आज की इस पोस्ट में हम श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित पूजन कविता की सम्पूर्ण व्याख्या विस्तार से पढे़गें तथा इस कविता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करेगें ।
पूजन(Pujan Kavita)
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पाठ-परिचय
यह काव्यांश लेखक के ’हल्दीघाटी’ महाकाव्य से उद्घृत है। इसमें कवि ने देश हित उत्सर्ग करने वाले वीरों के प्रति श्रद्धा भाव अभिव्यक्त करते हुए देव तीर्थोें से अधिक पुण्यदायी चित्तौङ की भूमि को बताया है। स्वाभिमान और स्त्रीत्व का रक्षार्थ जीवित आग को समर्पित वीरांगनाओं के त्याग व बलिदान की गाथा से कवि भारतीय नारी के पूजनीया स्वरूप को प्रतिष्ठित करता है। अजेय दुर्ग चित्तौङ के माध्यम से कवि ने शहीदों के प्रति आदर भाव तो अभिव्यक्त किया ही है, साथ ही उसके प्रति आस्थावान बनने का सन्देश भी दिया है।
थाल सजाकर किसे पूजने,
चले प्रात की मतवाले।
कहाँ चले तुम राम नाम का,
पीताम्बर तन पर डाले ?
प्रसंग
प्रस्तुत अवतरण कवि श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित ’हल्दी घाटी’ महाकाव्य से संकलित ’पूजन’ शीर्षक काव्यांश से लिया गया है। इसमें किसी सन्यासी द्वारा वीरों के तीर्थ चित्तौङ में पूजन सामग्री लेकर जाने का वर्णन है।
व्याख्या
कवि श्यामनारायण पाण्डेय वर्णन करते हुए कहते है कि हे मतवाले सन्यासी! तुम प्रातः काल ही पूजा का थाल सजाकर अर्थात् पूजन की सारी सामग्री लेकर किसे पूजने जा रहे हो ? तुम अपने शरीर पर राम नाम से अंकित पीला वस्त्र डालकर अर्थात् पीला राम-नामी वस्त्र ओढ़कर कहाँ चले जा रहे हो ? पूजन की थाली में चन्दन और अक्षत (पूजा के चावल) तथा बगल मे मृग-चर्म का आसन दबाकर तुम कहाँ जा रहे हो ? तुम्हारी यह सजी हुई आरती और जूही की माला किसके पूजन के लिए एवं कहाँ जा रही है ?
विशेष
1. पूजन के माध्यम से मेवाङ के शौर्य एवं स्वाभिमान के प्रति श्रद्धा भाव व्यक्त किया गया है।
2. पूजन की परम्परागत सभी सामग्री का उल्लेख हुआ है।
ले मौंजी, उपवीत, मेखला, कहाँ चले तुम दीवाने ?
जल से भरा कमंडलु लेकर, किसे चले तुम नहलाने ?
चले झूमते मस्ती से तुम, क्या अपना पथ आये भूल ?
कहाँ तुम्हारा दीप जलेगा, कहाँ चढ़ेगा माला फूल ?
इधर प्रयाग न गंगासागर इधर न रामेश्वर काशी।
कहाँ, किधर है तीर्थ तुम्हारा, कहाँ चले तुम सन्यासी ?
प्रसंग
यह अवतरण श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित ’हल्दी घाटी’ महाकाव्य से संकलित ’पूजन’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसमें कवि सन्यासी से पूछता है कि वह पूजन सामग्री लेकर कहाँ जा रहा है ?
