Class 12 Hindi literature || कक्षा 12 हिंदी साहित्य मॉडल पेपर

कक्षा XII
विषय- हिंदी साहित्य

                                                                            मॉडल पेपर 

तैयारकर्ता- अभिनव सरोवा (व्याख्याता हिंदी राउमावि-पीथूसर, झुंझुनूं)
राकेश कुमार (व्याख्याता हिंदी राउमावि-सात्यूँ, चूरू)

इस प्रश्न पत्र को निम्न चार भागों में विभक्त किया गया है-

  • हिंदी साहित्य का आधुनिक काल।
  • काव्यांग परिचय
  • सरयू (पाठ्यपुस्तक)
  • मंदाकिनी (पाठ्यपुस्तक)

*हम इस पुस्तिका में सरल से कठिन के शिक्षण सूत्र पर चलेंगे।*

सत्र 2018-19 में बोर्ड परीक्षा में आ चुके प्रश्नों को दृष्टिगत रखते हुए अन्य प्रश्नों को आधार बनाकर इस पुस्तिका को तैयार किया गया है। हमें पूरा विश्वास है कि ये आपमें एक समझ पैदा करेगी और परीक्षा परिणाम में गुणात्मक और संख्यात्मक वृद्धि होगी। हमारे प्रयास की सफलता विद्यार्थियों के अध्ययन, चिंतन और मनन पर आधारित होगी। शुभकामनाओं सहित।

हिंदी साहित्य- ब्लूप्रिंट

इस प्रश्नपत्र को कुल 5 भागों में विभाजित किया गया है।

खंड-अ
हिंदी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास। अंकभार- 16

इस खंड में हिंदी साहित्य के इतिहास के आधुनिक काल से 4 प्रश्न आएँगे। इन चारों प्रश्नों के उत्तर सीमा 80-80 शब्द तथा अंक भार 4-4 होगा।

खंड-ब काव्यांग विवेचन। अंकभार 16

प्रश्न 5 यह प्रश्न काव्य-गुण से संबंधित होगा। इसकी उत्तर सीमा 10 शब्द अंक भार एक होगा।
प्रश्न 6 यह प्रश्न काव्य दोष से संबंधित होगा इसकी उत्तर सीमा 10 शब्द तथा अंक भार एक रहेगा।
प्रश्न 7 इस प्रश्न में मात्रिक छंद के बारे में पूछा जाएगा। दिए गए मात्रिक छंद की परिभाषा एवं उसका एक उदाहरण लिखना होगा। उत्तर सीमा 50 शब्द तथा अंक भर 3 होगा।
प्रश्न 8 में वार्णिक छंद से संबंधित प्रश्न होगा। किसी एक वार्णिक छंद की परिभाषा एवं उदाहरण लिखना है या दिए गए 2 छंदों में अंतर स्पष्ट करना है अर्थात दोनों की परिभाषा और दोनों के एक-एक उदाहरण लिखने होंगे। उत्तर सीमा 50 शब्द तथा उनका भार 3 रहेगा।
प्रश्न 9 में एक अलंकार की परिभाषा और उदाहरण पूछा जाएगा उत्तर सीमा 60 शब्द और अंक भार 4 होगा।
प्रश्न 10 में दो अलंकारों की परिभाषा एवं उदाहरण देते हुए अंतर स्पष्ट करना होगा उत्तर सीमा 80 शब्द अंकभार 4 रहेगा।

खंड-स अंकभार 32
प्रश्न 11 में सरयू पाठ्यपुस्तक के गद्य खंड से एक व्याख्या पूछी जाएगी। इसमें आंतरिक विकल्प मौजूद रहेगा। उत्तर सीमा 60 शब्द तथा अंकभार 3 रहेगा।
प्रश्न 12 सरयू पुस्तक के पद्य खंड से एक व्याख्या पूछी जाएगी। आंतरिक विकल्प मिलेगा। अंकभार 3 तथा उत्तर सीमा 80 शब्द होगी।
प्रश्न 13 में सरयू पुस्तक के गद्य खंड से एक के निबंधात्मक प्रश्न पूछा जाएगा। इसमें आंतरिक विकल्प भी दिया जाएगा। उत्तर सीमा 80 शब्द अंक हार 4 रहेगा।
प्रश्न 14 में सरयू के पद्य खंड से 1 निबंधात्मक प्रश्न पूछा जाएगा। उत्तर सीमा 80 शब्द अंक भार 4 रहेगा। आंतरिक विकल्प भी दिया जाएगा।

प्रश्न 15 और 16 यह दोनों प्रश्न सरयू के गद्य खंड से पूछे जाएँगे। उत्तर सीमा 60-60 शब्द और अंक भार 3-3 रहेगा।
प्रश्न 17 व 18 ये दोनों प्रश्न सरयू पुस्तक के पद्य खंड से पूछे जाएँगे। दोनों की उत्तर सीमा 60-60 शब्द तथा अंक भार 3-3 रहेगा।
प्रश्न 19 इस प्रश्न में किसी एक कवि अथवा एक लेखक के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में पूछा जाएगा। ध्यान देने की बात यह है कि एक गद्य खंड से होगा और एक पद्य खंड से। इसकी उत्तर सीमा 40 शब्द तथा अंकभार 2 रहेगा। दिए गए लेखक और कवि में से किसी एक का परिचय लिखना है।
प्रश्न 20 इस प्रश्न में सरयू के गद्य खंड से एक लघूत्तरात्मक प्रश्न पूछा जाएगा। जिसकी उत्तरसीमा 40 शब्द और अंकभार 2 रहेगा।
प्रश्न 21 में एक प्रश्न सरयू के पद्य खंड से एक प्रश्न पूछा जाएगा। उत्तर सीमा 40 शब्द और अंकभार 2 होगा।

खंड 5
पाठ्यपुस्तक- मंदाकिनी अंकभार 16

प्रश्न 22 यह प्रश्न मंदाकिनी पुस्तक से पूछा जाएगा। इस निबंधात्मक प्रश्न में आंतरिक विकल्प भी मौजूद रहेगा और इसकी उत्तर सीमा 80 शब्द और अंकभार 4 रहेगा।
प्रश्न संख्या 23, 24, 25 और 26 मंदाकिनी पुस्तक से पूछे जाएँगे। इन चारों प्रश्नों के उत्तर सीमा 60-60 शब्द तथा अंकभर 3-3 होगा।

खण्ड- ब
काव्यांग परिचय
1 काव्य गुण किसे कहते हैं?
उत्तर- काव्य में ओज, प्रवाह, चमत्कार और प्रभाव उत्पन्न करने वाले तत्त्व काव्य-गुण कहलाते हैं।
2 काव्य-गुण कितने होते हैं? नाम लिखिए।
उत्तर- काव्य-गुण तीन होते हैं। प्रसाद गुण, माधुर्य गुण और ओज गुण।
3 माधुर्य गुण की परिभाषा लिखिए।
उत्तर- जिस काव्य रचना को पढ़ने/सुनने से पाठक/श्रोता का चित्त प्रसन्नता से प्रफुल्लित हो जाता है वहाँ माधुर्य गुण माना जाता है।
अथवा
जिस काव्य रचना से चित्त आह्लाद से द्रवित हो जाए, उस काव्य-गुण को माधुर्य गुण कहते हैं।
4 प्रसाद गुण की परिभाषा लिखिए।
उत्तर- जिस काव्य रचना को सुनते ही अर्थ समझ में आ जाए, वहाँ प्रसाद गुण माना जाता है।
5 प्रसाद गुण किन-किन रसों में प्रयुक्त होता है?
उत्तर- वैसे तो सभी रसों में प्रयुक्त होता है किंतु करुण, हास्य, शांत और वात्सल्य रस में मुख्यतः प्रयुक्त होता है।
6 माधुर्य गुण किन रसों में प्रयुक्त होता है?
उत्तर- शृंगार, शांत और करुण रस में प्रयुक्त होता है।

7 काव्य-दोष किसे कहते हैं?
उत्तर- काव्य के अर्थ को समझने में बाधक तत्त्वों को काव्य-दोष कहते हैं।
अथवा
काव्य की रसानुभूति में बाधक तत्त्वों को काव्य-दोष कहते हैं।
8 च्युत संस्कृति दोष किसे कहते हैं?
जब किसी शब्द के प्रयोग से व्याकरण संबंधी विकार पैदा हो और भाषा की गरिमा कम हो जाए, वहाँ च्युत संस्कृति दोष माना जाता है।
9 श्रुतिकटुत्व दोष किसे कहते हैं?
उत्तर- कोमल रसों के वर्णन में कठोर वर्णों के प्रयोग से श्रुतिकटुत्व दोष उत्पन्न होता है।
अथवा
जब किसी काव्य को पढ़ने-सुनने से कटुता या कड़वाहट पैदा होती है,वहाँ श्रुतिकटुत्व दोष माना जाता है।
10 ग्रामयत्व दोष की परिभाषा लिखिए।
उत्तर- ग्रामीण एवं बोलचाल की भाषा से युक्त काव्य में ग्रामयत्व दोष माना जाता है।
11 दुष्क्रमत्व दोष की परिभाषा लिखिए।
नोट- दुस् उपसर्ग विपरीत के अर्थ में प्रयुक्त होता है।
उत्तर- परिभाषा- जब किसी काव्य में शास्त्रों अथवा परंपरा में वर्णित क्रम के विपरीत वर्णन हो वहाँ दुष्क्रमत्व दोष माना जाता है।
12 अक्रमत्व दोष की परिभाषा लिखिए।
नोट- अ उपसर्ग नहीं के अर्थ में प्रयुक्त होता है। अतः क्रम नहीं।
उत्तर- परिभाषा- जब वाक्य में शब्दों का क्रम ठीक न हो, वहाँ अक्रमत्व दोष माना जाता है।
अर्थात पहले लिखे जाने के शब्द को बाद में और बाद में लिखे जाने वाले शब्द को पहले लिखा गया हो तो वहाँ अक्रमत्व दोष माना जाता है।
12 अप्रतीत्व दोष की परिभाषा लिखिए।
नोट- अ का अर्थ नहीं। अर्थात जो प्रथमदृष्टया प्रतीत नहीं हो रहा हो।
उत्तर- प्रचलित अर्थ के स्थान पर साहित्यिक अर्थ के आधार पर अर्थग्रहण किया जाता है वहाँ अप्रतीत्व दोष माना जाता है।
(विषमय यह गोदावरी, अमृतन को फल देत।)
(विष- प्रचलित अर्थ- जहर, साहित्यिक/शब्दकोशीय अर्थ- जल)

