दोस्तों आज हम भारत के राष्ट्रपति की सम्पूर्ण प्रक्रिया के बारे में अध्ययन करेंगे |
भारत का राष्ट्रपति
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राष्ट्रपति भारत का राज्य प्रमुख होता है। वह भारत का प्रथम नागरिक है और राष्ट्र की एकता, अखंडता व सशक्तता का प्रतीक है। संविधान के अनु. 53 के अनुसार संघ सरकार की कार्यपालिका संबंधी समस्त शक्तियाँ भारतीय राष्ट्रपति में निहित हैं, जिनका प्रयोग वह संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से करता है। वह देश की रक्षा सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति होता है।
राष्ट्रपति पद हेतु योग्यता: (अनु. 58)
1. वह भारत का नागरिक हो।
2. 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
3. लोकसभा का सदस्य बनने का पात्र हो।
4. वह भारत सरकार या राज्य सरकार या किसी स्थानीय स्वशासी संस्था के अंतर्गत लाभ के पद पर न हो। एक वर्तमान राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, किसी राज्य का राज्यपाल अथवा संघ या किसी राज्य का मंत्री लाभ के पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा और वह राष्ट्रपति पद के लिए योग्य उम्मीदवार माना जाएगा।
राष्ट्रपति पद के लिए शर्तें (अनु. 59):
(1) राष्ट्रपति संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि
ऐसा कोई व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है तो उसके राष्ट्रपति के रूप में पद ग्रहण की तारीख से उस सदन
से उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त समझी जाएगी।
(2) राष्ट्रपति अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा।
(3) राष्ट्रपति के वेतन, भत्ते आदि उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किए जाएंगे।
(4) राष्ट्रपति बिना किराया दिए अपने शासकीय निवासों के उपयोग का हकदार होगा।
कार्यकाल (अनु. 56 व 57):
– राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से पाँच वर्ष की अवधि तक पद धारण कर सकेगा तथा पुनर्नियुक्ति का पात्र होगा।
– राष्ट्रपति अपनी पदावधि समाप्त हो जाने पर भी नए राष्ट्रपति के पद ग्रहण करने तक पद धारण करेगा।
– राष्ट्रपति अपना त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को लिखित में दे सकेगा। त्यागपत्र की सूचना राष्ट्रपति द्वारा तुरन्त लोकसभा अध्यक्ष को दी जाएगी।
– संविधान का अतिक्रमण करने पर राष्ट्रपति को अनुच्छेद 61 में विहित प्रक्रिया से संसद् में चलाए गए महाभियोग द्वारा हटाया जा सकेगा।
राष्ट्रपति का निर्वाचन
अनु. 54 के अनुसार राष्ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचक मंडल द्वारा होता है जिसके निम्न घटक हैं –
(1) संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य तथा
(2) राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य।
राज्य में दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र तथा पांडिचेरी संघराज्य क्षेत्र भी शामिल किए गए है। संसद के दोनों सदन व राज्यों की विधानसभाओं तथा दिल्ली व पांडिचेरी की विधानसभाओं के मनोनीत सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग नहीं लेते।
निर्वाचन की रीति: (अनु. 55)
(1) राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रूप से आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय मत पद्धति से गुप्त मतदान द्वारा किया जाता है।
(2) मत के मूल्य की गणना:
निर्वाचक मंडल के प्रत्येक सदस्य के मत के मूल्य की गणना निम्न प्रकार होगी –
(1) प्रत्येक राज्य के निर्वाचक के मत का मूल्य त्र
1000 ग उस राज्य की कुल जनसंख्या
उस राज्य की विधानसभा के कुल निर्वाचित सदस्य की संख्या
