कुंभनदास || जीवन परिचय || Hindi Sahitya ka Iitihas

आज की पोस्ट में हम भक्तिकाल में कृष्णकाव्य धारा के प्रमुख कवि कुंभनदास  (Kumbhandas) के जीवन परिचय के बारे में पढेंगे ,आप इसे अच्छे से पढ़ें |

कुंभनदास जीवन परिचय(Kumbhandas life introduction)

⇒ जन्मकाल – 1468 ई. (1525 वि.) मृत्युकाल – 1583 ई. (1640 वि.)
⇔ जन्मस्थान – ग्राम-जमुनावती (गोवर्धन क्षेत्र, मथुरा)
⇒ गुरु का नाम – वल्लभाचार्य
⇔ गुरुदीक्षा – 1492 ई. में
⇒ प्रमुख रचनाएँ – इनकी कोई स्वतंत्र रचना प्राप्त नहीं होती है। इनके रचित पदों के निम्न दो संग्रह प्राप्त होते हैं –

1. कांकरोली विद्या प्रभाग से ’पद संग्रह’ के नाम से संकलित हैं, जिसमें कुल 186 पद हैं।
2. नाथद्वारा, पुस्तकालय में संकलित हैं, जिसमें कुल 367 पद हैं।

⇒ विशेष तथ्य – 1. ये अष्टछाप के कवियों में सबसे वरिष्ठ कवि माने जाते हैं।

अष्टछाप में सबसे वरिष्ठ कवि –कुंभनदास
अष्टछाप में सबसे कनिष्ठ कवि –न्ददास

ट्रिकः    कुन 

कुंभनदास

कुंभनदास
2. ये वल्लभाचार्यजी के अष्टछापी शिष्यों में सर्वप्रथम शिष्य (1492 ई. में दीक्षा) माने जाते हैं।
3. ये अष्टछाप के कवियों में सूरदास के बाद दूसरे प्रमुख कवि माने जाते हैं।

4. सम्राट् अकबर इनके पदों पर अत्यधिक मुग्ध थे। अकबर के बुलावे पर एक बार इनको फतेहपुर सीकरी भी जाना पङा था, जहाँ इन्होंने एक अनासक्त भाव का पद सुनाया था। यथा –

भक्तन को कहा सीकरी सों काम।
आवत जात पन्हैया टूटी बिसरि गयो हरिनाम।।
जाको देखे दुःख लागै ताकौ करन परी परनाम।
कुम्भनदास लाल गिरिधन बिन यह सब झूठो धाम।।

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