इस आर्टिकल में हम हिंदी कहानी के तत्वों (Kahani Ke Tatva) के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे । कहानी में तत्वों का ढांचा कितना उपयोगी होता है, इसके बारे में जानेंगे।
कहानी के तत्त्व – Kahani Ke Tatva
Table of Contents
एक श्रेष्ठ सफल कहानी के लिए निम्नलिखित आठ तत्त्व अपेक्षित हैं –
1. शीर्षक
2. कथावस्तु
3. चरित्र-चित्रण
4. कथोपकथन
5. भाषा
6. शैली
7. वातावरण
8. उद्देश्य।
1. शीर्षक –
यह कहानी का न केवल प्राथमिक एवं महत्त्वपूर्ण उपकरण है अपितु कहानी का दर्पण भी है। कहानी अच्छी है अथवा बुरी, इसका बहुत-कुछ अंकन शीर्षक पर भी निर्भर है। भाव अथवा अर्थ-सूचकता के आधार पर शीर्षक के अनेक रूप हो सकते हैं।
कुछ प्रमुख रूप इस प्रकार हैं –
(क) स्थान-सूचक (ईदगाह-प्रेमचन्द)
(ख) घटना-व्यापारसूचक (पुरस्कार-प्रसाद)
(ग) कौतूहलजनक (उसने कहा था-गुलेरी)
(घ) व्यंग्यपूर्ण (आदम की डायरी-अज्ञेय)
(ङ) अर्थपूर्णता
(च) विषयानुकूलता।
2. कथावस्तु –
यह कहानी का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। कहानी के शरीर मेें कथानक हड्डियों के समान है, अतः कथानक या कथावस्तु की रचना अत्यन्त वैज्ञानिक तरीके से क्रमिक विकास के रूप में होनी चाहिये।
एक अच्छे कथानक के लिए चार प्रमुख गुण अपेक्षित हैं – मौलिकता, सम्भाव्यता, सुगठितता एवं रोचकता। मौलिकता से तात्पर्य यहाँ नवीनता से है।
किसी भी अच्छे कथानक की पांच अवस्थाएँ मानी गई हैं –
1. आरम्भ
2. विकास
3. मध्य
4. चरम सीमा
5. अन्त
इन पांच अवस्थाओं से युक्त कहानी एक सफल कहानी मानी जाती है।
3. चरित्र-चित्रण –
कथावस्तु के बाद चरित्र-चित्रण कहानी का अत्यन्त आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। वस्तुतः पात्र कहानी के सजीव संचालक होते हैं। पात्रों के माध्यम से एक ओर कथानक का आरम्भ, विकास और अन्त होता है, तो दूसरी ओर हम कहानी में इनसे आत्मीयता प्राप्त करते हैं।
जहाँ तक पात्रों के चयन का सम्बन्ध है वे सर्वथा सजीव और स्वाभाविक होने चाहिए तथा पात्रों की अवतारणा कल्पना के धरातल से न होकर कहानीकार की आत्मानुभूति के धरातल से होनी चाहिये।
कहानी में पात्रों की भूमिका के आधार पर उन्हें तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है – मुख्य, सहायक एवं खल। इस तरह के वर्गीकरण से कहानी के नायक तथा उसके सहयोगी या विरोधी पात्रों का चरित्रांकन किया जाता है।
पात्रों के स्वभाव, उनके व्यक्तित्व तथा उनकी चिन्तन प्रणाली के आधार पर कई विभाग किये जा सकते हैं, जैसे-आदर्शवादी, यथार्थवादी, व्यक्तिवादी, मनोवैज्ञानिक, प्रतीकात्मक, ऐतिहासिक, पौराणिक आदि।
जहाँ तक चरित्र-चित्रण अथवा पात्र-योजना के गुणों का सम्बन्ध है, उसमें निम्नलिखित गुण अपेक्षित हैं –
अनुकूलता, मौलिकता, स्वाभाविकता, सजीवता, यथार्थता, सहृदयता तथा अन्तर्द्वन्द्वात्मकता।
4. कथोपकथन या संवाद योजना –
कथोपकथन कहानी का महत्त्वपूर्ण अंग है। यदि किसी कहानी में संवाद न होकर केवल वर्णन ही होंगे तो उस कहानी के पात्र अव्यक्त रह जायेंगे तथा प्रभावशीलता एवं संवेदनशीलता नष्ट हो जायेगी, परन्तु यदि केवल संवाद ही होंगे, तो वह कहानी न रह कर एकांकी नाटक बन जायेगी। अतः कहानी में संवाद वर्णन में उचित समन्वय होना चाहिये।