इस प्रकार समस्त राज्यों की विधानसभाओं के समस्त निर्वाचित सदस्यों के मतों के मूल्य को जोङ लिया जाएगा। यही निर्वाचक मंडल में राज्य विधानसभाओं के मतदाताओं के मूल्य का प्रतिनिधित्व करेगा।
(2) संसद के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के मत का मूल्य त्र
राज्य विधानसभाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली कुल मत संख्या
संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की संख्या
उक्त सूत्र से प्राप्त भागफल संसद के दोनों सदनों प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के मत का मूल्य होगा।
(3) राष्ट्रपति निर्वाचित घोषित किए जाने के लिए राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी द्वारा 50% से अधिक वैध मत प्राप्त किया जाना आवश्यक है।
राष्ट्रपति द्वारा पद की शपथ: (अनु. 60)
राष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करने से पूर्व भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा उसकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश के समक्ष पद की शपथ लेगा।
राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया: (अनु. 61)
– महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है।
– जिस सदन में ऐसा प्रस्ताव लाया जा रहा है उसके कम से कम एक चैथाई सदस्यों द्वारा ऐसे प्रस्ताव पर
हस्ताक्षर करके प्रस्ताव लाने से 14 दिन पहले इसकी सूचना राष्ट्रपति को देनी आवश्यक है।
– उस सदन की कुल सदस्यों के कम से कम 2/3 सदस्यों द्वारा ऐसा प्रस्ताव पारित कर दूसरे सदन में प्रेषित
किया जाएगा।
– दूसरे सदन द्वारा आरोप की जाँच की जाएगी।
– यदि यह आरोप सिद्ध हो जाता है तथा वह सदन अपनी कुल सदस्य संख्या के 2/3 बहुमत से यह प्रस्ताव
पारित कर दे तो ऐसा प्रस्ताव पारित होने की तारीख से राष्ट्रपति को उसके पद से हटाया जाएगा।
राष्ट्रपति का कार्यकाल पूर्ण होने पर नए राष्ट्रपति का निर्वाचन उसका कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही पूर्ण किया जाना आवश्यक है। (अनु. 62 (1) )
आकस्मिक रिक्तता:
यदि राष्ट्रपति का पद उसकी मृत्यु, पदत्याग या पद से हटाए जाने अथवा अन्य कारण से रिक्त हो तो उसके पद के लिए निर्वाचन ऐसी रिक्ति के 6 माह के भीतर किया जाना आवश्यक है। ऐसे रिक्त हुए पद पर निर्वाचित व्यक्ति अपने पद ग्रहण की तारीख से पाँच वर्ष की पूरी अवधि तक पद धारण कर सकेगा। (अनु. 62 (2) )
नए राष्ट्रपति के पद ग्रहण करने तक उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा। (अनु. 65 (ए) )
जब राष्ट्रपति अनुपस्थिति, बीमारी या अन्य किसी कारण से अपना कार्य करने में असमर्थ हों तो उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के पुनः पदभार सँभालने तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा। (अनु. 65 (2) )
राष्ट्रपति की शक्तियाँ
राष्ट्रपति की शक्तियों का अध्ययन निम्न प्रकार किया जा सकता है –
(1) कार्यपालिका शक्ति:
– अनुच्छेद 53 के अनुसार संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है।
– अनु. 77 के अनुसार भारत सरकार के समस्त कार्य राष्ट्रपति के नाम से किए जाते हैं।
– राष्ट्रपति देश के सभी उच्चाधिकारियों की नियुक्ति करता है। प्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री की सलाह से अन्य मंत्री, उच्चतम व उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश, राज्यों के राज्यपाल, भारत के महान्यायवादी, नियंत्रक व महालेखा परीक्षक, मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य चुनाव आयुक्त, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्य, वित्त आयोग के अध्यक्ष व सदस्य आदि की नियुक्ति व विमुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति को ही है।