पाठ्यपुस्तक सरयू से लघूरात्त्मक प्रश्न और उनके जवाब-
पाठ- गुल्ली-डंडा
लेखक- प्रेमचंद (मूल नाम- धनपतराय)
20 गया का मित्र या कथानायक बड़ा होकर किस पद पर पहुँचता है?
उत्तर- कथानायक बड़ा होकर जिला इंजीनियर के पद पर नियुक्त होता है।
21 गया बड़ा होकर क्या बनता है?
उत्तर- गया बड़ा होकर डिप्टी साहब का साइस बनता है।
22 गया के व्यक्तित्व की तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- (अ) गया गरीब पारिवारिक लंबा,पतला और काला-सा लड़का था।
(ब) गया गुल्ली-डंडे का कुशल खिलाड़ी था।
(स) गया समझदार था। वह कथानायक का आदर करता था। जबकि वो ये भी जानता था कि वह खेल में बेईमानी कर रहा है।
23 गुल्ली-डंडे को खेलों का राजा क्यों कहा जाता है?
उत्तर- गुल्ली-डंडा नामक खेल के सामान अन्य खेलों की भाँति महँगे नहीं होते हैं। किसी भी पेड़ की टहनी काटकर गुल्ली और डंडा बनाया जा सकता है और इसके लिए किसी प्रकार के कोर्ट,लॉन, नेट या थापी की जरूरत नहीं पड़ती। टीम के लिए ज्यादा खिलाड़ियों की जरूरत भी नहीं होती। दो लोग भी इसे खेल सकते हैं। इन्हीं सब खूबियों के कारण गुल्ली-डंडा खेलों का राजा माना जाता है।
24 कथानायक और गया के बीच स्मृतियाँ सजीव होने में कौनसी बात बाधक बनती है और क्यों?
उत्तर- कथानायक का बड़े पद पर नियुक्त होना और गया का एक साइस होना अर्थात पद और प्रतिष्ठा ही इन दोनों के बीच की स्मृतियों के सजीव होने में बाधक बनती है। गया को जब पता चलता है कि उसका बचपन का मित्र अब जिला इंजीनियर बन गया है तो वह समझ जाता है कि अब उनमें बचपन की सी समानता नहीं रही। इसी कारण वह कथानायक का आदर करता है। बस यही बात उनकी स्मृतियों को सजीव होने में बाधक बनती है।
25 ‘कुछ ऐसी मिठास थी उसमें कि आज तक उससे मन मीठा होता रहता है’ इस कथन में लेखक किस मिठास की बात कर रहा है?
उत्तर- बचपन में लेखक गया के साथ गुल्ली-डंडा खेल रहा था। लेखक बिना दाँव दिए ही घर जाना चाहता था जबकि गया उसे बिना दाँव के घर जाने नहीं देना चाहता था। इसी बात पर दोनों में झगड़ा होता है और गया ने कथानायक की पीठ पर डंडा मारा था। लेखक ने डंडे की उसी मार को मीठी याद बताया है। लेखक कहता है कि उसमें जो मिठास थी वो उच्च पद, प्रतिष्ठा और धन में भी नहीं है।
26 ‘वह बड़ा हो गया और मैं छोटा’ लेखक को ऐसा अनुभव कब और क्यों हुआ?
उत्तर- लेखक ने देखा कि भीमताल में खेलते समय गया कुछ अनमना था। वह पूरी कुशलता के साथ नहीं खेल रहा था। वह कथानायक की बेईमानियों का विरोध भी नहीं कर रहा था। वास्तव में वह खेल नहीं रहा था बल्कि खेल का बहाना करके लेखक को खिला रहा था। लेखक का मानना था कि इसका कारण दोनों के पद, प्रतिष्ठा और आर्थिक स्थिति में अंतर होना था। गया लेखक को अपनी जोड़ का खिलाड़ी नहीं मान रहा था। जबकि दूसरे दिन उसने बहुत ही शानदार खेल दिखाया था। बस यही कारण था कि लेखक के मुँह से अनायास ही निकल गया कि वह बड़ा हो गया और मैं छोटा।
27 ‘गुल्ली-डंडा’ कहानी के आधार पर प्रेमचंद की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर- ‘गुल्ली-डंडा’ कहानी के लिए प्रेमचंद ने सरल और विषयानुकूल भाषा का चयन किया है। उनकी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्द हैं तो उर्दू के शब्द भी हैं और बोलचाल भी भाषा के शब्द भी शामिल हैं। मुहावरों का भी सुंदर और प्रभावी प्रयोग किया गया है। इस कारण भाषा में एक प्रवाह बन पड़ा है। शैली वर्णनात्मक तो है ही साथ ही प्रसंग के अनुसार विवेचनात्मक, विचारात्मक और व्यंग्यात्मक भी है।
28 लेखक के अनुसार बच्च्चों में ऐसी कौनसी शक्ति होती है जो बड़ों में नहीं होती?
उत्तर- लेखक के अनुसार बच्चों में मिथ्या(झूठ) को सत्य मानने की शक्ति होती है जो बड़ों में नहीं होती है। बड़े तो सत्य को भी मिथ्या बना देते हैं जबकि बच्चे मिथ्या को सत्य बना लेते हैं। इसी कारण अपने पिता का तबादला होने पर वह अपने साथियों से कहता है कि अब वह शहर जा रहा है। वहाँ आसमान छूते ऊँचे मकान हैं। स्कूल में मास्टर बच्चों को मारे तो उसे जेल जाना पड़ता है। हालांकि वह झूठ बोल रहा था लेकिन उसके दोस्त उसकी बातों को सत्य मान रहे थे।
पाठ- मिठाई वाला
लेखक- भगवती प्रसाद वाजपेयी
29 मिठाई वाला कहानी में किन-किन रूपों में आया था?
उत्तर- मिठाई वाला निम्न तीन रूपों में आया था- खिलौने वाला, मुरली वाला और मिठाई वाले के रूप में।
30 मिठाई वाला कहानी की मूल संवेदना क्या है?
उत्तर- ये एक युवा की कहानी है जिसके दो बच्चों का देहांत समय से पहले हो जाता है। इससे उसके मन मे भारी पीड़ा उत्पन्न होती है। इसी पीड़ा को कम करने के लिए वह बच्चों के बीच अपना समय व्यतीत करता है। वह खिलौनों,मुरली और मिठाई से उनको खुश करने का प्रयास करता है। इससे उसे भी खुशी और संतोष की प्राप्ति होती है। कहानी की मूल संवेदना भी यही है कि हम अपने व्यवहार और वाणी से किसी को खुशी देकर खुद भी खुश हो सकते हैं। प्रेम और खुशी बाँटकर ही व्यक्ति खुश हो सकता है और अपने दुःख या अभाव को भूला सकता है।

