आज के आर्टिकल में हम कृष्णभक्त कवयित्री मीराबाई (Mirabai ka Jivan Parichay) के जीवन परिचय को विस्तार से पढेंगे और इनसे जुड़ें महत्त्वपूर्ण तथ्यों को जानेंगे ।
कवयित्री मीराबाई – Mirabai ka Jivan Parichay
Table of Contents
जीवनकाल | 1504-1563 ईस्वी |
जन्मस्थान | ग्राम कुङकी, मारवाङ (राजस्थान), मेङता के निकट |
पिता | राव रतनसिंह (जोधपुर संस्थापक राव जोधा के पौत्र, राव दूदा के पुत्र) |
पति | कुंवर भोजराज (मेवाङ के राणा सांगा के पुत्र) |
उपाधि | ’मरुस्थल की मंदाकिनी’ – सुमित्रानंदन पंत |
भक्ति भाव | माधुर्य भाव (कृष्ण की पति मानकर उनकी भक्ति) |
सूफी प्रभाव | रामचंद्र शुक्ल जी का। |
गुरु | संत रैदास (रविदास) को स्मरण किया। चैतन्य संप्रदाय के जीव गोस्वामी से दीक्षा। |
प्रमुख रस | विप्रलंभ शृंगार |
रचनाएँ | डाॅ. नगेन्द्र ने 11 पुस्तकें बतायी, जिसमें से ’स्फुटपद’ (पदावली) को प्रमाणित माना। |
रचनाएँ – गीत गोविन्द की टीका, नरसी जी रो मायरो, राग सोरठा पद, मलार राग, राग गोविन्द, सत्यभामानुरुषणं, मीरां की गरबी, रुक्मणी मंगल, चरित, स्फुटपद नरसी मेहता रो मायरो। मीराबाई की रचनाओं का संकलन ’मीराबाई की पदावली’ के रूप में उपलब्ध है।
आलोचना ग्रंथ – मीराबाई – हिन्दी की पहली स्त्री-विमर्शकार, स्त्रीलेखन स्वप्न और संकल्प (2011) – रोहिणी अग्रवाल
मीरा की प्रेम साधना – भुवनेश्वरनाथ मिश्र
⇒ मीरा का काव्य (1979) – विश्वनाथ त्रिपाठी
मीरा ग्रंथावली – कल्याण सिंह शेखावत
मीराबाई का प्रारंभिक जीवन – Mirabai ka Jivan Parichay
हिन्दी के भक्त कवियों में मीराबाई का महत्वपूर्ण स्थान है। इनका जन्म कुड़की गाँव (मेवाड़ रियासत) में हुआ था। मीराबाई अपने माता-पिता की इकलौती पुत्री थी। इनके पिता का नाम रतन सिंह राठौड़ तथा माता का नाम वीर कुमारी था। मीरा के जन्म के कुछ वर्षों पश्चात् ही इनकी माता का निधन हो गया था। इनकी माता के निधन के बाद इनका लालन-पालन इनके दादा राव दुदा के द्वारा किया गया था। इनके दादा भगवान विष्णु के उपासक थे और एक वीर योद्धा थे।
मीराबाई बचपन से ही भगवान श्रीकृष्ण की पूजा आराधना करने लगी थी। उनकी माता ने एक बार परिहास में मीराबाई से कहा कि गिरधर ही आपके दूल्हा है और बाल मीराबाई ने इसी बात को सही मान लिया और श्रीकृष्ण की अराधाना में लग गई।
उदयपुर के राणा सांगा के पुत्र भोजराज के साथ मीराबाई का विवाह हो गया। परन्तु मीराबाई के जीवन में खुशियाँ ज्यादा दिनों तक न रह पाई और कुछ ही वर्षों के बाद भोजराज की मुगलों के साथ युद्ध में मृत्यु हो गई। भोजराज की मृत्यु के बाद मीराबाई विधवा हो गई। खानवा के युद्ध में लड़ते हुए इनके पिता रतनसिंह भी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए। पिता और पति की मृत्यु के कुछ समय पश्चात् ही राणा सांगा की भी हत्या हो गई। मीराबाई ने सतीप्रथा व पर्दाप्रथा का विरोध किया। मीरा के गुरु रैदास थे। मीराबाई बचपन से ही श्रीकृष्ण के प्रति अत्यन्त प्रेम रखती थी।
