आज की पोस्ट में हम रीतिबद्ध कवि केशवदास जी के जीवन परिचय के बारे में जानेंगे और ऑडियो क्लिप से भी इनके बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे |
⇒केशवदास जीवन परिचय
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केशवदास (1555-1617 ई. संवत् 1612-1674)
⇒ आचार्य केशव ’रीतिकाल का प्रवर्तक’ कहलाने के अधिकारी है।
⇔ ये राजा रूद्रप्रताप के आश्रित सनाढ्य ब्राह्मण पं. कृष्णदत्त के पौत्र और राजा मधुकर शाह से सम्मानित पं. काशीनाथ के पुत्र थे तथा ओरछा नरेश इन्द्रजीत सिंह इन्हें गुरु मानते थे।
⇒ शुक्ल ने इनका समयकाल संवत् 1612-1674 वि.सं. के आसपास माना है।
इनके द्वारा रचित ग्रन्थ हैं –
रचनाएं
- रसिकप्रिया (1591)
- रामचन्द्रिका (1601)
- कविप्रिया (1601)
- रतनबावनी (1607 ई. के लगभग)
- वीरसिंहदेवचरित (1607)
- विज्ञानगीता (1610)
- जहाँगीर जसचन्द्रिका (1612)
- नखशिख और छन्दमाला।
⇒ केशव अलंकारवादी आचार्य थे। इन्हें शुक्ल ने ’कठिन काव्य का प्रेत’ कहा। इन्होंने ब्रज भाषा में रचना की। यद्यपि ये संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे तथापि उनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ हिन्दी है जिसमें बुन्देली, अवधी और अरबी-फारसी शब्दों का समावेश है।
⇒ अधिक छन्द प्रयोग के लिए ’रामचन्द्रिका’ को छन्दों का अजायबघर कहा जाता है।
जदपि सुजाति सुलच्छनी, सुबरस सरस सुवृत्त।
भूषण बिनु न बिराजई, कविता बनिता मित्त।।
(कविप्रिया)
कवि कौ देन न चहै विदाई। पूछे केशव की कविताई।।
केशवदास के बारे में महत्त्वपूर्ण कथन
आचार्य शुक्ल – ’’केशव को कवि हृदय नहीं मिला था, उनमें वह सहृदयता और भावुकता न थी, जो एक कवि में होनी चाहिए।’ यथा –
कै स्रोनित कलित कपाल यह किल कपालिक काल को (उपमा का नीरस क्लिष्ट प्रयोग)।
शुक्ल के अनुसार – ’केशव केवल उक्ति वैचित्र्य और शब्द क्रीङा के प्रेमी थे। जीवन के नाना गम्भीर और मार्मिक पक्षों पर उनकी दृष्टि नहीं थी। प्रबन्ध पटुता उनमें कुछ भी न थी।’
डाॅ. शम्भूनाथ सिंह – ’रामचन्द्रिका में न तो किसी महान् आदर्श की स्थापना हो सकी है और न ही उसमें ऐसी महत् प्रेरणा ही दिखाई देती है, जिससे अभिभूत होकर कवि ने उसकी रचना की हो।’
⇔ केशव को ’रामचन्द्रिका’ में सर्वाधिक सफलता संवाद-योजना में मिली है।
रामचंद्र शुक्ल –’इन संवादों में पात्रों के अनुकूल क्रोध, उत्साह आदि की व्यंजना भी सुन्दर है तथा वाक्पटुता और राजनीति के दावपेंच का आभास भी प्रभावपूर्ण है।’
रामचंद्र शुक्ल – प्रबंधकाव्य रचना के योग्य न तो केशव में अनुभूति ही थी, न शक्ति।