31 ‘पेट जो न कराए सो थोड़ा’ इस कथन से कौनसा मनोभाव प्रकट होता है?
उत्तर- रोहिणी अपने घर से मुरली वाले कि बात सुन रही थी। वह बड़े प्यार से और सस्ते भाव से बच्चों को चीजें बेच रहा था। उसे वह भला आदमी लगा। फिर वह सोचती है कि समय का फेर है। बेचारे को अपना पेट भरने के लिए ये सब करना पड़ रहा है। पेट जो न करवाए, सो थोड़ा। इस कथन से रोहिणी का मुरली वाले के प्रति दया और सहानुभूति के मनोभाव प्रकट होते हैं।
32 मिठाई वाले ने अपनी मिठाई की क्या-क्या विशेषताएँ बताईं?
उत्तर- मिठाई वाले ने बताया कि उसकी मिठाइयाँ नई तरह की हैं। वे रंग-बिरंगी कुछ खट्टी, कुछ मीठी तथा जायकेदार हैं। वे मुँह में जल्दी नहीं घूलती। उनमें से कुछ चपटी कुछ गोल और कुछ पहलदार हैं बच्चे इनको बड़े चाव से चूसते हैं और इनसे खाँसी भी दूर होती है।
33 मुरली वाला एकदम अप्रतिभ क्यों हो गया?
उत्तर- जब विजय बाबू मुरली वाले से मुरली का मोलभाव करते हैं तो वह उसे कहते हैं कि तुम लोगों की झूठ बोलने की आदत होती है। मुरली तो सभी को दो-दो पैसे में ही दे रहे हैं परंतु एहसान का बोझ मेरे ऊपर लाद रहे हैं। विजय बाबू की इस प्रकार की कठोर और अविश्वास से भरी बात सुनकर मुरलीवाला उदास और अप्रतिभ हो जाता है क्योंकि वह बच्चों की खुशी पाने के लिए चीजें सस्ती बेच रहा था। धन कमाना उसका उद्देश्य नहीं था।
34 मिठाईवाला कहानी के आधार पर समझाइए कि मनुष्य अपने जीवन के अभाव की पूर्ति स्वयं को विश्व से जोड़कर कर सकता है तथा सुख संतोष पूर्ण जीवन जी सकता है।
उत्तर- मिठाईवाला पंडित भगवती प्रसाद वाजपेयी की एक उद्देश्यपूर्ण कहानी है। मानव जीवन में अभाव तथा कष्टों का आना स्वाभाविक है। कुछ लोग अपना अभावग्रस्त जीवन अन्य अभावों के बारे में सोचते-सोचते और दुःख सहते हुए बिताते हैं। समझदार लोग दूसरों के अभाव, पीड़ा, रोग आदि से मुक्त करके अपने अभाव को भूल जाते हैं। वे खुद को संसार से जोड़ देते हैं तथा दूसरों के सुख-दु:ख में सहभागी बनते हैं। इस प्रकार उनके अपने अभाव महत्त्वहीन हो जाते हैं। उल्टे दूसरों को सुख और संतोष पहुंचाकर वे स्वयं भी सुखी और संतुष्ट होते हैं। मिठाईवाला अपने बच्चों को सभी बच्चों में देखता है उनको प्रसन्नता देकर उसे भी सुख मिलता है वह उनको खुशी से उछलता-कूदता देखकर, उनकी तोतली बातें सुनकर सुखी और संतुष्ट होता है और खुद के बच्चों के बिछोह की पीड़ा को भूल जाता है। कहानीकार को यह बताने में सफलता मिली है कि मनुष्य अपने जीवन के अभाव और संकटों से मुक्ति पा सकता है यदि वह स्वयं को समाज से जोड़ दें और दूसरों के सुख में ही अपना सुख खोजे।
पाठ- भारतीय संस्कृति
लेखक- बाबू गुलाब राय
35 संस्कृति शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर- संस्कृति शब्द का अर्थ होता है- संसोधन करना, परिष्कार करना तथा उत्तम बनाना।
36 संस्कृति के कितने पक्ष हैं?
उत्तर- संस्कृति के दो पक्ष हैं- एक बाह्य तथा दूसरा आंतरिक पक्ष।
37 साधना के मार्ग में किन तीन गुणों को महत्ता प्रदान की गई है?
उत्तर- साधना के मार्ग में जिन तीन गुणों को महत्ता प्रदान की गई है वे निम्न हैं- पहला तप त्याग और संयम। बौद्ध, जैन तथा वैष्णव सभी धर्मों में साधना के लिए इन गुणों को आवश्यक माना गया है इन गुणों के अभाव से साधना में सफलता संभव नहीं है।
38- भारतीय तथा पाश्चात्य दर्शन में प्रमुख अंतर क्या है?
उत्तर- भारतीय दर्शन में आध्यात्मिकता मन और बुद्धि से परे है। उसमें आत्मा का साक्षात अनुभव करने की लालसा है। आत्मा का साक्षात्कार ही भारतीय दर्शन का लक्ष्य है। पाश्चात्य दर्शन में आध्यात्मिकता केवल बौद्धिक तर्क-वितर्क और विचारों तक ही सीमित है।
39 भारत में किस प्रकार के नाटकों का निषेध है और क्यों?
उत्तर- भारत में शोकान्त नाटकों का निषेध है क्योंकि भारतीय संस्कृति में आनंद की भावना को प्रधानता दी गई है।
40 ‘जातीय संस्कारों को ही संस्कृति कहते हैं’ लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर- संस्कृति समूहवाचक शब्द है। जाति भी समूह को ही कहते हैं। जलवायु आदि के अनुकूल रहन-सहन की विधियाँ और विचार-परंपराएं जब जाति के लोगों में जड़ जमा लेती है तो जातिगत संस्कार बन जाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को संस्कार अपने पूर्वजों से प्राप्त होते हैं तथा उसके घरेलू और सामाजिक जीवन में दिखाई देते हैं। इसी को जातीय संस्कृति कहा गया है।
41 भारतीय संस्कृति में किन चार प्रमुख गुणों को महत्ता प्रदान की गई है?
अथवा
‘अहिंसा, करुणा, मैत्री और विनय’ नामक गुणों को भारतीय संस्कृति के मुख्य अंगों में स्थान देने का क्या कारण है? ‘भारतीय संस्कृति’ पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर- भारतीय संस्कृति में अहिंसा, करुणा, मैत्री और विनय को महत्त्वपूर्ण माना गया है।
करुणा छोटों के प्रति, मैत्री बराबर वालों के प्रति तथा विनय बड़ों के प्रति होती है। भारतीय संस्कृति ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ सामने रखकर विकसित हुई है। इसी कारण इसके मुख्य अंगो में अहिंसा, करुणा, मैत्री और विनय को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। मन, वचन और कर्म किसी से भी किसी को कष्ट ने पहुंचना ही अहिंसा है। हिंसा असभ्यता की परिचायक है। अहिंसा की साधना के लिए करुणा आवश्यक है। मन में सभी जीवों के प्रति दया की भावना रखने वाला ही अहिंसक हो सकता है। सब के प्रति मैत्री भाव और विनय शीलता से ही अहिंसा के पालन में सहायता मिलती है इसी कारण उपर्युक्त 4 गुणों को भारतीय संस्कृति का प्रमुख अंग माना गया है।
42. हमारे किन कार्यों और व्यवहार में भारतीय संस्कृति परिलक्षित होती है?

