दोस्तो आज की पोस्ट में हम महादेवी वर्मा की काव्यगत विशेषताओं के अंतर्गत इनके काव्य में रहस्यवाद(Mahadevi Verma Kavy Rahasyavaad) को पढेंगे |
महादेवी के काव्य में रहस्यवाद(Mahadevi Verma Kavy Rahasyavaad)
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जैसा कि आचार्य शुक्ल दो प्रकार की रहस्य भावना स्वीकार करते है-
1. साधनात्मक
2. भावनात्मक
साधनात्मक रहस्यवाद कबीर, जायसी में मिलता है तथा भावनात्मक रहस्यवादी कवियों में। छायावादी कवियों में भी महादेवी प्राधान्य है। इसका कारण यह है कि वह उस युग में कविता लिख रही थीं जिस युग में नारी सामाजिक जकङन में बँधी थीं परन्तु महादेवी को अपने भावनात्मक उच्छवासों को व्यक्त करना था और वह भी ऐसी स्त्री जिसने अपने पति को भी छोङ रखा था।
एक स्त्री को प्रकृति प्रेेम आदि के प्रतिभावनाओं, अनुभूतियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं थी परन्तु अभिव्यक्ति तो करनी ही थी। महादेवी एक पीङित और वेदना से युक्त महिला थीं। अपनी अनुभूतियों को व्यक्त करने के लिए उन्होंने एक नयी शैली की रचना की जिसे आध्यात्म से जोङा गया। इसी कारण महादेवी को रहस्यानुभूति भी कहा गया। सच्चाई तो यह है कि उनका निजी प्रेम पर पर्दा है-
मैं नीर भरी दुःख की बदली
या
जान लो यह मिलन एकाकी
विरह में है दुकेला।
में व्यक्त रहस्यभावना उनका अपना निजी प्रेम है। उनके इस तथाकथित रहस्य में दबी हुई स्त्री का दबा हुआ विद्रोह भी देखा जा सकता है-
पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला।
महादेवी के काव्य में रहस्यवाद
महादेवी की रहस्यभावना पूर्ण रूप् से वैयक्तिक है। वैयक्तिकता से तात्पर्य यह है कि कवि ने जिन भावों को सर्वसाधारण भाव बना दिया है, वह प्रारम्भ में उसके अपने राग-विरागों के मनन के द्वारा अनुरंजित चित्र में उपस्थित हुए है। विचारपूर्वक देखें तो महादेवी का विरह निवेदन संत कवियों के सादृश्य हैं किन्तु इनकी अभिव्यक्ति उनसे अधिक सूक्ष्म और प्रभावोत्पादक है।
संतों का रहस्यवाद साधनात्मक है। अतः उसमें बौद्धिकता का भार और चिन्तन का आभास पाया जाता है। महादेवी के रहस्यवाद में भावों का आवेश भी विद्यमान है।
महादेवी के काव्य में दाम्पत्य प्रेम माधुरी का आधार अवश्य है। इसकी अभिव्यक्ति आत्मिक मिलन के रूप में हुई है। इस मिलन के प्रमुखतः तीन पक्ष है-
स्वप्न मिलन-जागृति में वह जाता कौन
प्रकृति के कलात्मक रूप में करूणामय को भाता है तम के परदे में आना, ईश्वरीय चेतना के संदेश के रूप में।
महादेवी में प्रेम संबंधों की सूक्ष्मता की अभिव्यंजना है। उनकी कविता में प्रिय व प्रियतमा, आत्मा व आत्म सत्ता के प्रतीक के रूप में आते है।
महादेवी वर्मा के काव्य में बिम्ब विधान
