आज की पोस्ट में हम छायावाद की प्रमुख कवयित्री महादेवी वर्मा(Mahadevi Verma ka Jivan Parichay) के जीवन परिचय के बारें में जानेंगे ,और इनसे महत्त्वपूर्ण तथ्य जानेंगे।
महादेवी वर्मा – Mahadevi Verma ka Jivan Parichay
Table of Contents
नाम | महादेवी वर्मा |
उपनाम | आधुनिक युग की मीरां |
जन्मतिथि | 26 मार्च , 1907 ई. |
जन्म – स्थान | फर्रुखाबाद (उत्तरप्रदेश) |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
व्यवसाय | कवयित्री, उपन्यासकार, लेखिका |
पिता का नाम | श्री गोविंद प्रसाद वर्मा |
माता नाम | हेमरानी देवी |
शिक्षा | एम० ए०, प्रयागराज विश्वविद्यालय |
आन्दोलन | छायावाद |
मृत्यु | 11 सितंबर 1987 |
पुरस्कार | ज्ञानपीठ पुरस्कार,पद्म भूषण (1956), पद्म विभूषण (1988) |
प्रमुख रचनाएं | निहार , रश्मि , नीरजा , संध्यागीत, दीपशिखा, अग्नि रेखा, सप्तपर्णा |
प्रमुख रचनाएँ – (क) काव्य संग्रह
- नीहार-1930 ई.
- रश्मि – 1932 ई.
- नीरजा – 1935 ई.
- सांध्यगीत -1936 ई.
- दीपशिखा – 1942 ई.
- सप्तपर्णा – 1960 ई.
क्रमानुसार ट्रिकः नेहा रानी सादी सप्त
प्रसिद्ध गद्य रचनाएँ –
- स्मृति की रेखाएँ
- पथ के साथी
- शृंखला की कङियाँ
- अतीत के चलचित्र
कविता संग्रह
नीरजा | 1934 ई. |
सांध्यगीत | 1935 ई. |
यामा | 1940 ई. |
दीपशिखा | 1942 ई. |
सप्तपर्णा | 1960 ई.अनूदित |
संधिनी | 1965 ई. |
नीलाम्बरा | 1983 ई. |
आत्मिका | 1983 ई. |
दीपगीत | 1983 ई. |
प्रथम आयाम | 1984 ई. |
अग्निरेखा | 1990 ई. |
(ख) समेकित काव्य संग्रह
1. यामा – 1940 ई. (इसमें नीहार, रश्मि, नीरजा और सांध्यगीत रचनाओं में संगृहीत सभी गीतों को समेकित रूप में एक जगह संकलित कर दिया गया है।)
पुरस्कार – 1. इस ’यामा’ रचना के लिए इनको 1982 ई. में ’भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’ एवं ’मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ प्राप्त हुआ था।
2.हालाँकि उन्हें ’नीरजा’ रचना के लिए ’सेकसरिया पुरस्कार’ मिला था।
विशेष तथ्य (Mahadevi Verma ka Jivan Parichay)
- महादेवी वर्मा(mahadevi verma) को ‘हिन्दी की विशाल मन्दिर की वीणा पाणी’ कहा जाता है।
- ‘इस वेदना को लेकर उन्होंने हृदय की ऐसी अनुभूतियाँ सामने रखी जो लोकोत्तर है। कहाँ तक वे वास्तविक अनुभूतियाँ है और कहाँ तक अनुभूतियों की रमणीय कल्पना ,यह नहीं कहा जा सकता।’- महादेवी के सन्दर्भ में यह कथन किसका है ?
