अमीर खुसरो जीवन परिचय – Amir Khusro ka Jivan Parichay

आज की पोस्ट में हम चर्चित कवि अमीर खुसरो(Amir Khusro ka Jivan Parichay) के सम्पूर्ण जीवन परिचय के बारे में जानेंगे ,आप इसे अच्छे से पढ़ें |

Amir Khusro

 

amir khusro

अमीर खुसरो – Amir Khusro ka Jivan Parichay

नामअमीर खुसरो
जन्मतिथि1255 ई. (1312 वि.)
जन्मस्थानगांव-पटियाली, जिला-एटा
मूल नामअब्दुल हसन या अबुल हसन
पिता का नामतुर्क सैफुद्दीन
माता का नामदौलत नाज़
उपाधिखुसरो सुखन (यह उपाधि मात्र 12 वर्ष की अल्पायु में बुजुर्ग विद्वान् ख्वाजा इजुद्दीन द्वारा प्रदान की गई थी।)
उपनाम1. तुर्क-ए-अल्लाह 2. तोता-ए-हिन्द (हिन्दुस्तान की तूती)-(parrot of hindustan)
गुरु का नामनिजामुद्दीन ओलिया
मृत्यु1324 ई. (1381 वि.)

प्रमुख रचनाएँ – Amir Khusro ki Rachnaye

  • खालिकबारी
  • पहेलियाँ
  • मुकरियाँ
  • गजल
  • दो सुखने
  • नुहसिपहर
  • नजरान-ए-हिन्द
  • हालात-ए-कन्हैया

विशेष तथ्य – Amir Khusro in Hindi

1. इनकी ’खालिकबारी’ रचना एक शब्दकोश है, जिसमें तुर्की, अरबी, फारसी, हिन्दी भाषा के पर्यायवाची शब्दों को शामिल किया गया है। यह रचना गयासुद्दीन तुगलक के पुत्र को भाषा ज्ञान देने के उद्देश्य से लिखी गयी थी।
2. इनकी ’नुहसिपहर’ रचना में भारतीय बोलियों के संबंध में विस्तार से वर्णन किया गया है।
3. इनको हिन्दू-इस्लामी समन्वित संस्कृति का प्रथम प्रतिनिधि कवि माना जाता है।
4. ये खङी बोली हिन्दी के प्रथम कवि माने जाते है।

5. ब्रज और अवधी को मिलाकर काव्य रचना करने का आरंभ इन्होंने ही किया था।
6. खुसरो की हिन्दी रचनाओं का प्रथम संकलन ’जवाहरे खुसरवी’ नाम से सन् 1918 ई. में मौलाना रशीद अहमद ’सालम’ ने अलीगढ़ से प्रकाशित करवाया था।
7. इस प्रकार का द्वितीय संकलन 1922 ई. मे ब्रजरत्नदास ने नागरी प्रचारिणी सभा, काशी के माध्यम से ’’खुसरो की हिन्दी कविता’’ नाम से करवाया था।
8. डाॅ. रामकुमार वर्मा ने इनको अवधी का प्रथम कवि कहा है।
9. ये अपनी पहेलियों की रचना के कारण सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए है।

10. इनका निम्न कथन भी अति प्रसिद्ध है:-
’’मैं हिन्दुस्तान की तूती हूँ, अगर तुम भारत के बारे में वास्तव में कुछ पूछना चाहते हो तो मुझझे पूछो।’’
11. इन्होंने गयासुद्दीन बलबन से लेकर अलाउद्दीन और कुतुबद्दीन मुबारकशाह तक कई पठान बादशाहों का जमाना देखा था।
12. खुसरो के गीतों और दोहों में प्रयुक्त भाषा को देखकर ही प्रो. आजाद को यह भ्रम हुआ था कि ब्रजभाषा से खङी बोली (अर्थात् इसका अरबी-फारसी ग्रस्त उर्दू रूप) निकल पङी।

13. ये आदिकाल में मनोरंजकपूर्ण साहित्य लिखने वाले प्रमुख कवि माने जाते हैं।
दो सखुने इस विधा में एक साथ दो-तीन प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में देने का प्रचलन रहा हैं:
जैसे –
1. घोङा अङा क्यों ? पान सङा क्यों ? -आंसर
2. गदहा उदासा क्यों ? ब्राह्मण प्यासा क्यों ? – लोटा न था।
3. अचार क्यों न चखा ? वजीर क्यों न रखा ? – दाना न था।
4. नार क्यों न नहाई ? सितार क्यों न बजा – परदा न था।

मुकरियाँ यह वह विधा है जहाँ प्रश्नकर्ता के द्वारा दो अर्थों उत्तरों के क्रम में पहले उत्तर से मुकर जाने की कोशिश दिखती है, जैसे
1. वह आवे तब शादी होय। उस बिन दूजा और न कोय।।
मीठे लागें वाके बोल। ऐ सखी साजन ? न सखी ढोल।।
2. नित मेरे घर आवत है। रात रहे वो जावत है।।
फँसत अमावस गोरि के फन्दा। ऐ सखी साजन ? न सखी चन्दा।।