व्याख्या
कवि कहता है कि हे सन्यासी! हे मतवाले व्यक्ति! तुम मौंजी, जनेऊ और करधनी को लेकर कहाँ चले जा रहे हो ? जल से भरा कमण्डल लेकर तुम किसे नहलाने या किसका अभिषेक कराने जा रहे हो ? तुम मस्ती में इस तरह झूमते जा रहे कि तुम्हें अपना आगे का रास्ता भी क्या याद नहीं है ? तुम कहाँ पर पूजा का दीपक जलाना चाहते हो और कहाँ पर या किसे माला व फूल चढ़ाना चाहते हो ? क्योंकि तुम जिस दिशा की ओर जा रहे हो, उस ओर न पवित्र तीर्थ प्रयाग है, न गंगासागर है, न काशी और न रामेश्वर तीर्थ है। फिर तुम किस तीर्थ की ओर जा रहे हो ? तुम्हारा वह तीर्थ कौनसा है और तुम कहाँ जाना चाहते हो ?
विशेष
1. सन्यासी चित्तौङ की ओर जा रहा है। कवि इसी कारण पूछता है कि वहाँ कौनसा तीर्थ है ? इससे चित्तौङ के प्रति श्रद्धा भाव व्यक्त हुआ है।
2. मौंजी पुरुष धारण करते है, जबकि मेखला स्त्रियाँ बाँधती है। कवि ने दोनों का एक साथ प्रयोग प्रश्नात्मक किया है।
मुझे न जाना गंगासागर, मुझे न रामेश्वर, काशी।
तीर्थराज चित्तौङ देखने को मेरी आँखें प्यासी।
अपने अचल स्वतंत्र दुर्ग पर, सुनकर बैरी की बोली।
निकल पङी लेकर तलवारें, जहाँ जवानों की टोली।
जहाँ आन पर माँ-बहिनों की, जला-जला पावन होली।
वीर-मण्डली गर्वित स्वर से, जय माँ की जय जय बोली।
प्रसंग
यह पद्यांश श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित ’हल्दीघाटी’ महाकाव्य से संकलित ’पूजन’ कवितांश से लिया गया है। इसमें सन्यासी ने जो उत्तर दिया, उसी का वर्णन है।
व्याख्या
कवि वर्णन करता है कि सन्यासी ने कहा कि न तो मुझे गंगासागर तीर्थ जाना है, न मुझे रामेश्वर और काशी जाना है। मैं नये तीर्थराज चित्तौङ को देखना चाहता हूँ। उसी के दर्शनों के लिए मेरी आँखे लालायित है। वह तीर्थराज चित्तौङ ऐसा है, जो अपने अचल दुर्ग पर शत्रुओं की बोली या आक्रमण की आवाजें सुनकर जोश से भर गया था, जहाँ से शत्रुओं का मुकाबला करने के लिए जवानों की टोली तलवारें निकल पङी थी। जहाँ पर सतीत्व की रक्षा के लिए अपनी मान-मर्यादा की खातिर माताओं एवं बहिनों ने पवित्र जौहर की आग जलाकर आत्म-बलिदान किया था और जहाँ पर वीरों की मण्डली गर्व से भरे स्वर में हुँकार भरती हुई ’जय माँ, जय मातृभूमि’ की घोषण करती हुई शत्रुओं का सामना करने के लिए निकली थी।
विशेष-
1. कवि ने चित्तौङ दुर्ग के ऐतिहासिक गौरव को लक्ष्य कर उसे वन्दनीय तीर्थराज बताया है।
2. मेवाङ के शौर्य एवं बलिदान की व्यंजना की गई है।
सुन्दरियों ने जहाँ देश-हित, जौहर व्रत करना सीखा।
स्वतंत्रता के लिए जहाँ के बच्चों को मरना सीखा।
वहीं जा रहा पूजन करने, लेने सतियों की पद-धूल।
·वहीं हमारा दीप जलेगा, वहीं चढे़गी माला, फूल।
वहीं मिलेगी शांति वहीं पर, स्वस्थ हमारा मन होगा।
वीरवरों की पूजा होगी, खड्गों को दर्शन होगा।
प्रसंग