उत्तर- हमारा रहन-सहन, पोशाक आदि बातें संस्कृति का बाहरी स्वरूप हैं। भारत में घूमने पर बैठना, हाथ से खाना खाना, स्नान करने के बाद खाना खाना, ढीले लंबे और बेसीले कपड़े पहनना जैसे धोती आदि अधिक प्रचलित हैं। भारत एक गर्म देश है। अतः भूमि का स्पर्श बुरा नहीं लगता। जमीन पर बैठा या लेटा जा सकता है। हमें तथा हर स्थान पर जूते पहनना और अधिक कसे वस्त्र पहनना भी जरुरी नहीं है। हाथ धोने में असुविधा नहीं होती। अतः हाथ से खाने का रिवाज है। अन्न को हमारे यहाँ देवता माना जाता है। उससे सीधा संपर्क अधिक सुखदायक और स्वाभाविक माना जाता है। भारत में नहाना धर्म का अंग है। यहाँ पानी की कमी नहीं है और नहाने के आवश्कता भी अधिक होती है। हमारे इन सभी कार्य-व्यवहार में भारतीय संस्कृति परिलक्षित होती है।
43 ‘भारतवर्ष पर प्रकृति की विशेष कृपा रही है’ इस कथन के आधार पर भारत के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर- भारत प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ ऋतुएँ समय पर आती हैं और फल-फूलों को पैदा करती हैं। धूप और वर्षा यथा समय होने के कारण धरती शस्य-श्यामला अर्थात हरी-भरी बनी रहती है। पर्वतों का राजा हिमालय कवियों को प्रेरणा देता है। यहाँ की नदियाँ मोक्ष प्रदान करने वाली मानी जाती है। कृत्रिम धूप और प्रकाश की यहाँ जरूरत नहीं पड़ती। यहाँ की ऋषि वन में रहते हैं। सूर्य और चंद्र का दर्शन शुभ माना जाता है। वृक्षों को पानी देना पुण्य माना जाता है। पशु-पक्षी,पेड़-पौधे जीवन के अभिन्न अंग माने जाते हैं।
44 ‘किरी और कुंजर में एक ही आत्मा का विस्तार देखा जाता है’ कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- छोटे कीट तथा विशाल हाथ में एक ही आत्मा विद्यमान रहती है। इस दृष्टि से दोनों समान है। ज्ञानी पुरुष इन दोनों में कोई भेद नहीं करते। वे सभी प्राणियों को अपने समान तथा एक जैसा समझते हैं। इसी से गाँधीजी की सर्वोदय की भावना का जन्म हुआ। पंडित लोग सभी प्राणियों को समान मानकर उनकी हित कामना करने वाले होते हैं।
45 नश्वर शरीर और यश शरीर का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- नश्वर शरीर पंचभूत अर्थात पृथ्वी, जल, अग्नि,वायु और आकाश से निर्मित भौतिक शरीर को ही नश्वर शरीर कहा जाता है यह नाशवान होता है। भारतीय संस्कृति में इसका मोह न करने का उपदेश दिया गया है। यश शरीर से तात्पर्य है कि शिष्ट पुरुष यशस्वी होकर जीना चाहता है। वह अपने अच्छे कार्यों के कारण अपनी मृत्यु की पश्चात भी जीवित रहता है। उनका यश कभी नहीं मरता है इसलिए यश शरीर को नश्वर शरीर पर प्रधानता दी गई है।
46 भारतीय संस्कृति के प्रमुख अंगों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर- भारतीय संस्कृति के प्रमुख अंग निम्न हैं-
(अ) आध्यात्मिकता- इसके अंतर्गत नश्वर शरीर का तिरस्कार, परलोक, सत्य, अहिंसा, तप, आवागमन की भावना तथा ईश्वर न्याय में विश्वास तप, त्याग तथा संयम। सभी जीवों को अपने समान मानना तथा सबका हित चाहना आदि बातें शामिल हैं।
(ब) समन्वय की भावना- भारतीय संस्कृति में समन्वय के द्वारा विभिन्न संस्कृति मिल चुकी हक़ीन। तुलसीदास ने ज्ञान, भक्ति, शैव, वैष्णव, द्वैत तथा विशिष्टाद्वैत का समन्वय किया है।
(स) वर्णाश्रम को मान्यता- भारतीय संस्कृति में कार्य विभाजन के लिए चार वर्णों तथा चार आश्रम में मानव जीवन तथा समाज का विभाजन किया गया है।
(द) अहिंसा, करुणा, मैत्री और विनय- करुणा छोटों के प्रति, मैत्री बराबर वालों की प्रति तथा विनय बड़ों के प्रति होती है। इन सबके मूल में अहिंसा की भावना होती है। विनम्रता को विद्या से भी श्रेष्ठ माना गया है।
(य) अन्य- भारतीय संस्कृति में अतिथि सत्कार, प्रकृति-प्रेम तथा आनंद की भावना को महत्त्व प्रदान किया जाता है।
पाठ-शिरीष के फूल
लेखक-हजारी प्रसाद द्विवेदी
प्रश्न- ‘धरित्री निर्धूम अग्निकुंड बनी हुई थी’ पंक्ति से क्या आशय है?
उत्तर- आशय यह है कि धरती किसी अग्निकुंड की तरह तप रही थी बस उसमें से धुँआ नहीं निकल रहा था।
प्रश्न- शिरीष का फूल संस्कृत साहित्य में कैसा माना गया है?
उत्तर- शिरीष का फूल संस्कृत साहित्य में अत्यंत कोमल माना गया है।
प्रश्न- लेखक ने शिरीष के फूल को कालजयी अवधूत की तरह क्यों बताया है?
उत्तर- अवधूत अनासक्त होता है वह संसार के सुख-दुःख में समरस होकर जीता है। इसी कारण वह काल को जीतने में समर्थ होता है शिरीष का फूल भी ऐसा ही है। जब चारों ओर भीषण गर्मी पड़ती है लू के थपेड़े लगते हैं। धरती निर्धूम अग्निकुंड बन जाती है तब भी शिरीष हरा-भरा और फूलों से लदा रहता है। जब कोई फूल खिलने का साहस नहीं करता उस समय भी फूलों से लदा रहता है।
प्रश्न- काल के कोड़ों की मार से कौन बच सकता है?
उत्तर- काल देवता अर्थात मृत्यु निरंतर कोड़े चला रहा है। कुछ लोग समझते हैं कि वे जहां है वही बने रहे तो काल देवता की आंख से बच जाएंगे। ऐसे लोग भोले और अज्ञानी होते हैं। जो बचना चाहते हैं उनको निरंतर गतिशील रहना चाहिए एक ही स्थान पर जमे नहीं कि गए नहीं। इससे तात्पर्य यह है कि निरंतर कर्मरत और प्रगतिशील रहना ही काल की मार से बचने के लिए जरूरी है।
प्रश्न- शिरीष के फूल द्विवेदी जी का एक संदेशपरक निबंध है। इसमें लेखक ने जो संदेश दिया है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- शिरीष के फूल हजारी प्रसाद द्विवेदी की एक उद्देश्यपरक निबंधात्मक रचना है। इसमें लेखक ने बताया है कि विपरीत परिस्थितियों में रहकर भी शांत और एक सुखद जीवन जिया जा सकता है। लेखक जब शिरीष को देखता है तो विस्मयपूर्ण आनंद से भर जाता है। भीषण गर्मी में भी शिरीष हरे-हरे पत्तों और फूलों से लद जाता है। लेखक को लगता है कि वह कठिन परिस्थितियों से अप्रभावित अवधूत है। मनुष्य के भी जीवन में कठिनाइयां आती है किंतु उन से अप्रभावित रहकर अपने कर्तव्यपथ पर दृढ़ता से चलना चाहिए।
लेखक ये संदेश देता है कि मनुष्य जीवन के चरम सत्य को समझे। संसार परिवर्तनशील है। वृद्धावस्था तथा मृत्यु अनिवारणीय है। जो किसी पद पर अधिकार प्राप्त जन है उनको पद, अधिकार और धन लिप्सा से मुक्त रहना चाहिए। शिरीष समदर्शी तथा अनासक्त है। गांधी जी अनासक्त कर्मयोगी थे। कालिदास योगी के समान विरक्त किंतु विदग्ध प्रेमी थे। कबीर मस्तमौला थे। मनुष्य को इसी प्रकार का अनासक्त जीवन जीना चाहिए।
प्रश्न- शिरीष के पुराने फलों को देखकर लेखक को किन की ओर क्यों याद आती है?
उत्तर- शिरीष के फूल बहुत मजबूत होते हैं। वे नए फूल आ जाने पर भी वे अपना स्थान नहीं छोड़ते जब तक कि नए पत्ते और फल मिलकर उनको वहां से हटा न दें। पुराने लड़खड़ाते फलों को देखकर लेखक को भारत के उन बूढ़े नेताओं की याद आती है जो युवा पीढ़ी को काम करने तथा आगे बढ़ने का अवसर नहीं देते तथा अपनी मृत्यु तक अपने पद पर बने रहना चाहते हैं। इन नेताओं और शिरीष के पुराने फलों का स्वभाव एक जैसा है इसलिए लेखक को इनकी याद आ जाती है।
प्रश्न- हाय वह अवधूत आज कहाँ है? लेखक ने अवधूत किसे कहा है? आज उसकी आवशकता लेख को क्यों महसूस हो रही है?
उत्तर- हाय वह अवधूत आज कहाँ है? द्विवेदी जी महात्मा गांधी को अवधूत कह रहे हैं तथा उन को स्मरण कर रहे हैं। गांधीजी शिरीष की तरह अनासक्त थे। उस समय विश्व में सर्वत्र हिंसा तथा अन्याय, अत्याचार तथा शोषण फैला हुआ था। उस सबसे अविचलित महात्मा गांधी सत्य और अहिंसा के मतंग पर दृढ़ता से चल रहे थे। आज भी भारत और विश्व के अन्य देशों में उपद्रव, मारकाट, खून खराबा व लूटपाट का वातावरण है। आतंकवाद विश्व की सभी देशो में फैल चुका है। धर्म के नाम पर दूसरे धर्म को मानने वाले लोगों की हत्या हो रही हैं। प्रेम और सद्भाव नष्ट किया जा रहा है। विश्व को इस वातावरण से मुक्ति दिलाने में महात्मा गांधी ही समर्थ हो सकते हैं।अतः लेखक को गांधी जी की याद आ रही है। उसका मन उनकी अनुपस्थिति को लेकर व्याकुल है उसमें एक पीर, एक टीस उठ रही है। हाय अहिंसा का वह अग्रदूत आज नहीं रहा। काश आज गांधी होते तो लोगों से कहते- तुम मनुष्य हो, उसी एक परमपिता की संतान हो क्यों। एक दूसरी की जान ले रहे हो? जिसे तुम धर्म समझ रहे हो वह धर्म नहीं है। धर्म तो मनुष्य से प्रेम करना तथा उसकी पूजा करना है। गांधी आज भी प्रासंगिक है वह लेखक को याद आ रहे हैं।