कहानी में कथोपकथन का कार्य कथा को गति प्रदान करना, पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं को स्पष्ट करना, भाषा-शैली का निर्माण करना तथा कथा को रस की स्थिति तक पहुँचाना है।
सफल कथोपकथन वे कहे जायेंगे जो स्वाभाविक एवं परिस्थिति के अनुकूल हों, जिनमें जिज्ञासा एवं कुतूहलता उत्पन्न करने की क्षमता हो। संक्षिप्तता एवं ध्वन्यात्मकता भी कथोपकथन के गुण हैं।
5. भाषा –
भाषा कहानी का पांचवाँ मूल तत्त्व है। भाषा वस्तुतः भावों की अभिव्यक्ति का माध्यम है। अतः भाषा के लिए यह आवश्यक है कि वह सहज, सरल एवं बोधगम्य हो। कहानी की भाषा ऐसी होनी चाहिए कि उसमें मूल संवेदना को व्यक्त करने की पूरी क्षमता हो। वह ओज एवं माधुर्य गुणों से युक्त तथा विषयानुकूल हो।
सफल भाषा के गुणों में प्रवाहात्मकता, आलंकारिकता, चित्रात्मकता, प्रतीकात्मकता आदि गुण प्रमुख माने जाते हैं।
6. शैली –
बाबू गुलाबराय के शब्दों में ’’शैली का सम्बन्ध कहानी के किसी एक तत्त्व से नहीं वरन् सब तत्त्वों से है तथा उसकी अच्छाई एवं बुराई का प्रभाव सम्पूर्ण कहानी पर पङता है।’’ कला की प्रेषणीयता प्रमुख रूप से शैली पर ही निर्भर करती है।
वर्तमान समय में कहानी लिखने की प्रमुख शैलियाँ निम्नलिखित हैं-
(1) ऐतिहासिक शैली
(2) आत्मकथात्मक शैली
(3) पत्रात्मक शैली
(4) डायरी शैली
(5) नाटकीय शैली
(6) संवादात्मक शैली
(7) स्वप्न शैली
(8) संस्मरणात्मक शैली
(9) रिपोर्ताज शैली
(10) मनोविश्लेषणात्मक शैली।
एक सफल शैली के लिए ये गुण अपेक्षित माने गये हैं – आलंकारिकता, प्रवाहात्मकता, रोचकता, व्यंग्यात्मकता, भावात्मकता, तथा प्रतीकात्मकता।
7. वातावरण –
कहानी कला का मेरुदण्ड है वास्तविक जीवन। वह वास्तविक जीवन देश, काल, जीवन की विभिन्न सत्-असत् प्रवृत्तियों और परिस्थितियों से निर्मित होता है। इन तत्त्वों को एक साथ एक ही स्थान पर चित्रित करना कहानी में वातावरण उपस्थिति करना है। वातावरण भौतिक तथा मानसिक दोनों प्रकार का हो सकता है। वातावरण कहानी को यथार्थ बनाने में सहायक होता है। अतः कहानी जिस स्थान अथवा समय से सम्बन्धित रहे, उसका यथार्थ चित्रण उसमें होना चाहिए।
8. उद्देश्य –
यह कहानी का अन्तिम तत्त्व है। कोई भी रचना लिखी जाती है, उसका कोई उद्देश्य अवश्य होता है। वह उद्देश्य पाठकों के मनोरंजन से लेकर गम्भीर समस्या का निरूपण तक हो सकता है।
कहानीकार अपनी कहानियों के उद्देश्य अपनी विचारधारा के अनुसार रखते हैं। कहानी में उद्देश्यों की संख्या सीमित नहीं होती है। कुछ प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं- मनोरंजन, उपदेशात्मकता, हास्योत्पादन, आदर्श स्थापना, यथार्थ-चित्रण, सुधार भावना, समस्या-चित्रण, मनोवैज्ञानिक आदि।
निष्कर्ष :
इस प्रकार श्रेष्ठ एवं सफल कहानी-रचना हेतु इन सभी तत्त्वों(Kahani Ke Tatva) का उचित समावेश किया जाना अपेक्षित है।
🔹सूर्यकांत त्रिपाठी निराला 🔷कबीर जीवन परिचय 🔷हिंदी व्याकरण पीडीऍफ़ 🔷 महादेवी वर्मा
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