आज के आर्टिकल में हम सूक्ष्म शिक्षण (Micro teaching) अर्थ, परिभाषा, चक्र, आधार, पद, गुण और महत्त्व के बारे मे आज हम विस्तार से समझेंगे ,आप इस टॉपिक को अच्छे से तैयार करें ।
सूक्ष्म शिक्षण – Micro Teaching
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सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ :(Meaning of Micro Teaching)
सूक्ष्म शिक्षण एक ऐसी अध्यापक प्रशिक्षण (Teacher training) प्रक्रिया है, जिसमें अध्यापक बनने से पहले आपको प्रशिक्षण लेना होता है, कि बच्चों को किस प्रकार से तर्कपूर्ण और प्रभावपूर्ण शैली से पढ़ाया जा
सके।
सूक्ष्म शिक्षण एक तकनीक है, जिसका इस्तेमाल छात्र- अध्यापकों में कौशल के विकास के लिए किया जाता है । इसे शिक्षण न्यूनता उपागम भी कहते है
सूक्ष्म-शिक्षण का प्रारम्भ सन् 1961 से माना जाता है, लेकिन सर्वप्रथम सूक्ष्म शिक्षण का नामकरण 1963 ईस्वी में डी. एलन (डाॅ. ड्वाइट एलन) ने स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय अमरीका में किया।
अमेरिका के स्टेनफार्ड विश्वविद्यालय में राॅबर्ट बुश व डाॅक्टर एलन के निर्देशन में कीथ व एचीसन नामक छात्रों ने वीडियो टेप के माध्यम से अध्यापन कर शीघ्र प्रतिपुष्टि प्राप्त कर लेने पर बल प्रदान किया।
इसके उपरान्त हेरी गैरीसन और कैलिन बैक महोदय ने अपने-अपने प्रयासों से सूक्ष्म-शिक्षण micro teachings का प्रतिपादन किया । इसमे एक कौशल हेतु 5-10 मिनट तक की पाठ योजना तैयार की जाती है।
भारत में सूक्ष्म शिक्षण
भारत में सूक्ष्म शिक्षण की शुरुआत डी. डी. तिवारी ने 1967 में सीपीआई, इलाहाबाद में की ।
- माइक्रो टीचिंग में कक्षा का आकार भी छोटा रहता है (5-10 विद्यार्थी)।
- एक सूक्ष्म शिक्षण , शिक्षण का एक लघु रूप है।
- यह एक प्रयोगशालीय विधि है। जिसके माध्यम से शिक्षक प्रशिक्षणार्थियों में शिक्षण कौशल विकसित किये जाते है। शिक्षण को यहाँ कई शिक्षण कौशलों का योग माना गया है।
- प्रशिक्षणार्थी को ये शिक्षण कौशल नियंत्रित वातावरण में एक-एक कर के सिखाये जाते हैं। वह इन सभी कौशलों को सीख लेता है, तब इन्हें वह आवश्यकतानुसार जोड़कर पूरा शिक्षण करता है।
- यही कारण है कि इसे अनुक्रम अवरोही शिक्षण सम्पर्क कहा गया है।
सूक्ष्म शिक्षण की परिभाषा ( Definition of Micro Teaching )
- एलन एवं ईव के अनुसार: ‘सूक्ष्म अध्यापन नियंत्रित अभ्यास का सत्र है, जिसमें एक विशिष्ट अध्यापन व्यवहार को नियंत्रित दशाओं में सीखना संभव है।’
- स्टोन्स तथा मोरिस के अनुसार: ‘अभ्यास की एक विधि है जिसमें अधिक नियंत्रण, प्रचुर विश्लेषण तथा प्रतिपुष्टि की एक नई प्रणाली का प्रयोग होता है।’
- एलन ‘‘सूक्ष्म-शिक्षण कक्षा आकार, पाठ की विषयवस्तु, समय तथा शिक्षण की जटिलता को कम करने वाली संक्षिप्तीकृत कक्षा शिक्षण विधि है।’’