यह पद्यांश ’पूजन’ शीर्षक कविता से लिया गया है। यह कविता श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित ’हल्दी घाटी’ महाकाव्य से संकलित है। इसमें चित्तौङगढ़ के ऐतिहासिक शौर्य एवं बलिदान का उल्लेख किया गया है।
व्याख्या
कवि के वर्णानानुसार वह सन्यासी कहने लगा कि वह तीर्थराज चित्तौङ ऐसा गौरवशाली है कि वहाँ की सुन्दर स्त्रियों ने देश की भलाई की खातिर जौहर व्रत करना सीखा, अर्थात् अपने सतीत्व की रक्षा की रक्षा के लिए आग की लपटों में जीवन मिटा देना या आत्म-बलिदान करना सीखा। जहाँ के बच्चों ने मातृभूमि की स्वतंत्रता की खातिर सहर्ष प्राणों का त्याग करना अथवा मरण-महोत्सव करना सीखा। मैं इस पूजन की थाली को लेकर वहीं उनकी पूजा करने जा रहा हूँ और उन सती-नारियों के पैरों की धूल का स्पर्श करना चाहता हूँ। वहीं पर हमारे द्वारा पूजन का दीप जलेगा और वहीं पर ये माला और फूल चढेंगे। वहीं पर जाकर हमारे हृदय को शानत मिलेगी और हमारा मन स्वस्थ या प्रसन्न हो सकेगा। उसी तीर्थराज चित्तौङगढ़ में श्रेष्ठ पराक्रमी वीरों की पूजा होगी और उनके शौर्य के प्रतीक तलवारों के दर्शन भी होंगे।
विशेष
1. मातृभूमि की आजादी की खातिर जौहर करने वाली वीर नारियों, देशभक्त युवकों एवं वीर श्रेष्ठों के प्रति श्रद्धा का भाव व्यक्त किया गया है।
2. चित्तौङ के ऐतिहासिक शौर्य एवं बलिदान की व्यंजना हुई है।
जहाँ पद्मिनी जौहर व्रत कर, चढ़ी चिता की ज्वाला पर।
क्षण भर वहीं समाधि लगेगी, बैठ इसी मृग-छाला पर।
नहीं रही, परचिता-भस्म तो होगा ही, उस रानी का।
पङा कहीं, न कहीं होगा ही, चरण चिह्न महारानी का।
उस पर ही ये पूजा के सामान सभी अर्पण होंगे।
चिता-भस्म-कण की रानी के दर्शन हित दर्पण होंगे।
प्रसंग
प्रस्तुत पद्यांश श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित ’हल्दी घाटी’ महाकाव्य से संकलित ’पूजन’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसमें चित्तौङ को पवित्र तीर्थ के समान बताया गया है।
व्याख्या
कवि वर्णन करता है कि वह सन्यासी कहने लगा- उस चित्तौङगढ़ में जहाँ पर रानी पद्मिनी ने जौहर व्रत किया था और वह सहर्ष चिता की लपटों पर चढ़ी थी, मैं वही पर जाकर इस मृगछाला पर बैठूँगा और क्षण भर वहीं पर समाधि लगाऊँगा। आज भले ही वह महारानी पद्मिनी नहीं रही, परन्तु वहाँ पर उसकी चिता की भस्म तो बची होगी और वहाँ पर कहीं-न-कहीं उस महारानी के पवित्र चरणों के चिह्न शेष होंगे। मैं उन्हीं चरण चिह्नों पर इस पूजा की सामग्री को अर्पित कर दूँगा। भले ही महारानी के प्रत्यक्ष दर्शन नहीं हो सकेंगे, परन्तु उसकी चिता-भस्म के कण उसके दर्शन के दर्पण बन जायेंगे, अर्थात् उन कणों से ही रानी पद्मिनी के त्याग एवं बलिदान का परिचय मिल जायेगा, भावात्मक दर्शन हो जायेंगे।
विशेष
1. रानी पद्मिनी तथा अन्य वीर-नारियों का पवित्र स्मरण कर उनके बलिदान-स्थल को पवित्र तीर्थ जैसा बताया गया है।
2. वीरांगनाओं के त्याग एवं बलिदान पर श्रद्धा व्यक्त की गई है।
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