आज के आर्टिकल में हम हिंदी पत्र के बारे (Letter Meaning in Hindi) में सामान्य जानकारी प्राप्त करेंगे ,आप इसे जरुर पढ़ें l
दोस्तो Letter का अर्थ होता है -पत्र
पत्र-लेखन एक कला है
आधुनिक युग में पत्र-लेखन को ’कला’ की संज्ञा दी गई है। पत्रों में आज कलात्मक अभिव्यक्तियों हो रही है। साहित्य में भी इनका उपयोग होने लगा है। जिस पत्र में जितनी स्वाभाविकता होगी, वह उतना ही प्रभावकारी होगा। एक अच्छे पत्र के लिए कलात्मक सौंदर्यबोध और अंतरंग भावनाओं का अभिव्यंजन आवश्यक है।
एक पत्र में उसके लेखक की भावनाएँ ही व्यक्त नहीं होती, बल्कि उसका व्यक्तित्व (Personality) भी उभरता है। इससे लेखक के चरित्र, दृष्टिकोण, संस्कार, मानसिक स्थिति, आचरण इत्यादि सभी एक साथ झलकते है।
अतः, पत्र-लेखन एक प्रकार की कलात्मक अभिव्यक्ति है। लेकिन, इस प्रकार की अभिव्यक्ति व्यावसायिक पत्रों की अपेक्षा सामाजिक तथा साहित्यिक पत्रों में अधिक होती है।
अच्छे पत्र की विशेषताएँ
Table of Contents
एक अच्छे पत्र की पाँच विशेषताएँ है-
- सरल भावशैली (भाषाशैली)
- विचारों की सुस्पष्टता
- संक्षिप्त (संक्षेप) और संपूर्णता
- प्रभावान्विति
- बाहरी सजावट
(क) सरल भावशैली (भाषाशैली)-
पत्र की भाषा साधारणतः सरल और बोलचाल की होनी चाहिए। शब्दों के प्रयोग में सावधानी रखनी चाहिए। ये उपयुक्त, सटीक, सरल और मधुर हों। सारी बात सीधे-सादे ढंग से स्पष्ट और प्रत्यक्ष लिखनी चाहिए। बातों को घुमा-फिराकर लिखना उचित नहीं।
(ख) विचारों की सुस्पष्टता-
पत्र में लेखक के विचार सुस्पष्ट और सुलझे होने चाहिए। कहीं भी पांडित्य-प्रदर्शन की चेष्टा नहीं होनी चाहिए। बनावटीपन नहीं होना चाहिए। दिमाग पर बल देनेवाली बातें नहीं लिखी जानी चाहिए।
(ग) संक्षिप्त (संक्षेप) और संपूर्णता-
पत्र अधिक लंबा नहीं होना चाहिए। वह अपने में संपूर्ण को और संक्षिप्त हो। उसमें अतिशयोक्ति, वाग्जाल और विस्तृत विवरण के लिए स्थान नहीं है। इसके अतिरिक्त, पत्र में एक ही बात को बार-बार दुहराना एक दोष है। पत्र में मुख्य बातें आरंभ में लिखी जानी चाहिए। सारी बातें एक क्रम में लिखनी चाहिए। इसमें कोई भी आवश्यक तथ्य छूटने न पाए। पत्र अपने में संपूर्ण हो, अधूरा नहीं। पत्र-लेखन का सारा आशय पाठक के दिमाग पर पूरी तरह बैठ जाना चाहिए। पाठक को किसी प्रकार की उलझन में छोङना ठीक नहीं।
(घ) प्रभावान्विति-
पत्र का पूरा असर पढ़नेवाले पर पङना चाहिए। आरंभ और अंत में नम्रता और सौहार्द के भाव होने चाहिए।
(ङ) बाहरी सजावट-
पत्र की बाहरी सजावट से हमारा तात्पर्य यह है कि (1) उसका कागज संभवतः अच्छा से अच्छा होना चाहिए, (2) लिखावट सुंदर, साफ और पुष्ट हो; (3) विरामादि चिह्नों का प्रयोग यथास्थान किया जाए; (4) शीर्षक, तिथि, अभिवादन, अनुच्छेद और अंत अपने-अपने स्थान पर क्रमानुसार होने चाहिए; (5) पत्र की पंक्तियाँ सटाकर न लिखी जाएँ और (6) विषय-वस्तु के अनुपात से पत्र का कागज लंबा-चैङा होना चाहिए।
पत्रों के प्रकार (Type of letter)
सामान्यतः पत्र तीन प्रकार के होते है-
(1) सामाजिक पत्र (Social lettters)
(2) व्यापारिक पत्र (Commercial letters)
(3) सरकारी पत्र (Official letters)
सामाजिक पत्राचार-
गैरसरकारी पत्रव्यवहार को ’सामाजिक पत्राचार’ कहते है। इसके अंतर्गत वे पत्रादि आते है, जिन्हें लोग अपने दैनिक जीवन के व्यवहार में लाते है। इस प्रकार के पत्रों के अनेक रूप प्रचतिल है। कुछ के उदाहरण निम्नलिखित है-
1. संबंधियों के पत्र, 2. बधाई पत्र, 3. शोक पत्र , 4. परिचय पत्र, 5. निमंत्रण पत्र एवं 6. विविध पत्र
पत्र-लेखन सभ्य समाज की एक कलात्मक देन है। चूँकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, इसलिए वह दूसरों के साथ अपना संबंध किसी न किसी माध्यम से बनाए रखना चाहता है। मिलते-जुलते रहने पर पत्र-लेखन की तो आवश्यकता नहीं होती, पर एक-दूसरे से दूर रहने पर एक व्यक्ति दूसरे के पास पत्र लिखता है।
सरकारी पत्रों की अपेक्षा सामाजिक पत्रों में कलात्मकता अधिक रहती है ; क्योंकि इनमें मनुष्य के हृदय के सहज उद्गार व्यक्त होते है। इन पत्रों को पढ़कर हम किसी भी व्यक्ति के अच्छे या बुरे स्वभाव या मनोवृत्ति का परिचय आसानी से पा सकते है। खासकर व्यक्तिगत पत्रों () में यह विशेषता पाई जाती है।
एक अच्छे सामाजिक पत्र में सौजन्य, सहृदयता और शिष्टता का होना आवश्यक है। तभी इस प्रकार के पत्रों का अभीष्ट प्रभाव हृदय पर पङता है। इसके कुछ औपचारिक नियमों का निर्वाह करना चाहिए।
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