पिता, पति और ससुर की मृत्यु के बाद मीराबाई अपना अधिक समय श्रीकृष्ण की भक्ति में गुजारने लगी। मीराबाई लोक लज्जा को त्याग पर भजनों पर नाचने और गाने लगी। मीराबाई का इस प्रकार नाचना गाना परिवार वालों को अच्छा नहीं लगा इसलिए उन्होंने बहुत बार मीराबाई को जहर देकर मारने का भी प्रयत्न किया। परिवार वालों के व्यवहार से मीराबाई परेशान हो गई और वो वृंदावन चली गई। वहाँ उनको बहुत सम्मान मिला। वह जहाँ भी जाती लोगों से अपनत्व भाव ही पाती।
मीरा की भक्ति-कान्ता/माधुर्य एवं दाम्पत्य भाव की थी। मीराबाई सन्तों और सत्संगति में विश्वास करती थी, उनका मानना था कि साधुओं के संगति में रहकर ही ज्ञान प्राप्त होता है। इस प्रकार मीरा ने मथुरा वृंदावन और जीवन के अंतिम समय द्वारिका में स्थित रणछोड़ जी के मंदिर में गाते-गाते इनकी मृत्यु हो गयी।
मीराबाई की जयंती
शरद पूर्णिमा के दिन मीराबाई जयंती मनाई जाती है। भगवान कृष्ण की अखण्ड भक्तिन मीराबाई ने अपने पूरे जीवन में एक क्षण के लिए भी भगवान कृष्ण का नाम अपनी जुबान से अलग नहीं किया। उन्होंने अपने शरीर का अंत भी कृष्ण की मूर्ति में समाकर कर दिया। उनके भजनों और पदों में भक्ति का अमृत भरा हुआ है।
पदावली -Mira bai ka Jivan Parichay
मोर मुकुट मकराकृत कुण्डल, अरुण तिलक दिए भाल।
मोहनि मूरति, साँवरि सूरति, नैना बने बिसाल।
अधर-सुधा-रस मुरी राजत, उर बैजंती-माल।।
छुद्र घंटिका कटि-तट सोभित, नूपुर सबद रसाल।
मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भक्त बछल गोपाल।।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरू, किरपा कर अपनायो।
जनम-जनम की पूँजी पायी, जग में सभी खोवयो।
खरचैं नहिं कोई चोरं न लैवे, दिनदिन बढ़ते सवायो।
सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, हरख-हरख जस गायो।।
कोई कहै छाने, कोई कहै चुपके, लियो री बजन्ता ढोल।।
काई कहै मुँहधो, कोई कहै मुँहधो, लियो री तराजू तोल।
कोई कहै कारो, कोई कहै गोरो, लियो री अमोलक मोल।।
याही कूँ सब जागत है, लियो री आँखी खोल।
मीरा कूँ प्रभु दरसण दीन्यौ, पूरब जनम कौ कौल।।
साजि सिंगार बांधि पग घुघरू, लोक लाज तजि नाँची।।
गई कुमति लई साधु की संगति, भगत रूप भई साँची।।
गाय-गाय हरि के गुण निसदिन, काल ब्याल सँ बाँची।।
उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब काँची।।
मीरा श्री गिरधरन लाल सूँ, भगति रसीली जाँची।।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई
तात मात भ्रात बन्धु, आपनो न कोई।।
छाँड़ि दई कुल की कानि, कहा करिहै कोई।
संतन ढिंग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोई।।
असुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम बेलि बोई।।
अब तो बेल फैल गई, आणंद फल होई।।
भगति देखि राजी हुई, जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर, तारो अब मोई।।
मीराबाई के बारे में महत्त्वपूर्ण पंक्तियाँ – Mirabai ka Jivan Parichay