पाठ-पाजेब
लेखक-जैनेंद्र (मूल नाम- आनंदीलाल)
प्रश्न- जैनेंद्र किस प्रकार के कथाकार के रूप में प्रसिद्ध हैं?
उत्तर- जैनेंद्र मनोवैज्ञानिक कथाकार के रूप में प्रसिद्ध हैं।
प्रश्न- आशुतोष निरपराध होते हुए भी पाजेब चुराने की बात क्यों स्वीकार कर लेता है?
उत्तर- आशुतोष ने पायल नहीं चुराई थी किंतु वह उसकी चोरी करना स्वीकार कर लेता है क्योंकि वह अबोध बच्चा था। उसकी बुद्धि अविकसित थी वह तर्कपूर्ण ढंग से अपनी बात नहीं रख पाया। पिता के प्रभाव, स्नेह, भय तथा प्रलोभन आदि के कारण वह सही बात नहीं कर पाया। जो कुछ उसके पिता कहलवाना चाहते थे वह वही कह देता था। वह दृढ़तापूर्वक अपनी बात नहीं रख पाया कि उसने चोरी नहीं की थी।
प्रश्न- मैंने स्थिर किया कि अपराध के प्रति करुणा ही होनी चाहिए रोष का अधिकार नहीं है लेखक के इस निश्चय का क्या कारण था? क्या आप इससे सहमत हैं अथवा नहीं?
उत्तर- लेखक को संदेह हुआ कि आशुतोष ने पाजेब चुराई है अपराध स्वीकृति के लिए उस पर बल प्रयोग को उसने उचित नहीं माना। उसका मत है कि क्रोध करने से बात बिगड़ जाती है। अपराधी में विशेष रूप से यदि वह बच्चा हो तो जिद्द तथा विरोध की भावना पनप जाती है। इसके विपरीत करुणापूर्ण व्यवहार करने से वह अपने अपराध को आसानी से स्वीकार कर लेता है। हम इससे सहमत हैं यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है
प्रश्न- पाजेब कहानी बाल मनोविज्ञान पर आधारित कहानी है। कथन की समीक्षा कीजिए
उत्तर- बालकों के मन की विशेषता बताने वाले ज्ञान को बाल मनोविज्ञान कहते हैं। बच्चे मन से भोले और सरल होते हैं। उनकी बुद्धि अविकसित एवं कोमल होती है। वे टेढ़े-मेढ़े तर्कों को नहीं समझ पाते। उनकी बुद्धि तर्कपूर्ण भी नहीं होती। घुमा-फिरा कर पूछे गई टेढ़े-मेढ़े प्रश्नों से वे भ्रमित हो जाते हैं तथा सत्य क्या है यह ठीक तरह से बता नहीं पाते। इस तरह से निरपराध होने पर भी अपराधी बना दिए जाते हैं, जो उनके लिए एक भयानक त्रासदी होती है।
पाजेब कहानी की कथावस्तु तथा पात्रों का चरित्र बाल-मनोविज्ञान पर आधारित है। आरंभ मुन्नी तथा उसके भाई आशुतोष के बालहठ से होता है। बाद में कथानक का विकास पाजेब के खोने तथा उसके बारे में आशुतोष के साथ पूछताछ करने से हुआ है। कोमल मन का बालक अपने पिता के तर्कपूर्ण तथा घुमा-फिराकर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाता है और चोरी करना स्वीकार कर लेता है।
कहानी के पात्रों का चरित्र चित्रण भी मनोविज्ञान के अनुरूप ही हुआ है आशुतोष का चरित्र बाल मनोविज्ञान का सजीव चित्र है इसे प्रभावशाली बनाने में बाल मनोविज्ञान का गहरा योगदान है।
प्रश्न- लेखक के अनुसार अपराध प्रवृत्ति को किस प्रकार जीता जा सकता है?
उत्तर- लेखक का मानना है कि अपराध की प्रवृत्ति को दंड से नहीं बदला जा सकता। अपराध के प्रति करुणा होनी चाहिए रोष नहीं। अपराध की प्रवृत्ति अपराधी के साथ प्रेम का व्यवहार करने से ही दूर हो सकती है उसको आतंक से दबाना ठीक बात नहीं है। बालक का स्वभाव कोमल होता है अतः उसके साथ स्नेह का व्यवहार होना चाहिए।
पाठ- अलोपी
लेखिका- महादेवी वर्मा
प्रश्न- अलोपी पाठ किस गद्य-विधा की रचना है?
उत्तर- अलोपी संस्मरण गद्य-विधा की रचना है।
प्रश्न- अलोपी के चक्षु के अभाव की पूर्ति किसने की?
उत्तर- अलोपी के चक्षु के अभाव की पूर्ति उसकी रचना अर्थात जीभ ने की।
प्रश्न- ‘आज के पुरुष का पुरुषार्थ विलाप है’ लेखिका ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर- लेखिका ने महसूस किया कि आज का पुरुष कर्तव्यनिष्ठ तथा परिश्रमी नहीं है वह श्रमपूर्वक कठोर जीवन न बिताकर अपनी निराशा और अभावों की शिकायतें करता रहता है। वह हर समय अपने दुर्भाग्य का रोना रोता रहता है। आधुनिक पुरुष की ऐसी अवस्था देखकर महादेवी ने रोने पीटने को ही उसका पुरुषार्थ बताया है।
प्रश्न- ‘गिरा अनयन नयन बिनु बानी’ लेखिका इन शब्दों को किस संदर्भ में ठीक मानती है?
उत्तर- महादेवी ने नेत्रहीन अलोपी को छात्रावास में ताजा सब्जी लाने का काम सौंपा था। अलोपी नेत्रहीन था किंतु उसको वाणी का वैभव प्राप्त था। वह बालक रघु के मार्गदर्शन में नित्य छात्रावास आता था। ये दोनों छात्रावास में विनोद के केंद्र बन गए थे। धीरे-धीरे अलोपी उन सबका सबका प्रिय बन गया था। इसलिए छात्रावास के माहौल को देखकर ऐसा कहा जा सकता है कि गिरा अनयन नयन बिनु बानी। गिरा बताने का काम करती है परन्तु उसके आँख नहीं होती।इसलिए उसने कुछ देखा नहीं और नयन बिनु बानी अर्थात आँखे देख तो लेती हैं लेकिन वह बता नहीं पाती क्योंकि उनके वाणी नहीं है।
प्रश्न- यह सत्य होने पर भी कल्पना जैसा जान पड़ता है इस कथन में कौन से सत्य का उल्लेख है जो कल्पना जैसा जान पड़ता है?
उत्तर- अलोपी साहसी, पराक्रमी व कठोर परिश्रमी था। वह सब्जियों से भरी भारी डलिया सिर पर उठाकर संतुलन बनाकर चल लेता था। जब उसकी पत्नी उसको धोखा देकर चली गई तो अलोपी को गहरा आघात लगा। उसका सब साहस, संपूर्ण विश्वास तथा समस्त आत्मविश्वास को संसार का एक विश्वासघात निकल गया था यह बात सत्य है किंतु कल्पना के समान लगती है।
प्रश्न- ऐसे आश्चर्य से मेरा कभी साक्षात नहीं हुआ था महादेवी को अलोपी के बारे में क्या अपूर्व, आश्चर्यजनक लगा था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- अलोपी नेत्रहीन युवक था उसने महादेवी को विश्वास दिलाया कि वह रघु की सहायता से उनके यहाँ ताजा तरकारियाँ पहुँचाने का काम सफलता के साथ कर सकेगा। उसकी दृढ़ता, आत्मविश्वास तथा श्रम के प्रति लगन देखकर महादेवी को विस्मय होता है। आजकल अनेक किशोर सुख की चीजें पाने के लिए अपनी बूढ़ी माताओं से झगड़ते हैं जो बुढ़ापे में काम करती है। ऐसे-ऐसे युवक हैं जो अपने निर्धन पिता का सब कुछ छीन लें तथा भीख माँगने में भी संकोच नहीं करते। छोटे बच्चों का लालन-पालन छोड़कर दिन भर मजदूरी करके धन कमाने वाली अपनी पत्नी से पैसे छीनकर शाम को शराब पीने या सिनेमा देखने वाले पुरुषों की भी कमी नहीं है आज के पुरुष अपनी निराशा और असमर्थता का रोना रोते हैं। उनका पुरुषार्थ तथा पराक्रम उनके रोने में ही प्रकट होता है ऐसे युवकों और पुरुषों के संसार में एक अलोपी भी है जो अंधा होते हुए भी काम करता है और अपनी माँ को आराम देना चाहता है। अलोपी का यह दृढ़ निश्चय महादेवी को आश्चर्य में डालने वाला था।
प्रश्न- अलोपी संस्मरण के नायक अलोपी का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर-अलोपी संस्मरण के नायक अलोपी के चरित्र में प्रमुख गुण निम्न थे-
नेत्रहीन किंतु पराक्रमी- अलोपी नेत्रहीन किंतु पुरुषार्थ हीन नहीं है। वह साहस एवं आत्मविश्वास के साथ सब्जियों से भरी डलिया उठाकर महादेवी वर्मा के यहां प्रतिदिन पहुँचाता है।
आत्मविश्वासी- अलोपी में गजब का आत्मविश्वास था वह विश्वास दिलाता है कि वह रघु की सहायता और सहयोग से सब्जी लाने का कठिन काम भी सफलतापूर्वक कर लेगा।
सभी के प्रति आदर एवं सद्भाव रखने वाला- अलोपी बड़ों का आदर तथा महादेवी का सम्मान करता है महादेवी द्वारा डांटने पर भी वह कहता है जब आपकी आज्ञा नहीं है तब वह घर के बाहर पैर नहीं रखेगा। उसके मन में भक्तिन से सद्भाव, उसे अपनी वृद्ध माता के प्रति चिंता है, वह अपनी धोखेबाज पत्नी की शिकायत भी पुलिस से नहीं करता है।
परिश्रमी- अलोपी कठोर परिश्रम करता है। काम करने से बचने के लिए वह अपनी नेत्रहीनता का बहाना नहीं बनाता।
विश्वासघात से आहत- पत्नी का विश्वासघात अलोपी को तोड़ देता है और वह एक दिन इस संसार को छोड़कर चला जाता है।
पाठ- सेव और देव
लेखक- सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय।
प्रश्न- प्रोफेसर गजानन कहाँ घूमने जाते हैं और क्यों?
उत्तर- प्रोफ़ेसर गजानन कुल्लू पहाड़ पर घूमने गए थे। वह पुरातत्त्व की खोज के लिए आए थे। भारत की प्राचीनतम सभ्यता के अवशेष और हिंदू काल की शिल्प कला के नमूने देखने आए थे।
प्रश्न- लोभ-लालच कुछ समय के लिए मन को विचलित कर सकते हैं परंतु अंत में नैतिक भाव ही विजयी होते हैं। सेव और देव कहानी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- देवी के पुराने मंदिर में 50 साल पुरानी मूर्ति को देख कर प्रोफ़ेसर के मन में लोभ पैदा हो जाता है। वह मूर्ति को अपने ओवरकोट में छिपा लेते हैं किंतु सेव चुराने वाले लड़के को डाँटकर उन्हें अपनी भूल का पता चलता है। वह लौटकर मूर्ति उसी स्थान पर रख आते हैं। थोड़ी देर के लिए उनके मन में लालच आया किंतु अंत में नैतिकता की ही विजय हुई।
