शेखर एक जीवनी – अज्ञेय

आज के आर्टिकल में हम अज्ञेय द्वारा लिखित उपन्यास शेखर एक जीवनी के बारे में चर्चा करेंगे ,इसकी विषयवस्तु को समझेंगे |

शेखर एक जीवनी - अज्ञेय

⇒ शेखर: एक जीवनी आतंकवाद की छाया में लिखा हुआ एक ऐसा उपन्यास है, जिस पर मनोविश्लेषण शास्त्र के प्रभाव के साथ समाज के परिप्रेक्ष्य में व्यक्ति और उसके विचारों को देखा गया है।

’शेखर एक जीवनी’ आत्मकथन शैली में लिखा गया वैयक्तिक अनुभवों का एक लंबा दस्तावेज है। इसके नायक शेखर में अपने आसपास के जीवन तथा उसके विविध प्रसंगों को संवेदनात्मक रूप में प्रस्तुत करने की क्षमता है। शेखर के व्यक्तित्व में गौरव और शक्ति का योग है। वह विद्रोही है किंतु आश्चर्य की बात है कि उसका विद्रोह सक्रिय नहीं हो पाता। क्रांतिकारियों के संपर्क में आकर तथा विलम्ब में होने वाली हिंसा के औचित्य को स्वीकार करते हुए भी वह क्रांति-कार्यों में भागीदारी नहीं करता।

उसके चरित्र की एक निर्बलता है प्रेरणा और निष्ठा की कमी। शशि शेखर को कर्म की ओर प्रवृत्त होने की प्रेरणा दी। शशि उपन्यास का एक विवेकशील पात्र है।

एक बार जेल से बाहर निरुद्देश्य घूमते हुए शेखर को शशि कर्तव्यरत होने की ओर प्रेरित करती है, ’’अब जल्दी-जल्दी कुछ निश्चय कर डालो न, क्या करोगे? यों ही भटकना अच्छा नहीं।’’ इसके उत्तर में शेखर के मन में जो अंतद्र्वन्द्व होता है, उससे स्पष्ट हो जाता है कि उसमें निश्चय ही दृढ़ता का अभाव है। वह मन में विचारता है, ’’मैं क्या निश्चय करूँ? आगे मैंने कौन-से निश्चय किए हैं? या किए हैं तो कौन से निश्चय का अनुसरण संभव हो सकता है।’’

शेखर में अहम्पन्यता और दंभ भी है। सैक्स के प्रति शेखर के दकियानूसी रवैये से निश्चय ही पाठक के मन में खीज होती है। अपने संपर्क में आने वाली प्रत्येक युवती के प्रति उसका सैक्स जाग उठता है।

शेखर एक जीवनी – अज्ञेय

सत्य को सह पाने की यह कायर प्रवृत्ति शेखर में बार-बार दिखाई पङती है। एक बात और शेखर में कर्मशीलता, चारित्रिक स्थिरता और साहस का अभाव है।

उपन्यास के आधार पर उससे प्राप्त होने वाले राजनीतिक प्रसंगों की व्याख्या करने पर यह कह सकते हैं कि शेखर एक द्विधाग्रस्त मानसिकता वाला मध्यवर्ग से आया हुआ चरित्र है जो अनायास क्रांतिकारी कार्यों तथा राजनीति के बहाव में आ जाता है।
मृत्युदंड पाये हुए शेखर के सामने सारा अतीत सजीव हो उठता है। इस उपन्यास की नई शैली और लेखक की पैनी मनोवैज्ञानिक दृष्टि ने इस उपन्यास को हिन्दी साहित्य की उच्च कोटि की तथा अग्रगण्य रचना के रूप में मान्यता प्रदान की है।

उपन्यास में एक व्यक्ति के निजी जीवन की वेदना एवं यातना का चित्रण होते हुए उसमें युग का बौद्धिक संघर्ष भी प्रतिबिम्बत होता है जिसके फलस्वरूप व्यक्ति का विकास होता है।’’ शेखर की बाल्यावस्था पर फ्रायडवादी प्रभाव को मानते हुए सत्यपाल चुघ लिखते हैं कि, ’’बाल-जीवन के चित्रण में शेखर की जिज्ञासाओं, व्यवहारों आदि का वर्णन फ्रिटज का अनुकरण मात्र नहीं, उसकी अपनी परिस्थितियों का परिणाम है। हम इस मत से सहमत हैं और हमारा तो यही कहना है कि शिशु के मन में सहज संवेदनाएँ होती हैं।

नई बातों और वस्तुओं, जैसे ईश्वर सम्बन्धी, जन्म सम्बन्धी तथा माता-पिता के यौन-प्रणय-व्यापार सम्बन्धी जो जिज्ञासा एक सामान्य शिशु में होती है, शेखर में उसी तीव्र जिज्ञासा भाव का आवर्तन-प्रत्यावर्तन अहिर्न रूप में होता हुआ दिखाई पङता है।’’

निष्कर्ष:

हम कह सकते हैं कि अज्ञेय ने शेखर के चरित्र को विशिष्ट बनाने हेतु अहंवादी, भयग्रस्तता, जिज्ञासु वृत्ति, अनास्थावादी भाव, अधोमुखी क्रियाएं, घृणाभावना, अनुशासन बद्धता, आत्मनिर्भरता की भावना, विद्रोह-धर्मिता, आत्म-पीङा आदि विशेष प्रवृत्तियों को उसमें पिरोया है। इन सभी प्रवृत्तियों से उसका चरित्र विशिष्ट बनाया गया है।

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