आज के आर्टिकल में हम पाश्चात्य काव्यशास्त्री और दार्शनिक अरस्तु (Arstu) के बारे में पढेंगे ।
अरस्तु (Arstu)
⇒ अरस्तु का जन्म मकदूनिया के स्तगिरा नामक नगर में 384 ई. पू. में हुआ । अरस्तु के गुरु का नाम प्लेटो था ।
⇒ इन्हें पाश्चात्य काव्यशास्त्र का आधार माना जाता है।
काव्यशास्त्र पर इनकी दो प्रसिद्ध पुस्तकें है :
- भाषणशास्त्र
- काव्यशास्त्र
⇒ इन्होने दर्शन शास्त्र ,राजनीतिशास्त्र ,काव्यशास्त्र , भाषण शास्त्र , भौतिकशास्त्र ,जीवविज्ञान और मनोविज्ञान विषयों पर सैंकड़ों पुस्तकें लिखी ।
⇒ अरस्तु के ग्रंथों की संख्या 400 के आसपास बताई जाती है।
⇒ अपने काव्यशास्त्र संबंधी ग्रंथ ’पेरिपोइएतिकेस’ में अरस्तु ने काव्य के मौलिक सिद्धांतों का विवेचन किया है। 50 पृष्ठों का यह ग्रंथ छोटे-छोटे 26 अध्यायों में बँटा हुआ है। इस ग्रंथ की रचना का अनुमान 330 ई.पू. के आसपास लगाया जाता है।
⇒ अरस्तु कृत ’पेरिपोइएतिकेस’ (काव्यशास्त्र) में अध्याय 12 व 20 को बाद में जोङा गया।
⇒ ’पेरिपोइएतिकेस’ में आए महत्त्वपूर्ण यूनानी शब्द-
मिमेसिस (Imitation) – अनुकरण, कथार्सिस (Catharsis) – विरेचन, पेरिपेतेइआ (Reversal of the situation) – स्थिति-विपर्यय, अनग्नोरिसिस (Recognition) – अभिज्ञान, माइथास (Plat) – विरेचना, एथोस (Character) – चरित्र, पाथोस (Emotion) – भाव, प्राक्सिस (Action) – कार्यव्यापार।
⇒ ’तेखनेस रितोरिकेस’ नामक अपने भाषा शास्त्र के ग्रंथ में अरस्तु ने भाषा संबंधी विभिन्न प्रश्नों पर विचार किया है।
⇒ अरस्तु की कृति ’वसीयतनामा’ को दास-प्रथा से मुक्ति का घोषणा पत्र माना जाता है।
⇒ पहली बार कला और ललित कला के भेद को स्पष्ट करने का श्रेय अरस्तु को ही जाता है। इन्होंने ललित कला को एक स्वायत्त कला के रूप में घोषित किया।
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