– वह केन्द्र के प्रशासनिक कार्यों व विधायिका के प्रस्तावों से संबंधित जानकारी की सूचना प्रधानमंत्री से ले सकता है।
(2) सैनिक शक्तियाँ:
राष्ट्रपति देश के प्रतिरक्षा बलों का सर्वोच्च सेनापति होता है। उसे मंत्रिपरिषद की सलाह से युद्ध घोषित करने व शान्ति स्थापित करने की शक्ति प्राप्त है।
(3) कूटनीतिक शक्तियाँ:
अन्तरराष्ट्रीय संधियाँ व समझौते राष्ट्रपति के नाम पर किए जाते है। वह अंतरराष्ट्रीय मंचों व मामलों में भारत का प्रतिनिधित्व करता है।
(4) विधायी शक्तियाँ:
– राष्ट्रपति संसद के सत्र को आहूत करता है और सत्रावसान करता है। वह लोकसभा का विघटन कर सकता है।
– राष्ट्रपति लोकसभा के प्रत्येक साधारण निर्वाचन के बाद प्रथम सत्र के आरम्भ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरम्भ में दोनों सदनों के संयुक्त सत्र को संबोधित करता है जिसमें वह सरकार की सामान्य नीतियों और भावी कार्यक्रमों का विवरण देता है।
– संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ही अधिनियम बनता है। धन विधेयक को छोङकर अन्य विधेयकों को राष्ट्रपति स्वीकृत कर सकता है, अपनी स्वीकृति सुऱिक्षत रख सकता है या अपने सुझाव के साथ पुनर्विचारार्थ लौटा सकता है। संसद द्वारा पुनः पारित विधेयक पर राष्ट्रपति अपनी अनुमति देने के लिए बाध्य है।
– यदि किसी विधेयक पर (धन विधेयक के अलावा) दोनों सदनों में कोई असहमति हो तो उसे सुलझाने के लिए राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है।
– नए राज्यों के निर्माण, वर्तमान राज्य के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों के बदलने के लिए कोई विधेयक राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना संसद में पेश नहीं किया जा सकता है।
– राष्ट्रपति राज्यसभा में साहित्य, कला, विज्ञान व सामाजिक सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या अनुभव रखने वाले 12 व्यक्तियों तथा लोकसभा में दो एंग्लो-इंडियन समुदाय के व्यक्तियों को मनोनीत करता है।
अध्यादेश जारी करने की शक्ति (अनु. 123)
संसद के एक या दोनों सदनों के सत्र में न होने पर आवश्यक होने पर राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर विधि निर्माण कर सकता है। प्रत्येक ऐसा अध्यादेश संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा और संसद के पुनः समवेत होने की तारीख से 6 सप्ताह की समाप्ति पर समाप्त समझा जाएगा। राष्ट्रपति अपने द्वारा जारी अध्यादेशों को किसी भी समय वापस ले सकता है। राष्ट्रपति उन्हीं विषयों पर अध्यादेश जारी कर सकता है जिन पर संसद को कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है।
किसी अध्यादेश द्वारा मूल अधिकारों का अतिक्रमण नहीं किया जा सकता। अध्यादेश कार्यपालिका को आकस्मिक परिस्थितियों से निपटने की शक्ति प्रदान करता है।
राज्य विधायिका द्वारा पारित किसी विधेयक को राज्यपाल जब राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखता है तब राष्ट्रपति –
(1) विधेयक को अपनी स्वीकृति देता है या
(2) विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रखता है या
(3) राज्यपाल को इस विधेयक को राज्य विधायिका द्वारा पुनर्विचार हेतु लौटा सकता है। यदि राज्य विधायिका विधेयक
को पुनः राष्ट्रपति की सहमति के लिए भेजती है तो राष्ट्रपति अपनी स्वीकृति देने के लिये बाध्य नहीं है।
– राष्ट्रपति नियंत्रक व महालेखा परीक्षक, संघ लोक सेवा आयोग वित्त आयोग व अन्य आयोगों आदि की रिपोर्ट संसद के समक्ष रखता हैं।
(5) वित्तीय शक्तियाँ:
– धन विधेयक राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से ही संसद में प्रस्तुत किए जा सकते हैं।
