आज के आर्टिकल में हम शब्द शक्ति(Shabd Shakti) के बारे में पढेंगे। शब्द शक्ति का अर्थ(Shabd Shakti ka arth),शब्द शक्ति किसे कहते हैं(Shabd Shakti kise kahate hain),शब्द शक्ति की परिभाषा(Shabd Shakti ki paribhasha),शब्द शक्ति के भेद(Shabd Shakti ke bhed),शब्द शक्ति के प्रकार(Shabd Shakti ke prakar),शब्द शक्ति के प्रश्न उत्तर(Shabd Shakti ke prashn uttar) – इन बिन्दुओं पर चर्चा करेंगे।
शब्द शक्ति – Shabd Shakti
Table of Contents
नाम | शब्द शक्ति |
भेद | 3 (अभिधा,लक्षणा,व्यंजना) |
परिभाषा | ’शब्दार्थ सम्बन्धः शक्ति। (मम्मट)’ |
शब्द के प्रकार | वाच्यार्थ, लक्ष्यार्थ एवं व्यंग्यार्थ |
केटगरी | हिंदी व्याकरण |
अपडेट | 20 नवम्बर ,2023 |
शब्द-शक्ति की परिभाषा – Shabd Shakti Ki Paribhasha
शब्द शक्ति(shbad shakti) का अर्थ और परिभाषा – शब्द शक्ति का अर्थ है – शब्द की अभिव्यंजक शक्ति। शब्द में निहित शक्ति को शब्द शक्ति कहते है
शब्द का कार्य किसी अर्थ की अभिव्यक्ति तथा उसका बोध करवाना होता है। इस प्रकार शब्द एवं अर्थ का अभिन्न सम्बन्ध है। शब्द एवं अर्थ का सम्बन्ध ही शब्द शक्ति(shbad shakti) है।
’शब्दार्थ सम्बन्धः शक्ति। (मम्मट)
अर्थात् (बोधक) शब्द एवं अर्थ के सम्बन्ध को शब्द शक्ति कहते हैं। हम शब्द शक्ति की परिभाषा इस प्रकार भी जान सकते है- ’शब्दों के अर्थों का बोध कराने वाले अर्थ-व्यापारों को शब्द शक्ति कहते हैं।
शब्द शक्ति का महत्व –
किसी शब्द का महत्व उसमें निहित अर्थ पर निर्भर होता हैं। बिना अर्थ के शब्द अस्तित्व-विहीन एवं निरर्थक होता है। शब्द शक्ति के शब्द में निहित इसी अर्थ की शक्ति पर विचार किया जाता है। काव्य में प्रयुक्त शब्दों के अर्थ ग्रहण से ही काव्य आनन्ददायक बनता है। अतः शब्द के अर्थ को समझना ही काव्य के आनन्द को प्राप्त करने की प्रधान सीढ़ी हैं और शब्द के अर्थ को समझने के लिए शब्द शक्तियों की जानकारी होना परम आवश्यक हैं।
शब्द शक्ति के कितने भेद होते है ?
शब्द तीन प्रकार के होते है –
- वाचक
- लक्षक
- व्यंजक
शब्द | अर्थ | शब्द शक्ति |
वाचक | वाच्यार्थ ,मुख्यार्थ ,अभिधेयार्थ ,संकेतार्थ | अभिधा |
लक्षक | लक्ष्यार्थ | लक्षणा |
व्यंजक | व्यंग्यार्थ | व्यंजना |
शब्द शक्ति के भेद
इस प्रकार शब्द के विभिन्न प्रकार के अर्थों के आधार पर शब्द शक्ति(Shabd Shakti) के प्रकारों का निर्धारण किया गया है। शब्द के जितने प्रकार के अर्थ होते हैं, भाषा के जितने प्रकार के अभिप्राय होते हैं, उतने ही प्रकार की शब्द शक्तियां होती हैं।
शब्द के तीन प्रकार के अर्थ स्वीकार किए गए हैं-
- वाच्यार्थ या अभिधेयार्थ
- लक्ष्यार्थ
- व्यंग्यार्थ
इन अर्थों के आधार पर तीन प्रकार की शब्द शक्तियां(Shabd Shakti) मानी गई हैं
- अभिधा(abidha shabd shakti)
- लक्षणा(laxna shabd shakti)
- व्यंजना( vyanjna shabd shakti)
ध्यान देवें : आचार्य कुमारिल भट्ट ने तात्पर्य नामक चौथी शब्द शक्ति भी स्वीकार की है, जिसका सम्बन्ध वाक्य से होता है। इस शब्द शक्ति का समर्थन कवि देव ने भी किया है।
(1) अभिधा शब्द शक्ति – Abidha Shabd Shakti
शब्द को सुनने अथवा पढ़ने के पश्चात् पाठक अथवा श्रोता को शब्द का जो लोक प्रसिद्ध अर्थ सरलता से ज्ञात हो जाता है, वह अर्थ शब्द की जिस शक्ति द्वारा मालूम होता है, उसे अभिधा शब्द शक्ति(abidha Shabd Shakti) कहते हैं।
अभिधा शब्द शक्ति के उदाहरण
’’अभिधा उत्तम काव्य है, मध्य लक्षणालीन
अधम व्यंजना रस विरस, उलटी कहत प्रवीन’’ । – देव
करते तुलसीदास भी, कैसे मानस-नाद ।
महावीर का यदि उन्हें, मिलता नहीं प्रसाद ।। (गुप्त जी)
सारंग ले सारंग चली, सारंग पुगो आय
सारंग ले सारंग चली ,सारंग सारंग मांय (यमक अलंकार)
पहचान : प्रसाद गुण ,पांचाली रीति ,शांत रस और यमक अलंकार वाले पदों में अभिधा शब्द शक्ति होती है ।
(2) लक्षणा शब्द शक्ति – Laxna Shabd Shakti
– जहां मुख्य अर्थ में बाधा उपस्थित होने पर रूढ़ि अथवा प्रयोजन के आधार पर मुख्य अर्थ से सम्बन्धित अन्य अर्थ को लक्ष्य किया जाता है, वहां लक्षणा शब्द शक्ति होती है। जैसे – रवि गधा है। यहां गधे का लक्ष्यार्थ है मूर्ख। यहाँ रवि में गधे जैसे गुण /लक्षण दिखाए गए है।
(3) व्यंजना शब्द शक्ति – Vyanjna Shabd Shakti
जहाँ शब्द या पद में अभिधा और लक्षणा के अलावा एक विशेष अर्थ निकालता है, उसे व्यंग्यार्थ कहते हैं और जिस शक्ति के द्वारा यह अर्थ ज्ञात होता है, उसे व्यंजना शब्द शक्ति कहते हैं।
