दोस्तो आज की पोस्ट में आपके लिए महत्त्वपूर्ण तथ्य संकलित किए गए है जो निबंध के महत्त्वपूर्ण तथ्य या निबंधकारों के बारे में मत है ,अगर अच्छा लगे तो शेयर जरुर करें
निबंध के महत्त्वपूर्ण तथ्य
Table of Contents
1. निबंध एवं निबंधकारों के विषय में विविध मत
⇒ हिंदी का स्टील – बालकृष्ण भट्ट – रामचंद्र शुक्ल
⇔ हिंदी निबंध का एडीसन- प्रतापनारायण मिश्र – रामंचद्र शुक्ल
⇒ प्रेमघन गद्य-रचना को एक कला के रूप में ग्रहण करने वाले कलम की कारीगरी समझने वाले लेखक थे -रामचंद्र शुक्ल
⇔ कविता में उनका (भारतेन्दु) संस्कार है, गद्य में विचार – रामस्वरूप चतुर्वेदी
⇒ महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध बातों का संग्रह है – रामचंद्र शुक्ल
⇔ अच्छी हिंदी बस एक व्यक्ति लिखता है बालमुकुन्द गुप्त – महावीर प्रसाद द्विवेदी
⇒ गोविन्द नारायण मिश्र का गद्य-विधान सायास अनुप्रास में गुँथे शब्द गुच्छों का अटाला’ है। – रामचंद्र शुक्ल
⇔ निबंध व्यक्ति की स्वाधीनता की उपज है – हजारी प्रसाद द्विवेदी
⇒ बेचन शर्मा ’उग्र’ के ललित निबंध, निबंध न होकर जोशीले भाषण हैं – गोपाल राय
⇔ हिंदी के प्रारंभिक निबंध गद्य-प्रबंध हैं – रामचंद्र शुक्ल
⇒ पं. गोविन्द नारायण मिश्र के भाषण तथा ’कवि और चित्रकार’ नामक लेख से इनकी लेखन-शैली का पता लगता है। गद्य के संबंध में इनकी धारणा प्राचीनों के गद्यकाव्य-सी थी। लिखते समय बाण और दण्डी इनके ध्यान में रहा करते थे।
⇔ ललित निबंध वस्तुतः आत्मनिबंध हैं – रमेशचंद्र शाह
2. निबन्धों के महत्त्वपूर्ण तथ्य –
⇒ हिंदी के प्रथम निबंध के रूप में राजा भोज का सपना (1839 ई.) का उल्लेख मिलता है।
⇔ सदासुखलाल के ’सुरासुरनिर्णय’ के आधार पर इन्हें हिंदी का प्रथम निबंधकार माना जाता है।
⇒ रामचंद्र शुक्ल ने बालकृष्ण भट्ट और प्रतापनारायण मिश्र को हिंदी का स्टील और एडीसन कहा है।
⇔ बालकृष्ण भट्ट भारतेन्दु-युग के सर्वाधिक समर्थ निबंधकार थे, जिन्होंने सामयिक समस्याओं, मनोभावों तथा साहित्य-संबंधी विषयों पर निबंध लिखा। प्रेमघन ने भी सामयिक समस्याओं पर निबंध लिखा। कई आलोचकों ने इन्हें हिन्दी का प्रथम निबंधकार माना है। हिंदी में मनोविकार संबंधी निबंध का सूत्रपात बालकृष्ण भट्ट से हुआ।
⇒ ब्राह्मण के संपादक प्रतापनारायण मिश्र के निबंध परिमाण की दृष्टि से बालकृष्ण भट्ट से कम हैं किन्तु विषय-चयन एवं रचनात्मकता की दृष्टि से भट्ट से ज्यादा श्रेष्ठ है। प्रतापनारायण-ग्रंथावली में इनके कुल 191 निबंध है।
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⇔ प्रतापनारायण मिश्र के निबंधों में हास्य, व्यंग्य, चुहलबाजी, चुटकी, आक्षेप, हार्दिकता का अद्भुत पुट विद्यमान है। प्रतापनारायण मिश्र के निबंध फक्कङपन एवं हास-परिहास से परिपूर्ण है।
⇒ आनंद कादंबिनी और नागरी नीरद के संपादक प्रेमघन अपनी आलंकारिक एवं कलात्मक गद्यशैली के लिए विख्यात है। शुक्ल जी के शब्दों में वे गद्य-रचना को एक कला के रूप में ग्रहण करने वाले, कलम की कारीगरी समझने वाले लेखक थे। भारतेन्दु-युग के प्रमुख सामाजिक निबंधकार ’प्रेमघन’ के निबंध आनंद कादम्बिनी में प्रकाशित है।
⇔ बालमुकुन्द गुप्त भारतेन्दु और द्विवेदी युग के बीच की महत्त्वपूर्ण कङी है, जिनके पत्रात्मक-शैली के निबंधों में व्यंग्य की मार है। शिवशंभु के चिट्ठे ’भारतमित्र’ में 1904-05 ई. में प्रकाशित हुए थे, जो लार्ड कर्जन को लेकर लिखे गये थे।
