भ्रमरगीत परम्परा (Bhramar Geet ) अब उस काव्य के लिए रूढ़ हो गया है जिसमें उद्धव-गोपी संवाद होता है। भ्रमरगीत का तात्पर्य उस उपालम्भ काव्य से हैं जिसमें नायक की निष्ठुरता एवं लम्पटता के साथ-साथ नायिका की मूक व्यथा, विरह वेदना का मार्मिक चित्रण करते हुए नायक के प्रति नायिका के उपालम्भों का चित्रण किया जाता है।
भ्रमरगीत परम्परा – Bhramar Geet Parampara
साहित्य में ’भ्रमर’ रसलोलुप नायक का प्रतीक माना जाता है। वह व्यभिचारी है जो किसी एक फूल का रसपान करने तक सीमित नहीं रहता अपितु, विविध पुष्पों का रसास्वादन करता है।
हिन्दी काव्य में भ्रमरगीत का मूलस्रोत, श्री मद्भागवत पुराण है जिसके दशम स्कंध के छियालीसवें एवं सैतालीसवें अध्याय में भ्रमरगीत प्रसंग है। श्रीकृष्ण गोपियों को छोङकर मथुरा चले गए और गोपियां विरह विकल हो गई। कृष्ण मथुरा में लोकहितकारी कार्यों में व्यस्त थे किन्तु उन्हें ब्रज की गोपियों की याद सताती रहती थी।
उन्होंने अपने अभिन्न मित्र उद्धव को संदेशवाहक बनाकर गोकुल भेजा। वहां गोपियों के साथ उनका वार्तालाप हुआ तभी एक भ्रमर वहां उङता हुआ आ गया।
गोपियों ने उस भ्रमर को प्रतीक बनाकर अन्योक्ति के माध्यम से उद्धव और कृष्ण पर जो व्यंग्य किए एवं उपालम्भ दिए उसी को ’भ्रमरगीत’ के नाम से जाना गया। भ्रमरगीत प्रसंग में निर्गुण का खण्डन, सगुण का मण्डन तथा ज्ञान एवं योग की तुलना में प्रेम और भक्ति को श्रेष्ठ ठहराया गया है।
ब्रजभाषा काव्य में भ्रमरगीत परम्परा के कई ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं। विद्वान इस परम्परा का प्रारम्भ मैथिल कोकिल विद्यापति के पदों से मानते हैं किन्तु विधिवत रूप में भ्रमरगीत परम्परा सूरदास से ही प्रारम्भ हुई।
भ्रमरगीत परम्परा के कुछ प्रमुख ग्रन्थ इस प्रकार हैं –
रचना | रचयिता | प्रमुख विशेषताएं |
1. भ्रमरगीत | सूरदास | 1. भागवत के दशम स्कन्ध पर आधारित 2. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने सूरसागर के इस भाग को ’भ्रमरगीतसार’ नाम से संकलित किया है 3. सूर की गोपियाँ भावुक अधिक हैं, तर्कशील कम |
2. भंवरगीत | नन्ददास | 1. इसमें दार्शनिकता का पुट है 2. गोपियाँ तर्कशील अधिक हैं 3. ग्रन्थ का बौद्धिक स्तर उच्चकोटि का है |
3. भ्रमरदूत | सत्य नारायण कविरत्न | 1. वात्सल्य वियोग का काव्य 2. युगीन समस्याओं का चित्रण 3. माता यशोदा को ’भारतमाता’ के रूप में चित्रित किया गया। 4. स्वदेश प्रेम, राष्ट्रीयता, स्त्री-शिक्षा का उल्लेख है |
4. प्रियप्रवास | अयोध्या सिंह उपाध्याय ’हरिऔध’ | 1. राधा लोकहितकारिणी में चित्रित है 2. राधा की परोपकारिता, विश्व बन्धुत्व, लोक कल्याण वृत्ति को चित्रित किया गया है |
5. उद्धवशतक | जगन्नाथ दास ’रत्नाकर’ | 1. भक्तिकालीन आख्यान एवं रीतिकालीन कलेवर का समन्वय 2. भाषा में चित्रोपमता 3. अनुभाव निबन्धन 4. उक्ति चातुर्य वर्णन कौशल में अद्वितीय |
हमें अच्छा से भ्रमरगीत परम्परा समझ में आया आपके कठिन परिश्रम से बनाई गयी pdf सूरदास जी भ्रमरगीत धन्यवाद ।
nice pdf es pdf se bhut achhe se taiyari ho rhi .thanku so much sir