जैसे – घर गंगा में है।
स्पष्टीकरण– यहां व्यंजना है कि घर गंगा की भांति पवित्र एवं स्वच्छ है।
लक्षणा शब्द शक्ति के भेद – lakshna Shabd Shakti ke bhed
(अ) लक्ष्यार्थ के आधार पर – इस आधार को लेकर लक्षणा के दो भेद हैं –(अ) लक्ष्यार्थ के आधार पर
(ब) मुख्यार्थ एवं लक्ष्यार्थ के सम्बन्ध के आधार पर
(स) मुख्यार्थ है या नहीं के आधार पर लक्षणा के भेद
(द) सारोपा एवं साध्यवसाना लक्षणा
- रूढ़ा लक्षणा
- प्रयोजनवती लक्षणा
(1) रूढ़ा लक्षणा – Rudha Lakshna
जहां मुख्यार्थ में बाधा होने पर रूढ़ि/प्रसिद्धि के आधार पर लक्ष्यार्थ ग्रहण किया जाता है, वहां रूढ़ा लक्षणा होती हैं।
जैसे -पंजाब वीर हैं
स्पष्टीकरण– इस वाक्य में पंजाब का लक्ष्यार्थ है -पंजाब के निवासी। यह अर्थ रूढ़ि के आधार पर ग्रहण किया गया है अतः रूढ़ा लक्षणा है।
(2) प्रयोजनवती लक्षणा – Paryojanvati Lakshana
मुख्यार्थ में बाधा होने पर किसी विशेष प्रयोजन/उद्देश्य के लिए जब लक्ष्यार्थ का बोध किया जाता है, वहां प्रयोजनवती लक्षणा होती है।
जैसे- मोहन गधा है
स्पष्टीकरण– इस वाक्य में ’गधा’ का लक्ष्यार्थ ’मूर्ख’ लिया गया है और यह मोहन की मूर्खता को व्यक्त करने के प्रयोजन से लिया गया है
अतः यहां प्रयोजनवती लक्षणा हैं।
(ब) मुख्यार्थ एवं लक्ष्यार्थ के सम्बन्ध के आधार पर – इस आधार पर लक्षणा के दो भेद हैं-
(1) गौणी लक्षणा
(2) शुद्धा लक्षणा।
(1) गौणी लक्षणा
जहां गुण सादृश्य के आधार पर लक्ष्यार्थ का बोध होता है, वहां गौणी लक्षणा होती है।
जैसे-मोहन शेर है।
स्पष्टीकरण– इस वाक्य में मोहन को वीर दिखाने लिए उसको शेर कहा गया है, अर्थात् मोहन में और शेर में सादृश्य है अतः यहां गौणी लक्षणा है।
(2) शुद्धा लक्षणा
जहां गुण सादृश्य को छोङकर अन्य किसी आधार यथा-समीपता, साहचर्य, आधार-आधेय सम्बन्ध, के आधार पर लक्ष्यार्थ ग्रहण किया गया हो, वहां शुद्धा लक्षणा होती है।
यथा-
लाल पगङी आ रही है।
स्पष्टीकरण– यहां लाल पगङी का अर्थ है सिपाही। इन दोनों में साहचर्य सम्बन्ध है अतः शुद्धा लक्षणा है।
(स) मुख्यार्थ है या नहीं के आधार पर लक्षणा के भेद –
लक्ष्यार्थ के कारण मुख्यार्थ पूरी तरह समाप्त हो गया है या बना हुआ है, इस आधार पर लक्षणा के दो भेद किए गए हैं-
- उपादान लक्षणा
- लक्षण लक्षणा।
(1) उपादान लक्षणा
जहां मुख्यार्थ बना रहता है तथा लक्ष्यार्थ का बोध मुख्यार्थ के साथ ही होता है वहां उपादान लक्षणा होती हैं।
जैसे-लाल पगङी आ रही है।
स्पष्टीकरण– इसमें लाल पगङी भी आ रही है और (लाल पगङी पहने हुए) सिपाही भी जा रहा है। यहां मुख्यार्थ (लाल पगङी) के साथ-साथ लक्ष्यार्थ (सिपाही) का बोध हो रहा है अतः उपादान लक्षणा है।
(2) लक्षण लक्षणा
इसमें मुख्यार्थ पूरी तरह समाप्त हो जाता है, तभी लक्ष्यार्थ का बोध होता है।
जैसे-मोहन गया है। लक्षण लक्षणा का उदाहरण हैं।
(द) सारोपा एवं साध्यवसाना लक्षणा
(1) सारोपा लक्षणा
– जहां उपमेय और उपमान में अभेद आरोप करते हुए लक्ष्यार्थ की प्रतीति हो वहां सारोपा लक्षणा होती हैं।
इसमें उपमेय भी होता है और उपमान भी। जैसे – उदित उदयगिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग।
स्पष्टीकरण– यहां उदयगिरि रूपी मंच पर राम रूपी प्रभातकालीन सूर्य का उदय दिखाकर उपमेय पर उपमान का अभेद आरोप किया गया है अतः सारोपा लक्षणा है।
(2) साध्यवसाना लक्षणा –
इसमें केवल उपमान का कथन होता है, लक्ष्यार्थ की प्रतीति हेतु उपमेय पूरी तरह छिप जाता है।
जैसे-जब शेर आया तो युद्ध क्षेत्र से गीदङ भाग गए।
स्पष्टीकरण– यहां शेर का तात्पर्य वीर पुरुष से और गीदङ का तात्पर्य कायरों से है। उपमेय को पूरी तरह छिपा देने के कारण यहां साध्यवसाना लक्षणा है।
व्यंजना शब्द शक्ति के भेद(vyanjna Shabd Shakti ke bhed)
(अ) शाब्दी व्यंजना – Shabdi Vyanjna
जहां शब्द विशेष के कारण व्यंग्यार्थ का बोध होता है और वह शब्द हटा देने पर व्यंग्यार्थ समाप्त हो जाता है वहां शाब्दी व्यंजना होती हैं। जैसे –
चिरजीवौ जोरी जुरै क्यों न सनेह गम्भीर।
को घटि ए वृषभानुजा वे हलधर के वीर।।
स्पष्टीकरण– यहां वृषभानुजा, हलधर के वीर शब्दों के कारण व्यंजना सौन्दर्य है।
इनके दो-दो अर्थ हैं-1. राधा, 2. गाय तथा 1. श्रीकृष्ण 2. बैल।
यदि वृषभानुजा, हलधर के वीर शब्द हटा दिए जाएं और इनके स्थान पर अन्य पर्यायवाची शब्द रख दिए जाएं, तो व्यंजना समाप्त हो जाएगी।
शाब्दी व्यंजना को पुनः दो वर्गों में बांटा गया है-अभिधामूला शाब्दी व्यंजना, लक्षणामूला शाब्दी व्यंजना।