प्रश्न- चुराई हुई मूर्ति को लौटाने जाते समय प्रोफेसर की मनोदशा कैसी थी? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर- प्रोफेसर ने मूर्ति चुराई थी इसी कारण उन्हें गाँव वालों का डर था। अतः जब वह मूर्ति को मंदिर में रखने के लिए लौट रहे थे तो आंधी की तरह से गाँव में से गुजरे। उन्हें लगता था कि घर जाता हुआ प्रत्येक व्यक्ति विस्मय से उनके ओवरकोट की ओर देख रहा है। उन्हें लग रहा था जैसे प्रत्येक व्यक्ति उनके पाप को अच्छी तरह से जानता है। वे मन ही मन ग्लानि महसूस कर रहे थे।
प्रश्न- पहाड़ी सभ्यता के प्रति प्रोफ़ेसर का आदर भाव क्यों बढ़ गया?
उत्तर- पहाड़ी लोगों पर यूरोपीय सभ्यता का प्रभाव नहीं पड़ा था। वह ईमानदार थे। चोरी नहीं करते थे लालची नहीं थे। लोग अपने काम से काम रखते थे। वे अपने पशु चराते थे। इन्हें बाहर वालों से कोई सरोकार नहीं था। पहाड़ी लोग अत्यंत सरल और सीधे-साधे होते है। पहाड़ी लोगों की इन्हीं गुणों को देखकर प्रोफ़ेसर के मन में पहाड़ी सभ्यता के प्रति आदर भाव बढ़ जाते हैं।
प्रश्न- कहानी ‘सेव और देव’ में लेखक द्वारा फाह्यान के जमाने का आदर्श किसे और क्यों कहा गया है?
उत्तर- लेखक ने फाह्यान के समय का आदर्श पहाड़ी लोगों की सहज और सरल जीवन शैली को बताया है क्योंकि आज भी यह प्राचीन आर्य सभ्यता की इस विशेषता को अपनाए हुए हैं। छल, कपट, चोरी, ईर्ष्या आदि से पहाड़ी जनजीवन प्रायः मुक्त हैं। यह लोग आज भी यूरोपीय सभ्यता के कुप्रभाव से बचे हुए हैं अपने-अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं।
प्रश्न- इसने तो सेव चुराया है तुम तो देवस्थान लूट लाए। इस कथन में लेखक की मन:स्थिति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
या
इस वाक्य का कहानी में क्या स्थान है?
उत्तर- इस कथन में प्रोफेसर साहब की आत्मा-ग्लानि प्रकट हुई है। मूर्ति उनके ओवरकोट में छिपी थी। उनका हाथ जैसे ही और कोट के कॉलर में घुसा मानो उन पर गाज गिर पड़ी। वे सोचने लगे इस लड़के ने तो सेव जैसी साधारण सी चीज चुराई थी जबकि तुम तो एक बहुमूल्य वस्तु मूर्ति चुराकर ले जा रहे हो। लड़के ने तो अपने घर में अपनी वस्तु चुराई है तुम तो दूसरों की वस्तु चुराकर ले जा रहे हो। तुम ज्यादा दोषी हो। जो कार्य लड़के ने किया वही तुम कर रहे हो। चोरी चोरी ही होती है। वो छोटी और बड़ी नहीं होती। भले ही इस लड़के ने सेव चुराए हैं फिर तुम्हें लड़के को डाँटने और मारने का क्या अधिकार है? इस प्रकार का द्वंद्व उनके मन में उठता है। उनके मन में आत्मलोचन, ज्ञान-चक्षु, आत्मनिंदा के भाव प्रकट होते हैं। प्रोफेसर अपने लोभ और आत्मग्लानि पर नियंत्रण पा कर देवी को मंदिर में पुनः स्थापित करने का संतोष पाते हैं। यह एक छोटा किंतु एक संदेशपरक कथन है। इस कहानी का केंद्रीय भाव निहित है। सेव चुराओ या मूर्ति, चोरी चोरी ही कहलाती है।
प्रश्न- सेव और देव कहानी की मूल संवेदना अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- सेव और देव कहानी के माध्यम से अज्ञेय ने एक और स्पष्ट संकेत किया है कि नैतिक मूल्यों की स्थिति स्वतः स्फूर्त होती है आरोपित नहीं की जा सकती। वहीं यह भी व्यक्त किया है कि मनुष्य की आस्था उसे और अधिक नैतिक बल प्रदान करती है। देव मूर्तियों के प्रति विशेष रूचि और आस्था रखने वाले प्रोफेसर अपने व्यक्तित्व से यह सिद्ध कर देते हैं कि आस्था में बहुत बड़ी शक्ति होती है। प्रोफेसर बालक को सेव चोरी से तोड़ने पर डाँटते हैं और स्वयं देव मंदिर में पड़ी हुई अनुपम मूर्ति को चुराकर ले जा रहे हैं उनके मन ने उन्हें नैतिक मूल्य के आधार पर मूर्ति मंदिर में ही रखने के लिए विवश कर दिया वह मूर्ति को मंदिर में ही रखते हैं। मंदिर जिसमें देवता विराजमान है इस कारण जूते खोलकर अंदर जाते हैं यह आस्था का ही परिणाम है।
पाठ- संस्कारों और शास्त्रों की लड़ाई (व्यंग्यात्मक निबंध)
लेखक- हरिशंकर परसाई
प्रश्न- लेखक मदर इन लॉ को क्रांति की दुश्मन क्यों मानता है?
उत्तर- मदर इन लॉ क्रांतिकारी दामाद के विचारों को बदल देती है। मदर इन लॉ क्रांति की दुश्मन होती है। वह क्रांतिकारी के विचारों को बदल देती है। परिवार के संस्कारों के अनुसार आचरण करने को विवश कर देती है। यदि वह न माने तो मदर इन लॉ बच्चों का ध्यान दिला कर क्रांतिकारी को परिवार की मान्यता और संस्कारों को मानने के लिए विवश कर देती है इस प्रकार मदर इन लॉ क्रांतिकारी की क्रांति की भावना की दुश्मन बन जाती है।
प्रश्न- ‘बड़ा विकट संघर्ष है’ लेखक के मित्र में उसको किस विकट संघर्ष के बारे में बताया?
उत्तर- लेखक ने देखा कि परंपरा तथा आडंबर के धुर विरोधी मित्र ने अपने सिर का मुंडन करवा लिया है तो उसने इसका कारण जानना चाहा। मित्र ने बताया कि उसके पिता की मृत्यु हो गई है। वह उनका पिंडदान करने प्रयाग जा रहा है। उसके सिद्धांतों का क्या हुआ, यह जानने पर मित्र ने बताया कि पारिवारिक संस्कारों तथा सिद्धांतो में जबरदस्त संघर्ष है। संस्कारों के कारण उसे अपने सिद्धांत त्यागने पड़े।
प्रश्न- वह पाँव दरवाजे की तरफ बढ़ाती है तो हाथ साँकल की तरफ चले जाते हैं। इस कथन में लेखक ने किस प्रथा पर व्यंग्य किया है?
उत्तर- इस कथन में लेखक ने पर्दा प्रथा पर व्यंग्य किया है। स्त्रियों को घर में ही रहना होता था। वह पर्दे में रहती थी। वे घर से बाहर नहीं जा सकती थीं। किसी को यहाँ तक कि अपने पति को बुलाने के लिए भी पुकारने के स्थान पर उनको कुंडी बजानी होती थी पांव दरवाजे की तरफ बढ़ाने और हाथ साँकल की ओर चले जाने में इसी प्रथा की ओर संकेत किया गया है। यहां पाँव दरवाजे की तरफ बढ़ाना रूढ़ियों से मुक्ति पाने के लिए प्रयोग किया गया है तथा हाथ साँकल पर चले जाना पुरानी रूढ़ियों के लिए प्रयोग किया गया है।
प्रश्न- नारी मुक्ति में महंगाई का क्या योगदान है? लेखक के मत से अपनी सहमति अथवा असहमति का उल्लेख तर्क सहित कीजिए।
उत्तर- पहले स्त्रियों को घर के अंदर रहना होता था तथा पर्दा भी करना होता था। वह बाहर नहीं जा सकती थी। घर में पुरुषों से बातें नहीं कर सकती थी। समय बदला महँगाई बढ़ी और अकेले पति की कमाई से घर का खर्च चलना मुश्किल हो गया तब पत्नी भी नौकरी करने लगी। इस प्रकार उसे बंधनों से मुक्ति मिली और वह खुले वातावरण में साँस लेने लगी। नारी मुक्ति के लिए खूब आंदोलन हुए हैं उसको इन आंदोलन के कारण मुक्ति नहीं मिली। उसे इस कारण भी मुक्ति नहीं मिली कि समाज ने उसके व्यक्तित्व को मान्यता प्रदान कर दी है या पुरुष वादी मानसिकता कमजोर हो गई है। उसको मुक्ति मिलने का कारण समाज में आधुनिक दृष्टिकोण की वृद्धि होना भी नहीं है। लेखक के मत में इसका कारण बढ़ती हुई महंगाई है इसी के कारण उसे घर से बाहर जाकर नौकरी करने का अवसर मिला है। जिससे वह दूसरों यहां तक कि पुरुषों के साथ भी बात कर सकती है तथा साथ काम करती है। लेखक के मत से हम सहमत हैं। आर्थिक दबाव अनेक स्थापित अवगुणों को ध्वस्त कर देता है। पर्दा प्रथा को नष्ट करने में भी यह एक महत्त्वपूर्ण कारक बनकर सामने आया है।
प्रश्न- संस्कारों और शास्त्रों के लड़ाई पाठ के लेखक ने किसे और क्यों द्वंद्वात्मक भौतिकवाद में फंसा माना है?
उत्तर- लेखक ने अपने एक मार्क्सवादी मित्र को लेकर यह व्यंग्य किया है। यह मित्र एक तरफ तो बाहरी आडंबर ओर अंधविश्वासों पर विश्वास नहीं करने का दावा करता है दूसरी ओर पिता की मृत्यु पर सारे संस्कारों का पालन करते है इसीलिए लेखक ने उन्हें द्वंद्वात्मक भौतिकवादी अर्थात दोहरी मान्यताओं के द्वंद्व में फंसा हुआ बताया है।
प्रश्न- लड़की की माता की किस तरह की सोच से पता लगा कि अर्थशास्त्र में संस्कारों को पटकनी दे दी?
उत्तर- माँ ने सोचा यह जो 15,000 दहेज के लिए रखें थे यह साफ बच गए। 15,000 में इतना अच्छा लड़का नहीं मिलता उन्होंने कार्ड बाँटकर दावत दे दी। इस प्रकार अर्थशास्त्र ने संस्कारों को पटकनी दे दी। पहले वह सरकारी शादी को बुरा समझती थी किंतु 15000 की बचत ने सारे संस्कारों को समाप्त कर दिया।
पाठ- भारत भी महाशक्ति बन सकता है (निबंध)
लेखक- श्रीधर पराड़कर
प्रश्न-भारत को सोने की चिड़िया क्यों कहा जाता था?
