आज के आर्टिकल में हम काव्यशास्त्र के अंतर्गत यमक अलंकार (Yamak Alankar) को विस्तार से पढेंगे ,इससे जुड़ें महत्त्वपूर्ण उदाहरणों को भी पढेंगे।
यमक अलंकार – Yamak Alankar
Table of Contents
यमक अलंकार की परिभाषा – Yamak Alankar ki Paribhasha
यमक का अर्थ है – युग्म या जोङा। जहाँ शब्दों की आवृत्ति अर्थात् एक शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त हो और उसका अर्थ अलग-अलग हो, वहाँ यमक अलंकार(Yamak Alankar) होता है।
काव्य में जहाँ एक ही शब्द दो या अधिक बार आए और प्रत्येक बार उसका अर्थ भिन्न हो, वहाँ ’यमक अलंकार’ होता है।
यमक अलंकार के उदाहरण – Yamak Alankar ke Udaharan
1. कनक-कनक तें सौ गुनी, मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराय जग, वा पाये बौराय।।’’
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त दोहे में ’कनक’ शब्द की आवृत्ति हुई है, यहाँ पहले कनक का अर्थ- ’स्वर्ण’ तथा दूसरे ’कनक’ का अर्थ धतूरा है, अतः यहाँ ’यमक’ अलंकार है।
2. ’’सारंग ले सारंग उड्यो, सारंग पुग्यो आय।
जे सारंग सारंग कहे, मुख को सारंग जाय।।’’
यमक अलंकार के भेद – Yamak Alankar ke Bhed
यमक अलंकार के निम्न दो भेद माने जाते है –
(अ) अभंग यमक
(ब) सभंग यमक
(अ) अभंग यमक –
जब किसी पद में शब्द के टुकङे किये बिना ही उसकी आवृत्ति दिखलायी पङ जाती है तो वहाँ अभंग यमक अलंकार माना जाता है।
उदाहरण –
1. ’’भजन कह्यो तातै भज्यौ, भज्यौ न एको बार।
दूर भजन जातै कह्यो, सो तू भज्यौ गवार।।’’
स्पष्टीकरण – प्रस्तुत पद में एक गुरु अपने शिष्य/अनुयायी को धिक्कारता हुआ कहता है ’’तुझे जिसकी भक्ति करने के लिए कहा गया था, उस ईश्वर भक्ति से दूर भाग गया तथा जिस सांसारिक मोह माया से तुझे दूर भागने के लिए कहा गया था, उसी को तुमने अपना लिया।’’
यहाँ ’भजन’ एवं ’भज्यौ’ शब्दों का एक से अधिक बार अलग-अलग अर्थों में प्रयोग होने के कारण यहाँ यमक अलंकार है।
2. सजना है मुझे सजना के लिए।
अर्थ – सजना – अलंकृत होना, सजना – प्रियतम।
3. दीपक ले दीपक चली, कर दीपक की ओट।
जे दीपक दीपक नहीं, दीपक करता चोट।।
स्पष्टीकरण – दीपक – स्त्री, दीप, पर्दा, दीप, जलना, दीप अर्थात् एक स्त्री अपने हाथ में एक जलता हुआ दीप लेकर जा रही है। वह दीप कहीं बुझ नहीं जाये, इसलिए उसने साङी के पल्लू (पर्दे) की ओट कर रखी है, क्योंकि यदि दीपक जलता हुआ नहीं रहता है तो बूझा हुआ दीपक हृदय पर चोट करता है। (अशुभता का प्रतीक माना जाता है।)
4. ’’दीरघ सांस न लेई दुःख, सुख सोई न मूल।
दई-दई क्यों करत है, दई-दई कबूल।।’’
स्पष्टीकरण – प्रथम व द्वितीय ’दई’ का अर्थ – हे ईश्वर, हे ईश्वर
तृतीय ’दई’ का अर्थ – विधाता (ब्रह्मा)
चतुर्थ ’दई’ का अर्थ – दिया है (देना क्रिया)
5. ’’तौ पर वारौं उरबसी, सुनु राधिके सुजान।
तू मोहन के उरबसी, ह्वै उरबसी समान।।’’
स्पष्टीकरण – पहले व तीसरे ’उरबसी’ का अर्थ – उर्वशी नामक अप्सरा दूसरे ’उरबसी’ का अर्थ – उर (हृदय) में बसने वाली।
6. ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहनवारी।
ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर स्हाती है।
कन्द मूल भोग करैं कन्द मूल भोग करैं।
तीन बेर खाती थी वो तीनि बेर खाती हैं।
भूषन सिंथिल अंग, भूषन सिंथिल अंग।
बिजन डुलाती ते वे विजन डुलाती है।
’भूषन’ भनत सिवराज वीर तोरे त्रास।
नगन जङातीं ते वे नगन जङाती हैं।
अर्थ – मन्दर – महल/पर्वत
बेर – समय (बार)/झाङी का फल (बोर)
नगन – हीरे जवाहरात/वस्त्रहीन
भूषन – आभूषण/भूमि पर शयन
विजन – पंखा/जंगल
7. मूरति मधुर मनोहर देखी। भयेउ विदेह विदेह विसेखी।।
अर्थ – प्रथम ’विदेह’ – महाराज जनक।
द्वितीय ’विदेह’ – देह रहित अर्थात् सुधबुध भूलना।
8. लाल दुपट्टा मलमल का, कि दिल मेरा मलमल गया।
अर्थ – मलमल – वस्त्र विशेष, मलमल – मलीन होना, (पछतावा)।
9. कबीरा सोइ पीर है, जे जानहिं पर पीर।
जे पर पीर न जानहिं, वे काफिर बेपीर।।
10. खरी पातरी कान की, कौन बहाऊ बानि।
आक कली न रली करै, अली अली जियजानि।।
11. काली घटा का घमण्ड घटा, नभ मण्डल तारक वृंद खिले।
(ब) सभंग यमक –
जब किसी पद में किसी शब्द के टुकङे करने पर ही अन्य शब्द के समान आवृत्ति दिखलायी पङती है तो वहाँ सभंग यमक अलंकार माना जाता है।
उदाहरण –
1. ’मचलते चलते ये जीव हैं, दिवस में वस में रहते नहीं।
विमलता मल ताप हटा रही, विचरते चरते सुख से सभी।।’
स्पष्टीकरण – प्रस्तुत पद में ’मचलते’, ’दिवस’, ’विचरते’ एवं ’विमलता’ शब्दों के टुकङे करने पर इनकी क्रमशः ’चलते’, ’वस’, ’चरते’, एवं ’मलता’ शब्दों से आवृत्ति (समानता) दिखलायी पङ जाती है एवं इनके अलग-अलग अर्थ प्रकट हो रहे हैं। अतएव यहाँ सभंग यमक अलंकार माना जाता है।
अन्य उदाहरण –
1. फिर तुम तम में, मैं प्रियतम में, हो जाएँ द्रुत अन्तर्धान।
2. कुमोदिनी मानस मोदिनी कहीं।
3. निबल के बल राम हैं।
4. मचलते चलते हो तुम वृथा।
5. कहा भयो जौ तूँ भटू, गुनगनमय सब देह।
जोबनवारी तौ सफल, जो बनवारी नेह।।
6. बरनते बरन प्रीति बिलगाती,
ब्रह्म जीव सम सहज संघाती।
7. यों परदे की इज्जत परदेसी के हाथ बिकानी थी।
8. जगमग जगमग हम जग का मग,
ज्योतित प्रति पग करते जगमग।
9. रसिकता सिकता सम हो गई।
10. आयो सखि सावन विरह सरसावन,
लग्यो है बरसावन, सलिल चहुँ ओर तें।
11. फूल रहें हैं फूलकर फूल उपवन में।
12. हरिनी के नैनन तें हरि नीकै ये नैन।
13. मोहन अब मन माँहि है,
मोह न अब मन माँहि।
निष्कर्ष :
आज के आर्टिकल में हमनें काव्यशास्त्र के अंतर्गत यमक अलंकार (Yamak Alankar) को पढ़ा , इसके उदाहरणों को व इसकी पहचान पढ़ी। हम आशा करतें है कि आपको यह अलंकार अच्छे से समझ में आ गया होगा …धन्यवाद
1 . यमक अलंकार की परिभाषा लिखो
उत्तर – जहाँ एक ही शब्द बार-बार आए और उसका अर्थ भिन्न-भिन्न हो वहाँ यमक अलंकार होता है।
2. यमक अलंकार का उदाहरण लिखो
उत्तर –
माला फेरत जुग भया,
फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे,
मन का मनका फेर।
नोट : पद में मन का – मन के अंदर का , मनका – माला
3. यमक अलंकार किसे कहते है?
उत्तर – जहाँ कोई शब्द दो या दो से अधिक बार आए तथा प्रत्येक शब्द का अर्थ अलग हो, वहाँ यमक अलंकार होता है।