(1) अभिधामूला शाब्दी व्यंजना –
जहां पर एक ही शब्द के नाना अर्थ होते हैं, वहां किस अर्थ विशेष को ग्रहण किया जाए, इसका निर्णय अभिधामूला शाब्दी व्यंजना करती हैं। यह ध्यान देने योग्य बात है कि अभिधामूला शाब्दी व्यंजना में शब्द का पर्याय रख देने से व्यंजना का लोप हो जाता है तथा व्यंग्यार्थ का बोध मुख्यार्थ के माध्यम से होता है
जैसे-
सोहत नाग न मद बिना, तान बिना नहीं राग।
स्पष्टीकरण– यहां पर नाग और राग दोनों शब्द अनेकार्थी हैं, परन्तु ’वियोग’ कारण से इनका अर्थ नियन्त्रित कर दिया गया है। इसलिए यहां पर ’नाग’ का अर्थ हाथी और ’राग’ का अर्थ रागिनी है। अब यदि यहां नाग का पर्यायवाची भुजंग रख दिया जाए तो व्यंग्यार्थी हो जाएगा।
(2) लक्षणामूला शाब्दी व्यंजना –
जहां किसी शब्द के लाक्षणिक अर्थ से उसके व्यंग्यार्थ पर पहुंचा जाए और शब्द का पर्याय रख देने से व्यंजना का लोप हो जाए, वहां लक्षणामूला शाब्दी व्यंजना होती है।
यथा –
’’आप तो निरै वैशाखनन्दन हैं।’’
स्पष्टीकरण– यहां वैशाखनन्दन व्यंग्यार्थ पर पहुंचना होता है। लक्षण है-मूर्खता।
अब यदि यहां वैशाखनन्दन शब्द बदल दिया जाए तो व्यंजना का लोप हो जाए, परन्तु ’गधा’ रख देने से लक्षणामूला शाब्दी व्यंजना तो चरितार्थ नहीं रहेगी।
(ब) आर्थी व्यंजना – Arthi Vyanjna
जब व्यंजना किसी शब्द विशेष पर आधारित न होकर अर्थ पर आधारित होती है, तब वहां आर्थी व्यंजना मानी जाती हैं। यथा – आंचल में है दूध और आंखों में पानी।।
यहां नीचे वाली पंक्ति से नारी के दो गुणों की व्यंजना होती है-उसका ममत्व भाव एवं कष्ट सहने की क्षमता। यह व्यंग्यार्थ किसी शब्द के कारण है अतः आर्थी व्यंजना है।
यह व्यंजना तीन प्रकार की हो सकती है-अभिधामूला, लक्षणामूला एवं व्यंजनामूला आर्थी व्यंजना।
एक अन्य आधार पर व्यंजना के तीन भेद किए गए हैं-1. वस्तु व्यंजना, 2. अलंकार व्यंजना, 3. रस व्यंजना।
1. वस्तु व्यंजना –
जहां व्यंग्यार्थी द्वारा किसी तथ्य की व्यंजना हो वहां वस्तु व्यंजना होती हैं।
जैसे-
उषा सुनहले तीर बरसती जय लक्ष्मी सी उदित हुई।
उधर पराजित काल रात्रि भी जल में अन्तर्निहित हुई।।
स्पष्टीकरण– यहां रात्रि बीत जाने और हृदय में आशा के उदय आदि की सूचना व्यंजित की गई है अतः वस्तु व्यंजना है।
2. अलंकार व्यंजना –
जहां व्यंग्यार्थ किसी अलंकार का बोध कराये वहां अलंकार व्यंजना होती हैं।
जैसे-
उसे स्वस्थ मनु ज्यों उठता है क्षितिज बीच अरुणोदय कान्त।
लगे देखने क्षुब्ध नयन से प्रकृति विभूति मनोहर शान्त।।
स्पष्टीकरण– यहां उत्प्रेक्षा अलंकार के कारण व्यंजना सौन्दर्य है अतः इसे अलंकार व्यंजना कहेंगे।
3. रस व्यंजना –
जहां व्यंग्यार्थ से रस व्यंजित हो रहा हो, वहां रस-व्यंजना होती है।
यथा –
जब जब पनघट जाऊं सखी री वा जमुना के तीर।
भरि-भरि जमुना उमङि चलति हैं इन नैननि के नीर।।
स्पष्टीकरण– यहां ’स्मरण’ संचारीभाव की व्यंजना होने से वियोग रस व्यंजित है अतः रस व्यंजना है।
आज के आर्टिकल में हम शब्द शक्ति के बारे में विस्तार से पढेंगे ताकि ये विषयवस्तु हमें अच्छे से तैयार हो ।
अब हम शब्द शक्ति को विस्तार से समझेंगे …
शब्द शक्ति किसे कहते है – Shabd Shakti Kise Kahate Hain
- शब्द तीन प्रकार के होते है – (1) वाचक (2) लक्षक (3) व्यंजक
- अर्थ – (1) वाच्यार्थ (2) लक्ष्यार्थ (3) व्यंग्यार्थ
- शक्ति/व्यापार – (1) अभिधा (2) लक्षणा (3) व्यंजना
महत्वपूर्ण:- शक्ति शब्द का प्रयोग – विश्वनाथ और ’व्यापार’ शब्द का प्रयोग मम्मट ने किया।
शब्द शक्ति का अर्थ और परिभाषा – शब्द शक्ति का अर्थ है-शब्द की अभिव्यंजक शक्ति। शब्द का कार्य किसी अर्थ की अभिव्यक्त तथा उसका बोध करता होता है।
इस प्रकार शब्द एवं अर्थ का अभिन्न सम्बन्ध है। शब्द एवं अर्थ का सम्बन्ध ही शब्द शक्ति है। ’शब्दार्थ सम्बन्धः शक्ति। अर्थात्(बोधक) शब्द एवं अर्थ के सम्बन्ध को (शब्द) शक्ति कहते हैं। शब्द शक्ति की परिभाषा इस प्रकार भी की जा सकती है- ’शब्दों के अर्थों का बोध कराने वाले अर्थ-व्यापारों को शब्द शक्ति कहते हैं।
शब्द शक्ति के कितने भेद होते है – Shabd Shakti Ke Kitne Bhed Hain
⇒शब्द के विभिन्न प्रकार के अर्थों के आधार पर शब्द शक्ति के प्रकारों का निर्धारण किया गया है। शब्द के जितने प्रकार के अर्थ होते हैं, भाषा के जितने प्रकार के अभिप्राय होते हैं, उतने ही प्रकार की शब्द शक्तियां होती हैं।