⇒ आचार्य शुक्ल - ये आरंभ में ब्रज भाषा में कविता लिखती थीं,लेकिन बाद में खङी बोली में लिखने लगी एवं जल्दी ही इस क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त कर ली।
- इन्होंने ’चाँद’ नामक पत्रिका का संपादन कार्य किया था।
- हिन्दी लेखकों की सहायतार्थ इन्होंने ’’साहित्यकार संसद’’ नामक एक ट्रस्ट (संस्था) की स्थापना भी की थी।
- इन्हें ’वेदना की कवयित्री’ एवं ’आधुनिक युग की मीरां’ के नाम से भी पुकारा जाता है।
- ये प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या रही है।
- भारत सरकार द्वारा इनको ’पद्म भूषण’ से अलंकृत किया गया था।
- अगर हम इनके काव्य को पढ़ें तो काव्य में अलौकिक विरह की प्रधानता देखी जाती है।
सुमित्रानंदन पन्त जीवन परिचय
- इनका ’सप्तपर्णा’ काव्य संग्रह वैदिक संस्कृत के विविध काव्यांशों पर आधारित माना जाता है। इसमें ऋग्वेद के मंत्रों का हिन्दी काव्यानुवाद संकलित है
- महादेवी के भाव पक्ष के गम्भीर्य व विचार पक्ष के औदात्य की भाँति उनके काव्य का शैली पक्ष भी अत्यन्त प्रौढ़ व सशक्त है।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है – ’’छायावादी कहे जाने वाले कवियों में महादेवीजी ही रहस्यवाद के भीतर रही हैं।’’
- इनके द्वारा रचित गीतों (कविताओं) की कुल संख्या 236 मानी जाती है।
Mahadevi Verma ka Jeevan Parichay
- इनको धार्मिक ग्रंथों का ज्ञान अपनी धर्मपरायणा माता ’हेमरानी देवी’ से प्राप्त हुआ था।
- ग्यारह वर्ष की अल्पायु में इनका विवाह डाॅ. रूपनारायण वर्मा के साथ हुआ थाा।
- इन्होंने अपनी पहली कविता मात्र सात वर्ष की अल्पायु में लिख डाली थी।
- विरह की प्रांजल अनुभूति, परिष्कृत चिंतन, काव्योचित गंभीरता और सौन्दर्यशिल्प इनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ मानी जा सकती है।
महादेवी जी के बारे में महत्त्वपूर्ण कथन-
बच्चन सिंह के अनुसार,‘ महादेवी के विषय का विस्तार सीमीत है।’
डाॅ.नगेन्द्र के अनुसार,‘ महादेवी के काव्य में हमें छायावाद का शुद्ध और अमिश्रित रूप मिलता है। इन्होंने छायावाद को पढा ही नहीं ,अनुभव किया है।’
डाॅ. नगेन्द्र के अनुसार – सामयिक परिस्थितियों के अनुरोध कर सकने के कारण महादेवी वांछित शक्ति का संचय नहीं कर पाई फलतः एकान्त अन्र्तमुखी हो गयी इस प्रकार उनकी कविताओं के आर्विभाव से मानसिक दमन और अतृप्तीयों का बहुत बङा योग है।
सुधांशु ने लिखा है – ’’महादेवी वर्मा ने अपनी सारी मनोभावनाओं को एक अप्राप्त आराध्य के उपलक्ष्य से अभिव्यक्त करने की चेष्टा की है।’’
बच्चन सिंह के अनुसार – ’’महादेवी के गीत अपनी समस्त कलात्मकता के बावजूद ऊब पैदा करते है।’
रामविलास शर्मा के अनुसार – ’’महादेवी और उनकी कविता का परिचय ’नीर भरी दुख की बदली’ या ’एकाकिनी बरसात’ कहकर नहीं दिया जा सकती उन्हीं के शब्दों में उनका परिचय देना हो तो मैं यह पंक्ति उद्धत करूंगा।
’’रात के उर में दिवस की चाह का शेर हूँ।’’
शान्तिप्रिय द्विवेदी – ’’कविता मैं महादेवी आज भी वही है जहाँ कल थी किन्तु पन्त जहाँ कल थे वहाँ से आज आगे की ओर बढ़ गये है आज उन्होंने युगवाणी दी है, समाजवाद की बाइबिल, महादेवी ने छायावाद की गीता दी है – यामा।