ढकोसला
खीर बनाई जतन से, चर्खा दिया चलाय।
आया कुत्ता खा गया, गोरी बैठी ढोल बजाय।।

मिश्रित पद्धति अमीर खुसरो ने हिन्दी साहित्य को ब्रजभाषा और खङी बोली के साथ-साथ फारसी के मिश्रण के द्वारा एक अनूठी पद्धति दी। उदाहरण से स्पष्ट है
1. चूक भई कुछ वासों ऐसी। देस छोङ भयो परदेसी। (ब्रजभाषा)
2. एक नार पिया को भानी। तन वाको सगरा ज्यों पानी। (ब्रजभाषा)

3. जे हाल मिसकी मकुन तगाफुल दुराय नैना, बनाय बतियाँ।
कि ताबे हिज्राँ न दारम, ऐ जाँ! न लेहु काहे लगाय छतियाँ।
शबाने हिज्राँ दूराज चूँ जुल्फ व रोजे वसलत चूँ उम्र कोतह।
सखी। पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटू अँधेरी रतियाँ।। (फारसी भाषा)

खुसरो की कुछ प्रसिद्ध पहेलियाँ (Amir Khusro)

1. ’’एक थाल मोती से भरा। सबके सिर पर औंधा धरा।।
चारों ओर वह थाली फिरे। मोती उससे एक न गिरे।।’’ (आकाश)
2. ’’एक नार ने अचरज किया। साँप मारि पिंजङे में दिया।
जों जों साँप ताल को खाए। सूखे ताल साँप मर जाए।।’’ (दीया-बत्ती)
3. ’’अरथ तो इसका बूझेगा। मुँह देखो तो सूझेगा।।’’ (दर्पण)

4. ’’एक नार दो को ले बैठी। टेढ़ी होके बिल में पैठी।
जिसके बैठे उसे सुहाय। खुसरो उसके बल-बल जाय।।’’ (पायजामा)

आदिकाल में खुसरो ने खङी बोली का प्रयोग अपने काव्य में किया। इन्हें खङी बोली का प्रथम कवि माना जाता है। इनके द्वारा रचित ग्रन्थों की संख्या 100 बताई जाती है, जिनमें से करीब 20-21 ग्रन्थ ही उपलब्ध है। कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ- खालिक बारी, पहेलियाँ, मुकरियाँ, दो सुखने, गजल है।

साहित्य के क्षेत्र में जिन विधाओं को इन्होंने जन्म दिया, उनमें गीत प्रमुख हैं उदाहरण
अम्मा मेरे बाबुल को भेजो री…….
काहे को बियाहे परदेस सुन बाबुल मेरे….
अमीर खुसरो अलाउद्दीन के दरबारी कवि एवं निजामुद्दीन औलिया के परम शिष्य थे। इनकी मृत्यु 1324 ई. मे हुई थी।

अमीर खुसरो और उनकी हिन्दी(Amir Khusro ka Jivan Parichay)

अमीर खुसरो फारसी के प्रधान कवि थे। वे अरबी औश्र तुर्की में भी रचनाएँ लिखा करते थे, लेकिन उन्होंने हिन्दी में भी अनेक रचनाएँ लिखीं। सल्तनतकालीन राजभाषा फारसी होने के बावजूद अमीर खुसरो ने हिन्दी में क्यों रचनाएँ लिखीं ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने अन्यत्र लिखा है, ’’ हिन्दी भाषा फारसी से कम नहीं है, सिवाय अरबी के….. जिस प्रकार अरबी अपनी बोली में दूसरी भाषा को मिलने नहीं देती……उसी तरह हिन्दी में मिलावट का स्थान नहीं है।’’

खुसरो ने यहाँ पर जिस हिन्दी की बात की है, वह 13वीं सदी के उत्तरार्द्ध और 14वीं सदी के आरम्भ की है। खुसरो की रचनाएँ तत्कालीन हिन्दी भाषा में ही लिखी गई है।
स्पष्टतः ये सभी रचनाएँ खङी बोली में है। उस समय इसे हिन्दुई या हिन्दवी कहते थे। खुसरो के समय की हिन्दी खङी बोली सम्भवतः दिल्ली, आगरा और मध्यप्रदेश में प्रचलित थी। महाराष्ट्र के तत्कालीन प्रसिद्ध सन्त नामदेव जोकि खुसरो के समकालीन ही थे, उन्होंने अपनी काव्य रचनाएँ इसी हिन्दी खङी बोली में कीं। 13वीं सदी तक खुसरो की इस खङी बोली में विदेश भाषा के शब्द नहीं थे, परन्तु उसके बाद स्वयं खुसरो ने भी अपनी हिन्दी में फारसी और अरबी शब्दों का प्रयोग किया।