- पैक व टूकर- ‘‘सूक्ष्म शिक्षण एक व्यवस्थित प्रणाली है जिसमें कौशलों की सूक्ष्मता से पहचान की जाती है ।तथा पृष्ठपोषण द्वारा शिक्षण कौशलों का विकास किया जाता है।’’
- मैक्लीज तथा अनविन ‘‘सूक्ष्म-अध्यापन कृत्रिम वातावरण में अध्यापन का एक रूप है जो शिक्षण की जटिलताओं को कम करता है तथा पृष्ठपोषण प्रदान करता है।
सूक्ष्म शिक्षण मूलतः इस सिद्धान्त पर आधारित है कि शिक्षण प्रक्रिया को अनेक व्यवहारों में विभक्त किया जा सकता है। इन कक्षागत शिक्षण व्यवहरों को शिक्षण कौशल कहते है। शिक्षण कौशल को नियंत्रित वातावरण में विकसित किया जाना सम्भव है। यहाँ शिक्षण को एक जटिल प्रक्रिया मानते हुए अनेक शिक्षण-कौशलों का योग माना गया है।
यह सूक्ष्म शिक्षण इस तथ्य पर भी आधारित है कि शिक्षण प्रक्रिया को सरल प्रक्रिया में विभक्त कर एक-एक करके वांछित कौशलों को विकसित किया जा सकता है। इन सब कौशलों को जब अलग-अलग विकसित कर लिया जाता है तब इन्हें एक साथ जोड़ कर पूर्ण शिक्षण किया जा सकता है तथा पूर्व निर्धारित शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है।
यदि मनोवैज्ञानिक दृृृृष्टिकोण से सोचा जावे तो सूक्ष्म-शिक्षण स्किनर द्वारा प्रतिपादित अधिगम सिद्धान्त पर आधारित है। इस सिद्धान्त के अनुसार यदि कोई व्यक्ति अनुकूल व्यवहार प्रदर्शित करता है
तथा इस व्यवहार के प्रदर्शन करने के तुरन्त बाद उसकी प्रतिपुष्टि कर दी जावे तो व्यवहार के पुनः प्रकट होने की संभावनाएं बढ़ जाती है।
इस सिद्धान्त का उपयोग सूक्ष्म-शिक्षण में प्रशिक्षणार्थी को वीडियों टेप द्वारा अथवा परिवीक्षक द्वारा उसके अध्यापन के तुरंत बाद किया जाता है।
चूँकि यहाँ पाठ 5 से 10 मिनट का होता है अतः व्यवहार के पृष्ठपोषण में अधिक समय नहीं लगता।
ऐलन के अनुसार शिक्षण कौशल:
ऐलेन एवं रॉयन के अनुसार सूक्ष्म शिक्षण में विकसित किये जाने वाले 14 शिक्षण कौशल निम्नलिखित हैं
(i) उद्दीपन विषमता
(ii) भूमिका निर्वाह
(iii) समीपता
(iv) मौन एवं अशाब्दिक संकेत
(v) पुनर्बलन का कौशल
(vi) प्रश्न पूछने में प्रवाह
(vii) गहन प्रश्न पूछना
(viii) उदाहरणों का प्रयोग
(ix) उद्देश्यों को लिखने का कौशल
(x) श्यामपट्ट प्रयोग का कौशल
(xi) दृश्य-श्रव्य सामग्री के प्रयोग का कौशल
(xii) व्याख्यान कौशल
(xiii) पाठ के अनुसरण का कौशल
(xiv) सम्प्रेषण की पूर्णता
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सूक्ष्म शिक्षण के सोपान – Steps of Micro teaching
सूक्ष्म शिक्षण में छात्राध्यापक किसी भी शिक्षण कौशल का अभ्यास करने के लिए एक छोटी सी विषय-वस्तु पर पाठ योजना बनाकर पंढाता है । पाँच से सात मिनट तक पढ़ाने के पश्चात वह पढ़ना समाप्त कर देता है और फिर उसको अनेक स्रोतों जैसे – निरीक्षक, सहपाठी, टेप रिकॉर्डर, दूरदर्शन आदि द्वारा पृष्ठपोषण प्रदान किया जाता है।
