद्धित |
उत्+हार | उद्धार |
10. जब पहले पद के अंत में स्वर हो और आगे के पद का पहला वर्ण ’छ’ हो तो ’छ’ के स्थान पर ’च्छ’ हो जाता है |
जैसे –
अनु + छेद | अनुच्छेद |
परि + छेद | परिच्छेद |
आ + छादन | आच्छादन |
11. यदि किसी शब्द के अंत में अ या आ को छोङकर कोई अन्य स्वर आये एवं दूसरे शब्द के आरंभ में ’स’ हो तो ’स’ के स्थान पर ष हो जाता है |
जैसे –
अभि+सेक | अभिषेक |
वि+सम | विषम |
नि+सिद्ध | निषिद्ध |
सु+सुप्ति | सुषुप्ति |
12. ऋ, र, ष के बाद जब कोई स्वर कोई क वर्गीय या प वर्गीय वर्ण अनुस्वार अथवा य, व, ह में से कोई वर्ण आये तो अंत में आने वाला ’न’, ’ण’ हो जाता है |
जैसे –
भर्+अन | भरण |
भूष्+अन | भूषण |
राम+अयन | रामायण |
प्र+मान | प्रमाण |
विसर्ग संधि किसे कहतें है – Visarg sandhi kise kahate hain
विसर्ग संधि की परिभाषा – Visarg Sandhi ki Paribhasha
विसर्ग (: ) के साथ स्वर या व्यंजन के मेल में जो विकार होता है, उसे ’विसर्ग संधि ’ कहते हैं।
विसर्ग संधि संबंधी कुछ प्रमुख नियम इस प्रकार हैं –
जैसे –प्रातःकाल, प्रायः, दुःख
यदि किसी शब्द के अन्त में विसर्ग ध्वनि आती है तथा उसमें बाद में आने वाले शब्द के स्वर अथवा व्यंजन का मेल होने के कारण जो ध्वनि विकार उत्पन्न होता है वहीं विसर्ग संधि है।
(। ) यदि विसर्ग के पूर्व ’अ’ हो और बाद में ’अ’ हो तो दोनों का विकार ‘ओ’ में बदल जाता है।
विसर्ग संधि के उदाहरण – Visarg sandhi ke udaharan
मनः+अविराम | मनोविराम |
यशः+अभिलाषा | यशोभिलाषा |
मनः+अनुकूल | मनोनुकूल |
(।। ) यदि विसर्ग के पहले ’अ’ हो और बाद वाले शब्द के पहले ’अ’ के अतिरिक्त अन्य कोई भी अक्षर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है।
जैसे –
अतः+एव | अतएव |
यशः+इच्छा | यशइच्छा |
(।।। ) यदि विसर्ग के पहले ’अ’ हो तथा बाद में किसी भी वर्ग का तीसरा, चौथा वर्ण अथवा य, र, ल, व व्यंजन आते हैं तो विसर्ग ’ओ’ में बदल जाता है।
जैसे –
तपः+वन | तपोवन |
अधः+गामी | अधोगामी |
वयः+वृद्व | वयोवृद्व |
अन्ततः+ गत्वा | अन्ततोगत्वा |
मनः+विज्ञान | मनोविज्ञान |
जैसे –
आयुः+वेद | आयुर्वेद |
ज्योतिः+मय | ज्योतिर्मय |
चतुः+दिशि | चतुर्दिशि |
आशीः+वचन | आशीर्वचन |
धनुः+धारी | धनुर्धारी |
(v) यदि विसर्ग के बाद ’च’ तालव्य ’श’ आता है तो विसर्ग ’श्’ हो जाता है |
जैसे –
पुनः+च | पुनश्च |
तपः+चर्या | तपश्चर्या |
यशः+शरीर | यशश्शरीर |
(v।।) यदि विसर्ग के पहले ’अ’ या ’आ’ हो तथा बाद में ’त’ या दन्त्य ’स’ आता है तो विसर्ग ’स्’ (अर्द्धाक्षर ) हो जाता है |
जैसे –
पुरः+सर | पुनस्सर |
नमः+ते | नमस्ते |
मनः+ताप | मनस्ताप |
(v।।) यदि विसर्ग के पहले ’इ’ या ’उ’ स्वर हो और उसके बाद ’क’ ’ख’ ’प’ ’म’ वर्ण आये विसर्ग मूर्धन्य ’ष्’(अर्द्धाक्षर) हो जाता है|
जैसे –
आविः+कार | आविष्कार |
चतुः+पाद | चतुष्पाद |
चतुः+पथ | चतुष्पथ |
बहिः+कार | बहिष्कार |
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