इससे यह सिद्ध होता है कि खुसरो कालीन हिन्दी खङी बोली में विदेशी शब्द बहुत ही कम थे और जो थे वे अपने मूल रूप से ब्रजभाषा, राजस्थानी बोलियाँ अवधी का अधिकार था। खङी बोली उस समय केवल तत्कालीन जन सामान्य की आम बोलचाल की भाषा थी। सम्भवतः इसी कारण खुसरो ने इसे ’हिन्द की तूती’ कहा है।
खुसरो की रचनाओं की खङी बोली का रूप देखकर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कहा था कि ’’यह आश्चर्य की बात है कि क्या खुसरो के समय तक भाषा घिसकर इतनी चिकनी हो गई थी, जितनी उनकी पहेलियों में मिलती है।’’

खुसरो की हिन्दी भाषा की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

⇒ खुसरो की हिन्दी, आधुनिक खङी बोली से पर्याप्त साम्य रखती है। अधिकतर संज्ञा रूप दोनों वचनों में समान है, परन्तु शब्दों के त्रिवर्णीय रूप से बहुवचन स्पष्ट होता है; जैसे – टाँगन (टाँगों से), नैनन (नैनों में) आदि।
⇔ भारतीय आर्य भाषा की लगभग सभी ध्वनियों का प्रयोग मिलता है।
⇒ पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने के लिए ’ई’ या ’नी’ प्रत्यय का प्रयोग किया गया है; जैसे- मेहतर-मेहतरानी, ढोलक-ढोलकी आदि।
⇔ कारक युक्त व कारक रहित शब्दों का प्रयोग मिलता है।
कारक युक्त शब्द- नार ने, पीको, मोको, मुँह से घरमा आदि
कारक रहित शब्द- नार खङी, आँखों, दीठा, घर जावे आदि।

⇒ प्रायः सर्वनाम के निम्न रूप मिलते हैं- अपने, मोहि, तोहि, वाको आदि।
⇔ क्रिया के पूर्वकालिक, क्रियार्थक तथा कृदन्त रूप क्रमशः इस प्रकार मिलते हैं- फिरि आई, मारना लागा, फूँकत फिरै आदि।
⇒ प्रेरणार्थक शब्द भी मिलते हैं- बिसरावत, खटकावै आदि।
अतः निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि अमीर खुसरो ने खङी बोली को बहुत ही अच्छे ढंग से पहचाना और उसे रचनात्मक रूप दिया। उन्हीं के उद्यम के फलस्वरूप आज हिन्दी खङी बोली का मानक रूप, भारत की राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।

अमीर खुसरो की पहेलियाँ व मुकरियाँ – Amir Khusro ki Paheliyan avn Mukerian

अमीर खुसरो की पहेलियाँ हिन्दी साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। खुसरो ने पहेलियों, मुकरियों, सुखनों, निसबतों आदि के द्वारा रोचकता, कौतुहल, वैचित्र्य तथा विनोद की सृष्टि भी की है। डाॅ. रामकुमार वर्मा के अनुसार, ’’पहेलियाँ, मुकरियाँ व सुखनों के द्वारा उन्होंने कौतुहल और विनोद की सृष्टि भी की। उन्होंने दरबारी वातावरण में रहकर चलती हुई बोली से हास्य की सृष्टि करते हुए हमारे हृदय को प्रसन्न करने की चेष्टा की है।’’

खुसरो की पहेलियाँ आम बोलचाल की भाषा के साथ-साथ समाज की सुसभ्य, शिष्ट और व्याकरण समस्त भाषा में हमारे सामने प्रस्तुत हुई हैं। पहेलियाँ शब्द संस्कृत के ’प्रहेलिका’ शब्द का अपभ्रंश या तद्भव रूप है। अतः स्पष्ट है कि हिन्दी में पहेली की परम्परा संस्कृत से आई; जैसे-

’’सीमान्तिीषु का शान्ता राजा कोडभूद्गुणोत्तमः।
विद्वद्मिः का सदा वन्द्या अत्रेवोक्तं न बुद्धयते।।’’

अर्थात् सीमान्तनियों में कौन शान्ता है ? (सीता) गुणों में उत्तम राजा कौन है ? (राम) विद्वानों द्वारा कौन सदैव वन्दनीय है ? (विद्या) यहाँ उत्तर कहा गया परन्तु जाना नहीं जाता। पहेलियों में संस्कृत में दो रूप हैं- ’अन्तर्लापिका’ अर्थात् जिनके उत्तर पहेलियों में ही छिपे होते हैं और ’बहिर्लापिका’ जिनके उत्तर पहेलियों में नहीं होते है। अन्तर्लापिका पहेली का खुसरो द्वारा रचित उदाहरण दृष्टव्य है