पृष्ठपोषण प्राप्त करने के उपरान्त छात्राध्यापक अपनी पाठ-योजना पर दिये गये सुझावों के आधार पर परिवर्तन करता है तथा फिर वह उसी पाठ को पुनः दूसरे पाँच-दस छात्रों को पढ़ाता है। इसके पश्चात् उसे पुनः पृष्ठपोषण दिया जाता है। इसके बाद वह अपनी कमियों को देखकर अपने शिक्षण व्यवहार में सुधार लाता है। इस पूरी प्रक्रिया को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर समझ सकते हैं –
(1) प्रशिक्षण विद्यालयों के अध्यापकों द्वारा पाठ निरीक्षण करने के उपरान्त पृष्ठपोषण प्रदान करना है। इसे पर्यवेक्षक पृष्ठपोषण कहते हैं।
(2) सहपाठी प्रशिक्षणार्थियों द्वारा पृष्ठपोषण प्रदान करना, जिसे सहपाठी पृष्ठपोषण कहते हैं।
(3) सम्पूर्ण सूक्ष्म पाठ को टेपरिकॉर्डर पर टेप कर लिया जाता है और टेप को पुनः सुनकर छात्राध्यापक पृष्ठपोषण करता है, जिसे स्व-पृष्ठपोषण कहते हैं।
सूक्ष्म शिक्षण के आधार(Basis of micro-Teaching)
एलन और रेयन ने सूक्ष्म-शिक्षण के निम्न पाँच आधार बताये हैं-
(1) सूक्ष्म-शिक्षण वास्तविक शिक्षण है
यद्यपि शिक्षण की परिस्थितियों का निर्माण इस प्रकार किया जाता है कि अध्यापक तथा शिक्षार्थी अध्यापन के अभ्यास के साथ-साथ कार्य करते हैं, तभी वास्तविक शिक्षण सम्पादित होता है।
(2) सूक्ष्म-शिक्षण में कक्षा का आकार, विषय-वस्तु की मात्रा जो कि पढ़ाई जानी है, अध्यापन समय आदि को कम करके सामान्य शिक्षण की जटिलताओं को न्यून कर दिया जाता है।
(3) सूक्ष्म-शिक्षण का मुख्य केन्द्र विशिष्ट कार्य को पूरा करने का प्रशिक्षण देना है। ये विशिष्ट कार्य शिक्षण कौशल को सीखना, किसी अध्यापन विधि का अभ्यास करना, प्रदर्शन करना, सीखना आदि में से कुछ भी हो सकता है।
(4) इस प्रविधि में पृष्ठ-पोषण का उपयोग किया जाता है। इसे साधारण भाषा में व्यवहार के सही प्रदर्शन करने का ज्ञान देना भी कहते है। ज्यों ही प्रशिक्षणार्थी सूक्ष्म-अध्यापन समाप्त करता है
उसके साथ अध्यापक तथा परिवीक्षक उसके अध्यापन पर चर्चा करते हैं।
यदि सम्भव हो तो उसका वीडियो टेप भी दिखाया जाता है। जिससे प्रशिक्षणार्थी को अपनी अच्छाइयाँ एवं त्रुटियाँ दोनों का ज्ञान होता है।
(5) सुक्ष्म-शिक्षण में प्रशिक्षण प्राप्ति के तीन स्तर क्रमशः ज्ञान प्राप्त करने का स्तर, कौशल अर्जित करने का स्तर तथा स्थानान्तरण स्तर है,
इस प्रविधि में अध्यापन व पुनः अध्यापन की शृंखला चलती है, इससे प्रशिक्षणार्थी में कौशल का स्थानान्तरण शीघ्रता से होता है।
सूक्ष्म शिक्षण के पद (Micro teaching system posts)
जैसा कि पूर्व में स्पष्ट किया गया है, सुक्ष्म-शिक्षण में प्रशिक्षणार्थी से सरलतम स्थितियों में अध्यापन कार्य कराया जाता है।
