आज की पोस्ट में हम अलंकार के अंतर्गत श्लेष अलंकार की परिभाषा व उदाहरण(shlesh alankar ke paribhasha udaharan) पढेंगे ,आप इसे अच्छे से पढ़ें
श्लेष अलंकार की परिभाषा – Shlesh Alankar ki pribhahsa
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⇒ श्लेष अलंकार – जब किसी पद में प्रयुक्त एक ही शब्द के अलग-अलग सन्दर्भ के अनुसार अलग-अलग अर्थ प्रयुक्त हो जाते हैं तो वहाँ श्लेष अलंकार माना जाता है।
श्लेष शब्द ‘शिलष्+अण् (अ)’ के योग से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- ‘चिपकना’ अर्थात् जहाँ एक ही शब्द से प्रसंगानुसार अनेक अर्थ प्रकट होते हैं, वहाँ श्लेष अलंकार होता है;
श्लेष अलंकार के उदाहरण – Shlesh Alankar ke Udharan
‘‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानस, चून।।’’
‘‘चरण धरत चिन्ता करत भावत नींद न सोर।
सुबरण को ढूँढ़त फिरै, कवि कामी अरु चोर।।’’
‘‘रहिमन जे गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारै उजियारो करै, बढ़े अँधेरो होय।।’’
श्लेष अलंकार के भेद
श्लेष अलंकार के प्रमुखतः दो भेद माने जाते है:-
- अभंग श्लेष
- सभंग श्लेष
(अ) अभंग श्लेष:-
जब किसी पद में प्रयुक्त श्लिष्ट शब्द के टुकड़े किये बिना ही शब्दकोश या लोक-प्रसिद्धि अर्थ के अनुसार अलग-अलग अर्थ प्रयुक्त हो जाते हैं तो वहाँ अभंग श्लेष अलंकार माना जाता है।
अभंग श्लेष अलंकार के उदाहरण –
‘‘नर की अरु नलनीर की, गति एकै करि जोय।
जेतो नीचो ह्वै चले, तेतो ऊँचो होय।।’’
‘‘मेरी भव बाधा हरो, राधा नागरि सोय।
जा तन की झाँई परै, स्यामु हरित दुति होय।।’’
इन्द्रनील मणि महा चषक था, सोम रहित उलटा लटका।
‘‘जहाँ गाँठ तहाँ रस नहीं, यह जानत सब कोय।
मढ्येतर की गाँठ में, गाँठ गाँठ रस होय।।’’
.‘‘नवजीवन दो घनश्याम हमें।’’
‘‘लाग्यो सुमनु ह्वै है सफलु, आतप रोसु निवारि।
बारी बारी आपनी सींचि सुहृदता वारि।।’’
(ब) सभंग श्लेष
जब किसी पद में किसी श्लिष्ट शब्द के टुकड़े करने पर ही एक से अधिक अर्थ प्रकट होते हैं तो वहाँ सभंग श्लेष अलंकार माना जाता है।
सभंग श्लेष अलंकार के उदाहरण –
‘‘संतत सुरानीक हित जेही। बहुरि सक्र बिनवहु तेही।’’
‘‘चिरजीवौ जोरी जुरै, क्यों न सनेह गम्भीर।
को घटि ए वृषभानुजा वे हलधर के बीर।।’’
‘‘अजौं तर्यौना ही रह्यौ, श्रुति सेवत इक अंग।
नाक बास बेसरि लह्यौ, बसि मुकुतन के संग।।’’