⇒ चंद्रधर शर्मा ’गुलेरी’ ने इतिहास, संस्कृति, पुरातत्त्व, भाषा इत्यादि पर गवेषणात्मक निबंध लिखे हैं।
⇔ द्विवेदी-युग के निबंध गंभीर एवं साहित्यिक है। इस युग में भाषा इत्यादि पर गवेषणात्मक निबंध भी लिखे गये है।
⇒ शिवपूजन सहाय भाषा के जादूगर कहे जाते है। उनका ’कुछ’ निबंध-संग्रह हिंदी निबंध-संग्रह हिंदी निबंध-साहित्य जगत् में अत्यन्त प्रसिद्ध है।
⇔ द्विवेदीयुगीन भौगोलिक निबंधकारों में महावीर प्रसाद द्विवेदी (नेपाल), संतराम (चारकंद), गोपालराम गहमरी (चीन देश का विवरण) इत्यादि उल्लेखनीय है।
⇒ बालमुकुन्द गुप्त ने महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध ’भाषा और व्याकरण’ में ’अनस्थिरता’ शब्द को लेकर उनकी हँसी-ठिठोली ’आत्माराम की टें टें’ नाम से की थी जिसके उत्तर में द्विवेदी जी ने ’सरगौ नरक ठेकाना नाहिं’ शीर्षक निबंध ’कल्लू अल्हइत’ शीर्षक से लिखा था।
निबंध के मत
⇔ नारायण चतुर्वेदी ने विनोद शर्मा के छद्म नाम से निबंध लिखा था।
⇒ अज्ञेय ने ’कुट्ठीचातन’ नाम से ’सबरंग और कुछ राग’ शीर्षक से निबंध संग्रह लिखा था।
⇔ विद्यानिवास मिश्र ’भ्रमरानंद’ उपनाम से सरस्वती के संपादक नारायण चतुर्वेदी को पत्र लिखा करते थे, जिनमें चीनी-आक्रमण, अंग्रेजी भाषा के प्रभुत्व एवं सामयिक समस्याओं पर चर्चा किया करते थे।
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⇒ विवेकी राय की गणना ललित निबंधकारों में हजारी प्रसाद द्विवेदी, विद्यानिवास मिश्र और कुबेरनाथ राय की श्रेणी में की जाती है। मनबोध मास्टर की डायरी और बैतलवा डाल पर इनके बहुचर्चित निबंध संग्रह हैं तथा सोनामाटी प्रसिद्ध उपन्यास।
⇔ वियोगी हरि का वास्तविक नाम हरिप्रसाद द्विवेदी है, जिनके निबंध भाव प्रधान है। इन्होंने गद्य-गीत ज्यादा लिखे है।
⇔ भारतेन्दु-युग के बहुचर्चित निबंधों में कालिदास की सभा (बालकृष्ण भट्ट), स्वर्ग की विचार सभा (भारतेन्दु), यमलोक की यात्रा (स्वप्न-शैली में राधाचरण गोस्वामी द्वारा रचित), भारतखंड की समृद्धि (लाला श्रीनिवास ) इत्यादि है।
⇒ गोविंद नारायण मिश्र कृत ’विभक्ति-विचार’ में हिंदी की विभक्तियों को शुद्ध बताकर उनके प्रयोग की विधि पर प्रकाश डाला गया है। इनके सामयिक एवं साहित्यिक लेख सारसुधानिधि पत्र में प्रकाशित होते थे। प्राकृत विचार, कवि और चित्रकार इनकी अन्य रचनाएँ है। रामचंद्र शुक्ल ने इनके गद्य-विधान को सायास अनुप्रास में गुथे शब्द-गुच्छों का अटाला कहा है।
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⇔ ’ठेले पर हिमालय’ धर्मवीर भारती की बहुप्रशसित कृति है, जिसमें गद्य की अनेक विधाओं (यात्रा वृत्तांत, संस्मरण, व्यंग्य रूपक, केरीकेचर, शब्दचित्र, श्रद्धांजलि) इत्यादि की रचनाएँ संगृहीत है।
⇒ महादेवी की शृंखला की कङियाँ में स्त्री-विमर्श, क्षणदा में यात्रा-वृत्तांत के अतिरिक्त विविध पक्ष हैं।
⇔ ’संस्कृति के चार अध्याय’ दिनकर की 1959 ई. में साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत रचना है
⇒ कुबेरनाथ का ’कजरीवन में राजहंस’ एक मशहूर निबंधात्मक कृति है, जो रिपोर्ताज-शैली में रचित है।
⇔ ललित निबंधकार विद्यानिवास मिश्र की अज्ञेय की जीवनी पर आधारित ’भाई’ शीर्षक से संस्मरणात्मक निबंध खूब चर्चित रहा है। इनका प्रथम निबंध-संग्रह ’छितवन की छांह’ है। ’भ्रमरानंद’ उपन्यास से श्रीनारायण चतुर्वेदी को लिखे गये इनके पत्र मशहूर है।
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