शब्द के तीन प्रकार के अर्थ स्वीकार किए गए हैं-
- वाच्यार्थ या अभिधेयार्थ,
- लक्ष्यार्थ,
- व्यंग्यार्थ।
इस अर्थों के आधार पर तीन प्रकार की शब्द शक्तियां मानी गई हैं-
- अभिधा
- लक्षणा
- व्यंजना
कुमारिल भट्ट ने तात्पर्या नामक चौथी शब्द शक्ति भी स्वीकार की है, जिसका सम्बन्ध वाक्य से होता है।
(1) अभिधा शब्द शक्ति किसे कहते है – Abhidha Shabd Shakti Kise kahate Hain
शब्द की जिस शक्ति से किसी शब्द के मुख्य अर्थ का बोध होता है। साक्षात् सांकेतिक अर्थ/मुख्यार्थ/वाच्यार्थ को प्रकट करने वाली शब्द शक्ति अभिधा कहलाती है।
’’पण्डित रामदहिन मिश्र ने साक्षात् सांकेतिक अर्थ को अभिधा कहा है।’’ अभिधा को प्रथमा या अग्रिमा शक्ति भी कहते है।
रामचन्द्र शुक्ल ने वाच्यार्थ से ही रस की उत्पत्ति मानी।
शब्द को सुनने अथवा पढ़ने के पश्चात् पाठक अथवा श्रोता को शब्द का जो लोक प्रसिद्ध अर्थ तत्क्षण ज्ञात हो जाता है, वह अर्थ शब्द की जिस सीमा द्वारा मालूम होता है, उसे अभिधा शब्द शक्ति कहते हैं।
अभिधा शब्द शक्ति से जिन शब्दों का अर्थ बोध होता है वे तीन प्रकार के होते हैं।
(।) रूढ़ः वे शब्द जिनकी उत्पत्ति नहीें होती जैसे – घोङा, घर
(।।) यौगिक: जिनकी उत्पत्ति प्रत्यय, समास आदि से होती है जैसे – विद्यालय, रमेश
(।।।) योगरूढ़: यौगिक क्रिया से बने लेकिन निश्चित अर्थ में रूढ़ हो गये जैसे – जलज, दशानन
’’अभिधा उत्तम काव्य है, मध्य लक्षणालीन
अधम व्यंजना रस विरस, उलटी कहत प्रवीन’’ । – देव
’’शब्द एवं अर्थ के परस्पर संबंध को अभिधा कहते है’’। – जगन्नाथ
’’अनेकार्थ हू शब्द में, एक अर्थ की व्यक्ति
तेहि वाच्यारथ को कहें, सज्जन अभिधासक्ति’’। – भिखारीदास
विशेषः- वह किसी पद में ’यमक’ अलंकार की प्राप्ति होती है तो वहाँ प्रायः अभिधा शब्द शक्ति होती है।
जैसे –
।. ’’कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराय जग, वा पाये बौराय’’।।
।।.’’सारंग ले सारंग उड्यो सारंग पूग्यो आय।
जे सारंग सारंग कहे, मुख को सारंग जाय’’।।
कभी-कभी ’उत्प्रेक्षा’ अलंकार के पदों में भी उनका मुख्य अर्थ ही प्रकट होता है, अतः इस अलंकार के पदों में भी प्रायः अभिधा शब्द शक्ति होती है।
जैसे –
।. ’’सोहत ओढ़े पीत पट, स्याम सलोने गात।
मानहु नीलमणि सैल पर, आतप पर्यो प्रभात’’।।
।।. ’’कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गये।
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गये पंकज नये’’।।
।।।. ’’भजन कह्यो तातै भज्यौ, भज्यौ न एको बार।
दूर भजन जाते कह्यौ, सो तू भज्यौ गवार’’।।
आचार्य भट्टनायक अभिधा शब्द शक्ति को विशेष महत्त्व देते हैं। उनकी दृष्टि से रस की अनुभूति कराने में अभिधा शब्द शक्ति ही प्रधान है। अभिधा के द्वारा ही पहले अर्थबोध होता है और उसके बाद भावकत्व के द्वारा साधारणीकरण और भोजकत्व के द्वारा रसास्वादन होता है।
(2) लक्षणा शब्द शक्ति किसे कहते है – Lakshana Shabd Shakti kise kahte Hai
जहां मुख्य अर्थ में बाधा उपस्थित होने पर रूढ़ि अथवा प्रयोजन के आधार पर मुख्य अर्थ से सम्बन्धित अन्य अर्थ को लक्ष्य किया जाता है, वहां लक्षणा शब्द शक्ति(Lakshana Shabd Shakti) होती है। जैसे -मोहन गधा है। यहां गधे का लक्ष्यार्थ है मूर्ख।
लक्षणा शब्द शक्ति के भेद –
- लक्ष्यार्थ के आधार पर
- मुख्यार्थ एवं लक्ष्यार्थ के सम्बन्ध के आधार पर
(अ) लक्ष्यार्थ के आधार पर –
इस आधार को लेकर लक्षणा के दो भेद हैं –
- (1) रूढ़ा लक्षणा,
- (2) प्रयोजनवती लक्षणा।
(1) रूढ़ा लक्षणा –
जहां मुख्यार्थ में बाधा होने पर रूढ़ि के आधार पर लक्ष्यार्थ ग्रहण किया जाता है, वहां रूढ़ा लक्षणा होती हैं।
जैसे -पंजाब वीर हैं –
स्पष्टीकरण– इस वाक्य में पंजाब का लक्ष्यार्थ है -पंजाब के निवासी।
यह अर्थ रूढ़ि के आधार पर ग्रहण किया गया है अतः रूढ़ा लक्षणा है।
’राजस्थान वीर है।’
स्पष्टीकरण– प्रस्तुत वाक्य में ’राजस्थान’ का मुख्यार्थ है – राजस्थान राज्य। परन्तु यहाँ इस अर्थ की बाधा है क्योंकि राजस्थान तो जङ है, वह वीर कैसे हो सकता है? इस स्थिति में इसका यह लक्ष्यार्थ ग्रहण किया जाता है – ’राजस्थान के लोग वीर हैं।’
यह अर्थ आधार-आधेय सम्बन्ध की दृष्टि से लिया जाता है। यहाँ ’राजस्थान राज्य’ आधार है तथा ’राजस्थान के लोग’ -आधेय है। यह अर्थ ग्रहण करने में रूढ़ि कारण है। राजस्थान के लोगों को राजस्थान कहने की रूढ़ि है। अतएव यहाँ ’रूढ़ा-लक्षणा’ शब्द शक्ति मानी जाती है।
- अन्य उदाहरण –
1. पंजाब शेर है।