बिम्ब-विधान से हमारा मतलब काव्य में आये हुए उन शब्द-चित्रों से हैं, जो भावात्मक होते है, जिनका सम्बन्ध जीवन के व्यावहारिक क्षेत्रोें से तथा कल्पना सृष्टि की शाश्वतता से होता है जो कवि की जीवंत अनुभूति, तीव्र भावना एवं उत्क्ट वासना से परिपूर्ण होते हैं और गत्यात्मकता, सौन्दर्यता एवं रसिकता के कारण जीतेे-जागते, चलते-फिरते और बातचीत करते से जान पङते हैं। आँग्ल भाषा में इसे ’इमेजरी’ और बिम्ब को ’इमेज’ कहा गया है।
सी. डे. लेविस के अनुसार, ’’काव्यगत बिम्ब से तात्पर्य उस मानव मस्तिष्क से है, जो वर्तमान और अतीत के प्रत्येक पदार्थ से अपने निजी सम्बन्ध का दावा करता है और इस दावे को भली प्रकार स्थापित भी करता है।’’ वे आगे कहते हैं कि, ’’बिम्ब को दर्पण में पङी हुई उस छाया के समान माना जा सकता है, जिसमें कवि अपनी आकृति को ही नहीं माना जा सकता है, जिसमें कवि अपनी आकृति को ही नहीं देखता, अपितु उससे भी परे किसी सत्य का साक्षात्कार किया करता है।’’
महादेवी के काव्य में रहस्यवाद
प्रकृति और प्रक्रिया के आधार पर बिम्बों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। प्रकृति के आधार पर बिम्ब आठ प्रकार के होते हैं- 1. स्थूल बिम्ब 2. काल्पनिक बिम्ब 3. सूक्ष्म बिम्ब 4. स्मृति बिम्ब 5. संश्लिष्ट बिम्ब 6. प्रत्यक्ष बिम्ब 7. विकृत बिम्ब 8. उदात्त बिम्ब। प्रक्रिया के आधार पर बिम्बों को सर्वप्रथम दो वर्गों में बाँटा जा सकता है- अनुभूतिगत बिम्ब और अभिव्यक्तिगत बिम्ब। इनमें से अनुभूतिगत बिम्बों को सात भागों में वर्गीकृत करते हैं- 1. प्रकृति संबंधी बिम्ब 2. संस्कृति संबंधी बिम्ब 3. मानसिक बिम्ब 4. यौन संबंधी बिम्ब 5. जीवन संबंधी बिम्ब 6. इन्द्रिय बोध जन्य संवेदना सम्बन्धी बिम्ब 7. स्वप्नगत बिम्ब। इनसे इतर अभिव्यक्तिगत बिम्बों को छः वर्गों में रखते हैं-
1. शब्द-शक्ति सम्बन्धी बिम्ब 2. लोकोक्ति एवं मुहावरे सम्बन्धी बिम्ब 3. अलंकार सम्बन्धी बिम्ब 4. प्रतीक-सम्बन्धी बिम्ब 5. नाद संबंधी बिम्ब 6. गति संबंधी बिम्ब।
डाॅ. एन. पी. कुट्टनपिल्लै ने विभिन्न विद्वानों द्वारा किये गये बिम्बों के वर्गीकरण पर गहनता के साथ परिशीलन कर बिम्बों के वर्गीकरण पर गहनता के साथ परिशीलन कर बिम्बों को चार भागों में वर्गीकृत किया। 1. ऐन्द्रिय बिम्ब 2. वस्तुपरक बिम्ब 3. भाव-बिम्ब 4. दार्शनिक बिम्ब।
अब हम उपरोक्त चारों आधार पर महादेवी वर्मा की कविता के बिम्ब प्रधान पर चर्चा करेंगे।
1. ऐन्द्रिय बिम्ब:
जहाँ ऐन्द्रिय बोध के आधार पर बिम्बों की योजना की जाती है, वहाँ ऐन्द्रिय बिम्ब विधान होता है। ऐन्द्रिय बिम्ब प्रमुखतः पाँच ज्ञानेन्द्रियों के आधार पर पाँच प्रकार के होते हैं- चाक्षुण, श्रव्य, स्पृश्य, घ्रातव्य और आस्वाद्य। चाक्षुण बिम्ब दो प्रकार के होते हैं- स्थिर और गत्यात्मक। महादेवी वर्मा की कविता में सभी प्रकार के ऐन्द्रिय बिम्बों का विधान किया गया है। निदर्शनार्थ-
