श्रुतलेखन अभ्यास विधि ,मौंटेसरी के मतानुसार वाचन से पहले लेखन की शिक्षा दी जानी चाहिए। फ्रोबेल एवं गाँधी के मतानुसार लिखने से पहले पढ़ना और वर्णमाला के अक्षरों को लिखने से पहले चित्रांकन सीखाना चाहिए, क्योंकि वाचन मानसिक प्रक्रिया है जबकि लेखन शारीरिक व मानसिक दोनों।
श्रुतलेखन अभ्यास विधि
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अक्षर रचना (लिखना) सिखाने की विधियाँ –
सार्थक रेखाएँ खींचने की विधि –
बालक को सर्वाधिक सार्थक रेखाएँ खींचने की शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि वह उन रेखाओं द्वारा वर्णन बनाना सीख सके। जैसे खङी पाई ’ा’ से ’आ’ की मात्रा का निर्माण करना।
खंडशः लेखन विधि –
विद्यार्थी के लिए सम्पूर्ण अक्षर की रचना एक बार समझ पाना कठिन कार्य है। वर्ण को आरम्भ करने की विधि का ज्ञान बहुत आवश्यक है। लेखनी को किस ओर से किस ओर घुमाना है इसके लिए प्रत्येक खंड का तीर के चिह्न से समझाया जा सकता है। इन संकेतों में कुछ भिन्नता भी सम्भव है।
रेखा अनुसरण विधि –
यह विधि अत्यधिक प्राचीन और उपयोगी विधि मानी जाती है। इसके अंतर्गत अध्यापक कागज, स्लेट या तख्ती पर वर्ण के रूप को पैंसिल, बिन्दुओं और हल्की स्याही से अंकित कर देता है। इस विधि के अंतर्गत अध्यापक विद्यार्थी का हाथ पकड़कर रेखाओं का अनुसरण करके वर्ण को उभारने में मदद करता हैं
अनुलेखन विधि-
यह विधि रेखा अनुसरण विधि का अगला क्रम है। इसके अंतर्गत कोई भी वर्ण सुन्दर एवं मोटे रूप में लिख दिया जाता है और विद्यार्थी इस वर्ण को देखकर इसका अनुलेखन करता है।
स्वतंत्र लेखन विधि-
इस विधि में वर्ण को बिना देखे या नकल किये बिना उसकी मानसिक चित्रछाया के अनुसार लिखा जाता है। कुशाग्र बुद्धि बालक बहुत कम समय में इस विधि को अपना लेते हैं।
मौंटेसरी विधि-
इस विधि में लकड़ी, गत्ते एवं प्लास्टिक से बने वर्णों का प्रयोग किया जाता है और बालक द्वारा उस वर्ण के ऊपर उंगली फेरकर लिखने का अभ्यास किया जाता है।
पेस्टाॅलोजी विधि-
इसमें पहले वर्ण लेखन में उपयोगी रेखाओं व वृत्तों आदि का वर्गीकरण किया जाता है और उनके पीछे सार्थक रेखाएँ खींचने का अभ्यास कराया जाता है।
जेकटाट विधि-
इसके अंतर्गत विद्यार्थी किसी वाक्य को लिखता है और तत्पश्चात् वही वाक्य बिना उसे देखे लिखता है। लिखने के बाद वह इस वाक्य के शब्दों को मूल वाक्य के शब्दों से मिलाता है और की गई अशुद्धियों को सुधारता है। यह पद्धति भारतीय पद्धति पर आधारित है।
- विश्लेषण विधि-
इन विधि के अनुसार लेखन कार्य शब्द से आरम्भ होता है। इसमें विद्यार्थी को एक चित्र दिखाया जाता है और उस चित्र के नीचे उसका नाम लिखा जाता है। बालक को चित्र के नाम के पहले वर्ण को खंडशः लेखन सिखाया जाता है।
- संश्लेषण विधि-
इस विधि के अंतर्गत पहले वर्ण लिखना सिखाया जाता है। इसके बाद उनसे बनने वाले शब्द फिर उन शब्दों से बनने वाले वाक्य-सिखाया जाता है।
- परम्परागत विधि-
इस विधि में सर्वप्रथम स्वर, व्यंजन उसके पश्चात् मात्राएँ तथा शब्द उसके पश्चात् वाक्य लेखन का ज्ञान दिया जाता है।
समान आकृति वर्ण समूह विधि-
यह विधि पेस्टोलाॅजी की रचनात्मक विधि के समकक्ष है। इसमें वर्णों को समान समूह में बाँट लिया जाता है और इस दृष्टि से समान आकृति लिखने में सरलता रहती है।
श्रुतलेखन अभ्यास विधि