आज के आर्टिकल में कुंवर नारायण द्वारा लिखित कविता कविता के बहाने (Kavita ke bahane) की व्याख्या को समझाया गया है |
कविता के बहाने (Kavita ke bahane)
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रचना-परिचय-
’इन दिनों’ काव्य-संग्रह से संकलित कविता ’कविता के बहाने’ में बताया गया है कि आज यान्त्रिकता के दबाव के कारण कविता का अस्तित्व मिट सकता है। ऐसे में यह कविता कविता-लेखन की अपार संभावनाओं को समझने का अवसर देती है। कवि का मानना है कि यह ऐसी यात्रा का वर्णन है जो चिङिया, फूल से लेकर बच्चे तक की यात्रा है। ये तीनों अपने-आप में सुन्दर होते हुए सीमाबद्ध है जबकि कविता का क्षेत्र असीम है। रचनात्मक ऊर्जा के कारण सीमाओं के बन्धन स्वयं टूट जाते है। अतः कविता का क्षेत्र अतीव व्यापक है।
कविता एक उङान है चिङिया के बहाने
कविता की उङान भला चिङिया क्या जाने
बाहर भीतर
इस घर, उस घर
कविता के पंख लगा उङने के माने
चिङिया क्या जाने ?
व्याख्या-
कवि बताता है कि कविता कल्पना की मोहक उङान होती है, वह चिङिया की उङान को देखकर नयी-नयी कल्पनाएँ प्रस्तुत करती है। कविता स्वयं उङान भरती है, उसमें नये-नये भाव एवं विचार आते है। कविता की उङान असीमित होती है। चिङिया की उङान की एक सीमा होती है, अतः वह कविता की उङान का ओर-छोर नहीं जान पाती है। चिङिया बाहर, भीतर, इस घर से उस घर तक उङकर आती-जाती रहती है, जबकि कविता की उङान व्यापक होती है, उस पर कल्पनाओं के ऐसे पंख लगे रहते है कि वह घर से बाहर सब जगह- सारी सृष्टि में उङान भर लेती है। बेचारी चिङिया सीमित उङान के कारण कविता की उङान को नही जान पाती है। आशय यह है कि पक्षी की उङान सीमित है; परन्तु कविता का क्षेत्र अतीव व्यापक एवं अनन्त है।
कविता एक खिलना है फूलों के बहाने
कविता का खिलना भला फूल क्या जाने!
बाहर भीतर
इस घर, उस घर
बिना मुरझाए महकने के माने
फूल क्या जाने ?
कविता एक खेल है बच्चों के बहाने
बाहर भीतर
यह घर, वह घर
सब घर एक कर देने के पाने
बच्चा ही जाने।
व्याख्या-
कवि कहता है कि कविता इस प्रकार खिलती अर्थात् विकसित होती है, जैसे फूल विकसित एवं पल्लवित होते है। फूल की तरह कविता में नये-नये रंग, भाव-सौन्दर्य आ जाते है; परन्तु फूलों की अपनी सीमा होती है। फूल बाहर-भीतर, इधर-उधर और घर में सुगन्ध और सुषमा को भर देता है; परन्तु वह कविता के खिलने को नहीं समझ पाता। फूल खिलने के बाद मुरझा जाता है, परन्तुु कविता बिना मुरझाए ही महकती रहती है। इसलिए फूल की खिलना एवं सुगन्ध फैलाना सीमित प्रक्रिया है। इसके विपरीत कविता घर, बाहर, इधर-उधर अर्थात् सर्वत्र और सब समय अपनी भाव-सुरभि बिखेरती रहती है। अतः फूल कविता के सुगन्ध बिखेरने तथा महकने को कहाँ जान पाता है ? फूल की अपनी एक सीमा होती है, जबकि कविता की सीमा नहीं होती है।
कवि कहता है कि कविता बच्चों के खेल के समान है। कवि बच्चों के खेलों के देखकर शाब्दी-क्रीङा करने लगता है। इस प्रकार वह शब्दों के द्वारा नये-नये भावों एवं मनोरम कल्पनाओं के खेल खेलता है। जिस प्रकार बच्चे खेल खेलते हुए कभी घर में जाते है और कभी बाहर भागते है। वे सभी घरों में समान रूप से खेलते है और अपने-पराये का भेदभाव नहीं रखते है। बच्चों के खेल में कोई सीमा-बंधन नहीं है। उसी प्रकार कविता में भी शब्दों का खेल है। कवि शब्दों के माध्यम से अपने हृदय के, बाहरी संसार के तथा अपने-पराये सभी घरों या मानवों के मनोभावों को कलात्मक अभिव्यक्ति देता है। वह सभी को समान मानकर सर्वकालिक भावों का वाणी देता है।
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