इसका अभिप्राय यह है कि कक्षा का आकार छोटा, विषय वस्तु की मात्रा कम तथा अध्यापन कार्य लघु अवधि के लिए कराया जाता है। सूक्ष्म शिक्षण की प्रक्रिया में निम्नलिखित पद हैं-
- सर्वप्रथम अध्यापक प्रशिक्षणार्थियों को सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ समझाता है तथा उसको व्यावहारिक ज्ञान देता है।
- सूक्ष्म अध्यापन में शिक्षण कौशल का सैद्धान्तिक ज्ञान अभ्यास करने से पूर्व दिया जाता है तथा इन कौशिलों में अन्तर्निहित मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों को स्पष्ट करता है।
- अध्यापक, प्रशिक्षणार्थियों को आदर्श पाठ के माध्यम से शिक्षण कौशल व्यवहारों का प्रदर्शन करता है।
- इस आदर्श पाठ की कमियों तथा विशेषताओं पर विचार-विमर्श किया जाता है।
- प्रशिक्षणार्थियों से सूक्ष्म शिक्षण की पाठ योजनायें प्रत्येक शिक्षण कौशल के लिए अलग-अलग बनाई जाती है।
- अध्यापक इन सूक्ष्म पाठ योजनाओं में आवश्यकतानुसार सुधार करता है।
- प्रशिक्षणार्थी एक कौशल पर सूक्ष्म पाठ पढ़ाता है जिसे यदि सम्भव हो तो वीडियों टेप कर लिया जाता है। इसे शिक्षण पद कहते है।
- सूक्ष्म पाठ के तुरंत बाद पढ़ाये गये पाठ पर आपसी विचार-विमर्श कर उसकी अच्छाईयाँ तथा कमियाँ ज्ञात की जाती हैं। कमियों को दूर करने के लिए प्रशिक्षणार्थी से पाठ के पुनः निर्माण किये जाने हेतु कहा जाता है। यह मूल्याँकन पद कहलाता है।
- इसके बाद प्रशिक्षणार्थी को दुबारा पाठ पढ़ाना पड़ता है, उसकी कमियाँ पुनः निकाली जाती हैं तथा प्रशिक्षणार्थी इन कमियों को दूर करने का प्रयास करता है।
- यह क्रम तब तक चलता है जब तक कि वह एक कौशल को पूरा नहीं सीख लेता। इसके बाद वह दूसरा कौशल सीखता है।
सूक्ष्म शिक्षण का चक्र (Micro Teaching lesson plan in hindi)
सूक्ष्म शिक्षण पाठ योजना का उद्देश्य प्रशिक्षणार्थी को शिक्षण में पूर्ण प्रशिक्षण देना है। यह प्रशिक्षण बिना अभ्यास एवं प्रतिपुष्टि के सम्भव नहीं है।
अतः जैसे ही प्रशिक्षणार्थी पाठ योजना प्रस्तुत करता है, परिवीक्षक तथा अन्य प्रशिक्षणार्थी उसकी कमियों तथा अच्छाइयों को लिखते हैं। प्रस्तुतीकरण के पश्चात् इस पर खुली चर्चा होती है।
इस चर्चा के आधार पर प्रशिक्षणार्थी को पुनः पाठ निर्माण कर उसी समय दुबारा पढ़ाने को कहा जाता है।
तथा यह क्रम तब तक चलता रहता है।
नोट : जब तक कि वह शिक्षण कौशल को पूर्ण रूप से अपने अन्दर विकसित न कर ले।
माइक्रो टीचिंग लेसन प्लान में लिये जाने वाला समय निम्न प्रकार होना चाहिये-
- सूक्ष्म-शिक्षण-पाठ 5 मिनट
- पाठ पर विचार-विमर्श 10 मिनट
- पाठ का पुनः निर्माण 15 मिनट
- पुनः शिक्षण 5 मिनट
- पुनः शिक्षण-पाठ पर विचार -विमर्श 10 मिनट
⇒ इस प्रकार सूक्ष्म-शिक्षण-चक्र(Micro teaching cycle) का समय स्टेनफोर्ड विश्विधालय के द्वारा 45 मिनट का निर्धारित किया गया है। उपर्युक्त लिखित समय-विभाजन में परिवर्तन किया जा सकता है।