’’बाला था जब सबको भाया।
बङा हुआ कुछ काम न आया।
खुसरो कह दिया उसका नाँव
अर्थ करो या छोङो गाँव।’’ (उत्तर-दीया)

खुसरो की बहिर्लापिका पहेली का एक उदाहरण दृष्टत्व है
’’आगे आगे बहिना आई, पीछे-पीछे भइया।
दाँत निकाले बाबा आए, बुरका ओढे मइया।।’’ (उत्तर-भुट्टा)

अतः अमीर खुसरो की दोनो प्रकार की पहेलियों में रोचकता और वैचित्र्यता थी। पहेलियों का विवरण और लक्षण यहाँ क्लिष्ट भी नहीं किया जा सकता, क्योंकि अभिप्राय प्राप्त करने के लिए जो संकते दिए गए हैं, वो सरल व कौतूहलपूर्ण है। खुसरो द्वारा रचित मुकरियाँ भी एक प्रकार की पहेलियाँ ही हैं।

मुकरी का अर्थ होतो है- किसी बात को कहकर मुकर जाना। निम्नलिखित उदाहरण दृष्टत्व हैं
’’सोभा सदा बढ़ावन हारा
आँखों ते छिन होत न प्यारा।।’’
आए फिर मेरे मन रंजन,
ऐ सखि साजन ? न सखी अंजन।।
(अंजन=काजल)

’’वह आये तो शादी होय,
उस बिन दूजा और न कोय
मीठे लागे बाके बोल,
क्यों सखि-सा जन ? न सखी ढोल।।’’
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि खुसरो ने अपनी इन मुकरियों, पहेलियांे में अपह्नति अलंकार का प्रयोग करके जो भाषा का चमत्कार पैदा किया, वो अन्य साहित्यकारों की रचनाओं में प्रायः नहीं मिलता।

खुसरो की कुछ पहेलियों और मुकरियों की व्याख्या

पहेलियाँ
स्याम बरन की है एक नारी
माथे ऊपर लागै प्यारी।
जो मानुस इस अरथ को खोले,
कुत्ते की वह बोली बोले।। उत्तर-भौं (भौंए आँख के ऊपर होती हैं)
व्याख्या
अमीर खुसरो इस पहेली में पूछ रहे हैं कि एक काले रंग की नारी (स्त्री) है, जो माथे के ऊपर लगी हुई होती है और सुन्दर दिखती हैं। जो भी मनुष्य इस बात का भेद अर्थात अर्थ निकालेगा वो ही कुत्ते की आवाज (उत्तर बताते हुए) बोलेगा। उपरोक्त पहेली में खुसरों ’भौंह’ के विषय में पूछ रहे है, जिसका उच्चारा करते हुए लगभग कुत्ते के भौंकने (भौं-भौं) जैसी आवाज निकलती है।
विशेष
1. खुसरो की पहेलियाँ अन्योक्ति अलंकार का अनुपम उदाहरण है।
2. ’श्याम बरन की नारी…..’ खङी बोली हिन्दी का प्ररम्भिक रूप खुसरो की पहेलियों में मिलता है।

एक गुनी ने यह गुन कीना,
हरियल पिंजरे में दे दीना।
देखा जादुगर का हाल,
डाले हरा निकाले लाल। (उत्तर- पान)
व्याख्या
अमीर खुसरो कहते हैं कि एक विद्वान ने एक कार्य किया, उसने हरियल पक्षी को पिंजरे में डाल दिया और फिर जादूगर (उक्त विद्वान) का ऐसा हाल देखा गया अर्थात् जादूगर ने ऐसा चमत्कारपूर्ण कार्य किया कि पिंजरे (अर्थात्) मुख में हरे रंग (हरियल पक्षी अर्थात् पान) को डाला गया था, लेकिन पिंजरे से लाल रंग निकाला
विशेष
1. यहाँ खुसरो ने उक्ति- वैचित्र्य का प्रयोग करते हुए सरल बात को चमत्कारपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया है।
2. उपर्युक्त पहेलीका उत्तर ’पान’ है, जोकि मुँह में लेने से पहले हरा होता है और फिर चबाने पर उसकी पीक लाल हो जाती है।
3. सरल हिन्दी खङी बोली भाषा का प्रयोग।

Amir Khusro

गोल मटोल और छोटा-मोटा
हरदम वह जो जमीं पर लोटा।
खुसरो कहे नहीं है झूठा,
जो न बूझे अकिल का खोटा।। (उत्तर- लोटा)
व्याख्या
खुसरो कहते है कि एक वस्तु जो कि गोल-मटोल है तथा छोटी हुए भी मोटी है। वह वस्तु हर समय जमीन पर लेटी रहती है अर्थात् जमीन पर डाल देने से वह वस्तु लेट जाती है। खुसरो कहते हैं कि जो यह बात मैंने बताई है वह झूठी नहीं है।