महादेवी वर्मा(Mahadevi verma in Hindi) की प्रमुख पंक्तियाँ
मैं नीर भरी दुख की बदली
परिचय इतना इतिहास यही
उमङी कल थी, मिट आज चली
पर शेष नहीं होगी यह मेरे प्राणों की क्रीङा।
तुमको पीङा में ढूँढ़ा तुममें ढूँढ़ती पीङा।।
जो तुम आ जाते एक बार।
कितनी करुणा कितने संदेश, पथ में बिछ जाते बन पराग
मधुर मधुर मेरे दीपक जल
युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल
प्रियतम का पथ आलोकित कर
मिलन का नाम मत लो मैं विरह में चिर हूँ
बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ।
दूर हूँ तुमसे अखण्ड सुहागिनी भी हूँ।।
महादेवी वर्मा के काव्य की निम्न विशेषताएं भी जरुर पढ़ें
काव्य में वेदना तत्व(Mahadevi Verma ka Jeevan Parichay)
महोदवी के काव्य में वेदना और करूण स्वर की प्रमुखता के कारण इन्हें आधुनिक मीरा कहा जाता है।
’मैं नीर भरी दुख की बदली’
महादेवी के काव्य में व्याप्त दुख या वेदना उस समय की स्त्रियों के दुःखों का दस्तोवज है। जो उस समय में स्त्रियों की स्थिति का प्रकटीकरण करती है। महादेवी की प्रकृति वियोगिनी है और वह कवयित्री के भाव जगत में पूर्ण रूप से व्याप्त है। महोदवी नपे करुण विचारों के मंच पर अपने जीवन के मुरझाए हुए फूलों को सजाया है।
महोदवी ने अपने गीतों मे भावना के संवेदनाओं का सूक्ष्म विश्लेषण तथा उनके सुख-दुखमय विशषतः संस्पर्शों का चित्रण किया है। वेदना का यह स्पर्श महादेवी के भावना जगत में अधिक गहरी तीव्र, मर्मस्पर्शी होकर मिलती है। महादेवी का मानना है कि सुख तो क्षणिक हैं वेदना ही चिर स्थायी है। महादेवी के गीतों में इस वेदना के पीछे एक प्रमुख कारण यह है कि वह नारी है और उन्हें अपनी सारी मर्यादाओं को न लांघ सकने की अपनी अभिव्यक्ति के प्रति इतनी नैतिक शुद्धता एवं आत्मिक दीप्ति है। इसके साथ ही उनकी वाणी में सूक्ष्म बौद्धिकता से मिश्रित तरल करूण और समर्पण की भावना है।
उन्होंने अपने काव्य में वेदना की अभिव्यक्ति के प्रदर्शन के प्रवर्तन हेतु विभिन्न पद्धतियां अपनायी हैं यही कारण है कि उनका पूरा काव्य वेदनामय होने के बावजूद भी एकरस और नीरस नहीं प्रतीत होता। उनकी वेदना मन के लिए भाव स्हस्य न होकर मिलन की संदेशिका है। महोदवी ने वेदना के प्रदर्शन के लिए अनेक शैलियां निर्मित की हैं। चित्रण शैली, प्रश्न शैली, अंलकार शैली, प्रतीक शैली आदि।
महोदवी वेदना नकारात्मक रूप में प्रस्तुत नहीं करती बल्कि करूणा के सकारात्मक रूप की व्यंजना करती हैं। उसमें जीवन का उल्लास एवं उत्साह है-
पर शेष नहीं होगी यह मेरे प्राणों की पीङा।
तुमको पीङा में ढूंढा तुम में ढूंढूगी पीङा।।
प्रगीति
महादेवी के प्रगीति काव्य में आत्माभिव्यंजकता, रागात्मकता, काल्पनिकता, संगीतात्मक, भावगत एकरूपता और शैलीगत सुकुमारता का मिला-जुला रूप मिलता है। रागात्मकता की प्रधानता के कारण उसमें अद्भूत प्रेषणीयता आ जाती है। अपने गीतों के कारण ही महादेवी की ’आधुनिक मीरा’ कहा जाता है।
गीत एक आदिम राग है और लयात्मकता उसकी अस्थि मज्जा। छायावाद में भावनाओं की तीव्रता और कल्पना के अत्यधिक विस्तार ने गीत को सर्वथा नवीन रूप दिया है। इसमें महादेवी का स्थान प्रमुख है। महोदवी कहती है- ’’साधारण तथा गीत वैयक्तिक सभी में तीव्र सुख-दुःखात्मक अनुभूति का वह शब्द रूप है जो अपनी हवन्यात्मकता में गेय हो सके।’’ महादेवी के गीतों में वैयक्तिक विरहानुभूति की व्यंजना और कलात्मक गयेता का पर्याप्त अंश विद्यमान है।
