आज हम कक्षा शिक्षण में उपयोग होने वाली शिक्षण सहायक सामग्री (teaching aids in classroom teaching) के बारें में विस्तार से महत्त्वपूर्ण तथ्य को पढेंगे
शिक्षण सहायक सामग्री का कक्षा शिक्षण में उपयोगTable of Contents |
उद्योतन सामग्री के प्रकार –
1. श्रव्य सहायक सामग्री – मौखिक उदाहरण, रेडियो, टेप रिकाॅर्डर, ग्रामोफोन आदि।
2. दृश्य सहायक सामग्री – श्यामपट्ट, बुलेटिन बोर्ड, फ्लेनील बोर्ड, मानचित्र, ग्लोब, चित्र, रेखाचित्र, कार्टून, माॅडल, पोस्टर, स्लाईड्स, फिल्म स्ट्रीप्स आदि।
3. श्रव्य-दृश्य सहायक सामग्री – चलचित्र, नाटक, कठपुतली, टेलीविजन आदि।
श्रव्य सहायक सामग्री
(1) मौखिक उदाहरण – मौखिक उदाहरणों का प्रयोग प्रमुखतया सूक्ष्म भावों के शब्द चित्र खींचने के लिए किया जाता है। किसी वस्तु स्थिति या विचार को मौखिक कथन या वार्तालाप के माध्यम से सरल स्वरूप प्रदान करने में उदाहरणों का प्रयोग जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में करते हैं।
(2) ग्रामोफोन –
श्रव्य साधनों का पुराना उदाहरण हैं -ग्रामोफोन। इसके माध्यम से किसी घटना, विवरण, गीत, कहानी, वार्तालाप आदि सुना जा सकता है।
(3) टेप रिकाॅर्डर – टेप रिकाॅर्डर ग्रामोफोन का वैज्ञानिक एवं विकसित रूप है। इसके माध्यम से महत्त्वपूर्ण भाषण अथवा सामग्री टेप करके स्थायी तौर पर रखी जा सकती है।
(4) रेडियो – श्रव्य साधन और मनोरंजन उपकरण की दृष्टि से रेडियो सर्वविदित उपकरण है।
दृश्य सहायक सामग्री –
(1) श्यामपट्ट (ब्लैकबोर्ड) –
(अ) इसे अध्यापक का विश्वसनीय मित्र कहते है । यद्यपि यह स्वयं कोई दृश्य सामग्री नहीं हैं, तथापि इसका उपयोग
एक अच्छी दृश्य सामग्री के रूप में किया जा सकता है।
(ब) श्यामपट्ट कार्य की सफलता अध्यापक पर निर्भर करती हैं। श्यामपट्ट का प्रयोग रेखाचित्र, ग्राफ, मानचित्र, पाठ सार
तथा गृहकार्य देने के लिए किया जा सकता है।
(2) प्रतिरूप –
(अ) पर्यावरणीय अध्ययन शिक्षण में प्रतिरूप का बङा महत्त्व है। प्रतिरूप को कक्षा में प्रदर्शित करने से छात्रों को
वास्तविक वस्तु का ज्ञान होता है।
उदाहरण के लिए भूगोल शिक्षण में ज्वालामुखी पर्वत के प्रतिरूप को छात्रों को दिखाया जा सकता हैं
(ब) प्रतिरूप के अंग एवं कार्य आदि को सरल तथा स्पष्ट भाषा में छात्रों को समझाना चाहिए।
(3) बुलेटिन बोर्ड (सूचना पट्ट) –
(अ) यह प्लाई वुड, मोसोनाइट या मजबूत गत्ते का बना होता हैं। इस पर प्रदर्शन सामग्री को लगाने के लिए ड्राइंग
पिन्स का प्रयोग किया जाता है।
(ब) बुलेटिन बोर्ड का प्रयोग प्रतिभाशाली छात्रों की स्वनिर्मित रचनाएँ, देश-विदेश की घटनाएँ एवं समाचार प्रतिदिन
लिखकर किया जा सकता है।
(4) फ्लैनल (खादी) बोर्ड –
(अ) फ्लैनल बोर्ड प्लाई वुड अथवा भारी कार्ड बोर्ड पर गोंद पर चिपकाया हुआ फ्लैनल अथवा खादी का कपङा होता
है जो कि एक सम धरातल पर चिपकाया जाता है।
(ब) कार्ड बोर्ड के छोटे-छोटे टुकङों पर तैयार चित्रों को फ्लैनल बोर्ड पर चिपकाया जाता हैं।
(5) रेखाचित्र –
(अ) रेखाचित्र विभिन्न विषयों के शिक्षण में बङी प्रभावोत्पादक सहायक सामग्री है।
(ब) इसमें रेखाओं तथा प्रतीकों के द्वारा अंतः संबंध स्पष्ट किए जाते हैं।
(स) इसमें विषय वस्तु से संबंध किसी चित्र अथवा परिस्थिति का रेखाओं के माध्यम से सांकेतिक प्रदर्शन होता है।
(6) मानचित्र –
(अ) मानचित्र छोटे पैमाने से प्रदर्शित सम धरातल पर दिखाये जाने वाला पृथ्वी का चित्र होता है। चित्रों के समूह को
एटलस कहा जाता है।
(ब) इसके द्वारा छात्रों के सम्मुख अमूर्त वस्तुओं का ज्ञान मूर्त कर दिया जाता है।
(स) मानचित्र में अत्यधिक तथ्य नहीं होने चाहिए।
(द) संकेत स्पष्ट तथा पैमाना निश्चित होना चाहिए।
(य) मानचित्र का उपयोग उचित समय पर करना चाहिए तथा अवसर समाप्त होने पर उसे हटा देना चाहिए।
(7) चित्र –
(अ) चित्र बालकांे की जिज्ञासावृत्ति एवं कल्पनाशक्ति को बढ़ाने में मदद करता है।
(ब) चित्र सरल, सही और सत्य रूप में प्रदर्शित करना चाहिए।
(स) चित्रों का आकार कक्षा के आकार के अनुकूल तथा उसमें शीर्षक दिया हुआ होना चाहिए।
(8) ग्लोब –
(अ) ग्लोब गोल आकृति पर त्रिपक्षीय चित्र है।
(ब) ’’ग्लोब पृथ्वी के धरातल का शुद्धतम रूप से प्रतिनिधित्व करता है। इसका प्रयोग उस समय करना चाहिए जब
स्थान, आकार, दूरी, दिशा तथा भूमि की बनावट एवं सागर आदि की सापेक्षिक समस्याओं का प्रतिनिधित्व कराना
हो।’’ -माइकेलिस
(स) ग्लोब प्रदर्शन विधि द्वारा पढ़ाए जाने वाले प्रमुख प्रकरण – 1. पृथ्वी की आकृति 2. उत्तरी-दक्षिणी गोलार्द्ध 3.