रामचंद्र शुक्ल – रामचंद्रिका में केशव को सबसे अधिक सफलता हुई है संवादों में इन संवादों में पात्रों के अनुकूल क्रोध, उत्साह आदि की व्यंजना भी सुंदर है।
रामचंद्र शुक्ल – केशव की रचना में सूर, तुलसी आदि की सी सरसता और तन्मयता चाहे न हो पर काव्यांगों का विस्तृत परिचय कराकर उन्होंने आगे के लिये मार्ग खोला।
डाॅ. नगेन्द्र – केशवदास का रस और अलंकार विवेचन न तो तर्क संगत है, न ही मौलिक।
डाॅ. नगेन्द्र – ’रामचंद्रिका’ केशव का असाधारण महाकाव्य है, जिसमें परपंरा पालन के स्थान पर वैशिष्ट्य सन्निवेश का ध्यान अधिक रखा गया।
पीताम्बरदत्त बङथ्वाल – उनकी भाषा काव्योपयोगी नहीं है। माधुर्य और प्रसाद गुण से तो जैसे वे खार खाए बैठे थे। उनकी ब्रजभाषा बहुत ऊबङ-खाबङ है। उसमें स्थान-स्थान पर बुन्देलखण्डों का पुट मिला हुआ है।
अज्ञेय – बिहारी को एक ट्रेडिशन बना बनाया मिला, केशव ने स्वयं ’ट्रेडिशन’ बजाया। अगर बिहारी की फलों की दुकान है जहाँ आप को मेवा तुरंत मिलता है, तो केशव वह माली है जिसने पौधे बोये थे।
केशवदास की संवाद योजना के चयनित उदाहरण
कैसे बंधायो ?
जो सुन्दरि तेरी छुई दृग सोबत पातक लेख्यो
कौन को सुत? बालि के! वह कौन बालि! न जानिए!
कांख चापि तुम्हें जो सागर सात न्हात बखानिए।।
(व्यंजना सौन्दर्य)
देहि अंगदराज तो को मारि वानरराज को (राजनीति)
यह कौन को दल देखिए, यह राम को प्रभु पेखिए।
यह कौन राम न जानिए, यह ताङका जिन मारिए।।
(नाटकीयता)
मातु कहाँ नृप तात? गए सुरलोकहि
क्यों? सुत शोक लिए। (स्वाभाविकता)
⇒ केशव की संवाद योजना में पात्रानुकूलता, व्यंजना, संक्षिप्तता, राजनीति, सरल भाषा, नाटकीयता, स्वाभाविकता थी।
⇔ कहा जाता है कि केशवदास ने अपनी शिष्या ’रायप्रवीन’ को काव्यशास्त्र का ज्ञान कराने के लिए कविप्रिया, रसिकप्रिया और छन्दमाला तीनों रीतिग्रन्थों का प्रणयन किया।
⇒ रसिकप्रिया में सोलह प्रकाश (अध्याय) हैं जिसमें शृंगार रस के भेद, नायक-नायिका भेद, दर्शन प्रकार, मिलन स्थान, वियोग शृंगार, कामदशा, मान, मानमोचन उपाय, सखी भेद आदि हैं।
⇔ कविप्रिया में सोलह ’प्रभाव’ (अध्याय) हैं जिसमें गणेश वंदना, नृपवंश, स्वयं का वंश, काव्य दोष, अलंकार भेद, नखशिख वर्णन, चित्रकाव्य आदि वर्णित हैं।
⇒ छन्दमाला के प्रथम भाग में 77 वर्णवृत्तों (छंदों) तथा द्वितीय भाग में 26 मात्रावृत्त के लक्षण उदाहरण सहित प्रस्तुत हैं।
⇔ ’कविप्रिया’ में कवि के आश्रयदाता इन्द्रजीतसिंह की प्रशस्ति सम्बन्धी अनेक छंद समाविष्ट है।
डाॅ. नगेन्द्र –’भक्तिकाव्य की वेगवती धारा को रीतिपथ पर मोङने के लिए एक प्रभावशाली व्यक्तित्व की आवश्यकता थी, प्रतिभा से पुष्ट यह व्यक्तित्व केशव का था।’
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