आज के आर्टिकल में हम भक्तिकाल के चर्चित कवि रसखान के जीवन परिचय (Raskhan ka Jivan Parichay) के बारे में विस्तार से पढेंगे।
रसखान – Raskhan ka Jivan Parichay
Table of Contents
नाम | रसखान |
जन्मतिथि | सन् 1548 ई. |
जन्म स्थान | दिल्ली |
मूल नाम | सैयद इब्राहिम |
गुरु नाम | गोस्वामी विट्ठलदास |
भाषा | ब्रज |
भक्तिधारा | कृष्णभक्ति |
प्रमुख रचनाएँ | ‘सुजान रसखान‘ और ‘प्रेमवाटिका‘ |
मृत्यु | सन् 1628 ई. |
हिन्दी के मुसलमान कवियों में रसखान का महत्वपूर्ण स्थान है। ’दो सौ बावन वैष्णवों की वार्ता’ में इनका उल्लेख है। ऐसा प्रसिद्ध है कि इन्होंने गोस्वामी विट्ठलनाथ जी से बल्लभ सम्प्रदाय की दीक्षा ली थी। डाॅ. नगेन्द्र ने रसखान का जन्म 1533 ई. में स्वीकार किया है। पहले ये दिल्ली में रहते थे बाद में ये गोवर्धन धाम आ गए।
मूल गोसाई चरित में यह उल्लेख है कि गोस्वामी तुलसीदास ने अपना रामचरितमानस सर्वप्रथम रसखान को ही सुनाया था। ’प्रेमवाटिका’ रसखान की अन्तिम कृति है जिसकी रचना 1614 ई. में हुई। उसके कुछ समय बाद 1618 ई. में रसखान का देहावसान हो गया। रसखान की दो कृतियां उपलब्ध होती है- प्रेमवाटिका और दानलीला।
वर्तमान समय में सर्वाधिक प्रचलित संकलन ‘सुजान रसखान’ है। जिसमें 181 सवैये, 17 कविता, 12 दोहे और 4 सोरठे संकलित है। अष्टयाम नामक उनकी एक कृति और मिली है जिसमें कई दोहों में श्रीकृष्ण के प्रातः जागरण से रात्रिशयन पर्यन्त की दिनचर्या एवं क्रीङाओं का वर्णन है।
प्रेमवाटिका में कवि ने राधा-कृष्ण को मालिन-माली मानकर प्रेमोद्यान कर वर्णन करते हुए प्रेम के गूढ़ तत्व का सूक्ष्म निरूपण किया है। इस रचना में 53 दोहे है।
दानलीला केवल 11 दोहों की छोटी सी कृति है जिसमें राधा-कृष्ण संवाद है।
रसखान ब्रजभाषा के मर्मज्ञ एवं सशक्त कवि है। प्रेमतत्व के निरूपण में उन्हें अद्भुत सफलता मिली है। श्रीकृष्ण के रूप पर मुग्ध राधा एवं गोपियों की मन स्थिति का मनोरम चित्रण उन्होंने किया है।
रसखान जीवन परिचय – Raskhan ka Jivan Parichay
उनके काव्य में कृष्ण के बाल सौन्दर्य का चित्रण भी हुआ है। शृंगार एवं वात्सल्य उनके काव्य के प्रमुख रस है। सवैया, कवित्त, दोहा छन्द उन्हें प्रिय है। उनका प्रेम स्वच्छन्द प्रेम है किन्तु उसमें सूफियों के प्रेम का अनुकरण नहीं है। ब्रजभूमि के प्रति उनका अनुराग निम्न सवैये में प्रकट होता है।
रसखान के सवैये
’’मानुस हौं तो वहै रसखानि
बसौ ब्रज गोकुल गांव के ग्वारन।’’
इसी प्रकार कृष्ण के रूप का मनोहर चित्रण उनके काव्य में हुआ है।
कृष्ण की लकुटी और कामरिया उन्हें इतनी प्रिय है कि वे इस पर तीनों लोकों का राज त्यागने को तत्पर है-
’’या लकुटी अरु कामरिया पर
राज तिहुंपुर को तजि डारौं।’’
उनके दो प्रसिद्ध सवैयों की पंक्तियां भी यहां उद्धृत है-
(1) मोर पखा सिर ऊपर राखि हौं
गुंज की माल गरे परिरौंगीं।
(2) सेस महेस गनेस दिनेस
सुरेसहु जाहि निरन्तर ध्यावैं।
(3) धूरि भरे अति सोभित स्यामजू
वैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
रसखान की भाषा
रसखान की भाषा शुद्ध साहित्यिक, परिमार्जित ब्रजभाषा है। जिसमें माधुर्य और प्रसाद गुणों के कारण सरसता एवं सजीवता आ गई है। उन्होंने अपने समय में प्रचलित पद शैली न अपनाकर कवित्त-सवैया शैली को अपनाया जो उनकी स्वच्छन्द वृत्ति का सूचक है।
निष्कर्ष : Raskhan ka Jivan Parichay
आज के आर्टिकल में हमने कवि रसखान के जीवन परिचय(Raskhan ka Jivan Parichay) के बारे में जानकारी शेयर की , हम आशा करते है कि आपको यह जानकारी अच्छी लगी …धन्यवाद
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