निगमन शिक्षण विधि – Nigman Shikshan Vidhi

आज के आर्टिकल में हम शिक्षण विधियों के अंतर्गत निगमन शिक्षण विधि (Nigman Shikshan Vidhi) को विस्तार से पढेंगे

निगमन शिक्षण विधि – Nigman Shikshan Vidhi

निगमन विधि में पहले नियम बता दिया जाता है, बाद में उदाहरणों द्वारा नियम को पुष्ट किया जाता है। इस विधि में सिद्धान्त या परिभाषा को पहले बता दिया जाता है, बाद में उस सिद्धान्त का प्रयोग बताया जाता हैं। दूसरे शब्दों में , निगमन विधि में सामान्य से विशेष की ओर चलते हैं। आगमन विधि के लिये निगमन विधि पूरक विधि है। इन दोनों विधियों के बीच कोई विरोध नहीं है।

निगमन विधि का आधार दर्शनशास्त्र है। यह धारणा है कि सत्य शाश्वत व अपरिवर्तनीय होता हैं। इसी धारणा के अनुसार निगमन विधि भी नियमों की शाश्वतता व अपरिवर्तनीयता को सिद्ध करने का प्रयास करती है।

  • निगमन विधि आगमन विधि के बिल्कुल विपरीत है। निगमन विधि में हम एक परिभाषा/सामान्य नियम या सूत्र को सत्य मान लेते हैं और उसे विशिष्ट उदाहरणों या परिस्थितियों में लागू करते हैं।
  • नियम यथार्थ तथ्यों की व्याख्या करने के साधन होते हैं।
  • इस विधि में निगमन तर्क का प्रयोग किया जाता है।
  • निगमन विधि में अभिधारणाओं, आधारभूत तत्वों तथा स्वयंसिद्धियों की सहायता ली जाती हैं।
  • निगमन विधि का प्रयोग उच्च कक्षाओं के शिक्षण में अधिक किया जाता है।

निगमन विधि के दो रूप हैं –

  1. सूत्र प्रणाली
  2. पाठ्यपुस्तक प्रणाली

परिभाषा – लैंडन के अनुसार, ’निगमन विधि द्वारा शिक्षण में पहले परिभाषा या नियम स्पष्ट किया जाता है तत्पश्चात् उसके अर्थ की व्याख्या की जाती हैं और अंत में तथ्यों का प्रयोग करके उसे पूर्णरूप से स्पष्ट किया जाता है।’

निगमन विधि के चरण

1. परिभाषा – शिक्षक छात्रों के समक्ष कोई परिभाषा प्रस्तुत करता है।
2. उदाहरण – शिक्षक परिभाषा को सत्य सिद्ध करने के लिए उदाहरण का प्रयोग करता है।
3. निष्कर्ष – शिक्षक उदाहरण के द्वारा किसी निष्कर्ष पर पहुँचता है।
4. परीक्षण – छात्र उदाहरण की सहायता से किसी निष्कर्ष का परीक्षण करते हैं।
कार्य विधि –
निगमन विधि में सूक्ष्म से स्थूल की ओर, सामान्य से विशिष्ट की ओर तथा प्रमाण से प्रत्यक्ष की ओर या नियम से उदाहरण की ओर अग्रसर होते हैं।
निगमन विधि में बालकों के सम्मुख सूत्रों, नियमों तथा सम्बन्धों आदि को प्रत्यक्ष रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
बालक बताये गये नियमों, सिद्धान्तों एवं सूत्रों को याद करके कण्ठस्थ कर लेते हैं।

  • अज्ञात से ज्ञात की ओर सूक्ष्म से स्थूल की ओर
  • अमूर्त से मूर्त की ओर सामान्य से विशेष की ओर
  • नियम से उदाहरण की ओर प्रमाण से प्रत्यक्ष की ओर

