काव्य रीति क्या है?
‘रीति’ शब्द ‘री’ धातु में ‘क्तिन’ प्रत्यय के योग से निर्मित है, जिसका अर्थ है मार्ग, प्रणाली या पद्धति । ‘री’ धातु जाने या गति करने के अर्थ में प्रयुक्त होती है । रीति शब्द की व्युत्पत्ति है;’ रीयते अनेनेति रीति’ अर्थात जिस मार्ग से गमन किया जाए वही रीति है । स्वभावगत विशिष्टता के अनुसार प्रत्येक कवि की काव्य रचने की एक विशिष्ट पद्धति होती है । उसी विशिष्ट पद्धति को रीति कहा जाता है ।
रीति शब्द की उत्पत्ति और अर्थ
रीति शब्द ‘री’ धातु में क्तिन प्रत्यय के योग से बना है जिसका अर्थ है – मार्ग। सामान्यतः रीति का अर्थ ढंग, शैली, पद्धति, प्रणाली, पंथ, रचना प्रविधि, तरीका, प्रस्थान इत्यादि से है। काव्यशास्त्र में विशिष्ट पद रचना को रीति कहा गया है।
रीति शब्द को सर्वप्रथम प्रयोग 8-9 वी सदी में आचार्य ‘वामन’ ने अपने ग्रंथ ‘काव्यालंकार सूत्रवृत्ति’ में किया। वामन ने रीति को काव्य की आत्मा मानते हुएलिखा है- “रीतिरात्मा काव्यस्य”। वामन ने रीति का अर्थ बताते हुए लिखा है- “विशिष्ट पद रचना रीति:” तथा इस पद में प्रयुक्त विशिष्ट शब्द की व्याख्या करते हुए वामन ने कहा है- “विशेषोगुणात्मा:” अर्थात् गुणों से युक्त विशिष्ट पद रचना ही रीति कहलाती है।
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