साथ-ही-साथ खुसरो इस पहेली के विषय में पूछते हुए यह भी कहते हैं कि जो इस पहेली का उत्तर बता नहीं पायेगा वह अक्ल या दिमाग से खोटा होगा अर्थात् उसमें बुद्धि कम होगी।
उपर्युक्त पहेली का उत्तर लोटा है, जो गोल-मटोल व छोटा होता है तथा जमीन पर डाल देने पर लेट जाता है।
विशेष
1. यह पहेली अन्तर्लापिका है, इसका उत्तर पहली में ही दिया हुआ है। (’’हरदम वह तो जमीं पर लोटा)।
2. ’अकिल’ फारसी का शब्द है, जिसका अर्थ ’दिमाग’ या ’बुद्धि’ होता है।

नारी से तू नर भई
और श्याम बरन भई सोय।
गली-गली कूकत फिरे
कोइलो-कोइलो लोय।। (उत्तर- कोयल)
व्याख्या
खुसरो कहते है कि तू नारी के बदले नर लगती है अर्थात् नारी की अपेक्षा तू नर (आदमी) जैसे लगती है। तेरा रंग काला है और प्रत्येक गली में ’कोइलो-कोइलो’ कहकर कूकती फिरती है। यहाँ कवि ’कोयल’ के विषय में पूछते हुए कह रहे हैं कि वह देखने में तो नर जैसे लगती है तथा उसका रंग काला है और वह हर गली में ’कोइलो-कोइलो’ कहकर कूकती रहती है।
विशेष
1. यह पहली भी अन्तर्लापिका है।

Amir Khusro

हाङ की देही उज रंग
लिपटा रहे नारी के संग
चोरी की ना खून किया।
वाका सर क्यों काट लिया। (उत्तर-नाखून)
व्याख्या
खुसरो कहते है कि उज्जवल रंग अर्थात् श्वेत रंग तथा कठोर शरीर का होने के साथ-साथ यह नारी के शरीर से जुङा रहता है। कवि खुसरो आगे कहते है कि न तो उसने कोई चोरी की और न ही कोई खून किया, फिर भी उसका सिर क्यों काट दिया गया। यहाँ खुसरो नाखून से सम्बन्धित पहेली पूछते हुए कहते हैं कि वह उज्जवल रंग तथा हड्डी जैसी कठोर देह का है तथा हर समय नारी से लिपटा रहता है।

अधिक बङा होने पर नाखून को ऊपर से काट लेते हैं। अतः इस बात को अबूझ बनाते हुए खुसरो कहते हैं कि जब इसने कोई चोरी या कत्ल नहीं किया तो इसे सिर काटने की सजा क्यों दी गई।
विशेष
1. उक्ति वैचित्र्य का अनुपम उदाहरण।
2. अन्तर्लापिका पहेली (’’चोरी की ना खून किया’’)

आगे-आगे बहिना आई, पीछे पीछे भइया।
दाँत निकाले बाबा आए, बुरका ओढे मइया।। (उत्तर-भुट्टा)
व्याख्या
प्रस्तुत पहेली खुसरो की आध्यात्मिकता रूचि को स्पष्ट करती है। खुसरो इस पहेली में पूछते हुए कहते है कि आगे-आगे बहन है और उसके पीछे-पीछे भैया है। दाँत को बाहर निकाले हुए बाबा आए है और बुरका ओढ़कर माता जी आई है। उपर्युक्त पहेली मकई के भुट्टे के विषय में है। भुट्टा पत्तों के पीछे ढका रहता है तथा उसके बीज बाहर से ही दिखते रहते हैं। उसके ऊपर रेशेदार धागे से निकले रहते हैं।

माटी रौदूँ चक धर्रुं, फेर्रुं बारम्बर।
चातुर हो तो जान ले मेरी जात गँवार।। (कुम्हार)
व्याख्या
प्रस्तुत पहेली में खुसरो पूछ रहे है कि माटी को रौंदकर मैं उसे चक (चाक) पर रखता हूँ और फिर उसे बार-बार घुमता हूँ। यदि तुम चतुर हो ता तुम मेरे बारे में जान जाओगे कि मैं जाति से गँवार हूँ अर्थात् गाँव में रहता हूँ।
उपर्युक्त पहेली ’कुम्हार’ से सम्बन्धित है, क्योंकि कुम्हार अपने चाक के द्वारा मिट्टी के बहुत से बर्तन बनाता है।
विशेष
यह पहेली बहिर्लापिका है, क्योंकि इसका उत्तर पहेली के अन्दर नहीं होता। सोच-समझकर बताना पङता है।

