आज की पोस्ट में हम जैनेन्द्र की कहानी कला की प्रमुख विशेषताओं(Jainendra Kahani Kala) को विस्तार से पढेंगे |
जैनेन्द्र की कहानी-कला की प्रमुख विशेषता
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हिन्दी साहित्य में मनोविज्ञान का चित्रण प्रेमचन्द के उपन्यासों से ही आरम्भ हो गया था, किन्तु आलोचकों ने प्रेमचन्द के मनोविज्ञान को उतना महत्व नहीं दिया। किन्तु, इस दिशा में मनोवैज्ञानिक को नयी ऊंचाई तक पहुंचाने में जैनेन्द्र का नाम प्रमुख है। जैनेन्द्र, इलाचंद्र, जोशी तथा अज्ञेय आदि कहानीकार मूल रूप से मनोवैज्ञानिक कथाकार के रूप में श्रेणीबद्ध किये जाते हैं। प्रारम्भ में जैनेन्द्र किसी विशेष उद्देश्य से प्रेरित होकर नहीं लिखते थे। किन्तु, धीरे-धीरे उनमें उच्च स्तरीय साहित्यिक साधना करवटें लेने लगी।
जैनेन्द्र पर विचारधारा के स्तर पर फ्रायड, एडलर और युग की मनोविश्लेषण संबंधी मान्यता का गहरा प्रभाव है। मनुष्य के अंतर्गत की सूक्ष्म एवं गहन पङताल करके उसके अन्तः सन्य को उद्घाटित करना। इनका प्रमुख उद्देश्य है।
जैनेन्द्र वास्तव में पात्रों का मनोवैज्ञानिक शोध करते हैं, मनुष्य वास्तव में कैसा है, इनके काव्यों में इस पर विस्तृत शोध होता था। फ्रायड के कुंठावाद के आधार पर मनुष्य की दमित वासनाओं, कुंठाओं, काम-प्रवृतियों, अहं व दंभ हीन भावना आदि ग्रंथियों का चित्रण कर कथा में मनुष्य का ऐसा रूप चित्रित किया, जिसमें वह अपना अक्स देख सकता था।
कहानी कला
जैनेन्द्र की कहानियां अवचेतन मन की कहानियां हैं, इनमें प्रमुख एक रात,स्पर्धा, जयसंधि, ध्रुव यात्रा, दो चिङिया तथा अन्य कहानी संग्रह हैं। जैनेन्द्र के चरित्र अधिकतर मध्यवर्गीय परिवारों से लिए गए हैं। उनके चरित्र-चित्रण की विशेषता यह है कि वे परिस्थिति के आधार पर उभरे मानसिक संघर्ष के व्यक्तिकरण में विश्वास करते हैं।
इस पर भी सबसे बङा दोष यह है कि दार्शनिकता के कारण उनके चरित्र अधिक स्पष्ट नहीं हो पाए हैं। डा. देवराज का मत है कि ’’उनके औपन्यासिक चरित्र फ्रायडियन तथा गेस्टाल्टवादी आधार पर गढे गए हैं। जैनेन्द्र की कहानी कला अधिक परिमार्जित, संयमित तथा प्रभावपूर्ण है। अधिकांश कथानक समाज के भीतर से लिए गए हैं। इनमें व्यक्ति व समाज की गुथी हुई समस्याएं उभरकर सामने आयी हैं।
जीवन के अनेक तत्वों के संघर्ष से निकलकर मनुष्य कभी-न-कभी अपना आनंद या संतोष खोज लेता है। जैनेन्द्र की कहानियों ने एक नये युग का सूत्रपात किया है। प्रेमचंद से भिन्न आदर्श की स्थापना जैनेन्द्र ने अपने कहानी के माध्यम से किया। जैनेन्द्र की कहानियां समाज की समस्याओं को नये रूप में उद्घाटित करती है। जैनेन्द्र की कहानियां मन के अंदर भी कहानी है, वाह्य स्तर पर उदासीन हैं। इनमें बाह्य घटनाओं की स्थिति अधिक नहीं है किन्तु मानसिक व्यापार उलझनों से युक्त है।
प्रेमचंद व प्रसाद के कहानी कला को आगे विस्तृत फलक देने में जैनेन्द्र ने प्रमुख भूमिका निभाई। जैनेन्द्र की कहानियां चरित्र वैशिष्ट्य, मानसिक द्वंद तथा स्त्री-पुरुष संबंधों के संदर्भ से लिए गए हैं। जैनेन्द्र की कहानियों की मुख्य-पात्र नारी रही है। इनकी कहानियां मध्यवर्ग के अन्तद्वन्द्व को स्पष्टतः अभिव्यक्त करती है। इनकी प्रमुख कहानियों में खेल, पाजेब, अपना-अपना भाग्य, जाहनवी तथा रत्नप्रभा उल्लेखनीय है।
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