आज के आर्टिकल में हम राहुल सांकृत्यायन (Rahul Sankrityayan ka Jeevan Parichay) के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे ,इनसे जुड़ें महत्त्वपूर्ण तथ्य पढेंगे।
राहुल सांकृत्यायन – Rahul Sankrityayan ka Jeevan Parichay
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राहुल सांकृत्यायन – Rahul Sankrityayan
” सैर कर जिंदगी की ग़ाफ़िल, जिंदगानी फिर कहाँ?
जिंदगी गर कुछ रहीं तो, नौजवानी फिर कहां? “
चंद पंक्तियों से ही हमें राहुल सांकृत्यायन (Rahul Sankrityayan) की पूरी जीवनी का वर्णन नजर आ जाता है, हिंदी साहित्य जगत के यायावरी, इतिहासविद और तत्वान्वेषी के रूप में जाने जाते हैं।
- जन्म :-9 अप्रैल 1893 आजमगढ़ मे हुआ।
- मृत्यु:- 13 अप्रैल 1963 को दार्जिलिंग में।
- मूल नाम:- केदारनाथ पांडे
- पिता:- गोवर्धन पांडे
- माता:- कुलवंती
- पालन-पोषण:- इनके नाना श्री राम शरण पांडे ने किया।
- बाल विवाह होने के कारण उन्होंने बचपन में ही गृह त्याग कर दिया, और एक साधु के रूप में रहे।
- अपनी जिज्ञासु और घुमक्कड़ प्रवृत्ति के कारण बार-बार गृह त्याग कर साधु वेषधारी, सन्यासी से लेकर वेदांती, आर्य समाजी, किसान नेता, बौद्ध भिक्षु से लेकर साम्यवादी चिंतक तक का लंबा सफर तय किया।
- 20 वर्ष की आयु तक इन्हें 36 भाषाओं का ज्ञान हो चुका था।
- लखनऊ में यह भदत आनंद कौशल्यानंद से मिले, इन्हीं से यह बौद्ध भिक्षु में यह रूचि लेने लगे।
- 1930 में श्रीलंका में इन्होंने बुद्ध भिक्षु के रूप में शिक्षा प्राप्त की और “राहुल सांकृत्यायन” कहलाए।
- हिमालय की यात्रा इन्होंने 17 बार की और तिब्बत की 4बार।
संस्कृत के सर्वज्ञाता होने के कारण काशी के पंडितों ने इन्हें “महापंडित” की उपाधि से सम्मानित किया। - 1938 रूस के लेनिनग्राद मैं एलेना नामक स्त्री से विवाह किया पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
- 1940 द्वितीय विश्व युद्ध के समय यह नैनीताल आकर बस गए और कमला से इन्होंने शादी की जिससे इन्हें दो बच्चे हुए।
- 1948 में कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने रहे।
- 13 अप्रैल 1963 को दार्जिलिंग में इनकी मृत्यु हो गई।
रचनाएँ – Rahul Sankrityayan ka Jeevan Parichay
कहानियां:-
- सतमी के बच्चे
- वोल्गा से गंगा:- इसमें 20 कहानियां संग्रहित है जो कि मातृसत्तात्मक परिवार व स्त्री वर्चस्व की बेजोड़ रचना है
- बहुरंगी मधुपुरी
- कनैला की कथा
उपन्यास:-
- 22 वी सदी
- जीने के लिए
- जय योद्धेय
- भागो नहीं दुनिया को बदलो
- मधुर स्वपन
- राजस्थान के निवास
- विस्मृत यात्री
- दिवो दात्त
आत्मकथा :-
- मेरी जीवन यात्रा
यात्रा साहित्य:-
- रूस में 25 मार्च
- मेरी तिब्बत यात्रा
- तिब्बत में सवा वर्ष
- मेरी लद्दाख यात्रा
- चीन में क्या देखा
- किन्नर देश की ओर
- विश्व की रूपरेखा
- एशिया के दुर्गम भूखंड
- चीन में कम्यून
- यात्रा के पन्ने
जीवनियां :-
- बचपन की स्मृतियां
- अतीत से वर्तमान
- मेरे असहयोग के साथी
- जिनका मैं कृतज्ञ
- कार्ल मार्क्स
- लेनिन
- स्तालिन
- माओ चे तुंग
साहित्य अकादमी
- पुरस्कार :-1957 को मध्य एशिया का इतिहास के लिए मिला
- इन्होंने जेल में “दर्शन दिग्दर्शन” पुस्तक की रचना की।
- अपने सभी यात्राओं का वर्णन इन्होंने अपनी पुस्तक “घुमक्कड़ शास्त्र, ” में किया है इसमें इन्होंने लिखा है “कमर बांध लो भावी घुमक्कड़ों संसार तुम्हारे स्वागत के लिए बेकरार है।”