उत्तर- भारत में अकूत वैभव एवं ऐश्वर्य था। सोना-चाँदी, मोती अपार मात्रा में थे। इस कारण भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। यहाँ अपार धन संपदा थी।
प्रश्न- विश्व के लोग भारतीयों पर क्या आरोप लगाते हैं?
उत्तर- विश्व के लोग भारतीयों को संकुचित मस्तिष्क एवं प्रतिगामी बताकर उपेक्षा करते हैं। वे कहते हैं कि भारत का आदमी कायर है, मूढ़ है, निकम्मा है किंतु यह धारणा भ्रामक है। द्वितीय विश्वयुद्ध में और चीन तथा पाकिस्तान के साथ युद्ध के समय भारतीय वीरों ने जो साहस दिखाया था वह अविस्मरणीय है इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय कायर नहीं है।
प्रश्न- भारत भी महाशक्ति बन सकता है निबंध के मूल कथ्य को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- भारत भी महाशक्ति बन सकता है निबंध में लेखक ने भारतीय में राष्ट्र के प्रति निराशा और भ्रम की स्थिति को दूर कर भारतीय जनमानस में आशा और उत्साह के साथ राष्ट्रीयता का ज्वार पैदा करने का प्रयास किया है। देशवासियों का भारत के बारे में यह सोचना अनुचित है कि अब कुछ नहीं हो सकता, सब गड़बड़ हो रहा है, इस देश का भगवान ही मालिक है। सोने की चिड़िया भारत का अतीत बड़ा गौरवमयी रहा है। जिसे भूलकर हमने अपने आत्मसम्मान और स्वाभिमान को भुला दिया है। आज भी विदेशों में भारतीयों की सर्वाधिक माँग है। भारतीय उद्योगपति विदेश में अपने जलवे दिखा रहे हैं। विदेशों में उच्च पदों पर भारतीय अथवा भारतीय मूल के व्यक्ति आज ही आसीन हैं। हमने युद्ध भी जीते हैं और वैश्विक प्रतिबंध का भी हँसकर सामना किया है। भारत को पुनः महाशक्ति बनने के लिए विदेशों की ओर ताकना बंद करके भारतीयों में आत्मविश्वास, आत्म गौरव का भाव पैदा करना होगा और सही नेतृत्व चुनना होगा।
सरयू का पद्य खंड
कबीर
प्रश्न- कबीर ने इस संसार को किसके समान बताया है?
उत्तर- कबीर ने इस संसार को सेमल के फूल के समान बताया है।
प्रश्न- कबीर के अनुसार गुरु और गोविंद में क्या अंतर है?
उत्तर- कबीर के अनुसार गुरु और गोविंद में कोई अंतर नहीं है। उनमें सिर्फ आकार (शरीर) का ही अंतर है।
प्रश्न- कबीर के दोहों को साखी क्यों कहा जाता है?
उत्तर- कबीर ने जो कहा वो उनके जीवन के अनुभव पर आधारित है। उन्होंने सुनी-सुनाई बातों पर नहीं लिखा है। उन्होंने अपनी आँखों से जो देखा है वही अपने दोहों में व्याकतं किया है। आँखों देखी होने के कारण उसे साक्ष्य अर्थात साखी कहा गया है।
प्रश्न- पीछें लागा जाई था,लोक वेद के साथि। इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- इस पंक्ति में कबीर ने गुरु की महान उपकार के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की है। जब तक गुरु का मार्गदर्शन प्राप्त नहीं हुआ था तब तक कबीर भी बिना सोचे समझे लोकाचार और मान्यताओं के पिछलग्गू बने हुए थे। जब गोविंद की कृपा से उन्हें गुरु की प्राप्ति होती है या गुरु का सानिध्य प्राप्त होता है और गुरु ने उनके हाथ में ज्ञान रूपी दीपक थमाया तब उन्हें दिखाई दिया कि वह तो अंधविश्वास के मार्ग पर चले जा रहे थे। गुरु ने उनके उद्धार का मार्ग प्रशस्त किया है।
प्रश्न- ‘संतो भाई आई ज्ञान की आंधी रे’ पद में कवि क्या संदेश देना चाहते हैं? स्पष्ट कीजिए
उत्तर- कबीर भले ही घोषणा करते हैं कि उन्होंने मसि कागद छुयो नहीं कलम गही ना हाथ परंतु उन्होंने अपनी बात सटीक प्रतीकों और रूपकों के द्वारा कहने में पूर्ण निपुणता दिखाई है। उपर्युक्त पद में कबीर ने ज्ञान के महत्त्व को आलंकारिक शैली में प्रस्तुत किया है। उनकी मान्यता है कि स्वभाव के सारे दुर्गुणों से मुक्ति पाने के लिए ज्ञान से बढ़कर और कोई दवा नहीं है। जब हृदय में ज्ञानरूपी आँधी आती है तो सारे दुर्गुण एक-एक घर की धराशायी होते चले जाते हैं और अंत में साधक का हृदय प्रेम की रिमझिम वर्षा से भीग उठता है। ज्ञान रूपी सूर्य का उदय होता है और अज्ञान का अंधकार विलीन हो जाता है। ज्ञान प्राप्ति की साधना का यही संदेश इस पद द्वारा कबीर ने दिया है।
प्रश्न- ‘जल में उत्पत्ति जल में वास, जल में नलिनी तोर निवास ‘ पंक्ति का मूल भाव लिखिए।
उत्तर उपर्युक्त पंक्ति कबीर के पद काहे री नलिनी तू कुम्हलानी से लिया गया है। इस पद में कबीर ने नलिनी (कमलीनी) को जीवात्मा का और सरोवर के जल को परमात्मा का प्रतीक माना है। वह कमलीनी रूपी अपनी आत्मा से प्रश्न करते हैं कि अरे नलिनी तू क्यों मुरझाई हुई है? तेरे चारों ओर तथा तेरे नाल में सरोवर का जल (परमात्मा) है। तेरी उत्पत्ति और निवास भी इसी सरोवर में है निरंतर इसी सरोवर रूपी परमात्मा में तू स्थित है। भाव यह है कि कमलिनी को यदि जल में मिले तो वह कुम्हला जाएगी परंतु जब भीतर बाहर दोनों ओर जल ही हो तो कम लेने की मुरझाने का क्या कारण हो सकता है। इसका एक मात्र कारण यही हो सकता है कि कमलिनी का किसी अन्य से प्रेम हो गया हो और उसी की वियोग में वह दु:खी और मुरझाई है। पंक्ति का मूल भाव यही है कि जीवात्मा और परमात्मा अभिन्न हैं। जीवात्मा की उत्पत्ति और स्थिति उसी सर्वव्यापक परब्रह्मा में है वह उसे कदापि अलग नहीं है।
पाठ- मंदोदरी की रावण को सीख।
रचनाकार- गोस्वामी तुलसीदास।
रामचरितमानस से संकलित।
प्रश्न- मंदोदरी ने सीता को किसके समान माना?
उत्तर- मंदोदरी ने सीता को रावण के वंश रूपी कमल समूह को नष्ट कर देने वाली शीत ऋतु की रात्रि के समान माना।
प्रश्न- रावण को राम के विश्वरुप से परिचित कराने में मंदोदरी का क्या उद्देश्य था?
उत्तर- रावण राम को साधारण मनुष्य मान रहा था वह राम से बैर ठाने हुए था। मंदोदरी राम के स्वरुप और प्रभाव से परिचित थी। वह जानती थी कि राम का विरोध रावण और राक्षसों के विनाश का कारण बनेगा। वह असमय विधवा नहीं होना चाहती थी। अतः रावण को प्रभावित करने और राम की शरण जाने को प्रेरित करने के लिए उसने राम के विश्वरुप से रावण को परिचित करवाया था।
प्रश्न- दु:खी और खिसियाये हुए राजसभा से लौटे रावण को मंदोदरी ने क्या समझाया?
उत्तर- मंदोदरी ने रावण से कहा कि राम से बैर और उन पर विजय पाने के कुविचार को मन से त्याग दो। जब तुम लक्ष्मण द्वारा खींची गई रेखा को नहीं लांघ सके तो उन भाइयों पर विजय कैसे पाओगे? उनके दूत हनुमान ने सहज ही समुद्र लांघकर आराम से लंका में प्रवेश किया। उसने अशोक वाटिका उजाड़ डाली, रखवालों को मार डाला। तुम्हारी आँखों के सामने तुम्हारे पुत्र अक्षय कुमार को मार डाला। तुम्हारे प्यार नगर लंका को जला डाला। अब तो अपने बल की डींग हाँकना छोड़ दो।
रहीम के दोहे
प्रश्न- रहीम सच्चा मित्र किसे मानते हैं?
उत्तर- रहीम ने माना है कि सच्चा मित्र वही है जो सुख-दु:ख में समान रूप से काम आए। रहीम उसी को सच्चा मित्र मानते हैं जो संकट आने पर भी अपने मित्र को छोड़ता नहीं और बुरे दिनों में उसका साथ निभाता है।
प्रश्न- रहीम दुष्ट लोगों से मित्रता व शत्रुता क्यों नहीं रखना चाहते?
उत्तर- दुष्ट और ओछे लोग विश्वसनीय नहीं होते हैं। उनसे शत्रुता या मित्रता दोनों ही हानिकारक हो सकती हैं यदि हम ऐसे लोगों से शत्रुता रखेंगे तो वह हमें हानि पहुंचाने के लिए घटिया से घटिया तरीके काम में ले सकते हैं इसी प्रकार दुष्टों की मित्रता पर भी विश्वास करना बुद्धिमानी नहीं कहा जा सकता वह अपने स्वार्थ के लिए कभी भी हमारे साथ विश्वासघात कर सकते हैं। जैसे यदि कुत्ता किसी कारण कुछ हो जाए तो तुरंत काट देता है और यदि प्रसन्न होकर वह आपके हाथ-पैर चाटता है तो भी अच्छा नहीं लगता। उस स्थान को धोना पड़ता है इस प्रकार से कवि ने संदेश दिया है कि दुष्ट व्यक्तियों की प्रति तटस्थ भाव रखना चाहिए।
प्रश्न- रहीम के अनुसार कौन-कौन सी बातें दबाने पर भी नहीं दबती, प्रकट हो जाती हैं? स्पष्ट करते हुए लिखिए।
उत्तर- कवि रहीम के अनुसार सात बातें ऐसी हैं जो मनुष्य कितना भी छुपाना चाहे लेकिन छुप नहीं सकती। खैर अर्थात कुशल मंगल, मनुष्य के हावभाव, व्यवहार से जान लेते हैं कि वह सुख से रह रहा है। इसी प्रकार खून अर्थात किसी की हत्या कभी नहीं छुपती। खाँसी भी नहीं छिपाई जा सकती। खुशी का भी सभी को पता चल जाता है। ऐसे ही बैर भाव और प्रेम भाव भी व्यवहार से समझ में आ जाते हैं। मदिरा पिए हुए व्यक्ति की पहचान गंध या पीने वाले के व्यवहार से हो जाती है।
पाठ घनानंद
