विरोधाभास अलंकार किसे कहते हैं?
विरोधाभास’ शब्द ’विरोध+आभास’ के योग से बना है, अर्थात् जब किसी पद में वास्तविकता में तो विरोध वाली कोई बात नहीं होती है, परन्तु सामान्य बुद्धि से विचार करने पर वहाँ कोई भी पाठक विरोध कर सकता है तो वहाँ विरोधाभास अलंकार माना जाता है। जैसे-
’’या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहि कोय।
ज्यौं ज्यौं बूङै स्याम रंग, त्यौं त्यौं उजलो होय।।’
स्पष्टीकरण – प्रस्तुत पद में कवि यह कहना चाहता है कि हमारे अनुरागी मन की गति को कोई भी समझ नहीं सकता है, क्योंकि यह जैसे-जैसे कृष्ण भक्ति के रंग में डूबता जाता है, वैसे-वैसे ही उसके विकार दूर होते चले जाते है।
यहाँ कोई भी सामान्य बुद्धि का पाठक यह विरोध कर सकता है कि जो काले रंग में डूबता है, वह उज्जवल कैसे हो सकता है। अर्थात कृष्ण तो काले रंग के है तो उनके पास जाने से उज्ज्वल कैसे हो सकते है। इस प्रकार विरोध का आभास होने के कारण यहाँ विरोधाभास अलंकार माना जाता है।