किन्तु अनुभूति की वैसी तीव्रता उनमें नहीं पाई जाती जो कथन में विद्यमान है।
नारी सुलभ संवेदना और संयम के कारण वे अपनी गीत रचना में बङी सजग दिखायी देती है। जिसके लिए उन्हें पग-पग पर प्रतीकों का सहारा लेना पङता है, परिणामस्वरूप गीतों की सहज भावधारा अवरूद्ध होकर बौद्धिक तर्कजाल में उलझ जाती है जिसके कारण गीतों के अर्थबोध और रागात्मक व्यंजना के नष्ट हो जाने की संभावना बढ़ती गयी है।
महोदवी ने अपने गीतों का ढांचा बहुत अनुशासन बद्ध कर दिया है। उनके गीत गणित के नियमों में बंधे गीत हैं। पहली पंक्ति गीत का देह बनकर आती है और पूरे गीत में उसी का अनुकरण होता रहता है।
इनके गीत की सहजता एक हद पर नष्ट हो गयी है। क्योंकि गीत में बुसअत की आवश्यकता होती है, परन्तु महादेवी के गीत में बुसअत का अभाव है जबकि गजल में इसकी प्रधानता होती है। वस्तुतः पहली पंक्ति की तानाशाही का आरंभ महादेवी से ही होता है।
महोदवी के गीत के चार प्रमुख तत्व हैं-
- अभिव्यंजना अथवा वैयक्तिकता
- गेयता
- भाव प्रणवता
- काल्पनिकता
अभिव्यंजना महादेवी के पूरे काव्य का केन्द्र बिन्दु हैं। वेदना और करूणा के सहारे इसकी आत्माभिव्यक्ति ने इनके एकान्त को और भी तपोवन बना दिया है। इस दृष्टि से इन गीतों में उनके सुख-दुखात्मक जीवन का मर्म कथा का व्यापक प्रसाद दिखायी देता है-
जो तुम आ जाते एक बार।
महादेवी की आत्माभिव्यक्ति की सूक्ष्म वेदना एवं उसकी पीङा बोध से उनके गीत और प्रभावशाली हो गये है-
मैं नीर भरी दुख की बदली।
इन गीतों में भाव व्याकुलता ही प्रमुख है जिसकी रागात्मक अभिव्यक्ति के लिए सांगतिक शब्दों की सहायता ली गयी है-
मधुर पिक हौले बोल।
हठीलै हौले-हौले बोल।।
कुछ पंक्तियां हमारे भावभूमि को भी छूती है-
’’तोङ दे यह क्षितिज मैं भी देख लूँ उस ओर क्या है।’’
महादेवी के गीतों में जो भाव प्रवाह है, वह समानान्तर एक रेखीय है उसमें निराला के गीतों के समान भावों का उतार-चढ़ाव नहीं मिलता। दरअसल भावों के प्रवाह के ही कारण महादेवी और निराला के गीतों की सरंचना में भी फर्क आता है।
निराला के गीत जहाँ पर्वत से उतरता प्रवाह है तो महोदवी के गीत मैदान में मंथर गति से बहने वाली सरिता। शब्दों का अद्भूत तराश उनका आवयविक संगठन और कसाव महोदवी के गीतों की अन्यतम् विशेषता है।
प्रतीक योजना(Mahadevi Verma ka Jeevan Parichay)
छायावादी कविता में महादेवी के काव्य में सबसे अधिक प्रतीक है क्योंकि स्त्री को समाज में खुलकर बोलने या विद्रोह करने की आजादी नहीं थी इसलिए महादेवी ने प्रतीकों के माध्यम से अपने भावों, विचारों को व्यक्त किया।
’’मधुर-मधुर मेरे दीपक जल,
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल।’’
यहाँ दीपक को साधना के प्रतीक के रूप में लिया जा सकता है, तो किसी की याद में जलने वाला दीपक भी हो सकता है। इसके साथ ही यह हमें ’असतो मा सद्गमय’ और ’तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का भी संदेश देता है।