घनानंद को प्रेम की पीर का कवि भी कहा जाता है।
घनानंद दिल्ली के शासक मोहम्मद शाह रंगीले के मीर मुंशी थे।
सुजान इनकी प्रेयसी का नाम था।
प्रश्न- काहू कल पाय हैं, सो कैसे कल पाय है? कवि घनानंद ने यह कहावत किसे और क्यों याद दिलाई है? संक्षेप में लिखें।
उत्तर- कवि ने यह कहावत उसे कलपाने, तड़पाने वाली सुजान को याद दिलाई है। उस ठगिनी ने पहले तो मीठी-मीठी बातें करके उस सरल प्रेमी का मन वश में कर लिया और अब अपने निष्ठुर व्यवहार से उसके जी को जला रही है। कभी ने अत्यंत खिन्न होकर का उसे उलाहना दिया है। वह आज उसे कलपा तो रही है पर कल को वह खुद चैन से नहीं रह पाएगी। एक दिन वह भी उसी की तरह तड़पेगी। जो किसी को सताता है एक न एक दिन उसे अपनी करनी का फल भोगना ही पड़ता है।
प्रश्न- मन लेहू पै देहु छटाँक नहीं उक्ति के आधार पर विरही की पीड़ा का वर्णन कीजिए।
उत्तर- कवि घनानंद छंद के आरंभ में ही स्पष्ट करते हैं कि अति सूधो सनेह को मारग, जहां नेकु सयानप बांक नहीं अर्थात प्रेम यह मार्ग सच्चों के लिए ही बना है। यहां पर चतुराई की बिल्कुल भी जगह नहीं है। सयानों और कपटियों के लिए प्रेम का मार्ग नहीं है। पर घनानंद की प्रेयसी तो प्रेम को भी स्वार्थ की तराजू पर तोलती है। वह प्रेमी का तो पूरा मन और समर्पण चाहती है परंतु बदले में छटाँक अर्थात बहुत थोड़ा-सा प्रेम भी देना नहीं चाहती। ऐसे कपटी से प्रेम करके विरही को जीवन भर पीड़ा ही झेलनी पड़ती है। वह पीड़ा ही कवि के हिस्से में आई है।
प्रश्न- घनानंद के काव्य में विरह की प्रधानता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- पाठ्यपुस्तक में संकलित घनानंद के सभी छंद विरह की पीर के करुण गीत हैं। पहले छंद में विरही के हृदय का संताप पहली पंक्ति से ही झलक रहा है।
कवि विरही गुमानी प्रिय के व्यवहार ग्लानि का पान करते हुए घुट-घुट कर जी रहा है तो कहीं व्याकुलता के विषैले बाणों को छाती पर झेल रहा है। अंगारों की सेज पर सोना अपनी नियति मानकर अपने भाग्य को कोस रहा है। जिसकी मीठी-मीठी बातों में आकर प्रेमी ने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया उसी के द्वारा असहनीय उपेक्षा पाकर विरही की क्या दशा होती है यह कवि घनानंद ने अपने काव्य में उजागर किया है। चौथे पद में बेचारा विरही निष्ठुर प्रिय के व्यवहार से व्याकुल होकर गिड़गिड़ाता हुआ दया की याचना रहा है। निर्मोही सुजान को उसके प्राण रुपी बटोही को प्यासा मारने में तनिक भी संकोच नहीं हो रहा अंत में यही कह सकते हैं कि जो प्रिय मन लेकर छटाँक भी नहीं देना चाहता उसके आगे कोई वश नहीं चलता। घनानंद का कवि विरह प्रधान है इसमें कोई संशय नहीं रह जाता।
कवि- सेनापति (ऋतु वर्णन)
इनकी दो रचनाएं प्राप्त होती हैं- 1 कवित्त रत्नाकर 2 काव्य कल्पद्रुम
कवि सेनापति प्रकृति-चित्रण में विशेष कुशल थे।
प्रश्न- वसंत ऋतु के आगमन पर प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों को लिखिए।
उत्तर- वसंत ऋतु आने पर चंदन की सुगंध से युक्त पवन मंद-मंद चलने लगती है। जलाशयों का जल निर्मल और स्नान योग्य हो जाता है। फूलों पर भौंरों के समूह गुंजार करने लगते हैं। प्रकृति में कुंजों की शोभा बढ़ जाती है तो जन जीवन में भी घरों का रूप सँवरने लगता है। चारों तरफ घने वृक्ष शोभायमान होते हैं और कोयलें मधुर स्वर में कूकने लगती हैं। सारी प्रकृति वसंत में सज-सँवरकर नवीन सौंदर्य से पूर्ण हो जाती है।
प्रश्न- वसंत ऋतु में वियोगी, योगी और भोगी किस-किस तरह प्रभावित होते हैं? लिखिए।
उत्तर- कवि ने बड़ी रोचक शैली में उपर्युक्त तीनों प्रकार के जनों की दशा का परिचय करवाया है। वियोगियों का कष्ट वसंत ऋतु आने से और बढ़ गया है। उन्हें अपने प्रियजनों की और अधिक याद सताने लगती है। योगी बेचारे वासंती शोभा से मोहित मन को वश में नहीं रख पा रहे और उनकी योग-साधना बाधित होती है। वसंत का आनंद तो बस भोगी ही ले रहे हैं। वसंत ऋतु ने उनके लिए सारे सुख-साधन उपलब्ध करा दिए हैं।
प्रश्न-सेनापति रीति काल में प्रकृति चित्रण करने वाले श्रेष्ठ कवि हैं। उदाहरण सहित सिद्ध कीजिए।
उत्तर- रीतिकालीन कवियों में सेनापति की विशेषता उनके प्रकृति वर्णन से प्रमाणित होती है। अन्य कवियों ने प्रकृति का उपयोग नायक-नायिका को उत्तेजित करने के लिए किया है परंतु सेनापति ने तो प्रकृति को ही अपनी रचनाओं का विषय बनाया है। विविध प्राकृतिक दृश्य, कोयल की कूक, भौंरों के गुंजार, स्वच्छ जलाशय, तपता हुआ सूरज, गर्म लू, वनों में लगी आग इत्यादि इनकी कविता के विषय हैं। सेनापति के प्रकृति वर्णन की विविधता भी उनकी विशेषता है। उन्होंने अपने काव्य-कौशल से शब्द चित्रों की रंगशाला बना दी है। सेनापति ने प्रकृति चित्रण में अलंकारों का भी मुक्त भाव से प्रयोग किया है। सांगरूपक का प्रयोग करते हुए कवि ने दल बल सहित चले आ रहे ऋतुओं के राजा वसंत के आगमन को साकार कर दिया है। इसी प्रकार सपने श्लेष अलंकार के चमत्कार से ग्रीष्म को वर्षा बनाने की चतुराई भी दिखाई है। प्रसंग के अनुसार भाषा और शैली का प्रयोग भी कभी की प्रकृति वर्णन की विशेषता है।
कवि- पद्माकर (रचना- गंगा स्तुति)
प्रश्न- कवि ने गंगा की धार को किसके समान बताया है?
उत्तर- कवि पद्माकर ने गंगा की धारा को कामधेनु के थन से निकलने वाली दूध की धार के समान स्वच्छ, पवित्र एवं श्वेत बताया है। गंगा की धार तथा दूध की धार दोनों में प्रवाह भी होता है।
प्रश्न- गंगा को पतित-पावनी कहा जाता है। पतितों का उद्धार करने की उसकी शक्ति क्या आज ही वैसी ही है? नहीं तो इसका क्या कारण है?
उत्तर- गंगा भारत की प्रसिद्ध नदी है। उसे देव नदी या सुरसरि भी कहा जाता है। भारत में स्नान करने तथा गंगाजल पान करने से पापी तथा पतित जनों का उद्धार हो जाता है ऐसा माना जाता था। पद्माकर में लिखा है जिते तूने तारे उत्ते नभ में न तारे हैं अर्थात जितने लोगों का उद्धार तूने किया है उतने आसमान में तारे भी नहीं है। उन्होंने गंगाजल पीने को धर्म का मूल कहा है। यह विश्वासपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि गंगा में पतितों का उद्धार करने की वैसी ही शक्ति आज भी है। लोग अब भी विश्वास तो यही करते हैं कि गंगा स्नान आदि से पापों से मुक्त मिलती है। लोग गंगा तट पर जाते हैं, पूजा-अर्चना करते हैं, स्नान करते हैं। परंतु गंगा आज पहली जैसी स्वच्छ, पवित्र एवं प्रदूषण मुक्त नहीं रही। गंगा की जल में ऑक्सीजन की कमी के कारण मछलियां मर जाती हैं। जल स्नान की योग्य नहीं है पीने की तो बात ही बेमानी है। गंगा के प्रदूषण को दूर करने के लिए सरकारों ने खूब प्रयास किया किंतु वे समस्त प्रयास भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए हैं। गंगा की पतितों का उद्धार करने की शक्ति अब नहीं बची है।
कवि- मैथिलीशरण गुप्त (राष्ट्रकवि)
रचना- यशोधरा और भारत की श्रेष्ठता।
प्रश्न- भारत की श्रेष्ठता कविता में मैथिलीशरण गुप्त ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर- भारत की श्रेष्ठता कविता में मैथिलीशरण गुप्त ने भारत के गौरवशाली अतीत का वर्णन किया है। उन्होंने बताया है कि भारत ही विश्व का वह देश है जहां सर्वप्रथम सृष्टि आरंभ हुई थी। यहीं से विश्व में ज्ञान का प्रकाश फैला। समस्त संसार को ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल, सभ्यता-संस्कृति सिखाने वाला देश भारत ही है। गुप्त जी का संदेश है कि भारतीयों को अपने गौरवशाली अतीत का स्मरण करना चाहिए तथा निराशा और उत्साहहीनता को त्यागकर देश की उत्थान के कार्य में जुट जाना चाहिए। हमें अपने देश से प्रेम करना चाहिए तथा अपने कठोर परिश्रम द्वारा उसको पुनः उन्नति के शिखर पर पहुँचाना चाहिए।
प्रश्न- कवि ने भारतवर्ष को भू-लोक का गौरव क्यों बताया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- भारत का प्राकृतिक सौंदर्य अनुपम है। यहाँ पर्वतराज हिमालय तथा देवनदी गंगा है। संसार के सभी देशों की अपेक्षा यह देश महान और उन्नत है। भारतवर्ष ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहा है।कवि ने इसी कारण भारत को भू-लोक का गौरव बताया है।

अभिनव सरोवा

1 thought on “Class 12 Hindi literature || कक्षा 12 हिंदी साहित्य मॉडल पेपर”

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