निगमन विधि के गुण एवं विशेषताएँ

  • यह अमनोवैज्ञानिक विधि है।
  • जब समयाभाव हो तो उन परिस्थितियों में इस विधि का उपयोग करना चाहिए।
  • जब बालक आगमन विधि के नियम और परिभाषाओं, की खोज कर लेता है तो उसका पुष्टिकरण निगमन विधि के द्वारा बालकों को याद करा दिया जाता है।
  • इस विधि का प्रयोग करने पर शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों को कम परिश्रम करना पङता है।
  • इस विधि द्वारा कम समय में अधिक ज्ञान प्रदान किया जा सकता है।
  • इस विधि में साधारण नियमों की खोज में समय नष्ट नहीं होता।
  • निगमन विधि का प्रयोग अधिक आयु के बालकों के लिए किया जाता है।
  • नवीन समस्याओं का समाधान इस विधि द्वारा किया जा सकता है।
  • इस विधि द्वारा क्रमबद्ध ज्ञान प्राप्त होता है। यह विधि ज्ञानार्जन की गति को तीव्र करती है।
  • इस विधि द्वारा नियमों, सिद्धान्तों एवं सूत्रों की सत्यता की जाँच आसानी से की जा सकती है।
  • इस विधि के प्रयोग से बालक अभ्यास कार्य शीघ्रता तथा आसानी से कर सकते हैं।
  • यह विधि उपयुक्त तथा संक्षिप्त होती है क्योंकि प्रश्न का हल एक सूत्र के आधार पर होता हैं
  • यह विधि संक्षिप्त होने के साथ-साथ व्यावहारिक भी है।
  • समय के अभाव की दशा में इस विधि का प्रयोग किया जाता है।
  • इस विधि के प्रयोग से कार्य अत्यन्त सरल एवं सुविधाजनक होता जाता हैं।
  • निगमन विधि द्वारा बालकों की स्मरण शक्ति विकसित होती है, क्योंकि इस विधि का प्रयोग करते समय बालकों को अनेक सूत्र याद करने पङते हैं।

निगमन विधि की सीमाएँ या दोष

  • इसके द्वारा प्राप्त ज्ञान अस्पष्ट एवं अस्थायी होता है।
  • इस विधि में भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रश्नों के लिए अनेक सूत्र याद करने होते हैं जो कठिन कार्य है। इसमें क्रियाशीलता का सिद्धान्त लागू नहीं होता।
  • यह विधि बालक की तर्क, विचार व निर्णय शक्ति के विकास में सहायक नहीं है।
  • यह विधि मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के विपरीत है क्योंकि यह स्मृति केन्द्रित विधि है।
  • यह विधि खोज करने की अपेक्षा रटने की प्रवृत्ति पर अधिक बल देती है। अतः छात्र की मानसिक शक्ति का विकास नहीं होता हैं
  • हिन्दी प्रारम्भ करने वालों के लिए यह विधि उपयुक्त नहीं है।
  • यह विधि छोटी कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है, क्योंकि छोटी कक्षाओं के बालकों के लिए विभिन्न सूत्रों, नियमों आदि को समझना बहुत कठिन होता हैं।
  • इस विधि के प्रयोग से अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया अरुचिकर तथा नीरस बनी रहती हैं।
  • स्वतन्त्रतापूर्वक इस विधि का प्रयोग सम्भव नहीं हो सकता।
  • इस विधि द्वारा बालकों को नवीन ज्ञान अर्जित करने के अवसर नहीं मिलते हैं।
  • छात्र में आत्मनिर्भरता एवं आत्मविश्वास उत्पन्न नहीं होता हैं।
  • इस विधि में बालक यन्त्रवत् कार्य करते हैं क्योंकि उन्हें यह पता नहीं रहता है कि वे अमुक कार्य इस प्रकार ही क्यों कर रहे हैं।
  • इस विधि में तर्क, चिन्तन एवं अन्वेषण जैसी शक्तियों को विकसित करने का अवसर नहीं मिलता है।
  • इसके द्वारा अर्जित ज्ञान स्थायी नहीं होता है।

आगमन निगमन विधि के विस्तृत रूप को विश्लेषण पद्धति कहते हैं। इसके चार पद इस प्रकार हैं –

  1. उदाहरण
  2. विश्लेषण
  3. सामान्यीकरण
  4. परीक्षण।

2 thoughts on “निगमन शिक्षण विधि – Nigman Shikshan Vidhi”

  1. NARNA RAM POTLIYA

    क्या निगमन विधि बालक केन्द्रित है?yes or no?

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