2. यह तैल शीतकाल में उपयोगी है।
3. मुँह पर ताला लगा लो।
4. दृग उरझत टूटत कुटुम, जुरत चतुर चित प्रीति।
परत गाँठ दुरजन हिये, दई नई यह रीति।।
5. भाग जग्यो उमगो उर आली, उदै भयो है अनुराग हमारो।
(2) प्रयोजनवती लक्षणा –
मुख्यार्थ में बाधा होने पर किसी विशेष प्रयोजन के लिए जब लक्ष्यार्थ का बोध किया जाता है, वहां प्रयोजनवती लक्षणा होती है।
जैसे- मोहन गधा है
स्पष्टीकरण– इस वाक्य में ’गधा’ का लक्ष्यार्थ ’मूर्ख’ लिया गया है और यह मोहन की मूर्खता को व्यक्त करने के प्रयोजन से लिया गया है अतः यहां प्रयोजनवती लक्षणा हैं।
उदाहरण –
’श्वेत दौङ रहा है।’
स्पष्टीकरण– ’प्रस्तुत वाक्य में ’श्वेत’ का मुख्यार्थ ’सफेद रंग’ बाधित है क्योंकि वह दौङ कैसे सकता है। तथा इसका लक्ष्यार्थ है – ’श्वेत रंग का घोङा दौङ रहा है।’
अर्थात् किसी घुङदौङ प्रतियोगिता के दौरान यह वाक्य बोला जाता है तो श्रोता इसका यह अर्थ ग्रहण कर लेता है कि ’सफेद रंग का घोङा दौङ रहा है।’ इस प्रकार किसी प्रयोजन विशेष (घुङदौङ) से यह अर्थ ग्रहण करने के कारण यहाँ प्रयोजनवती लक्षणा है।
- अन्य उदाहरण –
1. ’गंगा पर ग्राम है।’ या ’साधु गंगा में बसता है।’
2. वह स्त्री तो गंगा है।
3. भाले प्रवेश कर रहे हैं। (युद्धभूमि में ’भालेधारी सैनिक’ प्रवेश कर रहे हैं।)
4. उदित उदयगिरि मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
विकसे संत सरोज सब, हरषे लोचन भृंग।।
(ब) मुख्यार्थ एवं लक्ष्यार्थ के सम्बन्ध के आधार पर –
इस आधार पर लक्षणा के दो भेद हैं-
- (1) गौणी लक्षणा,
- (2) शुद्धा लक्षणा।
(1) गौणी लक्षणा –
जहां गुण सादृश्य के आधार पर लक्ष्यार्थ का बोध होता है, वहां गौणी लक्षणा होती है। जैसे-मोहन शेर है। इस वाक्य में मोहन को वीर दिखाने लिए उसको शेर कहा गया है, अर्थात् मोहन में और शेर में सादृश्य है अतः यहां गौणी लक्षणा है।
गौणी लक्षणा – लक्षणा शब्द शक्ति में लक्ष्यार्थ सदैव मुख्यार्थ से सम्बद्ध होता है।
- यथा –
- (।) सादृश्य संबंध
- 2 आधाराधेय संबंध
- (3) सामीप्य संबंध
- (4) वैपरीत्य संबंध
- (5) तात्कर्म्य संबंध
- (6 ) कार्यकारण संबंध
- (7) अंगांगि संबंध
इनमें से जहाँ पर मुख्य अर्थ की बाधा उत्पन्न होने पर सादृश्य संबंध के आधार पर अर्थात् समान रूप, गुण या धर्म के द्वारा अन्य अर्थ ग्रहण किया जाता है तो वहाँ पर गौणी लक्षणा होती है।
सामान्यतः रूपक व लुप्तोपमा (धर्म लुप्ता) अलंकार के पदों में गौणी लक्षणा ही होती है।
जैसे –
’मुख चन्द्र है।’
स्पष्टीकरण– यहाँ मुख्यार्थ में यह बाधा है कि ’मुख चन्द्र कैसे हो सकता है।’ तब लक्ष्यार्थ यह लिया जाता है कि ’मुख चन्द्रमा जैसा सुन्दर है।’ यह अर्थ सादृश्य संबंध के कारण लिया जाता है अतः यहाँ गौणी लक्षणा है।
- अन्य उदाहरण –
1. नारी कुमुदिनी अवध सर रघुवर विरह दिनेश।
अस्त भये प्रमुदित भई, निरखि राम राकेश।।
2. बीती विभावरी जाग री।
अम्बर पनघट में डूबो रही तारा घट उषा नागरी।
(2) शुद्धा लक्षणा –
जहां गुण सादृश्य को छोङकर अन्य किसी आधार यथा-समीपता, साहचर्य, आधार-आधेय सम्बन्ध, के आधार पर लक्ष्यार्थ ग्रहण किया गया हो, वहां शुद्धा लक्षणा होती है।
यथा-लाल पगङी आ रही है।
स्पष्टीकरण– यहां लाल पगङी का अर्थ है सिपाही। इन दोनों में साहचर्य सम्बन्ध है अतः शुद्धा लक्षणा है।
- उदाहरण –
1. मेरे सिर पर क्यों बैठते हो। (सामीप्य संबंध)
2. पानी में घर बनाया है तो सर्दी लगेगी ही। (सामीप्य संबंध)
3. आँचल में है दूध और आँखों में पानी। (सामीप्य संबंध)
4. वह मेरे लिए राजा है। (तात्कर्म्य संबंध)
5. इस घर में नौकर मालिक है। (तात्कर्म्य संबंध)
6. पितु सुरपुर सियराम लखन बन मुनिव्रत भरत गह्यो।
हौं रहि घर मसान पावक अब मरिबोई मृतक दह्यो।।
7. सारा घर तमाशा देखने गया है। (आधार आधेय)
(स) मुख्यार्थ है या नहीं के आधार पर लक्षणा के भेद –
लक्ष्यार्थ के कारण मुख्यार्थ पूरी तरह समाप्त हो गया है या बना हुआ है, इस आधार पर लक्षणा के दो भेद किए गए हैं-
- (1) उपादान लक्षणा,
- (2) लक्षण लक्षणा।
(1) उपादान लक्षणा –
जहां मुख्यार्थ बना रहता है तथा लक्ष्यार्थ का बोध मुख्यार्थ के साथ ही होता है वहां उपादान लक्षणा होती हैं।
जैसे-लाल पगङी आ रही है।
स्पष्टीकरण– इसमें लाल पगङी भी आ रही है और (लाल पगङी पहने हुए) सिपाही भी जा रहा है। यहां मुख्यार्थ (लाल पगङी) के साथ-साथ लक्ष्यार्थ (सिपाही) का बोध हो रहा है अतः उपादान लक्षणा है।
उदाहरण –
1. ये झंडे कहाँ जा रहे हैं ?