Amir Khusro

एक नार तरवर से उतरी
सर पर वाके पाँव।
ऐसी नार कुनार को,
मैं ना देखन जाँव।।
व्याख्या
खुसरो कहते हैं कि नारी वृक्ष से उतरी। उकसे सिर पर पैर है। (यहाँ दो अर्थ लिए जा सकते हैं। ’सर पर वाके पाँव अर्थात् वह सिर, पंख और पैर रखती है या उसके सिर पर पैर हैं। मैना के सिर पर पैर जैसी ही आकृति बनी रहती है)।
खुसरो आगे कहते हैं कि ऐसी नारी जो कुनार है अर्थात् गलत स्त्री है, उसे मैं देखने नहीं जाऊँगा।
विशेष
1. अन्तर्लापिका पहेली (मैं ना देखन जावँ)।

अचरज बंगला एक बनाया
बाँस न बल्ला बन्धन घने।
ऊपर नींव तरे घर छाया,
कहे खुसरो घर कैसे बने।। (उत्तर- बयाँ पंछी का घोंसला)
व्याख्या
खुसरो (बया पक्षी के घांेसले को देखते हुए) कहते हैं कि कए ऐसा आश्चर्यचकित बंगला बनाया गया है, जिसमें बाँस-बल्लियों का कोई उपयोग नहीं किया गया, परन्तु उसके बन्धन फिर भी बहुत मजबूत है। इस घर की नींव ऊपर है और नीचे छायादार घर है। (बया पक्षी का घोंसला पेङ पर उल्टा लटका रहता है।) यह सब कौतुक देखते हए खुसरो हैरान हैं कि यह घर आखिर कैसे बनाया गया है।
विशेष
1. बहिर्लापिका पहेली।

Amir Khusro

चाम मांस वाके नहीं नेक,
हाड मास में वाके देद
मोहि अचंभो आवत ऐसे
वामे जीव बसत है कैसे।। (उत्तर-पिंजङा)
व्याख्या
खुसरो पिंजङे को देखते हुए एक पहेली का निर्माण करते हैं और बूझते हैं कि इसमें चमङा अर्थात् खाल या मांस भी नहीं है और उसकी हडिड्यों और मांस में छेद भी है। यह सब देखते हुए खुसरो कहते है कि मुझे इस देखकर हैरानी होती है कि इसमें जीव-जन्तु रहते कैसे है।

प्रस्तुत पहेली आध्यात्मिक पहेली हे, जिस प्रकार मनुष्य के शरीर को भी पिंजङा कहा जाता है और उसमें रहने वाली जीवात्मा को ’जीव’ कहा जाता है। उसी प्रकार लोहे से बने पिंजरे को देखकर उन्होंने उसकी शरीर रूपी पिंजङे से तुलना की है।
विशेष
1. बहिर्लापिका पहेली।

एक जानवर रंग रंगीला,
बिना मरे वह रोवे।
उसके सिर पर तीन तलाके
बिन बताए सोवे।। (उत्तर-मोर)
व्याख्या
खुसरो कहते है कि एक जानवर ऐसा है, जो कि रंग-रंगीला है अर्थात् रंग-बिरंगा है, जो कि बिना मारे ही रोता है। (इस पहेली का उत्तर मोर है, जिसकी आवाज ऐसी होती है कि मानो रो रहा हो), आगे खुसरो कहते है कि उसके सिर पर तीन तिलोक है तथा खङा-खङा ही सो जाता है। खुसरो द्वारा बताए गए उपर्युक्त लक्षण ’मोर’ के हैं।
विशेष
1. यह बहिर्लापिका पहेली है।

Amir Khusro

चार अंगूल का पेङ,
सवा मन का पत्ता।
फल लागे अलग-अलग,
पक जाए इकट्ठा।। (उत्तर-कुम्हार का चाक)
व्याख्या
खुसरो ’कुम्हार के चाक’ को देखते हुए यह अद्भूत पहेली पूछ रहे है कि एक चार अँगुल के पेङ पर सवाँ मन का पत्ता लगा हुआ है, जिस पर फल तो अलग-अलग लगते हैं, लेकिन पक जाने पर वे एक जगह हो जाते हैं।

एक नारी के हैं दो बालक
दोनों एकहि रंग।
एक फिरे एक ठाढ़ा रहे,
फिर भी दोनों संग।। (उत्तर-चक्की)
व्याख्या
खुसरो कहते है कि नारी के एक ही रंग के दो बालक है। एक जो चलता रहता है और एक स्थिर रहता है, फिर भी वे दोनों एक साथ रहते हैं। यहाँ खुसरो की इस पहेली का उत्तर ’चक्की’ है, जिसके देा पाट ऊपर-नीचे होते हैं। ऊपर वाला पाट चलता रहता है अर्थात् घूमता रहता है और नीचे वाला स्थिर रहता है।
विशेष
1. अपह्नति अलंकार का चमत्कृत प्रयोग।
2. बहिर्लापिका पहेली।