पासी ने सूक्ष्म अध्यापन अवधि का निर्धारण निम्न प्रकार से किया है-
- सूक्ष्म-शिक्षण- 5 से 10 मिनट
- सूक्ष्म-शिक्षण पाठ पर चर्चा- 10 से 15 मिनट
- पाठ का पुनः निर्माण-सुविधानुसार
- पुनः शिक्षण- 5 से 10 मिनट
- पुनः शिक्षण पर चर्चा- 10 से 15 मिनट
NCERT के अनुसार
- योजना(curriculum formulation) – समय निर्धारित नहीं
- शिक्षण(Teaching) – 6 मिनट
- प्रतिपुष्टि(Feedback) – 6 मिनट
- योजना का पुनः निर्माण(re-curricular) 12 मिनट
- पुनः शिक्षण(re-plan) – 6 मिनट
- पुनः प्रतिपुष्टि(re-feedback) – 6 मिनट
कुल समय – 36 मिनट
नोट : NCERT के अनुसार सूक्ष्म शिक्षण के पद 5 ही माने जाते है इसके चरणों में योजना के पद को शामिल नहीं काउंट किया जाता है।
सूक्ष्म शिक्षण की अवस्थाएं :
माइक्रो टीचिंग की तीन अवस्थाएं है –
- ज्ञानार्जन
- कौशलार्जन
- अंतरण
सूक्ष्म शिक्षण का महत्त्व(Importance of micro teaching)
शिक्षण को सीखने के संदर्भ में ब्राउन लिखते हैं कि जम्बोजेट को हवा में उड़ाने या हृदय का ऑपरेशन करने के लिए बहुत से कौशल की आवश्यकता होती है।
कोई भी विद्यालय, महाविद्यालय अथवा प्रशिक्षण केन्द्र आधारभूत कौशल में प्रशिक्षण दिये बिना किसी व्यक्ति को जम्बोजेट के उड़ाने या हृदय ऑपरेशन करने की अनुमति नहीं देगा।
ठीक उसी प्रकार शिक्षण भी कई कौशलों का समूह है जिनको सिखाया जाना भी इतना ही महत्वपूर्ण है।।
सूक्ष्म-शिक्षण की विशेषता Characteristics of Micro teaching
सूक्ष्म-शिक्षण में अधोलिखित विशेषताएँ हैं-
- शिक्षण-कौशल का विधिवत् प्रशिक्षण
- समय की बचत
- प्रतिपुष्टि सम्भव
- नवीन तकनीकी का शिक्षण में उपयोग
- अनवरत प्रशिक्षण का एक साधन
- परिवीक्षण को सरल बनाना
- शिक्षण पर शोध किये जाने का उत्तम साधन
दोस्तो अब हम सूक्ष्म शिक्षण के गुण और दोष की बात करेंगे ..
सूक्ष्म शिक्षण के लाभ(Benefits of micro teaching)
- सूक्ष्म अध्यापन के निम्नलिखित लाभ हैं-
- यह अध्यापन व्यवहार पर केन्द्रित विधि है।
- सूक्ष्म अध्यापन, यदि ठीक प्रकार से प्रयोग में लाई जावे तो प्रभावशाली रूप से प्रशिक्षणार्थियों का प्रशिक्षण करती है।
- प्रशिक्षणार्थी जब स्वयं द्वारा पढ़ाये गये पाठ की वीडियो फिल्म देखते हैं अथवा उसके बारे में अन्य लोगों से सुनते हैं तो उन्हें संतोष प्राप्त होता है।
- सूक्ष्म अध्यापन शिक्षण की जटिलता को कम कर देता है।
- सूक्ष्म-शिक्षण द्वारा प्रशिक्षणार्थी की प्रतिपुष्टि शीघ्रता से होती है।
- इस विधि से प्रशिक्षणार्थी को शिक्षण प्रक्रिया को बारीकी से समझने का अवसर मिलता है।
- सूक्ष्म-शिक्षण शिक्षण कौशल के विश्लेषण का अवसर प्रदान करता है।
- यह एक प्रभावशाली विधि है।
- सूक्ष्म-शिक्षण की सहायता से परिवीक्षण कार्य व्यवस्थित रूप से करने का अवसर प्राप्त होता है।