छायावादी स्तंभों में प्रसाद, निराला पंत के साथ-साथ महोदवी वर्मा का अन्यतम स्थान है। ’’इनके आत्मपरक गीतों के अभिव्यंजन में हृदय के आलोङन को व्यक्त किया गया है। महादेवी को यह भाव-व्यंजन प्रतीकात्मकता लिये हुए है। इनके पद्य साहित्य में प्रायः आदि से अंत तक प्रतीकात्मक प्रवृत्ति को उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है।
इनकी कविताओं में लोक जीवन जनसमाज की अभिव्यक्ति इसी रूप में हुई है। इस अधुनातन काल में लोक की बात पर लोक के माध्यम से व्यक्त करने के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य था। महादेवी वर्मा के समय का सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन आज की तरह मुक्त नहीं था। उस समय नैतिकता के बंधन एवं सामंती प्रवृत्ति का बोलबाला था।
स्त्री-पुरुष संबंधों केा लेकर आज की तरह स्वच्छंदता नहीं थी अपितु वर्जनाएं थी। स्त्री-शिक्षा का प्रचार-प्रसार नहीं था। घर की चारदीवारी के अंतर्गत ही नारी की दुनिया सीमित थी। शिक्षा इनके लिए वर्जित मानी जाती थी। इस प्रकार के परिवेश में नारी के लिए प्रेम एवं लोक के भाव व्यक्त करना मुश्किल था।
पुरूषों के साथ खुलकर बात करना ठीक नहीं माना जाता था।’’ इन्हीं कारणांे से महादेवी ने अपने सकल अन्तर्मन के उद्वेलन को प्रतीकात्मक रूप में व्यक्त किया है। प्रतीकात्मकता का आवरण हटाकर उनकी कविताओं का अवलोकन करें, तो पायेंगे कि उनकी कविताएं लोक जीवन की पीङा से ओत-प्रोत है।
डाॅ. नामवर सिंह के अनुसार ’’ उनकी नीर भरी दुख की बदली का दुख केवल प्रणय-व्यथा ही नहीं है, उसमें अनेक प्रकार के सामाजिक असंतोष घुले मिले हैं। महोदवी ने अपने समय और समाज की धङकन को प्रकृति, प्रेम, दुख और वेदना के माध्यम से व्यक्त किया।
यथा-
’’मिलन का मत नाम लो,
मैं विरह में चिर हूँ।
महोदवी वर्मा प्रतीकात्मकता के माध्यम से लोगों की मंगलकामना हेतु देशोद्धार के गीत गाती है। इनके गीतों में दुख प्रकट रूप में प्रत्यक्ष होता। दुख के संदर्भ में वे स्वयं कहती हैं कि ’’दुख मेरे लिए निकट जीवन का ऐसा काव्य है जो संसार को एक सू़त्र में बाँधे रखने की क्षमता रखता है।
हमारे असंख्य सुख हमें चाहे तो मनुष्यता की पहली सीढ़ी तक भी न पहुंचा सके, किंतु हमारा एक बूँद आँसू भी जीवन को अधिक मधुर और उर्वर बनाए बिना नहीं गिर सकता। मनुष्य सुख को अकेला भोगना चाहता है परन्तु दुख सबको बाँटकर।
’सुख-मधु में क्या दुख का मिश्रण
दुख विष में क्या सुख मिश्री-कण।
जाना कलियों के देश तुझे,
तो शूलों से शंृगार न कर,
कहता जग दुख को प्यार न कर।’
महादेवी ने व्यक्ति के माध्यम से अपनी समकालीन सामाजिक व्यवस्था को समझने का प्रतीक रूप में स्तुल्य प्रयास किया।
’मेरे बिखरे प्राणों, सारी करूणा ढुलका दो।
मेरी छोटी सीमा में, अपना अस्तित्व मिटा दो।
पर शेष नहीं होगी यह, मेरे प्राणों की पीङा।
तुमकों पीङा में ढूँढा, तुमने ढूंढूगी पीङा।’
महादेवी पर बौद्धदर्शन का प्रभवा भी लक्ष्य होता है जिसको उन्होंने इस कविता में व्यक्त किया है,
यथा-
इस प्रकार महादेवी वर्मा ने अपने उद्गारों को प्रतीकात्मक रूप में व्यक्त किया। वे प्रतीकात्मक रूप में समाज की, लोक की, जन की पीङाओं को वाणी दे रही थी।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में