स्पष्टीकरण– इस वाक्य में झण्डा धारण करने वाले पुरुषों पर झण्डे का आरोप है और अर्थ में दोनों का कथन हो रहा है, अतः सारोपा लक्षणा है।
धार्य-धारक भाव से अर्थ की अभिव्यक्ति हो रही है, अतः शुद्धा लक्षणा है तथा ’झण्डे’ का अपना मुख्य अर्थ लुप्त नहीं हुआ है, अतः उपादान लक्षणा है।
नोट – जहाँ भेदकातिशयोक्ति अलंकार होता है, वहाँ प्रायः उपादान लक्षणा ही कार्य करती है।
- जैसे –
1. औरे भाँति कुंजन में गुंजरत भौंर भीर।
औरे भाँति बौरन के झौंरन के ह्वै गये।।
2. औरे कछु चितवनि चलनि, औरे मृदु मुसकानि।
औरे कछु सुख देत है, सकै न बैन बखानि।।
(2) लक्षण लक्षणा –
इसमें मुख्यार्थ पूरी तरह समाप्त हो जाता है, तभी लक्ष्यार्थ का बोध होता है।
- उदाहरण –
1. आज भुजंगों से बैठे हैं, वे कंचन के घङे दबाये।
विनय हार कर कहती है, ये विषधर हटते नहीं हटाये।।
2. कच समेटि करि भुज उलटि खए सीस पट डारि।
काको मन बाँधे न यह जूरौ बाँधन हारि।।
(द) सारोपा एवं साध्यवसाना लक्षणा –
(1) सारोपा लक्षणा –
जहां उपमेय और उपमान में अभेद आरोप करते हुए लक्ष्यार्थ की प्रतीति हो वहां सारोपा लक्षणा होती हैं। इसमें उपमेय भी होता है और उपमान भी।
जैसे – उदित उदयगिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग। यहां उदयगिरि रूपी मंच पर राम रूपी प्रभातकालीन सूर्य का उदय दिखाकर उपमेय पर उपमान का अभेद आरोप किया गया है अतः सारोपा लक्षणा है।
- उदाहरण –
1. अनियारे दीरघ नयनि, किसती न तरुनि समान।
वह चितवनि और कछू, चेहि बस होत सुजान।।
2. तेरा मुख सहास अरुणोदय, परछाई रजनी विषादमय।
यह जागृति वह नींद स्वप्नमय,
खेल खेल थक थक सोने दो, मैं समझूँगी सृष्टि प्रलय क्या?
3. सरस विलोचन विधुवदन लख आलि घनश्याम।।
(2) साध्यवसाना लक्षणा –
इसमें केवल उपमान का कथन होता है, लक्ष्यार्थ की प्रतीति हेतु उपमेय पूरी तरह छिप जाता है। जैसे-जब शेर आया तो युद्ध क्षेत्र से गीदङ भाग गए। यहां शेर का तात्पर्य वीर पुरुष से और गीदङ का तात्पर्य कायरों से है। उपमेय को पूरी तरह छिपा देने के कारण यहां साध्यवसाना लक्षणा है।
उदाहरण –
- 1. विद्युत की इस चकाचैंध में देख दीप की लौ रोती है।
अरी हृदय को थाम महल के लिए झोपङी बलि होती है।।
2. पेट में आग लगी है। (भूख)
3. हिलते द्रुमदल कल किसलय देती गलबाँही डाली।
फूलों का चुंबन छिङती मधुपों की तान निराली।।
4. कनकलता पर चन्द्रमा धरे धनुष द्वै बान।
5. बाँधा था विधु को किसने इन काली जंजीरों से।
मणिवाले फणियों का मुख, क्यों भरा हुआ हीरों से।।
6. चाहे जितना अध्र्य चढ़ाओ, पत्थर पिघल नहीं सकता।
चाहे जितना दूध पिलाओ, अहि-विष निकल नहीं सकता।।
7. लाल पगङी आ रही है। (पुलिस)
व्यंजना शब्द शक्ति किसे कहते है – Vyanjana Shabd Shakti Kise kahte Hai
– अभिधा और लक्षणा के विराम लेने पर जो एक विशेष अर्थ निकालता है, उसे व्यंग्यार्थ कहते हैं और जिस शक्ति के द्वारा यह अर्थ ज्ञात होता है, उसे व्यंजना शब्द शक्ति कहते हैं। जैसे – घर गंगा में है। यहां व्यंजना है कि घर गंगा की भांति पवित्र एवं स्वच्छ है।
व्यंजना शब्द शक्ति के भेद –
(अ) शाब्दी व्यंजना – जहां शब्द विशेष के कारण व्यंग्यार्थ का बोध होता है और वह शब्द हटा देने पर व्यंग्यार्थ समाप्त हो जाता है वहां शाब्दी व्यंजना होती हैं।
जैसे –
चिरजीवौ जोरी जुरै क्यों न सनेह गम्भीर।
को घटि ए वृषभानुजा वे हलधर के वीर।।
स्पष्टीकरण– यहां वृषभानुजा, हलधर के वीर शब्दों के कारण व्यंजना सौन्दर्य है। इनके दो-दो अर्थ हैं-1. राधा, 2. गाय तथा 1. श्रीकृष्ण 2. बैल। यदि वृषभानुजा, हलधर के वीर शब्द हटा दिए जाएं और इनके स्थान पर अन्य पर्यायवाची शब्द रख दिए जाएं, तो व्यंजना समाप्त हो जाएगी।
शाब्दी व्यंजना को पुनः दो वर्गों में बांटा गया है
- अभिधामूला शाब्दी व्यंजना,
- लक्षणामूला शाब्दी व्यंजना।
(1) अभिधामूला शाब्दी व्यंजना –