एक नार कुएँ में रहे,
वाका नीर खेत में बहे।
जो कोई वाके नीर को चाखे,
फिर जीवन की आस न राखे।। (उत्तर- तलवार)
व्याख्या
खुसरो ने ’म्यान में रखी तलवार’ को देखकर प्रस्तुत पहेली की रचना की। वे कहते है कि एक नारी (तलवार) कुएँ (म्यान) में रहती है, जिसका पानी (धार) खेत (युद्ध-क्षेत्र) में बहता है, जो भी उस पानी को चखता है, उसका जीवन खत्म हो जाता है अर्थात् वह मर जाता है।
विशेष
1. अपह्नति अलंकार
2. बहिर्लापिका पहेली।

मुकरियाँ

सेज पङी मोरे आँखों आए,
डाल सेज मोहे मजा दिखाए।
किससे कहूं अब मजा में अपना,
ऐ सखि साजन ? ना सखि सपना।।
व्याख्या
एक नायिका ने अपनी सखी से कहा- हे सखी! जैसे ही मैं सेज पर सोई वह मेरे आँखों के सामने आ गया। उसने मुझे सेज पर डालकर आनन्द की सैर कराई। अपने उस आनन्द को हे सखी, मैं किससे कहूँ। इस पर दूसरी सखी ने कहा- हे सखी, वे साजन होंगे। नायिका बोली- न सखी, वे साजन नहीं है, वह तो मेरा ’सपना’ है।

पङी थी मैं अचानक चढ़ आयो,
जब उतरयो तो पसीना आयो।
सहम गई नहीं सकी पुकार,
ऐ सखि साजन ? ना सखि बुखार।।
व्याख्या
एक नायिका ने अपनी सखी से कहा- हे सखी! मैं अपनी सेज पर पङी हुई थी। अचानक वह मेरे ऊपर चढ़ गया और जब वह मेरे ऊपर से उतरा तो मैं पसीने से तर-बतर थी। मैं इतनी सहम गई कि किसी को पुकार भी न सकी। इस पर दूसरी सखी बोली- हे सखी, वे साजन होंगे। नायिका बोली- न सखी, वे साजन नहीं, वह तो ’बुखार’ था।

लिपट लिपट के वा के सोई,
छाती से छाती लगा के रोई।
दांत से दांत बजे तो ताङा,
ऐ सखि साजन ? ना सखि जाङा।।
व्याख्या
खुसरो बूझते है कि वह (नायिका) अपने ’साजन’ के साथ लिपटकर सोई और छाती से छाती को लगाकर रोई। जब उसके दाँत से दाँत बजे तो उसे डाँट दिया गया अर्थात् तङ-तङ की आवाज आई। दूसरी सखी कहती है कि ऐ सखी वे ’साजन’ होंगे। तो नायिका कहती है न सखि साजन नहीं, वह है ’जाङा’।
विशेष
1. अन्योक्ति तथा अपह्नति अलंकार का प्रयोग।

Amir Khusro

रात समय वह मेरे आवे,
भारे भये वह घर उठि जावे।
यह अचरज है सबसे न्यारा,
ऐ सखि साजन ? ना सखि तारा।।
व्याख्या
खुसरो, एक नायिका के माध्यम से कहते है कि ऐ सखी! वह रात के समय आता है और सुबह होते ही चला जाता है। यह बहुत ही विचित्र बात है न। दूसरी सखी कहती है कि वे साजन होंगे। नायिका कहती है न सखी, साजन नहीं वह तारा है।
विशेष
1. अन्योक्ति अलंकार।

नंगे पाँव फिरन नहीं देत,
पाँव में मिट्टी लगन नहिं देत।
पाँच का चूमा लेत निपूता,
ऐ सखि साजन ? ना सखि जूता।।
व्याख्या
एक सखी दूसरी सखी से कहती है कि हे सखी! वह मुझे नंगे पाँव नहीं रहने देता तथा पैरों में मिट्टी भी नहीं लगने देता और ऊपर से निपूता मेरे पैरों का चुम्बन लेता रहता है। इस पर दूसरी सखी कहती है कि सखी, वे साजन होंगे। पहली सखी कहती है न री सखी! वे साजन नहीं ,जूता है।

सगरी रैन मिही संग जागा,
भारे भई तब बिछुङन लागा।
उसके बिछुङत फाटे हिया
ए सखि साजन ना, सखि! दिया।।
व्याख्या
एक सखी, दूसरी से कहती है कि वह सारी रात मेरे साथ जागा। सुबह होने पर मुझसे बिछङ गया। उसके बिछुङने से मेरा हृदय फटा-सा जाता है। इस पर दूसरी सखी कहती है कि वे साजन होंगे। पहली सखी कहती है न सखी साजन नहीं , दीपक है।