अक्षांश-देशांतर रेखाएँ 4. पृथ्वी की गति आदि।
(9) चार्ट्स –
(अ) चार्ट किसी घटना या क्रांति का क्रमिक विकास दिखाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
(ब) चार्टों में जलवायु तथा तापक्रम आदि का प्रदर्शन भी सुगमता से किया जा सकता है।
(स) चार्ट के द्वारा किसी वस्तु का अंतः संबंध तथा संगठन, भावों, विचारों तथा विशेष स्थलों को दृश्यात्मक रूप से
प्रदर्शित किया जाता है।
(10) पोस्टर, कार्टून पोस्टर –
(अ) यह सहायक सामग्री किसी सूचनात्मक ज्ञान एवं व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति को स्पष्ट करने का सरल माध्यम है।
उदाहरण – 1. भारत की विभिन्नता में एकता को भारत में बसने वाले लोगों को एक पोस्टर में अपनी-अपनी वेशभूषा
में प्रस्तुत कर दर्शाया जा सकता है।
2. बच्चों की अच्छी आदतों, दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा, धूम्रपान, वनों की सुरक्षा आदि को पोस्टर एवं कार्टून के माध्यम से
स्पष्ट किया जा सकता है।
(ब) पोस्टर का प्रयोग करने से पूर्व उनके आकार, प्रकार, रंग व उपयुक्तता का पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए क्यांेकि
त्रुटिपूर्ण पोस्टर एवं कार्टून से गलत धारणा बन जाती है।
(11) स्लाइड, फिल्म स्ट्रिप्स –
(अ) स्लाइड तथा फिल्म स्ट्रिप्स की सहायता से बालक प्रत्येक चीज को बङे आकार में पर्दे पर देखते हैं।
(ब) यांत्रिक उपकरण के माध्यम से एक-एक परिस्थिति को जिन चित्रों के सहारे प्रदर्शित किया जाता है, वह
स्लाइड्स होती है।
(स) स्लाइड्स छोटे आकार की फोटो नेगेटिव रिल तथा काँच पर कैमरे द्वारा उतारे गए चित्र होते हैं जिन्हें फिल्म
स्ट्रिप प्रोजेक्टर द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
श्रव्य-दृश्य सहायक सामग्री एवं उपयोग विधि –
(1) नाटक –
(अ) किसी भी विषय को रंगमंच पर नाटक के माध्यम से सजीव बनाया जा सकता है।
(ब) इनके द्वारा संवाद बोलने एवं रंगमंच पर अभिनय करने की कला में दक्षता आती है।
(स) नाटक के माध्यम से पढ़ाये जाने वाले प्रमुख प्रकरण – भगवान राम का आदर्श चरित्र, पन्नाधाय का त्याग,
सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र आदि।
(2) चलचित्र –
(अ) चलचित्र में छात्र व्यक्तियों को वास्तविक परिस्थितियों में कार्य करते हुए देखता है।
(ब) शिक्षण में चलचित्रों का प्रयोग प्रथम महायुद्ध के पश्चात् होने लगा था परंतु उनका 1931 के बाद पर्याप्त मात्रा में
उपयोग होने लगा।
(स) चलचित्र छात्रों की सभी ज्ञानेन्द्रियों को प्रभावित करते हैं। शिक्षाप्रद चलचित्रों को छात्रों को देखने के लिए
प्रोत्साहित करना चाहिए।
(3) टेलीविजन –
(अ) टेलीविजन जनसंपर्क का अत्यंत प्रभावशाली माध्यम है जिसके द्वारा समाचार-पत्रों, रेडियो, सिनेमा आदि सभी
की एकसाथ पूर्ति हो सकती है।
(ब) सरकार इसके माध्यम से नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, शैक्षिक आदि पक्षों की जानकारी देती है।
(स) टेलीविजन का आविष्कार 1925 में डाॅ. बेवर्ड ने किया था। हमारे देश में सर्वप्रथम 1959 में नई दिल्ली में इसका
केन्द्र खोला गया।
(4) कठपुतली –
(अ) निर्जीव कठपुतलियों के माध्यम से पर्यावरणीय अध्ययन शिक्षण की अधिकांश विषय वस्तु अध्यापन नाटकीयकरण
विधि से बङे प्रभावशाली ढंग से किया जाता है।
शिक्षण सहायक सामग्री (Teaching Aids in Hindi)
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