आज की पोस्ट में हम हिंदी के चर्चित कवि दुष्यंत कुमार (Dushyant Kumar ka Jivan Parichay)जो कि ‘परदेशी ‘ उपनाम से कविताएँ लिखते थे ,इनके लेखन परिचय के बारे में जानेंगे
दुष्यंत कुमार – Dushyant Kumar ka Jivan Parichay
Table of Contents
- जन्म – सन् 1933 ई.
- मृत्यु – सन् 1975 ई. (भोपाल)
- जन्म स्थान – बिजनौर जिले के राजपुर नवाङा गाँव, उत्तरप्रदेश में
- वास्तविक नाम – दुष्यन्त नारायण त्यागी
उपनाम – 1. परदेशी उपनाम से कविता लेखन 2. अनुरागी
रचनाएँ –
काव्य संग्रह –
- सुर्य का स्वागत(1957 ई.)
- आवाजों के घेरे (1963 ई)
- जलते हुए वन का बसंत(1975 ई.)
- साये में धूप (गजल संग्रह) 1975 ई.
काव्य नाटक – एक कण्ठ विषपायी (1963 ई.)
एकांकी (नाटक)
- मसीहा मर गया
- मन के कोण
उपन्यास –
- छोटे – छोटे सवाल (1964 ई.)
- आँगन में एक वृद्धा (1969 ई. )
- दुहरी जिन्दगी
प्रसिद्ध गजलें –
- आदमी की पीर
- आग जलनी चाहिए
- हालाँकि/इसी तरह काव्य की रचना के प्रारम्भ में इन्होने अपना नाम दुष्यन्त कुमार परदेशी रखा। इसके बाद में केवल दुष्यंत कुमार रह गया है।
⇒ ’परिमल’ व ’नये पत्ते’ से जुङकर इन्होने /हालाँकि साहित्यिक जीवन प्रारम्भ किया।
⇔ 1958 ई. आकाशवाणी में काम किया।
⇒ 1960 ई. आकाशवाणी भोपाल केन्द्र पर रहे।
⇔ 1961 ई. मध्यप्रदेश के भाषा विभाग में सहायक संचालक नियुक्त रहे।
प्रसिद्ध पंक्तियाँ- Dushyant Kumar ka Jivan Parichay
’’हो गई है पीर पर्वत सी, पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई, गंगा निकालनी चाहिए’’
’’कहाँ तो तय तय था चिराग हरेक घर के लिए
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए’’
’’सिर्फ हंगामा खङा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए’’
’एक कण्ठ विषपायी’ –
काव्य नाटक में शिव के विषपान की पौराणिक कथा के माध्यम से व्यापक हित के निमित्त एक व्यक्ति के द्वारा समस्त पीङाओं के हलाहल को पी लेने का संदेश दिया गया है।’’
अपनी कविताओं के सम्बन्ध में इनका कथन है –
’’मेरे पास कविताओं के मुखौटे नहीं है, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राएँ नहीं है और अजनबी शब्दों का लिबास नहीं है। मैं कविता को चौंकाने या आतंकित करने के लिए इस्तेमाल नहीं करता। समाज और व्यक्ति के संदर्भ में उसका दायित्व इससे बहुत बङा है। वह (कविता) राजनीति, सामाजिक और वैयक्तिक स्तर पर, हर लङाई मेरे लिए भरोसे का हथियार है।’’
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