’’प्रिय इन नयनों का अश्रु-नीर।
दुख से आविल सुख में पंकिल,
बुद्बुद् से स्वप्नों से फेनिल,
बहता है युग युग से अधीर,’’
2. वस्तुपरक बिम्बः
प्रायः वस्तुपरक बिम्ब दो प्रकार के होते हैं- मानव सम्बन्धी बिम्ब और प्रकृति सम्बन्धी बिम्ब। मानव-संबंधी बिम्बों का निर्माण करने के लिए सर्जक रूप-सौन्दर्य, समाज, राजनीति, इतिहास, पुराण, संस्कृति, साहित्य, व्यवसाय, यौन विज्ञान आदि विविध क्षेत्रों से सामग्री संकलित करता है और प्रकृति सबंधी बिम्बों का निर्माण करने के लिए यह जङ और चेतन प्रकृति से सामग्री का संचयन करता है। महादेवी वर्मा ने अपनी काव्यर्ढना में वस्तुपरक बिम्ब सृजित किये हैं-
’’बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले?
पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले ?
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुन गुन
क्या डूब देंगे तुझे यह फूल के दल ओस-गीले।’’
3. भाव बिम्बः
जहाँ कवि विविध प्रकार के भावों को आधार बनाकर बिम्बों का प्रकार निर्माण करता है, वहाँ भाव-बिम्ब होते हैं। ये भाव-बिम्ब दो प्रकार के होते हैं- भाव-सौन्दर्य सम्बन्धी बिम्ब और शुद्ध भाव संबंधी बिम्ब। जहाँ प्रेम, वेदना, मोह, लज्जा आदि भावात्मक बातों का चित्रण किया जाता है वहाँ भाव सौन्दर्य सम्बन्धी बिम्ब होते हैं और जहाँ अभिलाषा, कामना, भ्रांति, संदेह, निराशा, ईष्र्या आदि भावों का प्रयास किया जाता है, वहाँ शुद्ध भाव संबंधी बिम्ब होते हैं। महादेवी वर्मा की सर्जना में इस तरह के अनेकों बिम्ब है।
’’कौन तुम मेरे हृदय में ?
कौन मेरी कसक में नित
मधुरता भरता अलक्षित ?
कौन प्यासे लोचनों में
घुमङ घिर झरता अपरिचित ?’’
4. दार्शनिक बिम्ब/ आध्यात्मिक बिम्ब:
जहाँ कवि ब्रह्म, जीव, जगत, जन्म-मरण, माया, काल, नियति, दिक् चेतना आदि को आधार बनाकर काव्यात्मक बिम्बों की सृष्टि करता है, वहाँ आध्यात्मिक बिम्ब होते हैं। महादेवी वर्मा ने इस तरह से अनेक रहस्यवादी कविताओं की रचना की है जिनमें इस तरह के बिम्ब सृजित हैं। निदर्शनार्थ-
नहीं अब गाया जाता देव!
थकी अँगुली, हैं ढीले तार
विश्ववीणा में अपनी आज
मिला लो यह अस्फुट झंकार!
अतएव महादेवी वर्मा ने अपनी कविताओं में भावाभिव्यक्ति हेतु बिम्बों की सृष्टि अत्यंत सुंदर एवं सजीव बनाया है। इन बिम्बों में स्थूलता भी है और सूक्ष्मता भी है; यथार्थता भी है और काल्पनिकता भी! इनके द्वारा निर्मित ये सभी बिम्ब भावों, विचारों एवं अनुभूतियों की अभिव्यक्ति में सफल सिद्ध हुये हैं एवं कविता में आद्यंत चित्रापमता है जिससे भावों का संप्रेषीकरण स्वतः होता है।
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