– वह वार्षिक वित्तीय विवरण (केन्द्रीय बजट) को संसद के समक्ष रखवाता है।
– अनुदान की कोई भी माँग उसकी सिफारिश के बिना नहीं की जा सकती है।
– वह आकस्मिक निधि से, किसी अदृश्य व्यय हेतु अग्रिम भुगतान की व्यवस्था कर सकता है।
– वह राज्य व केन्द्र के मध्य राजस्व के बँटवारे के लिए प्रत्येक पाँच वर्ष में एक वित्त आयोग का गठन करता है।
(6) न्यायिक शक्तियाँ:
– वह उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।
– क्षमादान की शक्ति (अनु.72)
राष्ट्रपति किसी दोषी व्यक्ति के दंड को क्षमा कर सकता है, निलम्बित कर सकता है तथा कम कर सकता है। राष्ट्रपति मृत्युदंड को भी क्षमा कर सकता है। राष्ट्रपति को सेना न्यायालयों द्वारा दिए गए दंड के मामले में भी क्षमादान की शक्ति प्राप्त है। जबकि राज्यपाल सेना न्यायालय द्वारा दिए गए दंड व मृत्युदंड को क्षमा अथवा कम नहीं कर सकता।
(7) राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ:
भारतीय संविधान के अठारहवें भाग में अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकालीन प्रावधानों की व्यवस्था की गयी है, किन्तु संविधान में कहीं पर भी ’आपातकालीन’ स्थिति को परिभाषित नहीं किया गया है। भारतीय संविधान के आपातकालीन प्रावधान राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों के रूप में है, किन्तु भारत में संसदात्मक शासन व्यवस्था को अपनाने के कारण राष्ट्रपति नाममात्र का कार्यपालिका प्रधान है तथा प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिमण्डल वास्तविक प्रधान हैं। अतः आपातकालीन शक्तियाँ कहने के लिए ही राष्ट्रपति की शक्तियाँ है, वस्तुतः ये शक्तियाँ तो प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिमण्डल की शक्तियाँ है।
संविधान के आपात् कालीन प्रावधान या राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियाँ सन् 1975 के बाद बहुत अधिक संशोधन व परिवर्तन के विषय रहे हैं। 42 वें संविधान संशोधन, 1976 द्वारा आपातकालीन प्रावधानों को अधिक कठोर बनाया गया परन्तु 44वें संविधान संशोधन, 1979 द्वारा इनमें ऐसे संशोधन किए गये ताकि शासक वर्ग द्वारा इन प्रावधानों का दुरुपयोग न किया जा सके।
44वें संविधान संशोधन के बाद संकटकालीन प्रावधानों की स्थिति इस प्रकार है –
(1) युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में आपातकाल की घोषणा:
संविधान के अनुच्छेद 352 में व्यवस्था है कि यदि राष्ट्रपति को अनुभव हो कि युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण भारत या उसके किसी भाग की शक्ति या व्यवस्था नष्ट होने का भय है तो यथार्थ रूप में ऐसी स्थिति उत्पन्न होेने या होने की आशंका होने पर राष्ट्रपति सम्पूर्ण भारत या उसके किसी भाग में संकट काल की घोषणा कर सकता है, परन्तु राष्ट्रपति ऐसे संकट की घोषणा तभी कर सकता है जबकि मंत्रिमण्डल ने उसे लिखित मंे ऐसा परामर्श दिया हो। संसद की स्वीकृति के बिना भी यह एक माह तक लागू रह सकती है
अर्थात् संकट की घोषणा किये जाने के एक माह के अन्दर संसद के दोनों सदनों के पृथक-पृथक कुल सदस्यों के बहुमत एवं उपस्थिति और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से इसका अनुमोदन जरूरी है। अनुमोदन के बाद ऐसा आपातकाल 6 माह तक लागू रहेगा, इसे अधिक समय तक लागू रखने के लिए प्रति 6 माह बाद संसद की स्वीकृति जरूरी है। इसके अलावा व्यवस्था की गई है कि लोकसभा में उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत से आपातकाल पर विचार करने के लिए लोकसभा की बैठक लोकसभा के 1/10 सदस्यों की मांग पर अनिवार्य रूप से बुलायी जायेगी। आपातकाल की घोषणा को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