- यह विधि व्यक्तिगत शिक्षण पर बल प्रदान करती है।
- सूक्ष्म-शिक्षण से प्रशिक्षणार्थी के श्रम व समय दोनों की बचत होती हैं।
- इसमें शिक्षण व्यवहार का लेखा-जोखा रखा जाता है जिससे प्रक्रिया का विश्लेषण आसानी से किया जा सकता है।
- सूक्ष्म – शिक्षण से व्यावसयायिक परिपक्वता आती है।
- वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन किया जाता है।
सूक्ष्म-शिक्षण के दोष:
1. साधनों का सामान्यतः अभाव होने के कारण सूक्ष्म-शिक्षण में वीडियों फिल्म जो कि सर्वाधिक प्रभावी है, का प्रयोग किया जाना सम्भव नहीं हैं।
2. सूक्ष्म-शिक्षण का उपयोग करने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित अध्यापकों की आवश्यकता है। ऐसे अध्यापकों की कमी है।
3. सूक्ष्म-शिक्षण के लिए अनेक कक्षा-कक्षों की आवश्यकता होती हैै।
महत्त्वपूर्ण प्रश्न भी पढ़ें :
Micro Teaching lesson Plan MCQ in Hindi
1. ’सूक्ष्म शिक्षण कक्षा आकार पाठ की विषयवस्तु समय तथा शिक्षण की जटिलता को कम करने वाली संक्षिप्तीकृत कक्षा शिक्षण विधि है।’ सूक्ष्म शिक्षा की यह परिभाषा किसने दी है ?
(अ) मैक्लीज ने (ब) अनविन ने
(स) एलेन ने ✔️ (द) हरबर्ट ने
2. सूक्ष्म शिक्षण का समय है ?
(अ) 10-20 मिनट (ब) 5-10 मिनट ✔️
(स) 25 मिनट (द) 12 मिनट
3. सूक्ष्म शिक्षण तकनीक(NCERT) के अन्तर्गत पुनर्नियोजन का समय होता है ?
(अ) 12 मिनट✔️ (ब) अधिकतम 5 मिनट
(स) 15 मिनट (द) 6 मिनट
4. सूक्ष्म शिक्षण में छात्राध्यापक द्वारा प्रयुक्त प्रक्रिया का अंग नहीं है ?
(अ) पाठयोजना का निर्माण (ब) शिक्षण
(स) पुनः शिक्षण (द) उद्देश्य कथन ✔️
5. मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से सूक्ष्म शिक्षण किस मनोवैज्ञानिक के अधिगम सिद्धान्त पर आधारित है ?
(अ) ईवान पी. पावलाव (ब) टोलमैन
(स) बी. एफ. स्किनर ✔️ (द) राॅबर्ट एम. गैने
6. सूक्ष्म शिक्षण तकनीक का पद नहीं है ?
(अ) पाठ योजना (ब) शिक्षण सत्र
(स) पुनः शिक्षण सत्र (द) चर्चा सत्र ✔️
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7. ’सूक्ष्म अध्यापन कृत्रिम वातावरण में अध्यापन का एक रूप है जो शिक्षण को जटिलताओं को कम करता है तथा पृष्ठ पोषण प्रदान करता है’ सूक्ष्म शिक्षण की यह परिभाषा किसने दी है ?
(अ) एलन (ब) बुश
(स) मैक्लीज या अनविन ✔️ (द) बोसिंग
8. सूक्ष्म शिक्षण में कक्षा का आकार होता है-
(अ) 5-10 विद्यार्थी ✔️ (ब) 10-20 विद्यार्थी
(स) 10-15 विद्याथी (द) 20-15 विद्यार्थी
9. सूक्ष्म शिक्षण में छात्राध्यापक द्वारा प्रयुक्त प्रक्रिया के अंग ’पुनः पाठ योजना’ में कितने मिनट का समय दिया जाता है ?
(अ) 10 मिनट (ब) 12 मिनट✔️
(स) 15 मिनट (द) 18 मिनट
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