दोस्तो आज की पोस्ट में हम दल शिक्षण विधि के बारे में विस्तार से जानेंगे
दल शिक्षण विधि(Team teaching method)Table of Contents
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दल-शिक्षण विधि क्या होती है ?
यह एक नवाचार विधि है।’दल’ शब्द का अर्थ होता है समूह अर्थात् जब किसी कक्षा-कक्ष में विशेषज्ञ शिक्षक समूह द्वारा अध्यापन कार्य किया जाता है, तब वह दल शिक्षण विधि के नाम से जाना जाता है। इस विधि को सहकारिता शिक्षण विधि भी कहते है।
⇒ दल शिक्षण विधि का विकास सर्वप्रथम 1955 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय, अमेरिका के शोध छात्र मिसीगन व हार्वे द्वारा किया गया।
दल शिक्षण की परिभाषाएँ |
डेविड वारविक के अनुसार, ’’टोली शिक्षण व्यवस्था का एक स्वरूप है, जिसमें कई शिक्षक अपने स्रोतों, अभिरुचियों तथा दक्षताओं को एकत्रित करते हैं और छात्रों की आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षकों की एक टोली द्वारा प्रस्तुत किया जाता है वे विद्यालय की सुविधाओं का समुचित उपयोग करते हैं।’’
प्रो. कार्लो औलसन् महोदय के अनुसार, ’’ अतिरिक्त ज्ञान एवं कौशल से युक्त दो-तीन अध्यापक परस्पर सहयोग से किसी शीर्षक की शिक्षण योजना का निर्माण करते हैं एवं एक ही समय में छात्र समूह को पढ़ाते हैं तब वह विधि दल शिक्षण विधि कहलाती है।’’
जे.पी.पुरोहित के अनुसार, ’’दल शिक्षण विधि अध्यापक की आधुनिक तकनीक है। इस विधि में दो या दो से अधिक अध्यापक मिलकर नियमित रूप से किसी कक्षा की अध्ययन सम्बन्धी योजना बनाते हैं, उसे क्रियान्वित करते हैं तथा उसका मूल्यांकन करते हैं।’’
शैयलिन तथा ओल्ड के अनुसार, ’’दल शिक्षण अनुदेशात्मक संगठन का वह प्रकार है जिसमें शिक्षण प्रदान करने वाले व्यक्तियों को कुछ छात्र सौंप दिये जाते है। शिक्षण प्रदान करने वालों की संख्या दो या उससे अधिक होती है जिन्हें शिक्षण का दायित्व सौंपा जाता है वे एक ही छात्र समूह को सम्पूर्ण विषयवस्तु या उसके किसी महत्वपूर्ण अंग का एक साथ शिक्षण कार्य करते हैं।’’
कार्यप्रणाली – दल शिक्षण प्रणाली के तीन सोपान होते है –
- योजना
- व्यवस्था
- मूल्यांकन
दल-शिक्षण के सिद्धान्त –
1. अधिगम का निरीक्षण । 2. शिक्षक की जिम्मेदारी का।
3. छात्रों की संख्या का। 4. समस्या समाधान का।
5. सामग्री के चयन का। 6. विषय-वस्तु के व्यवस्थित क्रम का।
7. अनुशासन स्थापना का।
योजना –
1.विषय का निर्धारण।
2. उद्देश्यों का निर्धारण।
3. अपेक्षितगत व्यवहारगत परिवर्तनों का लेखन।
4. छात्रों के पूर्वज्ञान का परीक्षण।
5. शिक्षकों को योग्यता एवं कुशलता के अनुसार कार्य वितरण।
6. छात्रों की उपलब्धि का मूल्यांकन करना।
दल के निर्माण की प्रक्रिया
1.विभिन्न संस्थाओं के विभिन्न विभागों के अध्यापक ।
2. एक ही संस्था के एक ही विभाग के अध्यापक ।
3.विभिन्न संस्थाओं के एक ही विभाग के अध्यापक।
4. एक ही संस्था के विभिन्न विभागों के अध्यापक ।
गुण –
1. यह विधि विशेष ज्ञान प्रदान करती है।
2. समय, धन एवं शक्ति का सदुपयोग होता है।
3. छात्रों में अनुशासन भावना का विकास होता है।
4. छात्रों को विभिन्न विषयों की आधुनिकतम जानकारी प्राप्त होती है।
5. संतुलित सामाजिक विकास संभव।
विशेषः
⇒ आम सभा सत्र: दल के नेता द्वारा अध्यापकों का परिचय करवाते हुए प्रकरण की सूचना देना तथा मुख्य बिन्दुओं की चर्चा।
⇒ लघुसभा सत्रः आमसभा सत्र में छूटे हुए बिन्दुओं पर सहयोगी अध्यापकों द्वारा चर्चा।
⇒ प्रयोगशाला सत्रः छात्र अपनी शंकाओं का समाधान संबंधित विशेषज्ञ से प्राप्त करते है।
दोष –
1. आर्थिक भार अधिक हो जाता है। 2. समन्वय करने में कठिनाई हो जाती है
3. दल के सदस्यों में सहयोग की भावना कम ही पाई जाती है।
4 . सम्पूर्ण पाठ्यक्रम नहीं होता है।
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