घोषणा के संवैधानिक प्रभाव: इस घोषणा के लागू रहने के समय अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त 6 नागरिक स्वंतत्रताएँ स्थगित हो जायेगी लेकिन नागरिक स्वतंत्रताएँ सशस्त्र विद्रोह के आधार पर लागू आपात काल में स्थगित नहीं की जा सकती।
आपातकाल में जीवन और शारीरिक स्वाधीनता के अधिकार को समाप्त या सीमित नहीं किया जा सकता, किन्तु इसके अलावा अन्य अधिकारों की रक्षा हेतु नागरिक न्यायालय की शरण नहीं ले सकेंगे ।
आपातकाल में राज्य सूची पर कानून बनाने की शक्ति संसद को प्राप्त हो जायेगी तथा राज्य का कोई भी कानून उस सीमा तक अमान्य होगा, जिस सीमा तक वह संघीय कानून का विरोधी है। राज्य सूची पर बनाये गया कानून उद्घोषणा की समाप्ति के छः माह बाद तक प्रभावी रहेगें। इस दौरान संघीय कार्यपालिका राज्य कार्यपालिका को निर्देश दे सकेगी कि वह कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग कैसे करे।
व्यवहार में अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत आपातकाल की घोषणा अब तक तीन बार की गई -भारत- चीन युद्ध – 1962, भारत-पाक युद्ध-1971 और 26 जून, 1975। जून 1975 में आपात काल आन्तरिक अशान्ति के आधार पर लागू हुआ था।
(2) राज्य में संवैधानिक तन्त्र के विफल होने पर आपाताकाल या राष्ट्रपति शासन की घोषणा (अनु. 356):
भारतीय संविधान संघीय सरकार को यह दायित्व सौंपता है कि वह प्रत्येक राज्य की बाहरी आक्रमण व आन्तरिक अशान्ति से रक्षा करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि प्रत्येक राज्य की सरकार के प्रावधानों के अनुसार संचालित है।
अनुच्छेद 356 राष्ट्रपति को अधिकार देता है कि यदि उसे राज्यपाल के प्रतिवेदन या अन्य किसी प्रकार से समाधान हो जाये कि ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गयी हैं कि किसी राज्य का शासन संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है, तो वह उस राज्य में संकटकाल (राष्ट्रपति शासन) की घोषणा कर सकता है।
इस संकट की घोषणा के लिए भी वही विधि है जो राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा के लिए है परन्तु ऐसी उदघोषणा के 2 माह के अंदर संसद के दोनों सदनों का अनुमोदन आवश्यक हैं। संसद द्वारा प्रस्ताव पारित कर राज्य के एक बार में 6 माह के लिए राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है। राज्य में राष्ट्रपति शासन एक वर्ष के बाद जारी रखने का प्रस्ताव संसद तभी पारित कर सकेगी, जब इस प्रकार का प्रस्ताव पारित करते समय अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत आपातकाल लागू हो और चुनाव आयोग यह प्रमाणित करे कि राज्य में चुनाव कराना सम्भव नहीं है। किसी भी परिस्थिति में राज्य में राष्ट्रपति शासन तीन वर्ष से अधिक अवधि के लिए लागू नहीं रखा जा सकेगा।
घोषणा के संवैधानिक प्रभाव: राष्ट्रपति घोषणा कर सकता है कि अमुक राज्य की विधायिका शक्ति का प्रयोग संसद करेगी। संसद ऐसी विधायी शक्तियाँ राष्ट्रपति को दे सकती है या राष्ट्रपति को यह अधिकार दे सकती है कि वह यह शक्ति किसी अन्य अधिकारी को प्रदान कर दे। किसी भी राज्याधिकारी की कार्यपालिका शक्ति को राष्ट्रपति हस्तगत कर सकता है। उद्घोषणा के उद्देश्य की पूर्ति हेतु उच्च न्यायालय की शक्ति को छोङकर अन्य सभी शक्तियों को राष्ट्रपति अपने हाथों में ले सकता है। लोकसभा के सत्रावसान के समय राष्ट्रपति राज्य की संचित निधि से व्यय के आदेश दे सकता है। राष्ट्रपति अनु. 19 प्रदत्त 6 नागरिक स्वतंत्रताओं पर रोक लगा सकता है। राष्ट्रपति द्वारा जीवन एवं शारीरिक स्वाधीनता के अलावा अन्य सभी अधिकारों के बारे में संवैधानिक उपचारों के अधिकार को समाप्त किया जा सकता है।