- जग सुहाग मिथ्या री सजनी हांवा हो मिट जासी।
- मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोय।
- बसो मेरे नैनन में नंदलाल।
मोहनि मूरत सांवलि सूरत नैणा बने विशाल। - कोई कहियो हरि आवण की।
सावण में उमग्यो मेरो मन, भनक सुनी हरि आवण की। - पपइया रे पिव की वाणी न बोल।
- हेरी मैं तो दरद दीवानी, मेरो दरद न जाणै कोय।
- मैंने राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु करि किरया अपनाओ। - पिया बिन रह्योई न जाइ।
- बिरहनी बावरी सी भई।
- घायल की गति घायल जाणै ओर न जाणे कोय।
- पग घुँघरु बाँध मीरां नाची रे।
विशेष – माना जाता है कि अपने परिजनों द्वारा परेशान करने पर मीरा ने एक पत्र गोस्वामी तुलसीदास को लिखा। जिसमें उन्होंने लिखा –
स्वाति श्री तुलसी कुल भूषण दूषण हरन गोसाई।
बारहिं बार प्रनाम करहुँ, अब हरहु सोक समुदाई।
इस पर तुलसीदास ने मीरा को विनयपत्रिका का निम्न पद लिखकर भेजा –
जाके प्रिय न राम वैदेही
सो नर तजिय कोटी बैरी सम जद्यपि परम सनेही।
प्रमुख कथन – Mirabai ka Jivan Parichay
🔸 नगेन्द्र – मीरांबाई का काव्य उनके हृदय से निकले सहज प्रेमोच्छ्वास का साकार रूप है।
🔹 विश्वनाथ त्रिपाठी – विषपान मीरा का मध्यकालीन नारी का स्वाधीनता के लिए संघर्ष है और अमृत इस संघर्ष से प्राप्त तोष है जो भाव सत्य है। मीरा का संघर्ष जागतिक वास्तविक है, अमृत उनके हृदय या भाव जगत में ही रहता है।
🔸 मैनेजर पाण्डेय – कबीर, जायसी और सूर के सामने चुनौतियाँ भाव जगत की थीं। मीरा के सामने भाव जगत से अधिक भौतिक जगत की, सीधे पारिवारिक और सामाजिक जीवन की चुनौतियाँ तथा कठिनाईयाँ थी।
🔹 रोहिणी अग्रवाल – मीरां के पदों को यदि आध्यात्मिकता के कुहांसे से मुक्त कर दिया जाए, तो वे जीवन के राग, उल्लास, उत्सव और ठाट-बाट के साथ एन्द्रिकता के उद्दाम का भी संस्पर्श करते हैं। घोर लौकिकता के बीच घोर शृंगारिक बाना।
🔸 पूनम कुमारी – मीरा की कविताएँ स्त्री चेतना के इतिहास की एक विलक्षण धरोहर हैं। आज तक जितनी भी स्त्री चेतनापरक कविताएँ लिखी गई हैं उनके बरबस मीरा की कविताओं को रख दिया जाए तो इनकी विलक्षणता की पहचान ज्यादा आसान हो जाएगी और शायद ज्यादा तीखेपन की भी स्त्री चेतना के संदर्भ में मीरा एक खास अर्थ में प्रासंगिक और आधुनिक हैं। और सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि वे आधुनिकता के सारे प्रचलित प्रतिमानों से दूर रहते हुए भी आधुनिक और प्रासंगिक है। (स्त्री चेतना और मीरा का काव्य)
🔹 रामस्वरूप चतुर्वेदी – मीरा का काव्य उन विरल उदाहरणों में हैं जहाँ रचनाकार का जीवन और काव्य एक-दूसरे में घुल मिल गए हैं, परस्पर के संपर्क से वे एक दूसरे को समृद्ध करते है।
दोस्तो आज के आर्टिकल में हमने कृष्ण भक्त कवयित्री मीराबाई (Meera Bai in Hindi) के जीवन परिचय और इनसे जुड़ें महत्त्वपूर्ण तथ्यों के बारे में पढ़ा ,हम आशा करतें है कि आपके लिए यह जानकारी उपयोगी साबित होगी ।