Amir khusro in hindi

सगरी रैन छतियाँ पर राख,
रूप रंग सब वा का चाख।
भोर भई जब दिया उतार,
ऐ सखि साजन ? ना सखि हार।।
व्याख्या
ऐ सखी! सारी रात वह मेरी छाती पर रखा रहा। उसके कारण मेरा रूप, रंग सब बना रहा अर्थात् उसके जाते ही मेरा रूप-रंग भी चला गया। सुबह होते ही मैंने उसे अपने ऊपर से उतार दिया। दूसरी सखी बोली- वे साजन होंगे। इस पर पहली सखी बोली न सखी साजन नहीं, वह तो मेरा हार था।

ऊँची अटारी पलंग बिछायो,
मैं सोई मेरे सिर पर आयो।
खुल गई अंखियाँ भयी आनन्द,
ऐ सखि साजन ? ना सखि चांद।।
व्याख्या
एक सखी, दूसरी सखी से बोली- हे सखी मैंने रात को ऊँची अटारी अर्थात् छत पर पंलग बिछाया। मेरे सोते ही वह मेरे सिर पर आ गया। जैसे ही मेरी आँखे खुली तो मेरा मन आनन्द से भर गया। दूसरी सखी बेाली- वे साजन होंगे। नहीं सखि, वे साजन नहीं, वह तो चाँद था।

जब माँगू तब जल भरि लावे,
मेरे मन की तपन बुझावे।
मन की भारी तन का छोटा,
ऐ सखि साजन ? ना सखि लोटा।।
व्याख्या
एक सखी ने अपनी दूसरी सखी से कहा, हे सखी! जब भी मैं उससे जल माँगू तो वह मेरे लिए जल भर लाता है। इससे मेरे मन की आग शान्त हो जाती वह मन से भारी है, लेकिन शरीर से छोटा हैं। इस पर दूसरी सखी बोली- वे साजन होंगे। पहली सखी बोली- वे साजन नहीं, वह तो लोटा है।

वो आवै तो शादी होय,
उस बिन दूजा और न कोय।
मीठे लागें वा के बोल,
ऐ सखि साजन ? ना सखि ढोल।।
व्याख्या
हे सखी! यदि वह आवे तो शादी होगी वरना नहीं। उसके जैसा और कोई नहीं है। उसके बोल बङे प्यारे और मीठे लगते हैं। इस पर दूसरी सखी बोली-सखी वे साजन होंगे। पहली सखी बोली- न सखी वे साजन नहीं, वह जो ढोल है।

Amir Khusro(parrot of hindustan)

बिन आये सबहीं सुख भूले,
आये ते अँग-अँग सब फूले।
सीरी भई लगावत छाती,
ऐ सखि साजन ? ना सखि पाती।।
व्याख्या
हे सखी! जब वह नहीं आता, तो सब सुख भूले जाते हैं अर्थात् सब सुख उसके बिना व्यर्थ है। उसके आते ही अंग-अंग फूल जाता है अर्थात् खुशी छा जाती है। खुश होकर मैं उसे छाती से लगा लेती हूँ। इस पर दूसरी सखी बोली-सखी, वे साजन होंगे। पहली सखी बोली- न सखी, वे साजन नहीं, वह तो पाती अर्थात् चिट्ठी है।

सरब सलोना सब गुन नीका,
वा बिन सब जग लागे फीका।
वा के सिर पर होवे कोन,
ऐ सखि साजन ? ना सखि लोन (नमक)।।
व्याख्या
हे सखी! वह देखने में बङा सुन्दर है। उसमें सभी उत्तम गुण हैं। उसके बिना सारा संसार फीका दिखाई देता है। उसके सिर पर कोई नहीं होता अर्थात् उसके बिना सब जग फीका लगता है लेकिन उसके साथ कोई नहीं होता। दूसरी सखी बोली-हे सखी, वे साजन होंगे। इस पर पहली सखी बोली- न सखी, साजन नहीं, वह तो नमक है।

बखत बखत मोए वा की आस,
रात दिना ऊ रहत मो पास।
मेरे मन को सब करत है काम,
ऐ सखि साजन ? ना सखि राम।।
(राम शब्द का फारसी में ’आज्ञाकारी’ अर्थ होता है, इसलिए यहाँ राम से ’दास’ या ’दासी’ का अर्थ लिया जा सकता है।)
व्याख्या
एक स्त्री ने अपनी एक सखी से कहा- ऐ सखी! मुझे हर वक्त उसकी ही आस लगी रहती है। वह रात-दिन मेरे पास रहता है और मेरे मन माफिक हर काम करता है। इस पर सखी बोली- हे सखी, वे साजन होंगे। स्त्री बोली- न सखी वे साजन नहीं, वह तो राम अर्थात् दास है।
विशेष
’राम’ शब्द का फारसी में ’आज्ञाकारी’ अर्थ होता है, इसलिए यहाँ ’राम’ से ’दास’ या ’दासी’ अर्थ लिया जा सकता है।

 

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