व्यवहार – अनु. 356 के प्रावधानों का लगभग 115 से अधिक बार प्रयोग किया जा चुका है। सर्वप्रथम इसका प्रयोग 1951 में पंजाब में भार्गव मंत्रिमण्डल के पतन के कारण किया गया था अनु. 356 के उपबन्धों का प्रयोग संघीय क्षेत्रों के लिए भी किया जा सकता है।
(3) वित्तीय संकट (अनु. 360):
यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाता है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिससे भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भी भाग का वित्तीय स्थायित्व एवं साख संकट में है तो वह संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत् वित्तीय संकट की घोषणा कर सकता है। वित्तीय संकट के लिए राष्ट्रीय संकट के समान ही अवधि व प्रक्रिया निर्धारित है। संसद द्वारा ऐसी आपातकाल की उद्घोषणा का दो माह में अनुमोदन करना आवश्यक हैं।
वित्तीय संकट की घोषणा के प्रभाव:
⇒ वित्तीय संकट के दौरान राष्ट्रपति को अधिकार होगा कि वह वित्तीय दृष्टिकोण से किसी भी राज्य सरकार को आदेश दे सकता है।
⇒ संघ और राज्य सरकारों के अधिकारियों के वेतनों में, जिनमें सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों से न्यायाधीश भी सम्मिलित होगें, आवश्यक कमी की जा सकती है।
⇒ राष्ट्रपति राज्य सरकारों को बाध्य कर सकता है कि राज्य के सभी वित्त विधेयक उसकी स्वीकृति के लिए भेजें जाएं।
⇒ संघीय कार्यपालिका राज्य की कार्यपालिका को शासन सम्बन्धी जरूरी निर्देश दे सकती है।
(अ) राष्ट्रपति संघ तथा राज्यों में धन सम्बन्धी बँटवारे की व्यवस्थाओं में जरूरी संशोधन कर सकता है।
(अ) वित्तीय संकट की अवधि में, राष्ट्रपति अनु. 19 द्वारा प्रदत्त नागरिक स्वतंत्रताओं पर रोक लगा सकता है और संवैधानिक उपचारों के अधिकार को भी निलम्बित कर सकता है।
व्यवहार – देश में वित्तीय संकट अभी तक लागू नहीं किया गया है।
(8) राष्ट्रपति के विशेषाधिकार: (अनु. 361)
(1) राष्ट्रपति अपने पद की शक्तियों के प्रयोग और कत्र्तव्य के पालन के लिए अपने द्वारा किए गए किसी कार्य के लिए
किसी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं होगा।
(2) राष्ट्रपति के विरुद्ध उसकी पदावधि में किसी प्रकार की दाण्डिक कार्यवाही किसी न्यायालय में न तो संस्थित की
जाएगी और न ही चालू रखी जाएगी।
(3) राष्ट्रपति की पदावधि में कोई न्यायालय उसे बंदी बनाने के आदेश जारी नहीं कर सकता।
(4) राष्ट्रपति द्वारा वैयक्तिक रूप से किए गए किसी कार्य के लिए उसके विरुद्ध कोई दीवानी कार्यवाही उसके
कार्यकाल में तब तक नहीं चलायी जा सकती जब तक कि –
⇒ इसकी लिखित सूचना राष्ट्रपति को न दे दी गई हो।
⇒ ऐसी सूचना के बाद 2 माह न बीत गए हों।
⇒ ऐसी सूचना में उस कार्यवाही की प्रकृति, वादकारण, पक्षकार का नाम, विवरण, निवास स्थान तथा माँग किए
जाने वाले अनुतोष का विवरण न दिया गया हों।
महत्त्वपूर्ण तथ्य
1. राष्ट्रपति की किसी विधेयक पर अनुमति देने या न देने के निर्णय लेने की समय सीमा का अभाव होने के कारण राष्ट्रपति जेबी वीटो का प्रयोग कर सकता है। राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह ने जेबी वीटो का प्रयोग 1988 में भारतीय डाकघर संशोधन विधेयक के संबंध में किया। उस पर उन्होंने कोई निर्णय नहीं लिया और अंततः लोकसभा भंग होने पर वह समाप्त हो गया।
2. राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 352 के अधीन की गई आपात की उद्घोषणा संसद द्वारा अनुमोदित होने के बाद 6 माह तक तथा अनुमोदित न होने पर एक मास तक प्रवर्तन में रहती है। संसद इसे पुनः एक बार में 6-6 मास तक बढ़ा सकती है।
3. राष्ट्रपति का चुनाव भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा करवाया जाता है।
4. राष्ट्रपति चुनाव कुछ तथ्य:
– प्रथम राष्ट्रपति चुनाव 1952 में हुए। डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद ने प्रथम निर्वाचित राष्ट्रपति के रूप में 13 मई, 1952 को शपथ ग्रहण की। 1957 के द्वितीय चुनाव में वे पुनः राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। इस प्रकार वे तीन बार राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण करने वाले एवं सर्वाधिक अवधि (26.1.1950 से 12.5.1962 तक) तक इस पद को सुशोभित करने वाले एक मात्र व्यक्ति थे।
– डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् (मूलतः एक दर्शनशास्त्री) 1962 में राष्ट्रपति बनने से पूर्व दो बार उपराष्ट्रपति (1952-62) रहे।
– डाॅ. जाकिर हुसैन 1967 मंे तीसरे राष्ट्रपति बने जो देश के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति (अल्पसंख्यक समुदाय) थे। इनका कार्यकाल के दौरान ही निधन (3 मई, 1969 को) हो गया था।
– डाॅ. जाकिर हुसैन के असामयिक निधन के बाद उपराष्ट्रपति श्री वी.वी. गिरी पहले कार्यवाहक राष्ट्रपति बने।
– 1969 में राष्ट्रपति पद के चुनावों में वी.वी. गिरी एक निर्दलीय प्रत्याशी (प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा समर्थित) के रूप में चुनाव जीते। उन्होंने कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी श्री नीलम संजीव रेड्डी को हराया। चुनावों में अन्तरात्मा की आवाज पर मत का प्रयोग किया गया। श्री वी.वी. गिरी दूसरे चक्र की मतगणना के बाद विजयी घोषित हुए। राष्ट्रपति चुनाव में दूसरे चक्र की मतगणना की आवश्यकता केवल इसी चुनाव में पङी।
– 1974 में . फखरुद्दीन अली अहमद (पाँचवे राष्ट्रपति) इस पद पर आसीन हुए। 26 जून, 1975 को श्री अहमद के हस्ताक्षरों से देश में पहली बार आंतरिक अशान्ति के आधार पर राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया। कार्यकाल के दौरान ही इनका देहान्त हो गया।
– नीलम संजीव रेड्डी: 25 जुलाई, 1977 को जनता सरकार (पहली गैर कांगे्रसी सरकार) के समय निर्विरोध निर्वाचित होने वाले प्रथम राष्ट्रपति थे। वे 1969 में राष्ट्रपति पद का चुनाव हार चुके थे।
– ज्ञानी जैलसिंह 25.7.1982 को देश के पहले सिख राष्ट्रपति बने थे।
– के.आर. नारायणन 25.7.1999 को देश के राष्ट्रपति बनने वाले प्रथम दलित व्यक्ति थे।
– मो. हिदायतुल्ला एक मात्र मुख्य न्यायाधीश थे जिन्होंने कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया।
– डाॅ. राधाकृष्णन, डाॅ. जाकिर हुसैन, श्री वी.वी. गिरी, श्री आर. वेंकटरमन, डाॅ. शंकर दयाल, श्री के.आर. नारायणन ने राष्ट्रपति बनने से पूर्व उपराष्ट्रपति पद पर कार्य किया था। जबकि श्री जी.एस.पाठक, एम.हिदायतुल्ला, बी.डी.जत्ती, कृष्णकांत एवं श्री भैरासिंह शेखावत ऐसे पाँच उपराष्ट्रपति हैं जो राष्ट्रपति नहीं बने हैं।
– श्रीमती प्रतिभा पाटिल (12वें राष्ट्रपति) प्रथम महिला राष्ट्रपति हैं। इनसे पूर्व तीन महिलाएँ मनोहर हाल्कर (1967), फुरचरण कौर 1969 एवं लक्ष्मी सहगल (2002) राष्ट्रपति पद का चुनाव लङ चुकी हैं परन्तु वे निर्वाचित नहीं हो पाई। राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल का जन्म स्थान जल गाँव (महाराष्ट्र) तथा ससुराल छोटी लोसल (सीकर-राजस्थान) है। इनके पति डाॅ. देवीसिंह शेखावत हैं। ये 8 नवम्बर, 2004 से 21 जून, 2007 तक राजस्थान की प्रथम महिला राज्यपाल रह चुकी हैं।
भारत रत्न से सम्मानित राष्ट्रपति – डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद, सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1954 में उपराष्ट्रपति पद पर रहते हुए), डाॅ. जाकिर हुसैन (उपराष्ट्रपति पद के दौरान), श्री वी.वी. गिरी (1975), ए.पी.जे. अब्दुल कलाम (1997) हैं।