जहां पर एक ही शब्द के नाना अर्थ होते हैं, वहां किस अर्थ विशेष को ग्रहण किया जाए, इसका निर्णय अभिधामूला शाब्दी व्यंजना करती हैं। यह ध्यान देने योग्य बात है कि अभिधामूला शाब्दी व्यंजना में शब्द का पर्याय रख देने से व्यंजना का लोप हो जाता है तथा व्यंग्यार्थ का बोध मुख्यार्थ के माध्यम से होता है
जैसे-सोहत नाग न मद बिना, तान बिना नहीं राग।
यहां पर नाग और राग दोनों शब्द अनेकार्थी हैं, परन्तु ’वियोग’ कारण से इनका अर्थ नियन्त्रित कर दिया गया है। इसलिए यहां पर ’नाग’ का अर्थ हाथी और ’राग’ का अर्थ रागिनी है।
अब यदि यहां नाग का पर्यायवाची भुजंग रख दिया जाए तो व्यंग्यार्थी हो जाएगा।
उदाहरण –
’’चिरजीवो जोरी जुरै, क्यों न सनेह गंभीर।
को घटि, ये वृषभानुजा, वे हलधर के बीर।।’’
यहाँ पर अभिधा शब्द शक्ति के द्वारा ’वृषभानुजा’ और ’हलधर के बीर’ का अर्थ क्रमशः ’राधा’ और ’कृष्ण’ निश्चित हो जाता है, फिर भी यहाँ यह अर्थ व्यंजित होता है कि यह जोङी बिलकुल एक दूसरे के उपयुक्त है। अतएव यहाँ अभिधामूला शाब्दी व्यंजना है।
(2) लक्षणामूला शाब्दी व्यंजना –
जहां किसी शब्द के लाक्षणिक अर्थ से उसके व्यंग्यार्थ पर पहुंचा जाए और शब्द का पर्याय रख देने से व्यंजना का लोप हो जाए, वहां लक्षणामूला शाब्दी व्यंजना होती है।
यथा -’’आप तो निरै वैशाखनन्दन हैं।’’ यहां वैशाखनन्दन व्यंग्यार्थ पर पहुंचना होता है। लक्षण है-मूर्खता। अब यदि यहां वैशाखनन्दन शब्द बदल दिया जाए तो व्यंजना का लोप हो जाए, परन्तु ’गधा’ रख देने से लक्षणामूला शाब्दी व्यंजना तो चरियार्थ नहीं रहेगी।
उदाहरण –
1. ’’कहि न सको तव सुजनता! अति कीन्हों उपकार।
सखे! करत यों रहु सुखी जीवहु बरस हजार।।’’
प्रस्तुत दोहे में अपकार करने वाले व्यक्ति कार्यों से दुःखी कोई व्यक्ति कह रहा है-’’मैं तुम्हारी सज्जनता का वर्णन नहीं कर सकता। तुमने बहुत उपकार किया। इसी प्रकार उपकार करते हुए तुम हजार वर्ष तक सुखी रहो।’’
यहाँ वाच्यार्थ में अपकारी की प्रशंसा की गई है, परन्तु अपकारी की कभी प्रशंसा नहीं की जा सकती है, अतः वाच्यार्थ में बाधा है।
यहाँ इस वाच्यार्थ को तिरस्कृत करके विपरीत लक्षणा से ’सुजनता’ का ’दुर्जनता’, ’उपकार’ का ’अपकार’ और ’सखे’ का ’शत्रु’ अर्थ लिया जायेगा। यहाँ व्यंग्यार्थ ’अत्यन्त अपकार’ है। अतएव यहाँ लक्षणामूला शाब्दी व्यंजना है।
1. अजौ तरयोना ही रह्यौ श्रुति सेवत इक अंग।
नाक बास बेसरि लह्यौ बसि मुकतनु के संग।।
2. फली सकल मन कामना, लूट्यो अगनित चैन।
आजु अँचै हरि रूप सखि, भये प्रफुल्लित नैन।।
(ब) आर्थी व्यंजना –
जब व्यंजना किसी शब्द विशेष पर आधारित न होकर अर्थ पर आधारित होती है, तब वहां आर्थी व्यंजना मानी जाती हैं।
यथा –
आंचल में है दूध और आंखों में पानी।।
यहां नीचे वाली पंक्ति से नारी के दो गुणों की व्यंजना होती है-उसका ममत्व भाव एवं कष्ट सहने की क्षमता। यह व्यंग्यार्थ किसी शब्द के कारण है अतः आर्थी व्यंजना है।
1. ’’सागर कूल मीन तङपत है हुलसि होत जल पीन।’’
यह कथन सामान्यतः कोई महत्त्व नहीं रखता, परन्तु जब इस बात का पता चल जाता है कि इसको कहने वाली गोपिकाएँ हैं, तब इसका यह अर्थ निकलता है कि हम कृष्ण के समीप होेते हुए भी मछली के समान तङप रही हैं।
कृष्ण के दर्शन से हमें वैसा ही आनंद प्राप्त होगा, जैसा कि मछली को पानी में जाने से होता है।
2. सघन कुंज छाया सुखद शीतल मंद समीर।
मन ह्वै जात अजौ वहे वा जमुना के तीर।।
3. सिंधु सेज पर धरा वधू अब, तनिक संकुचित बैठी सी।
प्रलय निशा की हलचल स्मृति में मान किए सी ऐंठी सी।।
4. ’’प्रीतम की यह रीति सखी, मोपै कही न जाय।
झिझकत हू ढिंग ही रहत, पल न वियोग सुहाय।।’’
यह कथन किसी नायिका का है। व्यंग्यार्थ यह है कि नायिका रूपवती है, नायक उसमें अत्यधिक आसक्त है। यहाँ आर्थी व्यंजना इसलिए है कि ’झिझकत’, ’ढिंग’ आदि शब्दों के स्थान पर इनके पर्यायवाची अन्य शब्द भी रख दिये जायें तो भी व्यंग्यार्थ बना रहेगा।
FAQ – शब्द शक्ति
1. शब्द शक्ति कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर – शब्द शक्ति तीन प्रकार की होती है – अभिधा, लक्षणा व्यंजना।
2. शब्द शक्ति किसे कहते है ?
उत्तर – जिस शक्ति तथा व्यापार के द्वारा शब्द में निहित अर्थ को स्पष्ट करने में सहायता मिलती है, उसे ’शब्द शक्ति’ कहते है। शब्द के अर्थ का बोध कराने वाली शक्ति को ’शब्दशक्ति’ कहते हैं। शब्दशक्ति शब्द के अर्थ का बोध कराने का व्यापार है।
3. लक्षणा शब्द शक्ति के कितने भेद हैं ?
उत्तर – लक्षणा शब्द शक्ति के मुख्य रूप से दो भेद होते हैं -रूढ़ि लक्षणा, प्रयोजनवती लक्षणा।
4. अभिधा का मतलब क्या होता है ?
उत्तर – अभिधा का मतलब होता है – शब्दों का सीधा अर्थ। शब्द की जिस शक्ति से उसके संकेतिक अर्थ का बोध होता है, उसे अभिधा कहते हैं।
5. अभिधा शब्द शक्ति किसे कहते है ?
उत्तर – जिस शब्द में श्रवण मात्र से उसका परम्परागत प्रसिद्ध अर्थ सरलताा से समझ में आ जाए, उसे अभिधा शब्द शक्ति कहते है। इस अर्थ को वाच्यार्थ, मुख्यार्थ और अभिधेयार्थ भी कहते है।
6. अभिभा शब्द शक्ति के दो उदाहरण बताइये ?
उत्तर – (1) बैल एक उपयोगी पशु है।
(2) सिंह जंगल में रहता है।
नोट – यहाँ पर बैल और सिंह प्रचलित शब्द है जो पशु विशेष का द्योतक है।
7. लक्षणा शब्द शक्ति किसे कहते है ?
उत्तर – जब किसी शब्द का अभिधा के द्वारा मुख्यार्थ का बोध न हो, तब उस शब्द के अर्थ का बोध कराने वाली शक्ति को लक्षणा शब्द शक्ति कहते है।
8. लक्षणा शब्द शक्ति के दो उदाहरण बताइये ?
उत्तर – (1) महाराणा प्रताप मेवाङ के सिंह थे।
(2) रामू तो गधा है।
नोट – यहाँ पर सिंह और गधा शब्दों का विशेष अर्थ होने से लक्षणा शब्द शक्ति है।
9. व्यंजना शब्द शक्ति किसे कहते है ?
उत्तर – जब अभिधा और लक्षणा शब्द शक्ति से किसी शब्द का अर्थ नहीं निकल पाता है और शब्द के वाच्यार्थ और लक्ष्यार्थ से भिन्न कोई अन्य विशिष्ट अर्थ या कोई भिन्न ध्वनियाँ निकलती है, तब उसे व्यंजना शब्द शक्ति कहते है।
10. व्यंजना शब्द शक्ति के दो उदाहरण बताइये ?
उत्तर – (1) गंगा में गाँव है।
नोट – यहाँ पर एक पवित्र गाँव व्यंजित है।
(2) संध्या हो गई।
नोट – इस वाक्य में माता पुत्री से कहे, तो अर्थ होगा – घर में दीपक जला दो या रोशनी कर दो।
11. शब्द कितने प्रकार के होते है ?
उत्तर – शब्द तीन प्रकार के होते है – (1) रूढ़ (2) यौगिक (3) योगरूढ़।
12. व्यंजना शब्द शक्ति के कितने भेद होते है ?
उत्तर – व्यंजना शब्द शक्ति के दो भेद होते है – (1) शाब्दी व्यंजना (2) आर्थी व्यंजना।
13. रूढ़ शब्द किसे कहते है ?
उत्तर – जिन शब्दों के खंड न हो, सम्पूर्ण शब्दों का एक ही अर्थ प्रकट हो, उन्हें रूढ़ शब्द कहते हैं। जैसे – पेङ, मेज, हाथी, कलम।
14. यौगिक शब्द किसे कहते है ?
उत्तर – प्रत्यय, कृदन्त, समास इत्यादि के संयोग से बने वे शब्द जो समुदाय के अर्थ का बोध कराते हैं, उन्हें यौगिक शब्द कहते हैं। जैसे – महेश, पाठशाला, महेश।
15. योगरूढ़ शब्द किसे कहते है ?
उत्तर – जो शब्द यौगिक की प्रक्रिया से बने हों किन्तु उनका एक निश्चित अर्थ रूढ़ हो गया हो, उन्हे योगरूढ़ शब्द कहते हैं। जैसे – जलज, गणनायक।
16. रूढ़ा लक्षणा किसे कहते है ?
उत्तर – जहाँ मुख्यार्थ में बाधा होने पर रूढ़ि के आधार पर लक्ष्यार्थ ग्रहण किया जाता है, वहाँ रूढ़ा लक्षणा होती है। जैसे – पंजाब वीर है।
17. प्रयोजनवती लक्षणा किसे कहते है ?
उत्तर – जहाँ किसी विशेष प्रयोजन के कारण मुख्यार्थ को बाधित करके उससे संबंधित लक्ष्यार्थ का बोध होता है, वहाँ प्रयोजनवती लक्षणा होती है। जैसे – आँख उठाकर देखा तो सामने हड्डियों का ढाँचा खङा था।
18. गौणी लक्षणा किसे कहते है ?
उत्तर – जहाँ गुण सादृश्य के आधार पर लक्ष्यार्थ का बोध होता है, वहाँ गौणी लक्षणा होती है। जैसे – मुख चन्द्र है।
19. शाब्दी व्यंजना किसे कहते है ?
उत्तर – जहाँ व्यंग्यार्थ किसी विशेष शब्द के प्रयोग पर निर्भर रहता है, वहाँ शाब्दी व्यंजना होती है। जैसे – ’पानी गए न उबरे मोती मानस चून।’’
20. आर्थी व्यंजना किसे कहते है ?
उत्तर – जहाँ पर व्यंजना का आधार अर्थ विशेष पर आधारित हो, वहाँ पर आर्थी व्यंजना होती है।
जैसे – ’’अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी।।
21. उपादान लक्षणा किसे कहते है ?
उत्तर – जहाँ मुख्यार्थ बना रहता है तथा लक्ष्यार्थ का बोध मुख्यार्थ के साथ ही होता है वहाँ उपादान लक्षणा होती है। जैसे – सारा घर तमाशा देखने गया है।
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